कायदे-कानूनों की संस्थागत और संरक्षकों द्वारा हत्या
कायदे कानूनों की अलग और नई व्याख्या इस सरकार में जितनी हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई। अब तो यह सर्वविदित है कि चुनाव आयोग मतदान की तारीखें ऐसे तय करता है जिससे सत्तारूढ़ भाजपा को फायदा हो और एक जगह मतदान हो रहा होता है दूसरी जगह प्रचार चल रहा होता है, टीवी पर दिखाया जाता रहता है। अब यह सब गलत भी नहीं है। पहले तकनीक नहीं था पर कुछ गलत लगता था तो उसे रोकने की कोशिश की जाती थी। अब गलत को सही ठहराने के लिए तर्क ढूंढ़े जाते हैं। अखबार और टेलीविजन पर उनकी पोल नहीं खोली जाती जहां संभव होता है, मीडिया खुलकर राजा का बाजा बजाता है। आज भी वही हुआ है। आइए बताऊं कैसे। सबसे पहले तो इसलिए कि दिल्ली नगर निगम चुनाव के एक्जिट पॉल में भाजपा का सूपड़ा साफ होने की खबर को दिल्ली के अखबारों में हिमाचल और गुजरात चुनाव के मुकाबले कम महत्व मिला है। इंडियन एक्सप्रेस में सिंगल कॉलम में है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने दोनों को एक साथ छापा है। दिल्ली की छोटी है।
गुजरात में कल (5 दिसंबर 2022) को दूसरे दौर का मतदान था। सोशल मीडिया पर दिन भर प्रधानमंत्री की मतदान करने की फोटो घूमती रही। उन्होंने एलान कर दिया था कि वे नौ बजे वोट डालेंगे। इस फोटो का मजाक भी उड़ा लेकिन सबको पता है कि मतदान केंद्र में कैमरा ले जाने की अनुमति नहीं होती है। विशेष मामलों में अगर अनुमति दी जाती हो तो उसी के मामले में क्यों दी गई जो नियम नहीं मानने के लिए जाना जाता है। और जो एक पार्टी का स्थायी व प्रधान प्रचारक भी है। बात सिर्फ इस एक फोटो या वोट देने जाते फोटो की नहीं है। वोट देने के नाम पर बाकायदा रोड शो किया गया। तस्वीरें गवाह है। अखबारों में खबर छापने या सीधे लिखने की हिम्मत या इच्छा नहीं है, सो अलग बात है।
इंडियन एक्सप्रेस में आज ये खबर और फोटो साथ-साथ है। फोटो दूसरी खबर के साथ है और नीचे की खबर के साथ फोटो नहीं है। फिर भी दोनों साथ हैं। कायदे से खबर के साथ इसी फोटो को लगाया जाना चाहिए था और कैप्शन से स्पष्ट बात करनी चाहिए थी। द टेलीग्राफ ने बखूबी यही किया है। बाकी मीडिया की अपनी समस्या, सीमा या स्वतंत्रता है। लेकिन इमरजेंसी में जो अखबार सेंसर की गई खबरों के लिए जगह खाली छोड़ देता था वह अघोषित इमरजेंसी में दो खबरों को एक साथ छापकर अपनी बात तो कह रहा है पर सीधे नहीं कहा – कारण चाहे जो हो। खबर यह है, “प्रधानमंत्री ने मतदान किया, गुजरात के मतदाताओं की तारीफ की; कांग्रेस ने दावा किया कि उनने रोड शो किया चुनाव आयोग कहता है, नहीं”। जहां तक इंडियन एक्सप्रेस की बात है, यह फोटो लीड के साथ लगी है। और लीड का शीर्षक है, एक्जिट पॉल के अनुसार भाजपा गुजरात में सूपड़ा साफ कर देगी, हिमाचल में गलाकाट प्रतियोगिता है। हिन्दुस्तान टाइम्स में लगभग यही लीड है पर फोटो नहीं है। द हिन्दू में सुप्रीम कोर्ट की खबर लीड है। इस तरह, द हिन्दू ने अगर अनावश्यक प्रचार को महत्व नहीं दिया तो पोल खोल भी नहीं है।
इंडियन एक्सप्रेस में रोड शो पर कांग्रेस के एतराज की जो खबर लगी है उसके ऊपर लगी तस्वीर का कैप्शन है, “सोमवार को गुजरात चुनाव के दूसरे चरण के लिए अहमदाबाद में अपना वोट डालने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी”। फोटो, कैप्शन खबर सब अपने आप में भले खुलकर सरकार के खिलाफ न हो, पूरा मामला समझ में आ जाता है। अच्छी बात यह है कि इससे विरोध नहीं करने का (अगर ऐसा कोई इरादा या आदेश हो) ख्याल रखते हुए आदर्श पत्रकारिता करने की सीख भी मिलती है। उदाहरण के लिए, यह रोड शो नहीं है तो वोट देने जाता व्यक्ति आम मतदाता भी नहीं है। और अगर मतदाता ही है तो इतने सारे लोग साथ क्यों चल रहे हैं। जाहिर है, मतदाता देश का प्रधानमंत्री है और साथ चल रहे लोग सुरक्षा कर्मी या अधिकारी हैं। अब प्रधानमंत्री अकेले तो जाएंगे नहीं और पैदल ही तो जा रहे हैं। चुनाव आयोग किसी को वोट डालने से कैसे रोके, प्रधानमंत्री के सुरक्षा कर्मी को कैसे रोके? दूसरी ओर, जो कर सकता था वो करना ही नहीं है। इंडियन ए्क्सप्रेस ने तो इतना भर भी किया। दूसरे कई अखबारों से ये भी नहीं हुआ। ऐसे में भगवान बचाए भारत में लोकतंत्र।
आज का प्रचारक नंबर वन टाइम्स ऑफ इंडिया है। यहां जी20 की अध्यक्षता वाली खबर लीड है और शीर्षक है, जी20 की अध्यक्षता पूरे देश की है, प्रधानमंत्री ने कहा। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने इसपर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। द टेलीग्राफ ने खबर दी है कि गुजरत में मोदी के वोटिंग वाले करतब की कांग्रेस और ममता ने निन्दा की। मुख्य शीर्षक है, प्रचार मंत्री और धक्का लगाओ पैनल। द टेलीग्राफ ने भी प्रधानमंत्री की रोड शो वाली तस्वीर छापी है और इसपर चुनाव आयोग के फैसले वाली खबर देने की बजाय लिखा है कि चुनाव आयोग बहुत सख्त है इसलिए हमने इस तस्वीर की केंद्रीय हस्ती की तस्वीर धुंधली कर दी है। इस फोटो का कैप्शन है, “गुजरात विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में एक विनम्र (या मामूली सा) वोटर (इस अखबार ने उसकी तस्वीर धुंधली कर दी है) अपना वोट डालने अहमदाबाद पहुंचता है, पूरी तस्वीर रायटर की है”। कहने की जरूरत नहीं है कि फोटो धुंधली करने के बाद भी विनम्र वोटर को आसानी से पहचाना जा सकता है।
जी20 पर टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड खबर आज कई दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर है ही नहीं। वैसे यह कोई नई बात नहीं है और दूसरे अखबारों की लीड के साथ भी होता रहा है। लेकिन द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर एक सिंगल कॉलम खबर के जरिए बताया है कि केंदीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा उर्फ टेनी के के सुपुत्र आशीष मिश्रा और 13 अन्य आरोपियों को रिहा करने के आवेदन के लखीमपुर खीरी की एक अदालत ने सोमवार को खारिज कर दिया। इस मामले में आरोप तय करने के लिए आज की तारीख निर्धारित की गई है। यह खबर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। दूसरी ओर, टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड यानी जी20 की अध्यक्षता वाली खबर द टेलीग्राफ ने एक खबर अंदर के पन्ने पर छापी है।
इसके अनुसार, प्रतिद्वंद्वियों ने मोदी के जी20 बुलबुले को फिस्स करने की कोशिश की। इसके अनुसार कई विपक्षी दलों ने यह बताने की कोशिश की है कि जी20 की अध्यक्षता बारी-बारी से मिलने वाला पद या काम है और ऐसा नहीं है कि भारत ने पहली बार इस पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन किया है। भले ही मौजूदा शासकों की कोशिश रहती है कि इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि के रूप में दिखाया और प्रदर्शित किया जाए। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और भाकपा के महासचिव डी राजा ने कहा है कि जी20 को पार्टी की राजनीति से ऊपर रखा जाए। मीटिंग से पहले इन नेताओं ने पूछा कि जी20 के प्रतीक में कमल का फूल क्यों है। भले ही यह राष्ट्रीय फूल भी है पर यह एक पार्टी का चुनाव निशान है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री ने भाजपा के पदाधिकारियों की बैठक का उद्घाटन किया और भारत की अध्यक्षता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया तथा इसे गर्व की बात कहा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।