मणिपुर की हालत द टेलीग्राफ से जानिये और अखबारों में सरकारी प्रचार पढ़िये
संसद में मणिपुर पर हंगामा जारी है। आज नवोदय टाइम्स की लीड है, अविश्वास प्रस्ताव पर अड़ा विपक्ष। इसमें बताया गया है कि हंगामे के बीच तीन विधेयक पास भी हो गये। लेकिन यह खबर किसी और अखबार में इतनी प्रमुखता से नहीं है। आज द हिन्दू में एक और महत्वपूर्ण खबर प्रमुखता से छपी है। इसके अनुसार, भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी, ऐक्टिविस्ट वरनॉन गोंजाल्विस और अरुण फेरियेरा को सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल जेल में रहने के बाद जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, हिंसा से संबंधित साहित्य रखना आतंकी हरकत नहीं है, दो को जमानत दी। यही खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में भी लीड है। यहां शीर्षक है, “आंतक से संबंध का सबूत नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने एलगार मामले में दो को जमानत दी”। इंडियन एक्सप्रेस में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिक प्रदीप कुरुलकर के खिलाफ चार्जशीट दाखिल किये जाने की खबर प्रमुखता से है। इनका संबंध आरएसएस से है और इस कारण कहा जाता रहा है कि यह खबर कम छपती रही है। इसे हनी ट्रैपिंग का मामला बताया जा रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस और दूसरे अखबारों में आज छपी खबर के अनुसार मुंबई के मशहूर मजदूर नेता दत्ता सामंत की हत्या के 26 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने मुख्य अभियुक्त और गैंगस्टर छोटा राजन को छोड़ दिया। अदालत ने कहा है कि उसके खिलाफ हत्या की साजिश रचने का कोई सबूत नहीं है। खबर के अनुसार इस मामले में तीन लोगों को सन 2000 में सजा हुई थी। छोटा राजन को वांछित अपराधी कहा गया था। देश छोड़कर भाग चुके छोटा राजन को 2015 में गिरफ्तार कर मुंबई लाया गया और अगस्त 2021 में उसके खिलाफ ट्रायल शुरू हुआ। सीबीआई ने कहा था कि जांच के दौरान कोई नया सबूत नहीं मिला है। 22 गवाहों से जिरह हुई इनमें आठ मुकर गये। अदालत ने कहा कि मुख्य गवाह मुकर गये और अन्य गवाहों की गवाही पर्याप्त नहीं है।
आपको याद होगा, कल यानी शुक्रवार, 28 जुलाई को खबर थी और इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को लीड बनाया था कि यौन उत्पीड़न के वीडियो की जांच सीबीआई करेगी। इस खबर का इंट्रो था, वीडियो बनाने वाले को गिरफ्तार किया गया, फोन जब्त। इससे पहले आपको पता है कि मणिपुर की 4 मई की इस वारदात का वीडियो 70 से भी ज्यादा दिनों बाद सार्वजनिक हुआ और एफआईआर होने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई थी। सरकार ने कोई बयान नहीं दिया था और यह सवाल उठाया गया था कि संसद सत्र से पहले यह वीडियो कैसे सार्वजनिक हुआ। मणिपुर में इंटरनेट महीनों से बंद था। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने इसपर कहा कि सरकार कार्रवाई नहीं करेगी तो हम करेंगे और इसके कुछ ही मिनट बाद पहली गिरफ्तारी की घोषणा हो गई। यह अलग बात है कि जो गिरफ्तार किये गये हैं उनमें वीडियो बनाने वाला भी है।
इसी दिन प्रधानमंत्री ने पहली (और अब तक आखिरी बार) मणिपुर का नाम लिया पर राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी जोड़ दिया। यही नहीं, सरकार ने ट्वीटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स से मामले से जुड़े वीडियो हटाने के लिए कहा। इस तरह, सरकार की चिन्ता घटना से ज्यादा वीडियो वायरल होना था और यह सब कैसे हुआ, गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई, सरकार को पता था या नहीं – आदि मामलों पर जवाब देने की बजाय सरकार ने सीबीआई से जांच कराने की घोषणा की जिसका रिकार्ड पहले ही अच्छा नहीं है। दूसरी ओर, सरकार ससंद में जवाब नहीं दे रही है पर अखबार अभी भी सरकारी प्रचार की खबरों को प्रमुखता दे रहे हैं। दूसरी ओर, रॉयटर्स के लिए कृष्ण कौशिक ने मणिपुर की घटनाओं का विश्लेषण किया है। गोदी मीडिया जब सरकारी दावा प्रचारित कर रहा है कि भारत पर दुनिया का भरोसा बढ़ा और देश में सेमी कंडक्टर क्रांति की शुरुआत हो रही है (अमर उजाला) तो कोलकाता से छपने वाले अंग्रेजी अखबार, द टेलीग्राफ ने मणिपुर के नागरिकों की परेशानी का सचित्र वर्णन किया है।
आज इसे पहले पन्ने पर लीड बनाया है। इंडियन एक्सप्रेस ने गांधीनगर, गुजरात में सेमीकॉन इंडिया – 2023 की खबर देते हुए प्रधानमंत्री की फोटो के साथ पहले पन्ने पर सात लाइन की खबर छापी है। इसका शीर्षक पांच कॉलम में दो लाइन में है। तीन लाइनों में डेटलाइन और बाईलाइन है तथा चार लाइन (एक कॉलम) में इंट्रो है। खबर वही है जो अमर उजाला में है। यहां बताया गया है कि एएमडी भारत में 3300 करोड़ रुपये का निवेश करेगी जबकि इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि यह 400 मिलियन डॉलर है और पांच साल में निवेश किया जाएगा। यहां, सेमीकॉन इंडिया 2023 की मूल खबर का शीर्षक है, भारत आपका भरोसमंद वैश्विक साझेदार होगा, प्रधानमंत्री ने सेमीकंडक्टर निर्माताओं को आश्वासन दिया।
सरकारी प्रचार की इन खबरों को छोड़कर आइये कुकियों की समस्या जानें और समझें कि प्रधानमंत्री इसपर बोल क्यों नहीं रहे हैं। कांगवई (मणिपुर) से कृष्ण कौशिक (रॉयटर्स) की खबर इस प्रकार है : मणिपुर की हरी-भरी तलहटी में राजमार्ग का एक मील का हिस्सा एक भयानक सांप्रदायिक संघर्ष का प्रतीक बन गया है। यहां मई से अब तक 180 से अधिक लोग मारे गए हैं और प्रधान मंत्री नरेंद्र की मजबूत छवि को गंभीर नुकसान पहुंचा है। मैतेई समुदाय और कुकी आदिवासियों के बीच लगभग तीन महीने से जारी सशस्त्र संघर्ष के कारण, प्रतिद्वंद्वी बंदूकधारियों ने राजमार्ग के किनारे और मणिपुर में अन्य स्थानों पर बंकरों और चौकियों में सेंध लगा ली है, और नियमित रूप से हमलावर हथियारों, स्नाइपर राइफलों और पिस्तौल से एक-दूसरे पर गोलीबारी कर रहे हैं।
इस सप्ताह रॉयटर्स ने नए सरकारी आंकड़ों की समीक्षा की और इसके अनुसार, कुकी आदिवासियों ने हिंसा का अत्यधिक खामियाजा भुगता है और पीड़ितों में से दो-तिहाई हैं। इनकी आबादी मैतेई आबादी का एक तिहाई हैं। आंकड़ों के अनुसार, मरने वाले 181 में 113 कुकी और 62 मैतेई शामिल हैं। ये वो मामले है जिनकी रिपोर्ट पहले नहीं की गई थी। आंकड़ों से पता चलता है कि मई के शुरुआत में, जो हिंसा का पहला सप्ताह था, 10 मेइती की तुलना में 77 कुकी मारे गए थे। मणिपुर में तैनात एक सरकारी सुरक्षा अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया, “दोनों पक्षों के पास उपलब्ध संसाधन बराबर नहीं हैं। यह बराबरी की लड़ाई नहीं है।” अखबार ने अपनी इस खबर के साथ बताया है कि रायटर की इस खबर से वह जानकारी संपादित कर दी गई है जो भारत में पहले से सबको मालूम है। सरकारी अनुमान के अनुसार, राज्य शस्त्रागार से लूटे / चुराये गए 2,780 हथियार में ज्यादातर मैतेई के पास हैं जबकि कुकियों के पास 156 हथियार हैं। लूटे / चुराये गए हथियारों में असॉल्ट राइफल, स्नाइपर गन और पिस्तौल आदि शामिल हैं जो मैतेई लोगों के पास हैं।
मैतेई-प्रभुत्व वाली राज्य पुलिस को पक्षपातपूर्ण माना जाता है, जबकि सेना के जवानों को शांति बनाए रखने का आदेश दिया गया है, लेकिन लड़ाकों को हथियार मुक्त करने का नहीं। ऐसे में शीघ्र समाधान का कोई संकेत नहीं है। म्यांमार की सीमा पर मणिपुर की आबादी 3.2 मिलियन है और यह भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है। जबकि कुकी राज्य की आबादी का 16 प्रतिशत हैं, मैतेई लोग 53 प्रतिशत हैं। अधिकतर कुकी लोग राजधानी इम्फाल और आसपास की घाटी को छोड़कर पहाड़ों की ओर भाग गए हैं। यहां मैतेई बहुसंख्यकों का प्रभुत्व है। सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि ज्यादातर हिंसा और हत्याएं मणिपुर की तलहटी के पास बफर जोन में हुई हैं। यहां नियमित रूप से बंदूकों से तेज लड़ाई होती रहती है। राष्ट्रीय राजमार्ग का यह विस्तार जहां मैतेई-प्रभुत्व वाला बिष्णुपुर जिला कुकी-नियंत्रित चुराचांदपुर से मिलता है, बफर जोन में से एक है। यहां सबसे खराब लड़ाई देखी गई है।
इस सप्ताह, जब रॉयटर्स की टीम ने राजमार्ग से कुछ दूर कांगवई के कुकी गांव का दौरा किया, तो दोनों तरफ से गोलियों की आवाजें सुनी जा सकती थीं। 32 वर्षीय जांगमिनलुन टौथांग, एक कुकी लड़ाकू, एक शिकार राइफल लेकर, मैतेई लाइनों के ठीक सामने एक पोस्ट पर तैनात था। उसने कहा कि वह अपने गांव को मैतेई लोगों से बचाने के लिए वहां तैनात था, “जो हम पर हमला करने वाले हैं, जो हमारे घरों को जलाने वाले हैं”। उसने कहा, “जब वे हमला करते हैं तो हम गोली चलाते हैं।” अखबार ने आज संबंधित तस्वीरें भी छापी हैं जो पुरानी नहीं हैं। इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा ने स्थिति को “अराजकता और गृहयुद्ध का मिश्रण तथा राज्य प्रशासन का पूरी तरह तहस नहस हो जाना कहा”।
गुहा ने एक टेलीविजन साक्षात्कार में कहा, “गंभीर राष्ट्रीय संकट के समय में यह प्रधानमंत्री की विफलता है। नरेंद्र मोदी अपने ही बुलबुले में रहते हैं, उन्हें बुरी खबरों से जुड़ना पसंद नहीं है और उन्हें उम्मीद है कि वह किसी तरह इससे बाहर निकल आएंगे। प्रधान मंत्री कार्यालय और राज्य सरकार के प्रवक्ता ने टिप्पणी के लिये किये गए अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। कुकी नागरिक समाज समूह, कुकी इनपी मणिपुर के महासचिव, के हाओपु गंगटे ने इस संघर्ष के लिए जो कहा, वह कुकी भूमि पर हावी होने की मैतेई लोगों की इच्छा थी। उन्होंने कहा, कुकी अब भारत के भीतर एक अलग राज्य चाहते हैं।
गंगटे ने कहा, “जब तक हम राज्य का दर्जा हासिल नहीं कर लेते, हम नहीं रुकेंगे।” “हम केवल मैइती से नहीं लड़ रहे हैं, हम सरकार से लड़ रहे हैं।” प्रमुख मेइतेई संगठन, जिसके सदस्य अग्रिम पंक्ति में हैं, मेइतेई लीपुन के संस्थापक प्रमोत सिंह ने कहा कि सभी मेइतेई लोगों ने संघर्ष का समर्थन किया है। इंफाल के पास अपने घर के बाहर पिस्तौल के साथ बैठे कहा कि उनका समूह कुकियों से तब तक लड़ता रहेगा जब तक वे मणिपुर से अलग राज्य बनाने की मांग बंद नहीं कर देते। उन्होंने कहा, “मैतेई की ओर से युद्ध जारी रहेगा। यह तो बस शुरुआत है।”
जाहिर है, मणिपुर में मामला शांत होने से अभी बहुत दूर है लेकिन सरकार क्या कर रही है नहीं बतायेगी और अखबार पूछेंगे नहीं। प्रचार में लगे हैं सो अलग।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।