प्रधानमंत्री की सड़क छाप हिन्दी और अखबारों का उसे (अनुवाद करके भी) सिर-माथे लेना!

मणिपुर जल रहा है, सरकार चुनाव प्रचार कर रही है और सरकारी पार्टी अवमानना का मामला बना रही है

मीडिया जो बता रहा है वह साफ-साफ नालायक पक्षपात है 


मणिपुर जल रहा है ‘सरकार’ कर्नाटक में चुनाव प्रचार कर रही है। सरकार समर्थक एक समाचार एजेंसी पर आरोप है कि उसने मणिपुर हिंसा के मद्देनजर केंद्रीय गृहमंत्री के कर्नाटक के कार्यक्रम रद्द होने की झूठी खबर चलाई। यही नहीं, एक वीडियो में अमित शाह कहते सुने जा रहे हैं, लोग ही नहीं हैं …. उसे छोटा करके दोबारा अपलोड करने का आरोप है। भले यह सब संपादकीय स्वतंत्रता और विवेक का मामला है लेकिन आगे-पीछे की घटनाओं और खबरों से इनपर संशय या यकीन होना स्वाभाविक है। कर्नाटक में आज चुनाव प्रचार का अंतिम दिन है और मणिपुर की हिंसा छोड़कर अगर ‘सरकार’ चुनाव प्रचार में लगी हुई है तो इस चुनाव या इसके प्रचार का महत्व समझा जा सकता है और इस प्रचार के दौरान (या कारण) जो सब हो रहा है उसपर गौर करने की कोई सरकारी व्यवस्था हो तो मैं नहीं जानता लेकिन खुद जानने के लिए मैंने जो सब पढ़ा या नोट किया है उसे आपको बताना चाहता हूं। 

आज के अखबारों में पहले पन्ने पर जो खबरें हैं उनमें एक ‘महत्वपूर्ण’ खबर मुझे नवोदय टाइम्स मे दिखी। इस खबर के अनुसार पाकिस्तानी विमान भारतीय वायु क्षेत्र में 10 मिनट तक मंडराता रहा और तारन साहिब तथा रसूलपुर इलाके तक करीब 40 किलोमीटर घूमा। मामला चार मई का है, अखबार वालों को ख़बर 7 मई को मिली तथा 8 मई को मुझे नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर दिखी। यही नहीं, मामला उतना गंभीर नहीं है जितना पहले पन्ने पर होने से लग रहा है। खबरों से स्पष्ट है कि 4 मई की रात 8 बजे मस्कट से लौट रहा पाकिस्तान इंटरनेशनल का विमान भारी बारिश के कारण लाहौर हवाई अड्डे पर नहीं उतर पाया उसे हवा में चक्कर लगाने के लिए कहा गया तथा इसी दौरान वह भारतीय सीमा में घुस गया होगा। यह खबर अगले दिन पाकिस्तान के अखबार में छपी होगी और फिर अगले दिन भारत में प्रसारित हुई जो आज छपी है। यह किसी भी सूरत में पहले पन्ने की खबर नहीं है। फोटो के साथ दो कॉलम में तो बिल्कुल नहीं। 

नवोदय टाइम्स में इस खबर को पढ़ने के बाद मुझे अमर उजाला में खबर दिखी, “चीनी राजदूत से सीखकर समझ बनाते हैं राहुल”। पढ़कर मुझे लगा कि इस सरकार के गजब हालत हैं। पाकिस्तानी विमान भारत सीमा में प्रवेश कर रहा है और विदेश मंत्री अलग राग अलाप रहे हैं। खबर पढ़ने पर पता चला कि वे बात भले विदेश की कर रहे हैं कर चुनाव प्रचार ही रहे हैं और यह खबर मैसूर डेटलाइन से है। अखबार ने बताया है कि इसका विस्तार अंदर के पन्ने पर है लेकिन जब विदेश मंत्री इस तरह चुनाव प्रचार कर रहे हैं तो उसमें पढ़ने लायक क्या होगा। कुल मिलाकर, आज के अखबारों में भी मणिपुर की हिंसा और कर्नाटक का चुनाव प्रचार ही बड़ी खबरों में है। टाइ्म्स ऑफ इंडिया में इससे इतर एक खबर महत्वपूर्ण है। इसके अनुसार तमिलनाडु के सिनेमा घरों ने नुकसान के डर से द केरला स्टोरी नहीं दिखाने का फैसला किया है और प्रदर्शन रोकने के इस फैसले के लिए डीएमके सरकार के किसी आदेश से इनकार किया है। द हिन्दू में आज एक खबर प्रमुखता से छपी है, किसान नेताओं, पहलवानों ने डब्ल्यूएफआई प्रेसिडेंट की गिरफ्तारी के लिए 21 मई की तारीख तय की। 

मैं पहले लिख चुका हूं कि इस मामले में फैसला कर्नाटक चुनाव नतीजे आने के बाद नतीजे के आधार पर होगा। द हिन्दू में आज केरल में नाव डूबने से 22 लोगों के मरने की खबर लीड है। लेकिन कर्नाटक चुनाव प्रचार पर कुछ नहीं है। अंदर खबर होने की सूचना है। इसका शीर्षक, प्रधानमंत्री का यह आरोप है कि कांग्रेस कर्नाटक को अलग करना चाहती है। यह खबर अगर ली गई है और अखबार चाहता है कि पाठक उसपर यकीन करें तो इसे पहले पन्ने पर होना चाहिए था। यह खबर दूसरे अखबारों में भी है लेकिन गंभीर आरोप है, प्रधानमंत्री लगा रहे हैं पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं या क्या कर रहे हैं वह नहीं बता रहे हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि यह आरोप उनकी घटिया  राजनीति का हिस्सा है और अगर इसे रद्दी में फेंकना अनुचित लगता हो तो पहले पन्ने पर छापना चाहिए और प्रधानमंत्री से पूछना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं। 

आइए, अब देखें कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने क्या कहा, अखबारों ने उसे कैसे छापा है और उससे संबंधित कोई मसला अगर है तो क्या है। इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड का फ्लैग शीर्षक है, सत्ता को उकसाना (प्रेरित करना) राजनयिकों से गुप्त रूप से मिलना। मुझे लगता है कि इसमें कुछ गलत नहीं है और अगर है तो प्रधानमंत्री को आरोप लगाने की बजाय कार्रवाई करनी चाहिए। वह भी जल्दी। तथ्य यह भी है कांग्रेस आरोप लगाये तो भाजपा वाले तुरंत शिकायत करते हैं और चुनाव आयोग सबूत मांगता है। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरोप लगाया है और इंडियन एक्सप्रेस ने उसे लीड का शीर्षक बनाया है जो हिन्दी में कुछ इस तरह होता, “कांग्रेस शाही परिवार चाहता है कि कर्नाटक भारत से अलग हो जाए”। पत्रकारिता का संतुलन बनाए रखने के लिए उपशीर्षक है, “प्रियंका का जवाबी हमला – वे विकास, मुद्रास्फीति भूल गए, पता नहीं किस अंतरराष्ट्रीय साजिश की बात कर रहे हैं”। मुझे लगता है कि प्रियंका के इस कथित जवाबी हमले के बाद आरोप का कोई महत्व नहीं है। क्योंकि साजिश की जानकारी सार्वजनिक नहीं है। 

‘जर्नलिज्म ऑफ करेज’ तब होता जब प्रियंका को बताया जाता कि किस साजिश की बात हो रही है और वह साजिश राजनयिक से मिलने की नहीं हो सकती है। लगता है, इंडियन एक्सप्रेस ने हवा- हवाई आरोप को लीड बना दिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने फूल फेंकते हुए प्रधानमंत्री की फोटो के साथ स्कूटर पर बैठे राहुल गांधी की फोटो छापी है और इसका शीर्षक लगाया है, “प्रधानमंत्री ने कहा सोनिया गांधी ‘डरी’ कांग्रेस के लिए प्रचार कर रही हैं”। दूसरी लाइन या दूसरा शीर्षक है, “राहुल ने कहा, डबल इंजन का मतलब है डबल लूट।” मुझे लगता है कि राहुल गांधी ने नई बात की है, डबल इंजन की बहु प्रचारित सरकार का नया मतलब बताया है। नई और मतलब की बात तो यह है। सोनिया गांधी कांग्रेस के लिए प्रचार कर रही हैं इसमें ना कोई खबर है, ना नयापन और ना कोई आरोप ही है। अगर कर भी रही हैं तो इसका उल्लेख करने का क्या मतलब है। क्या उन्हें ‘डरी हुई या निडर’ भाजपा का प्रचार करना चाहिए? प्रधानमंत्री सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल करते हैं यह नई बात नहीं है। 

गुजराती हैं इसलिए उनकी हिन्दी में अर्थ का अनर्थ हो सकता है। सुनने वालों को समझना चाहिए न समझें तो उनका सिरदर्द पर अखबार उसे अभी भी शीर्षक क्यों बना रहे हैं। यह खबर हो सकती है। वैसे यह माना जा सकता है कि अखबार ने दोनों नेताओं की प्रमुख बातों को तुलना करने के लिए साथ रखा है। पर मुद्दा यह है कि प्रधान मंत्री के पास चुनाव प्रचार के लिए, वोट मांगने के लिए कुछ नहीं है। वे भाजपा की प्रशंसा की बजाय कांग्रेस की आलोचना से वोट पाने की कोशिश करते हैं और इसे मीडिया में रेखांकित नहीं किया जाता है जबकि खबर तो यह भी है। तब भी नहीं जब उनका आकर्षण कम हुआ लगता है और कल की चर्चा तथा आज फोटो नहीं होने से लगता है कि उनकी लोकप्रियता कम हो रही है। पर अखबार बता नहीं रहे हैं, दिखा नहीं रहे हैं और लोग शक कर रहे हैं,  डर रहे हैं कि ईवीएम से कुछ खेल हो सकता है। इसलिए अखबार यह सब नहीं बता रहे हैं। आप समझ सकते हैं कि यह सब ऐसे ही चलता रहा तो अखबार और सरकार की साथ का क्या होगा। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में कर्नाटक चुनाव प्रचार की खबर का शीर्षक है, कांग्रेस कर्नाटक को भारत से अलग करना चाहती है। फोटो में प्रधानमंत्री दिख रहे हैं। भीड़ इस फोटो में भी नहीं दिख रही है। हि्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर किसानों की फोटो छापी है और इसका शीर्षक लगाया है, किसान पहलवानों के प्रदर्शन में शामिल हुए। चुनाव, चुनाव प्रचार, सरकार की प्राथमिकता, प्रधानमंत्री की भूमिका (अधिकार और कर्तव्य का निर्वाह), उनसे अपेक्षा की इन सारी खबरों के बीच आज एक खबर प्रधानमंत्री के प्रिय विषय, भ्रष्टाचार, रिश्वत और किक बैक से भी संबंधित है। राष्ट्रीय अखबारों ने इसे पहले पन्ने पर जगह नहीं दी है। अमर उजाला में यह पहले पन्ने पर है। इसकी चर्चा करने से पहले यह बता दूं कि अमर उजाला की आज की लीड प्रधानमंत्री का आरोप है और अमर उजाला की प्रस्तुति के अंदाज में फ्लैग शीर्षक है, “कर्नाटक में सियासी घमासान चरम पर, आज थम जाएगा प्रचार का शोर”। मुख्य शीर्षक है, “कांग्रेस का शाही परिवार राष्ट्रविरोधी काम करने में सबसे आगे : मोदी”। 

इस खबर को इतनी प्रमुखता तब मिली है जब रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिक डॉक्टर प्रदीप मोरेश्वर कुरुलकर को पाकिस्तान को सूचनाएं लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और आज खबर है कि वैज्ञानिक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है। सोशल मीडिया पर इनके आरएसएस से संबंधों की चर्चा है और एक फोटो में वे विनायक दामोदर सावरकर के स्मृति दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में डायस पर बोलते दिखाए गए हैं। पीछे लगे बैनर पर लिखा है, डॉ. प्रदीप कुरुलकर (प्रख्यात शास्त्रज्ञ, डीआरडीओ, पुणे)। यह फोटो 26 फरवरी 2021 की लग रही है। अखबारों में प्रदीप कुरुलकर की चर्चा तो है पर उनके आरएसएस से संबंध पर सन्नाटा है। फेसबुक पर इंडिया न्यूज की संबंधित खबर पर एस पगारे की एक टिप्पणी है, 22 घंटे में एक भी कमेंट नहीं क्यूंकि ये संघी है, पंडित है। अगर मुस्लिम या और कोई होता तो अब तक दस बीस हजार कमेंट आती। यह खबर गलत है या सही है इसपर भी कोई चर्चा नहीं है। जाहिर है आरएसएस के मामले में शांत रहने वाले लोग कांग्रेस और उसके नेताओं के बारे में कुछ भी बोलते हैं और वह छपता भी है। प्रधानमंत्री, भाजपा, आरएसएस की अपनी राजनीति है और उनकी जरूरतें हैं लेकिन मीडिया क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है। 

आप जानते हैं कि शेल कंपनियों के जरिए भारतीय कंपनियों में निवेश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुनावी मुद्दा था और उन्होंने कहा था कि कांग्रेस नेताओं और उनके समर्थकों ने विदेश में इतना पैसा रखा है कि उसे वापस ले आया जाए तो सबको 15 लाख मिलेंगे और वे सत्ता में आ गये तो ये पैसे 100 दिन में वापस ले आयेंगे। इसके बाद जो हुआ या नहीं हुआ वह सब आप जानते हैं। उसमें प्रमुख है कि 20,000 करोड़ रुपए के निवेश पर सरकार बोल नहीं रही है तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जांच कर रही सेबी ने और समय मांगा है। और यह यही सेबी है जिसने अपने तईं सहारा से इतने दस्तावेज मांगे थे जो 128 ट्रक पर भेजे गए थे। दूसरी ओर, भाजपा ने आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा दिल्ली की शराब नीति बदल कर 100 करोड़ रुपए की रिश्वत लिए जाने का आरोप लगाया है और इस मामले में दिल्ली के शिक्षा मंत्री भी जेल में हैं। नरेन्द्र मोदी ने इस मामले के बारे में जो बताया था और चूंकि आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे हैं इसलिए उन्हें बदनाम करने के लिए भाजपा की तरफ से यह भी कहा गया कि वे दूसरों के काम (घोटाले) करवाते हैं और खुद कुछ नहीं करते हैं (ताकि जेल न जाएं)। हमारे गांव-देहात में इसे सौतिया डाह भी कहा जाता है।    

दूसरी ओर जो और जैसा मामला है उसमें बहुत संभावना है कि पैसे अगर लिए गए हों और आरोप के अनुसार गुजरात चुनाव में खर्च किए गए हों तो अडानी के मामले की जांच करने से भी सबूत मिल सकते हैं पर उनकी जांच नहीं हो रही है और अदालत के फैसले के आधार पर आम आदमी पार्टी ने कहा कि यह मामला फर्जी है, झूठा है तो सबूत नहीं होने के बावजूद भाजपा नेता कह रही हैं कि यह आदेश को गलत तरह से पेश करना है और अवमानना का मामला है। मामला यह है कि भाजपा शुरू से बिना किसी सबूत के आरोप लगा रही है और आप शुरू से कह रही है कि कोई घोटाला नहीं है। जब आप सही साबित होती लग रही है तो भाजपा खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसी स्थिति में आकर भी उस लाइन पर जांच नहीं करवा रही है जिससे सबूत मिल सकते हैं। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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