पहला पन्ना: इंडियन एक्सप्रेस बना ‘दिल्ली पुलिस एक्सप्रेस’, NHRC का प्रचारक भी!

नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 59,853 मामले हुए और बाल यौन शोषण के 7444 मामले दर्ज हुए। दोनों ही मामले देश में सबसे ज्यादा है। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री झूठ बोलते हैं। दिलचस्प यह है कि ज्यादातर अखबार उसे प्रचारित करते हैं।

 दिल्ली दंगे की दिल्ली पुलिस द्वारा जांच पर उंगलियां पहले से उठती रही हैं। उस पर काफी कुछ लिखा जा चुका है। किताबें भी चुकी हैं और किताबों पर भी विवाद हो चुका है। सबके बावजूद दिल्ली पुलिस पर असर नहीं पड़ा। ऐसे में दिल्ली पुलिस पर जुर्माना लगाए जाने और रिपोर्ट पर अदालत की टिप्पणी बहुत गंभीर है। गुरुवार को मैंने पहला पन्ना नहीं लिखा और यह बता नहीं पाया कि इस खबर को पर्याप्त महत्व नहीं मिला। हिन्दू में यह खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में थी, इंडियन एक्सप्रेस में नहीं थी। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने तीन कॉलम में ठीक-ठाक थी। 

आज सभी अखबारों में राजद्रोह कानून की आवश्यकता और उसपर सुप्रीम कोर्ट की चिन्ता लीड है। लेकिन आज ही पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद हिंसा पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भी खबर है। वैसे तो यह खबर सभी अखबारों में बहुत प्रमुखता से नहीं है लेकिन इंडियन एक्सप्रेस में ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया के साथ है। यह दिलचस्प है कि इंडियन एक्सप्रेस ने ममता बनर्जी की टिप्पणी, “राजनीतिक बदलाको शीर्षक तो बनाया है लेकिन एनएचआरसी के आरोप को भी उतनी ही प्रमुखता दी है।एनएचआरसी ने कहा, ‘शासक के कानून’, टीएमसी नेताओं के नाम लिए, मंत्री ने कानूनी कार्रवाई की धमकी दी।

आप समझ सकते हैं कि दिल्ली दंगों की जांच करने वाली दिल्ली पुलिस के खिलाफ टिप्पणी दिल्ली के अखबार में पहले पन्ने पर नहीं छपी लेकिन बंगाल का मामला दिल्ली में पहले पन्ने पर प्रमुखता से छप रहा है। मोटामोटी मामला यही है कि जैसे दिल्ली पुलिस का उपयोग किया जा रहा है वैसे ही एनएचआरसी को भी काम में लगा दिया गया है। दिल्ली पुलिस आम लोगों को परेशान कर रही है, झूठे मुकदमों में फँसा रही है और एनएचआरसी बंगाल सरकार के खिलाफ प्रचार कर रहा है। दोनों को अपना काम करने दिया जाएअखबार अपना काम करे। पर अखबार एनएचआरसी का सहयोगी बन जाए और दिल्ली पुलिस के लिए पर्दा तो कैसे काम चलेगा। पर यही हो रहा है। 

एनएचआरसी के बयान को इतना महत्व दिया जा रहा है जबकि इसके मुखिया की नियुक्ति नियम बदलकर की गई है। मैं नहीं कहता कि इससे एनएचआरसी का आरोप कमजोर हो जाता है (हालांकि नहीं कहने का कोई कारण भी नहीं है) लेकिन दिल्ली में दिल्ली के मामले को महत्व देने का रिवाज तो है ही। गनीमत यह है कि ममता बनर्जी का पक्ष लिया गया है वरना अब तो उसकी भी जरूरत नहीं समझी जाती है। मेरे ख्याल से दोनों मामले राजनीतिक कारणों से ही चल रहे हैं। एनएचआरसी और उसके मुखिया पर तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट कर आरोप लगाए हैं पर अखबारों को याद नहीं है। 

यह विचित्र है कि एनएचआरसी दिल्ली में बैठकर बंगाल मेंशासक का कानूनकी बात कर रहा है पर उसे ना दिल्ली दिख रही है और ना दूसरे डबल इंजन वाले राज्य। दिल्ली में सरकारी एजेंसी द्वारा आम लोगों को परेशान करने और फंसाने के आरोप हैं। एनएचआरसी की भूमिका यहां थी और यहां उसे खुद संज्ञान लेकर काम करना चाहिए पर वह केंद्र सरकार का हित साधने के लिए बंगाल के मामलों को ज्यादा महत्व दे रहा है। वहां मानवाधिकार हनन हुआ होगा तो बाद में साबित होगा या नहीं होगा। अभी प्रचार हो रहा है। वह हनन भी राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया होगा जिसकी जांच करने के लिए पुलिस है, होती है। लेकिन दिल्ली में मानवाधिकार हनन के मामले हैं, प्रचार भले नहीं हो पर उंगलियां उठ रही हैं। मानवाधिकार आयोग का काम यहां है, मानवाधिकारों की रक्षा यहां करनी है पर वह पश्चिम बंगाल में जांच के नाम पर केंद्र सरकार के आरोपों के पक्ष में सबूत जुटाता और वैसा ही प्रचार करता नजर रहा है। बेशक, आयोग दिल्ली में अपना काम नहीं कर रहा है बंगाल वाला उसने खुद ओढ़ा हो तब भी। 

आज एक और प्रमुख खबर उत्तर प्रदेश के प्रचार की है। यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स और हिन्दू में तो खबर की तरह है, टेलीग्राफ ने इस खबर की खबर ली है और इसे लीड बनाया है। हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, “मोदी ने कोविड, शासन पर यूपी मॉडल का समर्थन किया”। दि हिन्दू में भी यह खबर टॉप पर है। शीर्षक है, “प्रधानमंत्री ने कोविड से निपटने में उत्तर प्रदेश के प्रयासों की तारीफ की।” उपशीर्षक है, “कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए मोदी ने योगी की खूब तारीफ की।” आपको याद होगा कि मुफ्त टीका लगवाने के सरकार के निर्णय की कितनी तारीफ हुई थी जबकि वह उसका काम था। उसने इसमें काफी देर कर दी। इसी तरह कोविड से निपटना सरकार का काम था। नदीं में लाशें मिलीं तो यह पुरानी परंपरा के अनुसार हुआबाद में बताया गया। बचाव करना तो उसका काम था। इसके लिए तारीफ नहीं बनती है। तारीफ तो तब होती जब सरकार ने पहले ही कह दिया होता कि अब लोग परंपरा का पालन करेंगे या लाशें दिखी ही नहीं होतीं और बाद में बताया जाता कि परंपरा का पालन इस बार भी हो गया और पहले की तरह लाशें नहीं दिखीं। पर सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ के बाद भी तारीफ वाकई एक खास शैली है। 

आइए, देखें टेलीग्राफ ने इसपर क्या लिखा है। शीर्षक और फोटो के साथ अखबार ने बताया है कि प्रधानमंत्री ने कल बनारस में क्या कहा और वास्तविकता क्या है। उदाहरण के लिए, कोविड से निपटने में बेजोड़ सफलता के लिए प्रशंसा किए जाने पर अखबार ने बताया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मई में ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत कोआपराधिक कार्रवाई’ औरनरसंहार से कम नहीं’ कहा था। गंगा में बहने वाले और नदी के किनारे रेत में दबाए गए शवों के लिए उस समय जो शब्द सबसे ज्यादा उपयोग किया था वह है Unprecedented (अभूतपूर्व) अखबार के अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा, “(संबंधित अंश सरकारी विज्ञप्ति से) यूपी में बदलाव के ये प्रयास आज एक आधुनिक यूपी बनाने में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। माफियाराज और आतंकवाद, जो कभी बेकाबू हो रहे थे, उन पर अब कानून का शिकंजा है। बहनोंबेटियों की सुरक्षा को लेकर माँबाप हमेशा जिस तरह डर और आशंकाओं में जीते थे, वो स्थिति भी बदली है। आज बहन बेटियों पर आँख उठाने वाले अपराधियों को पता है कि वो कानून से बच नहीं पाएंगे।”

इस पर अखबार ने लिखा है, नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 59,853 मामले हुए और बाल यौन शोषण के 7444 मामले दर्ज हुए। दोनों ही मामले देश में सबसे ज्यादा है। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री झूठ बोलते हैं। दिलचस्प यह है कि ज्यादातर अखबार उसे प्रचारित करते हैं।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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