अलग चाल, चरित्र और चेहरे वालों के ‘राजधर्म’ पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और अखबारों में प्रस्तुति

आज के अखबारों में दिल्ली के उपराज्यपाल के अधिकार जो केंद्र की भाजपा सरकार ने उन्हें दिए और पारिभाषित किए थे तथा महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फैसले के आधार पर उनके अधिकार की समीक्षा और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से संबंधित लीड ही है। कल फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि आज के अखबारों के पहले पन्ने की लीड यही खबरें होनी हैं और इससे संबंधित खबरें अंदर के पन्नों पर भी होंगी। इसलिए, आज मैं यह बताउंगा कि किस अखबार ने फैसले की किन बातों को महत्व दिया है और खबरें कैसे पेश की हैं। इसमें इस खबर से संबंधित खास बातें होंगी जो अलग अखबारों ने बताई हैं। मुख्य रूप से पहले पन्ने की ही खबरों से यह बताने की कोशिश करूंगा कि अखबारों ने किसकी किन बातों को कितना महत्व दिया है। ऐसी खबरों में सरकार का समर्थन करने वाली, उसके खिलाफ और संबंधित जानकारी सब है। 

मेरा मानना है कि खबर तो सबको मालूम है। अखबारों में कम से कम ऐसे मौकों पर मूल खबर से अलग कुछ ऐसी चीजें होनी चाहिए जो जानने लायक हों। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र की खबर के मामले में यह कहना की सुप्रीम कोर्ट ने शिन्दे सरकार को नहीं हटाया उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री नहीं बनाया, यह तथ्य हो तो भी क्या सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार कर रहा था या फैसले के आलोक में यह मुद्दा रह जाता है? मेरे ख्याल से सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के अधिकार की समीक्षा कर रहा था और दिल्ली के मामले में केंद्र सरकार ने इस संबंध में कानून बनाये थे जबकि महाराष्ट्र के मामले में राज्यपाल के पद छोड़ देने का यह अर्थ लगाया जा सकता है कि वे यह समझ चुके थे कि उन्होंने गलत किया है। भले यह स्वेच्छा से किया हो, दबाव में किया हो, जानबूझकर किया हो या गलती से हो गया हो। 

इसपर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे के साथ उसके राजधर्म से भी संबंधित है। हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व की रक्षा का दावा करने वाली सरकार का राजधर्म निश्चित रूप से चर्चा का विषय होना चाहिए और मौके पर उसकी चर्चा जरूर होनी चाहिए। आइए, देखें अखबारों ने क्या किया है। द टेलीग्राफ ने मुख्य खबर के साथ खबर पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया, भाजपा के लिए नैतिक और कानूनी नुकसान शीर्षक से छापा है। कांग्रेस ने कहा है कि महाराष्ट्र  विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष एकमात्र जायज रास्ता यह रह गया है कि वे दल बदलुओं को अयोग्य ठहराएं और यह एकनाथ शिन्दे की सरकार के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा बन जाएगा। खबर के अनुसार भाजपा को कई मोर्चों पर नुकसान हुआ है तथा इनमें कानूनी, राजनीतिक, नैतिक और सदाचार का मामला है। मुख्य खबर का शीर्षक भी बहुत स्पष्ट है, “राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष गलत थे : सुप्रीम कोर्ट”। द टेलीग्राफ ने महाराष्ट्र की खबर को पहले पन्ने पर रखा है जबकि दिल्ली सरकार या दिल्ली के राज्यपाल से संबंधित मामला अंदर के पन्ने पर होने की सूचना है। 

दिल्ली के अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स ने दिल्ली से संबंधित फैसले को लीड बनाया है और महाराष्ट्र के फैसले को लीड के बराबर में रखा है। शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होता, “निर्वाचित सरकार के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का ठप्पा आम आदमी पार्टी (आप) के लिए जीत है”। मुख्य खबर के साथ फैसले की खास बातों में बताया गया है कि, उपराज्यपाल मंत्री की सहायता, सलाह से बंधे होते हैं। इस फैसले के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एलान किया है कि अभी तक उनके रास्ते में रोड़ा अटकाने वाले अधिकारियों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसके अपने राजनीतिक मायने हैं और इसका असर भविष्य में दिखेगा। पर यह तो होना ही था अगर कोई अफसर होकर भी नहीं समझ रहा था तो उसे भुगतना भी चाहिए। अभी वह मुद्दा नहीं है। 

महाराष्ट्र के मामले में हिन्दु्स्तान टाइम्स की खबर का फ्लैग शीर्षक है, “एकनाथ शिन्दे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने रहेंगे”। कायदे से उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए पर चूंकि भाजपा में इस्तीफे नहीं होते हैं इसलिए वे बने रह सकते हैं लेकिन यह शीर्षक जोखिम वाला है और तकनीकी रूप से गलत। अखबार ने मुख्य खबर के साथ मामले के तथ्यों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा उसे हाइलाइट किया है और साथ में संबंधित कानून को भी। लेकिन यह नहीं बताया है कि अब विधानसभा अध्यक्ष को क्या करना चाहिए और सदस्यों को अयोग्य ठहराया जाता है तो क्या हो सकता है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया ने सिर्फ दिल्ली की खबर को पहले पन्ने पर छापा है। महाराष्ट्र की खबर अंदर होगी। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुख्यशीर्षक का हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होगा, “दिल्ली सरकार का पुलिस, भूमि और जनव्यवस्था को छोड़कर सभी सेवाओं पर अधिकार है”। अखबार ने एक अन्य खबर के जरिए यह भी प्रमुखता से बताया है कि सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद सर्विसेज सेक्रेटी को हटा दिया गया  है तथा अभी और तबादले होंगे। मुख्य खबर के साथ एक बॉक्स में अखबार ने बताया है कि दिल्ली की स्थिति अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में अलग है। दिलचस्प यह है कि केंद्र सरकार ने जानते हुए या अनजाने में दिल्ली सरकार को उसके अधिकारों से वंचित रखा पर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। 50 साल में कुछ नहीं हुआ कहने वाले प्रधानमंत्री ने इन क्षेत्रों में कुछ किया होता तो लगता कि कुछ हुआ पर उलझाकर कई साल प्रॉक्सी राज किया और वह भी ऐसे व्यक्ति के जरिये जिसके खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है।  

इंडियन एक्सप्रेस ने दोनों खबरों को मिलाकर एक बनाया है और बैनर शीर्षक से छापा है। एक तरफ दिल्ली के मामले हैं और दूसरी तरफ महाराष्ट्र के। बीच में न्यायमूर्तियों की तस्वीर है। दोनों खबरों के शीर्षक वही हैं जो आप पहले पढ़ चुके हैं। दोनों खबरों में क्रम से एलजी और पूर्व राज्यपाल की तस्वीर है। शीर्षक वही है जो आप पढ़ चुके हैं। इसके साथ एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड भी है। दिल्ली वाले का शीर्षक है, “तैनाती (पोस्टिंग) दिल्ली सरकार करेगी पर कुछ सीमाएं हैं”। महाराष्ट्र से संबंधित खबर का शीर्षक है, “जीता कोई नहीं पर फायदा महा विकास अघाड़ी को हो सकता है”। इसमें बताया गया है कि तकनीकी तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले को फिर महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के पाले में डाल दिया है कि वे 16 विधायकों के भाग्य का फैसला करें। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर एक खबर है जिसका शीर्षक है, “उद्धव ने कहा, शिन्दे, फडनविस को जाना चाहिए; सरकार ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने बने रहने का अधिकार दिया है”। इसमें बताया गया है, उस समय के राज्यपाल ने कहा है कि उन्होंने नियमों के आधार पर निर्णय़ लिये थे। 

द हिन्दू में दोनों खबरें हैं। महाराष्ट्र की खबर लीड है। दिल्ली वाली उसके बराबर में। इसके साथ अरविन्द केजरीवाल की फोटो है। कैप्शन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सचिवालय पहुंचने पर दिल्ली मंत्रिमंडल के सदस्यों ने उनका अभिवादन किया। इस खबर का शीर्षक है, “सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अधिकारियों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण है”। महाराष्ट्र वाली खबर का शीर्षक है, “फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कहने का राज्यपाल का निर्णय गलत है – सुप्रीम कोर्ट”। उपशीर्षक है, “अदालत ने प्रभावी तौर पर शिन्दे खेमे की अयोग्यता के दरवाजे खोल दिए हैं पर कहा है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल ने उन्हें सरकार बनाने का निमंत्रण देकर सही किया था क्योंकि ठाकरे ने विश्वास मत से पहले स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया था”। अखबार ने मुख्य खबर के साथ एक छोटी सी खबर छापी है जिसका शीर्षक है, फैसले के बाद सबकी नजर विधानसभा अध्यक्ष राहुल नरवेकर पर। 

अमर उजाला में दोनों खबरे पहले पन्ने पर हैं। दिल्ली वाली खबर लीड है और इसका शीर्षक है, “दिल्ली का असली बॉस चुनी हुई सरकार, तबादले और तैनाती पर उसी का अधिकार”। उपशीर्षक के साथ छोटी-छोटी खबरों में वो सब बातें भी हैं जो फैसले में कही गई हैं और दूसरे अखबारों में हैं। महाराष्ट्र के मामले में भी अखबार ने विस्तार से खबर दी है और पहले पन्ने पर फैसले की बहुत सारी खास बातें हैं। इनमें शिवसेना के चुनाव चिन्ह का फैसला चुनाव आयोग पर, विधायकों को अयोग्य घोषित करने की स्पीकर की शक्ति से संबंधित मामले पर सात सदस्यों की पीठ करेगी फैसला जैसी खबरें हैं। मुख्य खबर का शीर्षक है, “उद्धव को फिर सीएम नहीं बना सकते लेकिन राज्यपाल का निर्णय दोषपूर्ण”मुझे लगता है उद्धव को सीएम नहीं बनाने का मामला फैसले में किसी संदर्भ में भले आया हो, इस्तीफा देने के बाद इसे मुद्दा ही नहीं होना चाहिए और यह कहीं नहीं हो सकता है बशर्ते की शिकायत यही हो कि जबरन इस्तीफा लिया गया या इस्तीफा देने के लिये मजबूर किया गया। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानपरिषद के सदस्य बने थे और विवाद होने पर न सिर्फ इस्तीफा दिया था, सरकारी घर खाली कर दिया था और विधानपरिषद की सदस्यता भी छोड़ दी थी। ऐसे में यह मुद्दा ही नहीं है लेकिन टेलीविजन पर छाया रहा और वहीं से अखबारों में भी पहुंच गया। 

नवोदय टाइम्स में दिल्ली की खबर लीड है और मुंबई की खबर लगभग बराबर में है। दिल्ली की खबर तो लगभग वैसी ही है जैसी दूसरे अखबारों में है और पहले बता चुका हूं। महाराष्ट्र की खबर का शीर्षक गौरतलब है। मुख्य शीर्षक है, “शिन्दे सरकार को सुप्रीम राहत”मुझे लगता है कि शिन्दे सरकार को नहीं हटाया जाना राहत नहीं है। शिन्दे और संघ परिवार ऐसा दावा करे तो करे अखबार की राय ऐसी नहीं होनी चाहिए क्योंकि फैसले का सार ऐसा है नहीं। ना कोई यह उम्मीद कर रहा था कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश ऐसा होगा। खबर की खास बातों में फैसले का एक और तथ्य रेखांकित किया गया है और वह है, “शीर्ष अदालत ने पूर्व राज्यपाल कोश्यारी की खिंचाई भी की”। इसके बावजूद शिन्दे ने कहा है और अखबार ने छापा है, “संवैधानिक ढांचे के भीतर सरकार बनाई, अब न्यायालय की मुहर : शिन्दे”। अखबार ने इसके साथ उद्धव ठाकरे की खबर छापी है, “शिन्दे और फडणविस में नैतिकता है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिये”।    

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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