पहला पन्ना: यूपी चुनाव के पहले प्रचारकों की बल्लेबाज़ी, मीडिया और संघ की तैयारियाँ!

द टेलीग्राफ की लीड है, "कांग्रेस ने पूछा : प्रधानमंत्री को क्या कहना है?" यह सवाल न सिर्फ समय की जरूरत है, बोलने वाला प्रधानमंत्री चुप हो जाए तो हमेशा पूछते रहना चाहिए। अखबार ने उपशीर्षक लगाया है, "फ्रांस ने कार्रवाई की, दूसरी पार्टियां मौन व्रत पर"। यही नहीं, अखबार ने भारत में रफाल सौदे की जांच पर फ्रांस से अलग फैसला देने वाले उस समय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जिन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया है, से बात की। अखबार के अनुसार उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले में कुछ नहीं कहना है। कहने की जरूरत नहीं है कि बोफर्स मामले में आसमान सिर पर उठा लेने वाला भारतीय मीडिया रफाल मामले में एकदम शांत है।

 

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। नसीब वाले की परीक्षा है। पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी हारने वाले की अब यूपी में विशेष तैयारियां नजर आने लगी हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने आज मास्टहेड पर मोहन भागवत की तस्वीर के साथ उनका बयान छापा है। दूसरी ओर पोप फ्रांसिस के रोम अस्पताल में दाखिल होने की खबर है। इंडियन एक्सप्रेस की लीड एक्सक्लूसिव है। इसके अनुसार, भारत पाकिस्तान में भिड़ंत फिर शुरू हो गई है। पाकिस्तान ने आरोप लगाया है कि भारत ने एलईटी के प्रमुख के घर के पास विस्फोट करवाया। मुझे लगता है यह मुश्किल सवाल पहले हल करने की रणनीति का हिस्सा है।

असल में यह मामला ही ऐसा है कि जब भारत ने दावा किया कि उसने 300 से ज्यादा (सूत्रों के अनुसार) आतंकवादी मार दिए (बालाकोट हमले में) तो पाकिस्तान ने स्वीकार नहीं किया। (भारत भी कोई सबूत नहीं दे पाया और सबूत मांगना देश विरोध बना दिया गया)। अब भारत ने दावा नहीं किया है। पाकिस्तान ने आरोप लगाया है तो भारत स्वीकार नहीं करेगा। और ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस में लीड बनना ‘खबर’ है। खबर में लिखा है, विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया नहीं दी, सूत्रों ने आरोपों को खारिज किया और भारतीय एजेंसी के हाथ होने के आरोपों को गलत, निराधार कहा। पर इंडियन एक्सप्रेस ने अपना काम कर दिया है। मुझे नहीं लगता कि ऐसे में यह खबर नई दिल्ली डेटलाइन से इतनी प्रमुखता पाने लायक है।

खबर कहती है, पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ ने इस्लामाबाद में रिपोर्टर्स से कहा कि तीन लोगों की मौत और 24 लोगों को घायल करने वाले हमले का मास्टर माइंड, एक भारतीय नागरिक है और वह रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) से जुड़ा हुआ है। ट्वीटर पर प्रधानमंत्री इमरान खान ने आरोप लगाया कि इस आतंकवादी हमले की योजना बनाने और इसके लिए धन का प्रबंध करने का संबंध भारतीय प्रायोजकों से है। इसके साथ अखबार ने ही लिखा है कि आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं थी लेकिन सूत्रों ने कहा कि आरोप निराधार हैं।

मेरा मानना है कि बड़ा मामला है, अगर इमरान खान के ट्वीट को गंभीरता से लिया जाए और मान लिया जाए कि यह उनकी अंदरूनी राजनीति का भाग नहीं है तो सरकार प्रतिक्रिया क्यों नहीं कर रही है? और जब सरकार प्रतिक्रिया नहीं कर रही है तो भिड़ंत शुरू कैसे कहा जा सकता है? यह बिना लड़े, लड़ने का फायदा देना है। 2019 चुनाव से पहले घुसकर मारना याद है? ऐसे में पाकिस्तान के इस आरोप को घुसकर मारने का रंग देने की कोशिश कहा जा सकता है। कूटनीतिक तौर पर यह भले गलत हो पर मोदी सरकार ने उसकी परवाह कब की है? आधिकारिक तौर पर तो भारत प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा है, या उस लायक नहीं मानता है या उस स्थिति में नहीं है। किसी भी स्थिति में खबर यह नहीं हो सकती है कि भिडंत शुरू। लेकिन प्रचारक तो अपना काम करेंगे ही। वैसे भी, यह जरूर कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर पाकिस्तान की राजनीति शुरू। बेशक, आप इसे न मानें पर अभी भिड़ंत भी तो नहीं है। मुझे यह (अखबार की) चुनावी खबर लगती है क्योंकि संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान भी बिल्कुल मौके पर चौका है। आइए, उसे भी देख लें।

गाज़ियाबाद में एक किताब के लोकार्पण के मौके पर संघ प्रमुख ने कहा कि हिंदू और मुस्लिम की एकता भ्रामक है क्योंकि वे अलग-अलग नहीं है, बल्कि एक हैं। उन्होंने कहा कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है। उन्होंने यह भी कहा कि पूजा करने के तरीके के आधार पर लोगों में भेद नहीं किया जा सकता है। यही नहीं, भीड़ द्वारा पीट-पीटकर की जाने वाली हत्या (लिंचिंग) में शामिल होने वाले लोगों को उन्होंने हिंदुत्व के खिलाफ कहा है। मैं नहीं कहूंगा कि गाजियाबाद की हाल की घटना, जिसमें ट्वीटर पर एफआईआर हुई उसपर उन्होंने यह सब क्यों नहीं कहा। मैं मान लेता हूं कि वे उसी पर बोल रहे थे और अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं।

उत्तर प्रदेश में जो सब हो रहा है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो सब बोलते करते रहे हैं उससे इसका कोई तालमेल है? नहीं है, तो अब बोलने का क्या मतलब है? मुझे लगता है अखबारों में जगह पाना। इस बयान के राजनीतिक फायदे क्या और कैसे हो सकते हैं वह अलग मुद्दा है। लेकिन उत्तराखंड में तीन मुख्यमंत्री बदले जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश में विचार इतने अलग होने के बावजूद मुख्यमंत्री का बने रहना भी कुछ कहता है। मुद्दा यह भी है और चर्चा इसपर जरूरी है। खासकर तब जब मायावती अकेले रहने की घोषणा कर चुकी हैं। सब मिलाकर लगता है कि उत्तर प्रदेश की तैयारियां व्यापक और मौके के अनुकूल हैं। अखबारों का सहयोग भी।

उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए भाजपा की तैयारियों से जुड़ी दिखने वाली ये दो खबरें दो अखबारों में प्रमुखता से तब हैं जब फ्रांस में राफेल सौदे की जांच हो रही है। कांग्रेस जेपीसी से जांच कराने की मांग कर रही है और नेता लोग बिल्कुल मौन हैं। मैं बाकी के चार अखबारों की आज की लीड और सेकेंड लीड बता देता हूं। इससे आपको अंदाजा लगेगा कि आज कोई दूसरी बड़ी खबर नहीं होगी। मुझे लगता है कि आज एक बड़ी, अच्छी और दिलचस्प खबर यह हो सकती थी कि हर मौके पर कुछ ना कुछ बोलने वाले भाजपा नेता रफाल सौदे की जांच पर क्या बोल रहे हैं? इनलोगों के मुंह में दही क्यों जम गया है। पर ऐसा किसी अखबार में नहीं है या कह सकते हैं कि द टेलीग्राफ में है। उससे पहले बाकी के तीन अखबारों की लीड और सेकेंड लीड

1. द हिन्दू
– जम्मू व कश्मीर प्रशासन ने श्रीनगर में ड्रोन पर प्रतिबंध लगाया
– पुष्कर धामी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई

2. हिन्दुस्तान टाइम्स
– सप्ताहांत तक बारिश फिर शुरू होने से और गर्मी पड़ेगी।
– सत्र के दौरान किसान संसद मार्च करेंगे

3. टाइम्स ऑफ इंडिया
-प्रधानमंत्री ने 4 जुलाई को जोए बिडेन को शुभकामनाएं दीं, चीन को शांत (गुप्त) संदेश भेजा? असल में यह अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस था और चाइना कम्युनिस्ट पार्टी की सौंवी सालगिरह। खबर के अनुसार, भारत ने बिडेन को तो शुभकामनाएं दीं पर पार्टी के 100 साल पूरे होने पर शी को बधाई नहीं दी। भारत से यह काम अकेले सीताराम येचुरी ने किया।

द टेलीग्राफ की लीड है, “कांग्रेस ने पूछा : प्रधानमंत्री को क्या कहना है?” यह सवाल न सिर्फ समय की जरूरत है, बोलने वाला प्रधानमंत्री चुप हो जाए तो हमेशा पूछते रहना चाहिए। अखबार ने उपशीर्षक लगाया है, “फ्रांस ने कार्रवाई की, दूसरी पार्टियां मौन व्रत पर”। यही नहीं, अखबार ने भारत में रफाल सौदे की जांच पर फ्रांस से अलग फैसला देने वाले उस समय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जिन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया है, से बात की। अखबार के अनुसार उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले में कुछ नहीं कहना है। कहने की जरूरत नहीं है कि बोफर्स मामले में आसमान सिर पर उठा लेने वाला भारतीय मीडिया रफाल मामले में एकदम शांत है। मीडिया सरकार का समर्थन और विरोध करता रहा है। यह मुद्दा आधारित होता था लेकिन अब पार्टी आधारित हो गया है और मीडिया का बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में खुलकर बैटिंग करता है। ऐसे में कांग्रेस (और दूसरे दलों को) लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं मिलेगा तो चुनाव निष्पक्ष कैसे होंगे।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

First Published on:
Exit mobile version