आज के अखबारों में जो खबरें हैं और नहीं हैं उनके मायने समझिये
प्रधानमंत्री हैदराबाद जाने वाले थे और हैदराबाद के व्यस्त एलबी नगर चौराहे पर एक होर्डिंग लगा था जिसमें नेटफ्लिक्स के सीरियल मनी हेइस्ट के कैरेक्टर की तस्वीरें थीं और लिखा था, मिस्टर एन मोदी वी ओनली रॉब बैंक, यू रॉब द होल नेशनल यानी मिस्टर एन मोदी, (हम सिर्फ बैंक लूटते हैं आप तो पूरा देश लूट रहे हैं।)
हैदराबाद डेटलाइन से जेपी यादव की खबर के अनुसार यह सीरियल आठ लुटेरों और एक आपराधिक मास्टर माइंड की कहानी है। तेलंगाना राष्ट्र समिति के सोशल मीडिया संयोजक सतीश रेड्डी ने इसे ट्वीट किया था और इसकी रचनात्मकता की तारीफ की थी। अखबार ने लिखा है कि प्रधानमंत्री इसे रेड्डी के ट्वीटर हैंडल पर देख सकते हैं। अखबार ने अपनी इस खबर का शीर्षक लगाया है, “अगर यह एन है तो नीरव होगा, नहीं?” रेड्डी ने द टेलीग्राफ से कहा, शुक्रवार को बाद में उन्होंने एक और ट्वीट किया और बताया कि इसे कथित रूप से भाजपा कार्यकर्ताओं ने फाड़ दिया। इसमें से एन मोदी शब्दों को निकाल दिया गया था।
इस तरह, उनके ट्वीट में कहा गया है, सिर्फ एन मोदी लिखे पोस्टर को टी-बीजेपी (तेलंगाना भाजपा) के नेताओं ने फाड़ दिया। संभव है, पोस्टर नीरव मोदी के बारे में हो? पर इसे फाड़ देने से लगता है कि भाजपा को पता है कि लुटेरे कौन हैं। नीरव मोदी को आप जानते हैं। उसपर पंजाब नेशनल बैंक के करोड़ों रुपए लेकर भाग जाने का आरोप है और वह प्रधानमंभी के साथ एक ग्रुप फोटो में भी था। रेड्डी ने कहा कि यह होर्डिंग तेलंगाना के युवाओं के एक समूह ने लगाया था वह टीआरएस का काम नहीं था। मुझे यह खबर शनिवार या रविवार कोदिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। आपको दिखी?
आज की दूसरी बड़ी खबर है, अल्ट न्यूज के संपादक को जमानत नहीं मिली और उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया- खबर यह नहीं है। खबर यह है कि दिल्ली पुलिस ने यह खबर कई घंटे पहले, सही दे दी थी। अदालत ने यह फैसला शाम 7 बजे सुनाया जबकि क वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने साढ़े चार घंटे पहले पत्रकारों को व्हाट्सऐप्प पर संदेश भेज दिया था, जमानत खारिज, 14 दिन की न्यायिक हिरासत मिली। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सही भविष्यवाणी का मामला नहीं है और पहले पता होना अपने आप में बड़ी खबर है। लेकिन यह भी इस शीर्षक से आपको कहीं दिखी क्या? बेशक खबर के साथ स्पष्टीकरण या लीपापोती भी है। पर अखबार का काम खबर देना है, फैसला करना नहीं। स्पष्टीकरण अगर कोई है तो वह भी छापा जाना चाहिए था। द टेलीग्राफ ने छापा है और फैसला पाठकों पर छोड़ दिया है।
ये दोनों खबरें दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं हैं। इनके अलावा एक और खबर पहले पन्ने पर होनी चाहिए थी जो सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में है। उदयपुर हत्या के आरोपियों की कोर्ट में पिटाई। वैसे तो कन्हैया कुमार को दिल्ली में पीट दिया गया था तो उदयपुर की क्या बिसात? लेकिन खबर यह है कि इतने वर्षों में
हालात नहीं सुधरे। दिल्ली में पुलिस चाहे भाजपा सरकार की हो या उदयपुर में कांग्रेस सरकार की – अभियुक्त सुरक्षित नहीं है। अगर पुलिस हिरासत में भी व्यक्ति या अभियुक्त सुरक्षित नहीं है तो कहां होगा? और ऐसा बार-बार क्यों हो जाता है। पुलिस के पास ना खुफिया जानकारी रहती है और ना तैयारी। जब खबरें ही नहीं
छपेंगी तो जरूरत भी क्या है। इन खबरों को छोड़कर या छोटे में छाप कर अखबारों ने बताया है कि सरकार की कृपा से अब विदेशों में रह रहे रिश्तेदारों से कोई भी पैसे प्राप्त कर सकता है कार्रवाई के डर बिना। हालांकि, इसमें भी 10 लाख की सीमा है और 90 दिन के भीतर नहीं बताने पर 5 प्रतिशत जुर्माना। (इंडियन एक्सप्रेस में लीड)।
आज जब कोई एक खबर सभी अखबारों में लीड नहीं है तो दूसरे अखबारों की लीड देखना भी दिलचस्प है। टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है, शाह ने एनआईए से यह पता लगाने के लिए कहा कि महाराष्ट्र के व्यक्ति की हत्या नुपुर का समर्थन करने के लिए तो नहीं हुई। मुझे नहीं पता इससे मिलने वाली जानकारी का क्या उपयोग होगा या ऐसी खबर किसके हित में है या इस जांच की क्या जरूरत है पर खबर तो खबर है और उस अखबार की जिसका काम विज्ञापनों का है। इसी खबर का शीर्षक द हिन्दू ने इस तरह लगाया है (अनुवाद मेरा) उदयपुर मामले के बाद एनआईए अमरावती हत्याकांड की जांच करेगा। इस खबर से याद आया, केरल चुनाव से पहले एनआईए को सोने की कथित तस्करी में भी लगा दिया गया था और संबंधित विदेशी अधिकारी भाग निकले थे। चुनाव पूरा हुआ उसके बाद क्या हुआ पता नहीं चला। अब राजस्थान में चुनाव करीब हैं।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की खबर को लीड बनाया है जो हैदराबाद में चल रही है और जिसके लिए वहां एन मोदी वाला बैनर लगा था। हिन्दुस्तान टाइम्स को वह खबर तो नहीं मिली, भाजपा की खबर लीड जरूर बनी है। शीर्षक है, कल्याण के क्षेत्र में भाजपा ने “परिवार की राजनीति” की निन्दा की। भाजपा ने निन्दा को इतना महत्व सिर्फ हिन्दुस्तान टाइम्स ने दिया है। हालांकि, चुनाव से पहले प्रधानमंत्री का कोई नहीं था और बाद में कई मिले, वैसे ही पहले से ज्ञात उनका संघ परिवार दूसरे परिवारों से बेहतर है यह किसी ने नहीं कहा। भाजपा के लोग दूसरे परिवारों की निन्दा तो करते हैं लेकिन अपने संघ परिवार पर नजर शायद नहीं डालते। इसलिए ऐसी खबरों का छपना रेखांकित करने लायक है।
यह दिलचस्प है कि कल सोशल मीडिया पर खबर थी कि उदयपुर हत्याकांड का अभियुक्त भाजपा का करीबी है, भाजपा कार्यालय में जाता रहा है और भाजपा नेताओं के साथ उसकी तस्वीरें हैं – आज यह खबर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने तो नहीं दिखी हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसका खंडन पहले पन्ने पर छापा है। अभियुक्तिों की थाने में पिटाई वाली खबर के साथ जो जाहिर है बहुत छोटी सी है। खबरों के इस खेल में ज़ी न्यूज ने राहुल गांधी की खबर के साथ जो बलात्कार किया उसे वह प्रमुखता नहीं मिली है जो मिलनी चाहिए थी। यह खबर अपने आप में तो महत्वपूर्ण है ही, ज़ी न्यूज के पूर्व एंकर (और संपादक आदि आदि) सुधीर चौधरी की शुरुआत की ही तरह उनके उत्तराधिकारी की भी शुरुआत की तरह है। सुधीर चौधरी का नाम एक फर्जी स्टिंग से हुआ था और उसके बाद ही स्टार बनने के उनके रास्ते खुले थे और ज़ी न्यूज ने उन्हें शरण दी थी।
अब सुधीर चौधरी ने मशहूर तिहाड़ प्रसंग के बाद या बावजूद ज़ी न्यूज छोड़ दिया है और उनकी अनुपस्थिति में जिसने उनका कार्यक्रम डीएनए प्रस्तुत किया उसके साथ कुछ भयंकर मानवीय भूल हो गई है जिसके लिए चैनल माफी मांग रहा है और लोग छी-छी कर रहे हैं। मुझे लगता है कि खबर यह भी थी और पत्रकारिता की यह खासियत है कि हम एक-दूसरे के कपड़े फाड़ने का मौका भी नहीं छोड़ते हैं लेकिन फायदा राहुल गांधी को होना हो तो पूरा विरोधी परिवार एक हो जाता है। वही हुआ है। खबर अगर चाहें तो द टेलीग्राफ में देख सकते हैं। वैसे यह खबर द हिन्दू में भी पहले पन्ने पर है। इस खबर को बाकी अखबारों में पहले पन्ने पर जगह तब भी नहीं मिली है जब कांग्रेस ने भाजपा नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है। दरअसल ज़ी न्यूज ने गढ़ी हुई खबर चलाई थी और भाजपा नेताओं ने उसे प्रचारित यानी साझा किया था।