जासूसी के आरोप में पत्रकार गिरफ्तार: प्रचारक पत्रकारिता का पाठ !

चीन के लिए जासूसी के आरोप में गिरफ्तार स्वतंत्र पत्रकार राजीव शर्मा (61) का मामला वही लगता है जिसका शक मैंने पहले व्यक्त किया था। मैंने तो शक ही जताया था यह बाकायदा भक्तों की कमाई कराने और उन्हें नियंत्रण में रखने का मामला लगता है। गिरफ्तारी का कारण पत्रकार का नियंत्रण से निकल जाना या किसी बड़े को फंसने से बचाना हो सकता है। किसी पत्रकार पर यह आरोप कि 40 लाख रुपए शेल कंपनियों से आए साधारण नहीं है। अभी तक तो हम-आप यही जानते हैं कि आय और आय का स्रोत (समय पर) बताया जाना चाहिए। पैसे विदेश से आए हैं, सबूत है तो बहुत संभावना है कि खाते में ही आए होंगे और आयकर रिटर्न में दिखाया भी गया होगा। पुलिसिया लीक पर खबरें करने वाले लोग अगर इन बिन्दुओं पर स्पष्टीकरण मांगते होते तो मीडिया ट्रायल नहीं हो रहा होता और सरकार इस तरह मनमानी नहीं कर रही होती। पर वह अलग मुद्दा है।

राजीव शर्मा ने अगर विदेशी अखबारों में लेख लिखे (या सूचनाएं दीं) बदले में भारी राशि प्राप्त की और उसे आयकर में दिखाया तो अपराध अगर कोई है तो वह यही हो सकता है कि जो सूचना दी वह क्या थी? मेरा मानना है कि यह बताया जाना चाहिए और अचानक आय बढ़ते ही पकड़ में आ जाना चाहिए था (अगर गलत होता)। तभी सभी एजेंसियों को सतर्क हो जाना चाहिए था। तब नहीं हुआ इसका कारण और तमाम चीजों के अलावा, अजीत डोभाल से करीबी हो सकती है। और प्रधानमंत्री जी यही तो भ्रष्टाचार है। पर आप पीएम केयर्स में व्यस्त हैं। यहां मुद्दा यह है कि राजीव शर्मा ने (सही या गलत) काम करके पैसे कमाए हैं। अब वह शेल कंपनियों से आया है तो यह देखना पैसे लेने वाले का काम है या आयकर रिटर्न देखने वाले का? और तब क्यों नहीं देखा गया। अगर गलती है तो आयकर वालों की पहले, राजीव शर्मा की बाद में। बहुत संभावना है कि गलती किसी की नहीं हो और यह बाद में पता चले। हालांकि प्रचार करने वाली खबर की अच्छी कीमत मिलने का मामला तो लग रहा है।

राजीव शर्मा के मामले में छपी टेलिग्राफ की खबर को पढ़िए और जो सूचनाएं इसमें हैं – उससे मुझे लगता है कि राजीव शर्मा से पहले पत्रकारिता के नाम पर प्रचार करवाया गया। फल के रूप में कमाई की व्यवस्था की गई और सब ठीक चल रहा था। अब यह माहौल बनाना है कि सरकार जी अकेले क्या-क्या करें? देश का नागरिक ही ऐसा है, जासूसी करता है आदि आदि। ऐसे में सरकार जी की छवि बनाए रखने के लिए कोई बलि का बकरा चाहिए था। वह ढूंढ़ लिया गया है। मैं नहीं कहता कि राजीव शर्मा की गिरफ्तारी गलत है या उनपर आरोप गलत हैं। वह जांच का विषय है पर जांच शायद ही हो। और हो तो शायद ही उसमें कुछ गलत साबित हो। फिलहाल मामले में दम नहीं लगता है। अगर वे गुप्त सूचनाएं विदेश भेज रहे थे तो उन्हें ये सूचनाएं कहां से मिल रही थीं। जब तक यह साफ नहीं बताया जाएगा तब तक शक की सुई अजीत डोभाल पर ही टिकी रहेगी। प्रचारक मीडिया नहीं होता तो भी ऐसे मामले बनाए जाते थे। जनता धोखा खाती रही है। अभी तो सब नियंत्रण में है। गंभीर दिखाने के लिए दूतावास में काम करने वाली चीनी महिला की गिरफ्तारी भी संदिग्ध है। आखिर विदेशी नागरिक पर नजर क्यों नहीं रखा जाना चाहिए और कोई विदेशी नागरिक जासूसी में शामिल हो पता न चले यह मुमिकिन है तो नामुमकिन क्या होता है?

दिल्ली पुलिस ने वाजपेयी सरकार के समय में पत्रकार इफ्तेखार गिलानी को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था। बाद में अदालत में पता चला कि जिन डॉक्यूमेंट्स को पुलिस ने गुप्त बताया था वो रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर खुलेआम उपलब्ध थे। तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज साहब ने खुद प्रयास कर सैन्य अधिकारियों को गवाही के लिए अदालत भेजा था, तब जाकर रिहा हुए थे पत्रकार गिलानी। इस बार भी मामला कहीं वैसा ही न हो, ऐसी आशंका जताई जा रही है। मैंने कल लिखा था बहुत संभावना है कि यह सब सीमा विवाद से संबंधित ठोस खबर लिखने की कोशिश करने वालों को धमकाने के लिए किया गया हो। वरना रफाल पर एन राम की स्टोरी भी चोरी की फाइल से लिखी गई थी !! इसमें अच्छी बात यह है कि भक्ति पत्रकारिता करने वालों के लिए सीख है। हालांकि, वे जिस तालाब में हैं उससे निकल नहीं सकते। भले उसी को दुनिया मानकर खुश रहें। धन्य हैं हम भारत के लोग।


 

संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार हैं और अनुवाद के क्षेत्र के कुछ सबसे अहम नामों में से हैं।

 


 

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