पहला पन्ना: फ्रांस राफेल सौदे और ब्राजील कोवैक्सिन खरीद की जाँच करायेगा, बधाई मोदी जी!

हमेशा की तरह, संपादकीय प्रतिभा का उपयोग द टेलीग्राफ ने किया है। उसका शीर्षक है, "फ्रांसिसियों ने वह करने की हिम्मत दिखाई जो हमने नहीं किया।"

वैसे तो आज इंडियन एक्सप्रेस को छोड़कर बाकी के चार अखबारों की लीड एक ही है, रफाल सौदे की जांच फ्रेंच जज करेंगे। लगभग यही शीर्षक इंडियन एक्सप्रेस में भी है। यहां एक कदम आगे बढ़कर बताया गया है कि रफाल सौदे के आरोपों की जांच के लिए जज की नियुक्ति हो गई है। लेकिन यहां यह खबर लीड या टॉप पर नहीं, टॉप की खबर के नीचे है। और लगे हाथ टॉप की खबर भी जान लीजिए, सोनिया गांधी अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा संसदीय दल का नेता पद से हटाने वाली हैं या कहिए हटा कर किसी और को यह पद दे सकती हैं। रफाल सौदे में जज नियुक्त हो गया से ज्यादा महत्व अखबार ने लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता बदले जाने की अटकलों को दिया है। हमेशा की तरह, संपादकीय प्रतिभा का उपयोग द टेलीग्राफ ने किया है। उसका शीर्षक है, “फ्रांसिसियों ने वह करने की हिम्मत दिखाई जो हमने नहीं किया।”

कहने की जरूरत नहीं है कि इससे यह याद आ जाता है कि हमने तो जज (जों) को पुरस्कृत किया है। सात कॉलम की इस लीड खबर का फ्लैग शीर्षक है, “रफाल लड़ाकू विमान सौदे में भ्रष्टाचार की जांच के लिए फ्रांस में जज नियुक्त किए गए।” फ्रांस से मिली इन खबरों के साथ कांग्रेस ने संयुक्त संसदीय दल से जांच की मांग की है जो हिन्दू में प्रमुखता से छपी है। वैसे यह मांग टाइम्स ऑफ इंडिया में भी है लेकिन अखबार ने इसके साथ भाजपा प्रवक्ता को भी अपना मंच मुहैया करवाया है। जांच और जांच की मांग पर प्रतिक्रिया से ज्यादा महत्वपूर्ण था फ्रांस की खबर में उल्लिखित भारतीय मामलों का स्पष्टीकरण या किन मामलों की जांच होनी चाहिए। यह काम द टेलीग्राफ ने किया है और लिखा है कि अनिल अंबानी की कंपनी ने शनिवार को सवालों के जवाब नहीं दिए। भारतीय विदेश सचिव ने 8 अप्रैल 2015 को क्या कहा था और भारतीय प्रधानमंत्री ने 10 अप्रैल को क्या कहा था। उससे पहले क्या स्थिति थी। 

 

ब्राजील में कोवैक्सिन खरीद की जांच 

यह दिलचस्प है कि फ्रांस अगर भारत को लड़ाकू विमान बेचने के सौदे की जांच की जरूरत समझ रहा है तो ब्राजील के सुप्रीम कोर्ट ने कोवैक्सिन खरीदने के सौदे की जांच के आदेश दिए हैं। आप समझ सकते हैं कि दोनों खबरों का एक दिन एक साथ छपना कितना गंभीर है। मेरे पांच अखबारों में सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया ने दोनों खबरें एक साथ छापी हैं। बाकी संयोग हो या प्रयोग, हेडलाइन मैनजमेंट भी हो सकता है, कल ही कोवैक्सिन की सफलता से संबंधित जानकारी जारी की गई और द हिन्दू में वह पहले पन्ने पर छाई हुई है। द हिन्दू में यह खबर लीड के ऊपर सात कॉलम में छपी है। उत्तरांखड में चार महीने में तीसरे मुख्यमंत्री की खबर भी आज पहले पन्ने पर है लेकिन ब्राजील का मामला किसी भी सूरत में आज अलग या अंदर छापने लायक नहीं है। 

 

कोवैक्सिन की सफलता – हेडलाइन मैनेजमेंट? ा

टीओआई ने कोवैक्सिन की सफलता की खबर अंदर होने की सूचना जांच वाली मुख्य खबर के साथ छापी है। ब्राजील के सुप्रीम कोर्ट ने वहां के राष्ट्रपति की भूमिका की जांच के आदेश दिए हैं। दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार, “ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो कोरोना वैक्सीन खरीद में घोटाले के आरोपों में फंस गए हैं। लोकल मीडिया के मुताबिक, यह मामला भारत बायोटेक की कोवैक्सिन की डील से जुड़ा है। जी1 वेबसाइट की रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्राजील के सुप्रीम फेडरल कोर्ट ने भारत की कोवैक्सिन की खरीद में ज्यादा कीमत चुकाने पर राष्ट्रपति की जांच को मंजूरी दे दी है।” टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय के आयात डिविजन के प्रमुख लुइस रिकार्डो मिरांडा ने कहा कि भारत बायोटेक से 20 मिलियन वैक्सीन खरीदने के लिए उनपर गैर वाजिब दबाव पड़ा। इनवॉयस में अनियमितता थी खासकर सिंगापुर आधार वाली कंपनी को 45 मिलियन डॉलर का अपफ्रंट भुगतान करने को लेकर। बोल्सोनारो और भारत बायोटेक ने कुछ गलत करने से इनकार किया है।

 

सरकारें झूठ क्यों बोलती हैं 

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज एक और महत्वपूर्ण खबर है, “दिल्ली हाईकोर्ट: सरकारें अदालतों में झूठ क्यों बोलती हैं।”इस खबर के साथ न्यायमूर्ति जेआर मिधा का कोट है, ऐसा लगता है कि झूठे दावे बिना किसी डर के किए जाते हैं क्योंकि कोई किसी सरकारी अधिकारी की कोई जिम्मेदारी नहीं है। सिक्किम ने अदालती मामलों की हैंडलिंग में चूक के लिए अपने अफसरों को जिम्मेदार ठहराने के नियम बनाए हैं। केंद्र और दिल्ली सरकार द्वारा ऐसे ही नियम बनाए जाने की आवश्यकता है। यह खबर विस्तार से अंदर के पन्ने पर है। लेकिन दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर इतना भी नहीं दिखा।      

 

वीसी किताबें बेचेंगे 

इंडियन एक्सप्रेस में एक दिलचस्प खबर है। राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को एक  जुलाई को राज्यपाल कलराज मिश्र की आत्मकथा, “निमित्त मात्र हूं मैं” के लोकार्पण में बुलाया गया था। यह उनका 80वां जन्म दिन भी था। कुलपति जब वापस अपनी गाड़ियों के पास पहुंचे तो उन्हें दो कार्टन में किताब की 19 प्रतियां मिलीं और ड्राइवर ने 68,383 रुपए का बिल सौंपा। यह कॉफी टेबल फॉर्मैट में हार्ड कवर वाली किताब है। किताब की एक अतिरिक्त कॉपी मुफ्त थी। खबर के अनुसार, राज्यपाल के साथ मुलाकात के दौरान किसी ने हमारे ड्राइवर का नाम और नंबर लिया। हम समझे कि यह खाना-पानी देने के लिए होगा पर कहानी कुछ और थी। यह किताब 3999 रुपए की है और इसपर 10 प्रतिशत की छूट दी गई है। किताब की बिक्री से प्राप्त धन का उपयोग राजस्थान से संबंधित अनुसंधान परियोजनाओं के लिए होगा। बिल में पांच किताबों के नाम लिखे हैं लेकिन किताबें एक ही थीं। जो हो, दिलचस्प यह है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार है और विश्वविद्यालयों के कुलपति राज्य सरकार द्वारा नियुक्ति किए गए हैं। ऐसे में (पूर्व) भाजपा नेता और राज्यपाल द्वारा किताबें बेचने का यह तरीका लीकहोना ही थी। 

 

सांसदों को चाहिए चरित्र प्रमाणपत्र 

द टेलीग्राफ में  पहले पन्ने पर आज एक खबर है, जिसमें सांसदों को प्रमाणपत्र की आवश्यकता बतायी गयी है। बैंगलोर डेटलाइन की इस खबर में बताया गया है कि केरल के सात सांसदों ने लक्ष्यद्वीप में प्रवेश की अनुमति मांगी थी तो उनसे कहा गया है कि प्रायोजक से घोषणापत्र पेश करें जिसमें उनके अच्छे आचरण का जिम्मा लिया जाए और मजिस्ट्रेट या नोटरी के समक्ष दस्तखत किया जाए। ये वामपंथी सांसद मई से लक्ष्यद्वीप में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं और नए प्रशासक प्रफुल कोडा पटेल के जनविरोधी निर्णयों से संबंधित आरोपों की जांच करना चाहते हैं। पर उन्हें कोविड के कारण अनुमति नहीं दी गई थी। सांसदों ने इसे विशेषाधिकार हनन का मामला माना था और लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा था। गए हफ्ते इनलोगों ने केरल हाईकोर्ट में अपील की है। अच्छे आचरण की घोषणा मांगने वाला पत्र इसके बाद आया है। सासंदों से फॉर्म भरने और पता का सबूत देने के साथ प्रवेश शुल्क के 50 रुपए जमा करने का सबूत भी मांगा गया है। माकपा नेता एएम आरिफ के हवाले से अखबार ने लिखा है कि आम पर्यटकों से तो फॉर्म भरने के लिए कहा जाता रहा है लेकिन सांसदों से कभी ऐसा नहीं कहा गया। खबर में और भी विवरण है जो बताते हैं कि अधिकारियों की मनमानी का मामला है जैसा दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है। देखना है कि सांसद इस मामले में क्या कर पाते हैं। 

 

 लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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