गोदी मीडिया अभी भी अपनी जिम्मेदारी समझे तो वहां लोगों का भला हो
आज के अखबारों में इंडिया के सांसदों के मणिपुर दौरे की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया को छोड़कर मेरे सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। टीओआई में पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है। यहां बाकी जगह में बनारस में पर्यटक बढ़ने का प्रचार, मानसून की खबर, एनसीटी सेवा विधेयक लोक सभा में पेश किये जाने की सूचना, सैनिक के लापता होने जैसी खबरें हैं और बताया गया है कि मणिपुर से संबंधित खबर पेज आठ पर है। ऐसे में द टेलीग्राफ की लीड आज भी सबसे अलग है। बहुप्रचारित और खर्चीले कल के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मणिपुर का जिक्र नहीं था। अखबार ने खास बातों का उल्लेख कर बताया है कि प्रधानमंत्री अभी भी मणिपुर का नाम नहीं ले रहे हैं। अंग्रेजी में ‘द टेलीग्राफ’ के इस शीर्षक के लिए हिन्दी में – माइक मंगलाचारी जैसा कुछ लिख सकते हैं। हालांकि अंग्रेजी में यहां माइक से सब गड़बड़ करने का भाव है। आज के अखबारों में मणिपुर की खबरों की प्रस्तुति देखें
1.द हिन्दू
मणिपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह नष्ट हो गई है : इंडिया टीम
उपशीर्षक है – सांसदों ने राज्यपाल से आग्रह किया कि केंद्र सरकार को स्थिति की जानकारी दी जाये; प्रधानमंत्री की चुप्पी से राज्य में हिंसा के प्रति उनकी भयंकर उदासीनता का पता चलता है; उन्होंने कहा, हिंसा से प्रभावित लेगों के मामले सुनकर चकित और दुखी हैं
2. हिन्दुस्तान टाइम्स
सांसदों ने शांति योजना के साथ मणिपुर के राज्यपाल से मुलाकात की
3. इंडियन एक्सप्रेस
सभी समुदाय नाराज हैं, प्रधानमंत्री की चुप्पी उनकी उदासीनता दिखाती है : विपक्ष
4. द टेलीग्राफ
‘निर्लज्ज उदासीनता’ के बीच इंडिया का सर्वदलीय मिशन
5.टाइम्स ऑफ इंडिया
अगर नियंत्रित नहीं हुई तो मणिपुर की समस्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है : विपक्ष।
एक और खबर है, मणिपुर को तीन केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा जाये, कुकी नेता और भाजपा विधायक की मांग (अंदर के पन्ने पर)
6. अमर उजाला
मणिपुर मुद्दा जल्द न सुलझा तो देश की सुरक्षा के लिए बन जाएगा समस्या : विपक्ष
7.मणिपुर में स्थिति ‘बेहद गंभीर’ – कहा, संघर्ष जल्द खत्म न हुआ तो देश की सुरक्षा के लिए बन सकता है समस्या।
आज की खबरों में सबसे दिलचस्प है, अमर उजाला में लीड के साथ छपी एक खबर, “विपक्ष सदन में चर्चा करे, भागे नहीं : ठाकुर” – उल्लेखनीय है। केंद्रीय मंत्री ने कहा है तो यह खबर है ही। लेकिन इससे ऐसा लगता है जैसे विपक्ष के बिना चर्चा नहीं हो रही है। पर आप जानते हैं कि सदन में विपक्ष और चर्चा के बिना कानून तो बन जाते हैं लेकिन मणिपुर पर चर्चा के लिए विपक्ष जरूरी है और वह भाग रहा है जबकि मूल खबर ही है कि विपक्ष मणिपुर में है। असल में विपक्ष मणिपुर पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रहा है और अमित शाह तथा अनुराग ठाकुर जैसे लोग कह रहे हैं कि सरकार तैयार है। विपक्ष भाग रहा है आदि। इसमें मामला यह है कि चर्चा किस नियम के तहत हो और मैं पहले लिख चुका हूं कि एक में चर्चा कम समय के लिए होगी दूसरे नियम के तहत हुई तो पूरा समय मिल सकता है। अब आप समझ सकते हैं कि चर्चा क्यों नहीं हो रही है और सरकार क्या दावा कर रही है। वैसे यह राजनीति के स्तर की बात है और अखबार वाले इसे नहीं जान समझ रहे हैं या समझते हुए नहीं बता रहे हैं तो भी – उनके स्तर की बात है। खास बात यह है कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। उसे चर्चा के लिए स्वीकार किया जा चुका है पर चर्चा का समय अभी तक तय नहीं है और उसकी कोई खबर नहीं है।
वैसे तो मणिपुर पर अभी तक कायदे से खबरें छपी ही नहीं हैं और प्रधानमंत्री के कुछ नहीं बोलने का मतलब यह लगाया जा रहा था कि वहां भी गुजरात की तरह बहुसंख्यकों को गुस्सा निकालने की घोषित-अघोषित छूट दिये जाने जैसा कुछ 56 इंची मामला है। पर आज की खबरों से लग रहा है कि दोनों पक्ष असंतुष्ट, नाराज और डरा हुआ है। कानून व्यवस्था की हालत खराब होगी तो ऐसा होगा ही और भले कम आबादी वाले ज्यादा मारे जाएं पर बहुसंख्यक भी मारे जाते हैं और यह अनुपात आबादी के अनुपात में या उल्टा हो यह जरूरी नहीं है। वैसे भी, यह सब हिंसा या दंगे में भाग लेने वालों के लिए मायने रखता होगा उनके लिए तो हर मौत बराबर है और परिवार में मौत का मतलब एक ही होता है। इसलिए समाज में अकेला छोड़ दिये जाने का भाव है और जरूरी चीजों का अभाव है तो सबके लिए होगा।
आज के अखबारों में ऐसी कई खबरें हैं और इनसे पता चलता है कि सरकार ने जो नहीं किया वह इंडिया टीम के दौरे से हो गया। उदाहरण के लिए, दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने के लिए वीडियो लीक होने तक कोई कार्रवाई नहीं होना और लीक होते ही गिरफ्तारी शुरू हो जाना। भले वीडियो बनाने वाले को भी गिरफ्तार किया गया पर आज खबर है कि राज्यपाल अनुसुइया उइके ने दोनों महिलाओं से मुलाकात की और उन्हें सरकार की ओर से 10-10 लाख रुपये दिये गये (अमर उजाला)। बेशक यह सब मामला सार्वजनिक होने से ही हो रहा है और इतने दिनों तक खबर नहीं देकर मीडिया ने अपराध किया है। सरकार ने तो जो किया सो किया ही है मीडिया का यह अपराध उसके समर्थन में लगता है और यह ज्यादा शर्मनाक है।
ऐसे में कांग्रेस सांसद विवेक तनखा ने कहा है कि राज्यपाल (राज्य को मिली उदासीनता की स्थिति में) मातृत्व की छाप छोड़ सकती हैं (टाइम्स ऑफ इंडिया)। राज्यपाल की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए और राज्यपाल को जिम्मेदारी सौंप दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि इससे स्थिति नाटकीय तौर पर बदल सकती है। इसकी तुलना केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से संसद में सवाल पूछे जाने पर उनके जवाब से कीजिये जिसका वीडियो हाल ही में वायरल हुआ था। अंतर सिर्फ यह है कि पद पर रहकर भी वे अपना किया काम नहीं बता सकती थीं और विवेक तनखा ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं होने के बावजूद सलाह दे रहे हैं, काम करने वाली राज्यपाल की प्रशंसा कर रहे हैं। अमर उजाला मंत्री की चुनौती को उनकी तस्वीर के साथ प्रमुखता दे रहा है। यही है आजकल की राजनीति और पत्रकारिता। निश्चित रूप से यह वह पत्रकारिता है जिसमें संघ समर्थक योजनाबद्ध रूप से बहुत पहले स्थापित कर दिये गये थे और कांग्रेस ने जैसे 70 साल कुछ नहीं किया इस क्षेत्र में भी कुछ नहीं किया।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।