पहला पन्ना: अदालत ने जो डाँट लगाई उसे बताने से भी शरमा गए अख़बार!

आज का दिन निर्विवाद लीड का है। दिशा रवि को जमानत मिलना- अपने आप में बड़ी खबर है। अदालत ने जमानत देते हुए जो कहा वह दिशा की गिरफ्तारी को जायज बताने के लिए दी गई दलीलों को धो देता है, उनके मुकाबले बहुत भारी है। इसलिए भी यह बड़ी खबर है। यही नहीं, दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई से भारत सरकार की छवि को जो धक्का लगा है, भारत में लोकतंत्र की स्थिति को जो प्रचार मिला है उससे भी यह बड़ी खबर है। इसलिए, फैसले को प्रमुखता से प्रचारित-प्रसारित करने से यह संदेश जाएगा कि पुलिस और सरकार भले ही मनमानी कर रहे हों, अदालतें स्वतंत्र हैं और वहां लोकतांत्रिक मूल्यों का ख्याल रखा जा रहा है।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि पुलिस पर कोई दबाव नहीं है और वह स्वतंत्र रूप से काम कर रही है। अगर ऐसा है तो सरकार को चाहिए कि दिल्ली पुलिस की खबर ले। पर वह होगा नहीं और दो-चार दिन में मामला शांत हो जाएगा। असल में यह मीडिया के रूख से ही तय है। आम जनता की ओर से अगर मीडिया सरकार पर दबाव नहीं डालेगा तो सरकार को क्या जरूरत है कि अपने हित में काम करने वालों को दो दिन के लिए भी परेशान करने का। अभी तक होता यह आया है कि ऐसे लोगों को ईनाम मिलता रहा है और उसकी फेहरिस्त बहुत लंबी है। फिर भी मीडिया का ध्यान इन सब बातों पर नहीं रहता है।

यह दिलचस्प है कि दिशा रवि को जमानत मिलने की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर नहीं है। टाइम्स ने गिरफ्तारी की खबर अच्छे से दी थी और बताया था कि दिशा की मां ने मीडिया से बात करने से मना कर दिया। कहा था कि उन्हें पता है कि क्या हो रहा है आदि। ऐसे में आज यह खबर पहले पन्ने पर नहीं होना चौंकाता है। मैंने ठीक से देख लिया कि मैं सही एडिशन देख रहा हूं और इस चक्कर में एक से ज्यादा एडिशन देख लिए। यह दिलचस्प है कि दिशा रवि की खबर पहले पन्ने पर नहीं है और बंगाल भाजपा नेता की गिरफ्तारी की खबर पहले पन्ने पर है। यही नहीं, कोरोना की खबर भी आज पहले पन्ने पर है। यह महाराष्ट्र में कोरोना के मामले बढ़ने की पिछली खबर का भूल सुधार लगता है।

आप जानते हैं कि टाइम्स संस्थान के मालिकान कह चुके हैं कि वे खबरों का नहीं, विज्ञापन का धंधा करते हैं। और फिर पेड न्यूज का मामला भी होता है इसलिए यह ना परेशान होने का विषय है ना ही कोई बहुत बड़ी बात है। बाकी चार अखबारों में यह खबर लीड है और आज मैं भिन्न अखबारों में लीड के शीर्षक की ही बात करूंगा क्योंकि वह भी कम पर्याप्त महत्वपूर्ण नहीं है। द हिन्दू की खबर का सीधा-सपाट और सरल शीर्षक है, दिल्ली कोर्ट ने दिशा को जमानत दी। जज ने कहा कि ऐक्टिविस्ट ने जो टूल किट साझा किया है वह ‘अहानिकर’ है।  पहले पन्ने पर खबर का जितना हिस्सा है उसमें यह भी बताया गया है कि हिंसा करने वालों को पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन से जोड़ने वाला कोई भी सबूत नहीं मिला। अखबार के मुताबिक अदालत ने कहा कि रवि के खिलाफ सबूत स्कैन्टी और स्केची (थोड़े और अधूरे) हैं।

इंडियन एक्सप्रेस ने फ्लैग शीर्षक से बताया है, जज ने कहा कि (टूलकिट में) हिंसा की अपील नहीं है। मुख्य शीर्षक है, अदालत ने कहा, (देश के) नागरिक अंत:चेतना के रक्षक हैं, दिशा को जमानत दी,  अधूरे सबूत के लिए पुलिस की निन्दा की। मुझे लगता है कि इस खबर में जो खास बात है वह हिन्दू की खबर में पहले पन्ने पर नहीं है और द टेलीग्राफ में लीड का शीर्षक है पर इंडियन एक्सप्रेस ने उसे इंट्रो बनाया है। यह कल से सोशल मीडिया पर चल रहा था। इसलिए इसे शीर्षक नहीं बनाने या बनाने के अलग कारण हो सकते हैं पर हिन्दी के पाठकों के लिए मैं इसका निकटतम अनुवाद इस तरह करूंगा, “राजद्रोह का अपराध सरकारों के जख्मी अहंकार की मलहम पट्टी के लिए नहीं लागू किया जा सकता है”।

इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि अदालत की भूमिका इस मामले में कितनी सख्त रही। सरकार और सरकार समर्थकों को भी इस बात को समझना चाहिए। द टेलीग्राफ ने इस शीर्षक के ऊपर फ्लैग शीर्षक लगाया है, प्रधानमंत्री, इससे पहले कि आपके राज में फिर किसी युवा को शिकार बनाए इस टूल किट को पढ़ लीजिए। अदालत ने पहले पन्ने के अपने क्वोट कॉलम के लिए भी इसी फैसले के एक अंश को चुना है, उन्हें (नागरिकों को) सिर्फ इसलिए सींखचो के पीछे नहीं रखा जा सकता है कि उन्होंने सरकार की नीतियों से असमहत होने का निर्णय किया है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब सरकार के साथ-साथ सरकार के समर्थकों के लिए भी समझने की चीज है और दिल्ली पुलिस अगर वाकई स्वतंत्र रूप से काम कर रही है तो उसे समझाने की भी जरूरत है। पर सरकार तो ऐसा करने से रही, आंदोलन का असर उसपर होगा नहीं। मीडिया क्या सोचता है यह जानना मुश्किल है।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज इस खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड के रूप में छापा है। इस तरह अखबार में यह खबर है और पहले पन्ने पर भी है लेकिन अखबार का एक मुख्य पन्ना भी है। उसपर लीड है, मामले कम होने के दौरान टीकाकरण अभियान को तेजी की जरूरत है। यह और टीकाकरण पर इसके साथ एक और खबर है। यहां मुख्य खबर पांच कॉलम में छपी है। पर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर दिशा को जमानत की खबर तीन कॉलम में ही है। इसका शीर्षक है, ‘अधूरा सबूत’ : दिशा को जमानत मिली। हालांकि, फैसले की दो प्रमुख बातें यहां दिशा की तस्वीर के साथ है। टाइम्स ऑफ इंडिया को छोड़कर आज सभी अखबारों में दिशा की तस्वीर पहले पन्ने पर है।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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