पहला पन्ना: संसद बाधित करने को ‘लोकतंत्र’ बताने वाली बीजेपी को चाहिए दुष्यंत की अँगूठी!

हिन्दुस्तान टाइम्स की आज की लीड है, 'सदन का अपमान' : प्रधानमंत्री; विपक्ष ने रुख सख्त किया। आप कह सकते हैं कि संतुलित खबर है और विपक्ष का पक्ष भी साथ ही है। पर मुद्दा यह है कि क्या विपक्ष को विरोध करने का तरीका भाजपा या नरेन्द्र मोदी से सीखना पड़ेगा और यह उनके अपने पुराने व्यवहार से अलग हो सकता है? सात मिनट में विधेयक पास होना संसद का अपमान नहीं है तो फोटो कॉपी या प्रिंट आउट फाड़ देना अपराध कैसे हो सकता है। दिलचस्प यह है कि हिन्दुस्तान टाइम्स की इसी खबर में कई दूसरी बातें या सूचनाएं हैं जो शीर्षक बन सकती थीं। लेकिन राजा का बाजा बजाने की बीमारी का कोई इलाज नहीं है।

आज टाइम्स ऑफ इंडिया में सिंगल कॉलम की एक खबर प्रधानमंत्री की टिकट साइज की फोटू के साथ छपी है। शीर्षक है, “कागज फाड़ना विधायिका का अपमान है : प्रधानमंत्री मुझे यह खबर मौजूदा स्थिति में पहले पन्ने लायक नहीं लगी। मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री को इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए और कहें तो किस माहौल में, किससे, किस संदर्भ में कहायह सब बताए बिना सिंगल कॉलम में खबर छापना प्रधानमंत्री का अपमान है। वैसे भी, प्रचारकों और प्रचार के लिए खजाना खोले बैठे हमारे प्रधानमंत्री सिंगल कॉलम लायक नहीं हैं। वे ऐसेवैसे कुछ भी बोलने वाले नहीं हैं। वे झूठ, तथ्यहीन और स्तरहीन बातें भी बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से बोलते आए हैं और उसे खूब महत्व मिलता रहा है। ऐसे में अब उन्हें सिंगल कॉलम में निपटा  देना और आधे कॉलम से भी कम की फोटो लगाना असहनीय है। पता नहीं, उनके प्रचारक और उनकी पार्टी इसे कैसे देखेगी पर मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री ने कहा है तो यह खबर (उनके मन की पूरी बात) विस्तार में छपनी चाहिए थी। कहने की जरूरत नहीं है कि टाइम्स ऑफ इंडिया की इस खबर से मैं समझ गया कि आज का पहला पन्ना इसी पर होगा। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड है। और बस इसी से समझ जाइए प्रधानमंत्री क्या चाहते थे। कितने सफल रहे वह अलग बात है लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स में लीड बन जाना साधारण बात नहीं है। होने को यह खबर टेलीग्राफ में भी है पर वैसे नहीं जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया या हिन्दुस्तान टाइम्स में है। टेलीग्राफ में आज पहले पन्ने पर लीड के साथ एक खबर का शीर्षक है, “मोदी को दुष्यंत की अंगूठी क्यों चाहिए।” महाभारत के बारे में मेरा ज्ञान बहुत ही कम है पर मामला मोदी का था तो मैंने लीड से पहले इसी को पढ़ा और समझ में गया कि यह वही खबर है जिसे टाइम्स ऑफ इंडिया ने बिना पकाए, सजाए जस का तस छाप दिया है। टेलीग्राफ में यह खबर जेपी यादव की बाईलाइन से छपी है। पेश है उसका अनुवाद। मुझे महाभारत का संदर्भ मालूम नहीं है। इसलिए हो सकने वाली भूलचूक और अज्ञानता के लिए माफी दे दें और आगे पढ़ें। मामला दिलचस्प तो है ही, ज्ञानवर्धक भी। 

अगर भुलक्कड़ होना ऋषि दुर्वाशा का राजा दुष्यंत के लिए अभिशाप था तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यह बलिदान साबित हुआ है। प्रधानमंत्री के मंगलवार के कथित उपदेश के बारे में इसके अलावा शायद ही कुछ कहा जा सकता है। इसमें उन्होंने कहा कि संसद में विपक्ष का विरोध संविधान, लोकतंत्र और लोगों का अपमान है। भाजपा के सांसदों के लिए मोदी का यह प्रोत्साहन भाषण संसद में विपक्ष में रहने के दौरान उनकी अपनी ही पार्टी के व्यवहार से पूरी तरह उलट था। अखबार ने लिखा है, यूपीए शासन के 2004 से 2014 के दशक के दौरान मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में भाजपा ने संसद को स्तबंध कर दिया था। ऐसा, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। और तब अपनी इन कार्रवाइयों को किसी अन्य रूप की तरह लोकतंत्र का रूप कहा था। दुष्यंत शकुंतला को याद कर पाएं इसके लिए मछली के पेट से निकाली गई शाही अंगूठी जैसा कुछ को प्रधानमंत्री को चाहिए तो उन्हें पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च के अनुसंधान को देखना चाहिए।  

मुनाफा कमाने वाले इस संगठन ने पाया है कि 2009 से 2014 तक की 15वीं लोकसभा की उत्पादकता 50 साल में सबसे खराब थी। सत्र दर सत्र पूरी तरह या आंशिक तौर पर बेकार गए खासकर यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर जोरदार विरोध हुए थे। अपनी पार्टी के ऐसे व्यवहार से बेखबर या बेपरवाह दिखते मोदी ने विरोध और संसद रोकने की कोशिश के लिए मंगलवार को विपक्ष पर हमला बोला। आप जानते हैं कि विपक्ष पेगासुस जासूसी के आरोपों के साथ किसानों के प्रदर्शन और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की मांग करता रहा है पर सरकार ने अभी तक ऐसी किसी चर्चा की जरूरत स्वीकार नहीं की है। ऐसे में  खबर है कि तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ब्रायन ने सरकार पर जल्दबाजी में विधेयकों को पारित कराने का आरोप लगाया है। सोमवार को उन्होंने कहा कि सात मिनट से भी कम में एक विधेयक पास कराया गया। ब्रायन ने एक ट्वीट के जरिए कटाक्ष किया और लिखा, पहले 10 दिनों में संसद में कमाल! मोदीशाह ने 12 विधेयक पास कराये। इसका औसत समय सात मिनट प्रति विधेयक है.” उन्होंने ये भी कहा कि, विधेयक पास करा रहे हैं या पापड़ी चाट बना रहे हैं। इस बयान पर भी पीएम मोदी ने नाराजगी जताई। 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रचारकों के नेता हेडलाइन मैनेजमेंट के उस्ताद हैं। पर डेरेक ब्रायन भी चाय बेचने वाले उस्ताद नहीं हैं और ना ही पूरा मीडिया गोदी में है। तो हुआ यह कि टेलीग्राफ ने सांसद डेरेक ब्रायन की एक कॉलम की तस्वीर छापी है जिसमें वे कई प्लेट पापड़ी चाट लेकर बैठे और खाते दिखाए गए हैं। अखबार ने बताया है कि तृणमूल सांसद के ट्वीट का विरोध एक केंद्रीय मंत्री ने बिना नाम लिए किया और कहा कि संसदीय प्रक्रिया के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही हैं। मंगलवार को मोदी की कथित टिप्पणियों के जवाब में डेरेक ब्रायन ने तृणमूल कांग्रेस के साउथ एवेन्यू स्थित कार्यालय में पापड़ी चाट मंगाकर खाया। कहने की जरूरत नहीं है कि बिना चर्चा विधेयक पास करवाना और सात मिनट से भी कम समय में विधेयक पास करवा लेना जनता का अपमान है या संसदीय व्यवस्था का? चर्चा इस पर होनी चाहिए थी और दूसरे मुद्दे तो हैं हीं पर चर्चा हो रही है कुछ और। कहने की जरूरत नहीं है कि इस चक्कर में पेगासुस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की एडिटर्स गिल्ड की खबर भी दब गई या रह गई। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में  कोई 100 शब्दों में निपटा दिया है। बाकी अंदर के पन्नों पर होगा।  

 

हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर 

हेडलाइन मैनेजमेंट की चर्चा (या आरोप) हिन्दुस्तान टाइम्स की आज की खबर की चर्चा के बिना पूरी नहीं होगी। इसपर आने से पहले मैं बता दूं कि आज इंडियन एक्सप्रेस और द हिन्दू में इस खबर की चर्चा पहले पन्ने पर नहीं है। और कल राहुल गांधी ने विपक्षी नेताओं को सुबह के नाश्ते पर बुलाया था फिर पेट्रोल की कीमत बढ़ाने के खिलाफ साइकिल से संसद गए। लेकिन खबर वैसे नहीं छपी है जैसे अंशकालिक ट्रोल की भूमिका निभा रहे केंद्रीय मंत्रियों के बयान छपे हैं या छपते रहे हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स की आज की लीड है, ‘सदन का अपमान‘ : प्रधानमंत्री; विपक्ष ने रुख सख्त किया। आप कह सकते हैं कि संतुलित खबर है और विपक्ष का पक्ष भी साथ ही है। पर मुद्दा यह है कि क्या विपक्ष को विरोध करने का तरीका भाजपा या नरेन्द्र मोदी से सीखना पड़ेगा और यह उनके अपने पुराने व्यवहार से अलग हो सकता है? सात मिनट में विधेयक पास होना संसद का अपमान नहीं है तो फोटो कॉपी या प्रिंट आउट फाड़ देना अपराध कैसे हो सकता है। दिलचस्प यह है कि हिन्दुस्तान टाइम्स की इसी खबर में कई दूसरी बातें या सूचनाएं हैं जो शीर्षक बन सकती थीं। लेकिन राजा का बाजा बजाने की बीमारी का कोई इलाज नहीं है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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