ख़बरों की विश्वसनीयता संकट में है लेकिन परवाह किसी को नहीं!

 

प्रधानमंत्री प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते तो ऐसा होना ही था लेकिन चर्चा उसकी भी नहीं है

 

सरकारी कार्रवाई में जाति धर्म और पार्टी के आधार पर अंतर अब साफ दिखने लगा है। यहां तक कि अदालतों के फैसले में भी इसके उदाहरण ढूंढ़े जा सकते हैं। नरोदा गाम मामले में एसआईटी ने ऊपरी अदालत में अपील करने की बात की है लेकिन जिन मामलों में नहीं की गई उनके मामले जरूर देखने लायक होंगे। पर क्या वह कभी देखा जाएगा? इन तथ्यों और सवालों के बीच आज के अखबारों की खबरों से यह चिन्ता निराधार नहीं लगती है। आइए, शुरुआत आज के टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने की खबरों के कुछ शीर्षक से करते हैं। देखिये, दिलचस्प हैं

  1. असम युवक कांग्रेस की बर्खास्त अध्यक्ष की शिकायत 
  2. पुलिस युवक कांग्रेस अध्यक्ष से पूछताछ करेगी। 
  3. कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष की गिरफ्तारी की मांग 
  4. तीन महीने बाद जंतर मंतर पर फिर धरना शुरू 
  5. दिल्ली में स्कूटर खड़ा करने के झगड़े में दो ने एक को मार डाला 
  6. साहिबाबाद में इंटीरियर डिजाइनर व ड्राइवर की पिटाई  
  7. कुनो में दूसरा चीता मर गया 
  8. आवारा कुत्तों ने अलीगढ़ में दो बच्चों को मार डाला 
  9. प्रधानमंत्री कोच्चि में चर्च के आठ शीर्ष लोगों से मिलेंगे 
  10. तेलंगाना के असंवैधानिक मुस्लिम कोटा को रद्द कर देंगेशाह 
  11. जनसंघ के समय से पार्टी छोड़ने वालों का भला नहीं होता: नड्डा 

हिन्दू की खबरें 

  1. येदुरप्पा को हटाया नहीं गया है, नई पीढ़ी के लिए जगह छोड़ी है 
  2. भाजपा के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की मांग पर दृढ़ हैं पायलट 
  3. एमीवए में मतभेद नहीं, सरकार ध्यान बांटने की कोशिश मेंअजीत 

इंडियन एक्सप्रेस की खबरें 

  1. शिन्दे राज में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ 25 एफआईआर 10 महीने में 

इधरउधर से 

  1. एनसीपी की टूट से पवार का इनकार नहीं 
  2. वे (भाजपाई) समझते हैं कि सच सिर्फ लोकसभा में बोला जा सकता है। लेकिन सच कहीं से भी बोला जा सकता है, यहां से भीराहुल गांधी, कर्नाटक में एक रोड शो में।     

कहने की जरूरत नहीं है कि ये सब के सब हल्कीफुल्की खबरें हैं और इनकी प्राथमिकता मैंने तय की है। हालांकि, किसी किसी अखबार में ये पहले पन्ने पर हैं। पहले पन्ने की इन खबरों से पता चलता है कि देश में खबरों के मामले में हालत क्या है। बेशक ये खबरें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष और विपक्ष के प्रमुख नेता से संबंधित हैं लेकिन इनमें प्रशासन कहीं नहीं है, प्रशासन की नाकामी से संबंधित खबरें जरूर हैं। युवक कांग्रेस के आंतरिक मामले में असम पुलिस की सक्रियता की खबर है तो कुश्ती महासंघ के मामले में सरकार और पुलिस दोनों की चुप्पी की खबर है और इस तथ्य के बावजूद है कि केंद्रीय गृहमंत्री ने पूछा है और इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर छापा है कि सत्यपाल मलिक जब गवरनर थे तब चुप क्यों थे। 

कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष से पीड़ित तो चुप नहीं हैं, क्या हो रहा है? मुझे लगता है कि इस सवाल का कोई मतलब नहीं है और यह गृहमंत्री के स्तर का सवाल नहीं है। जवाब वैसे भी बहुत आसान है। सबको पता है कि विमान से भेजने के विकल्प का उपयोग नहीं किया गया। फिर भी, अगर सवाल है तो जवाब यह हो सकता है, घटना का चुनावी फायदा उठाया गया था। इसलिए चुनाव से पहले याद दिला दिया गया है। ठीक है कि सत्यपाल मलिक ने ऐसा कहा नहीं है पर यही स्थिति रही तो उन्हें कहना पड़ेगा। दूसरी ओर, केंद्रीय गृहमंत्री ऐसा सवाल तब कर रहे हैं जब मामला बहुत साफ है और सरकार की हालत अब किसी से छिपी नहीं है। लोग समझने लगे हैं। पर वह मेरा मुद्दा नहीं है। 

द टेलीग्राफ ने भी आज इस खबर को लीड बनाया है पर इसके साथ ही पाठकों को बताया है कि 14 अप्रैल को इंटरव्यू अपलोड होने के बाद से सरकार ने कुछ नहीं कहा है जबकि मलिक ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें उस समय कहा था, तुम चुप रहो। यही नहीं, इस मामले से संबंधित और भी सवाल है जिनका जवाब नहीं है और इनमें एक यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी को भ्रष्टाचार से बहुत दिक्कत नहीं है। लेकिन अमित शाह ने पूछा है तो टेलीग्राफ ने पूरी बात बताई है और यहां तक कहा है कि अमित शाह पूरी तौर पर खबर का खंडन करने का मौका चूक गए और सिर्फ यही कहा कि सरकार को कुछ छिपाना नहीं है। 

अखबार के अनुसार अमित शाह ने कहा है, “लोगों और पत्रकारों को साख के बारे में भी सोचना चाहिए। अगर यह सब सही है तो जब वे राज्यपाल थे तो चुप क्यों थे।” वैसे यही सवाल अमित शाह से भी पूछा जा सकता है कि वे अभी तक चुप क्यों थे? दूसरी ओर, इंडियन एक्सप्रस ने संबंधित तथ्य तो नहीं ही बताये हैं सिर्फ अमितशाह ने जो कहा उसे लिखा है और साथ ही एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड में बताया गया है कि राज्यपाल इस और दूसरे मुद्दे को उठाते रहे हैं। इनमें 2019 का पुलवामा हमला भी है। अखबार ने यह भी  लिखा है, मुद्दों की संवेदनशील प्रकृति के मद्देनजर सरकार ने ऐसे विशिष्ट सवालों पर जवाब नहीं देने का निर्णय किया था।   

दिल्ली और साहिबाबाद में आपसी मारपीट की खबरें बताती हैं कि लोगों का पुलिस पर विश्वास या भरोसा कम हो रहा है और लोगों की प्रवृत्ति पुलिस से शिकायत कर कार्रवाई का इंतजार करने की बजाय आपस में मौके पर ही सुलटा लेने की है और यह बुलडोजर न्याय का वीभत्स चेहरा है। हो भी क्यों नहीं, अगर महाराष्ट्र में प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ 10 महीने में 25 एफआईआर हुई है तो उसके मायने हैं और ये तो वो हैं जो खबरों में हैं। जो नहीं हैं या जो खबरें भुला दी गई वो अलग हैं। कुल मिलाकर यह सब राम राज्य के दृश्य हैं। आवारा कुत्तों का मामला गंभीर होता जा रहा है, बंदर भी हैं। केंद्र ने राज्यों से कहा जरूर है पर अलीगढ़ में फिर हादसा हो गया। यहीं कुछ दिन पहले हुए हादसे ने इस समस्या की ओर ध्यान खींचा था। 

कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को भ्रष्ट कहने वाले प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी का स्टैंड भ्रष्टाचार के मामले में बहुत लचर है। अदानी के 20,000 करोड़ पर चुप्पी और सवाल पूछने पर राहुल गांधी के खिलाफ कार्रवाई ही नहीं, किसी का भी पार्टी में स्वागत और उसका स्तर ऐसा होना कि पार्टी को वाशिंग मशीन पार्टी कहा जाने लगा है, अति है। इसके बावजूद पार्टी में किसी को भी शामिल कर लिया जाता है, संरक्षण मिलता रहा है और अब छोड़ने वालों से कहा जा रहा है कि छोड़ने वाला फलताफूलता नहीं है या उसका भला नहीं होता है। और बात इतनी ही नहीं है पार्टी ने यह भी कहा है कि येदुरप्पा को हटाया नहीं गया है, उन्होंने नई पीढ़ी के लिए जगह छोड़ी है। ( हिन्दू की खबर) 

सचिन पायलट का मामला कम दिलचस्प नहीं है। उनकी छवि कांग्रेस विरोधी की बनाई गई है और ऐसा लगता रहा है कि वे कभी भी कांग्रेस छोड़ सकते हैं लेकिन आज खबर है, भाजपा के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की मांग पर दृढ़ हैं पायलट। अगर ऐसा है तो राहुल गांधी उन्हें भाव क्यों नहीं दे रहे हैं या वे 20,000 करोड़ से ध्यान बंटाने के लिए ऐसी बातें कर रहे हैं। यह सब खबर होती तो अच्छा लगता या इस खबर के आलोक में ऐसी खबर की जानी चाहिए थी। यही हाल एमवीए या शिवसेना है। खबरों से लग रहा है कि शरद पवार के भतीजे एनसीपी से अलग होंगे (वैसे यह मुश्किल लगता है) लेकिन आज दो खबरें परस्पर विरोधी हैं। एक अजीत पवार का ही है, एममीवए में मतभेद नहीं, शिन्दे सरकार ध्यान बांटने की कोशिश में है। दूसरी ओर, खबर यह भी है कि शरद पवार ने पार्टी में टूट की खबरों से इनकार नहीं किया है। कुल मिलाकर यह सब खबरों की विश्वसनीयता का मामला है लेकिन इसकी चिन्ता किसी को नहीं है। जिस सरकार के मुखिया ने प्रेस कांफ्रेंस की ही नहीं उसकी हो नहीं सकती पर इसकी चर्चा भी नहीं होती है। यह कम महत्वपूर्ण नहीं है।       

मेरा मतलब खबरों से है और आज खबर एक ही है कि महीने भर से फरार अमृतपाल सिंह गिरफ्तार हो गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने शीर्षक में ही बताया है कि उसने कहा कि उसने समर्पण किया है। इस समर्पण या गिरफ्तारी की खास बात यह है कि भले महीना भर लग गया लेकिन गिरफ्तारी (अगर समर्पण नहीं था) तो शांतिपूर्ण रही और गांव वालों ने कहा है कि कोई जबरदस्ती नहीं की गई। इसके अलावा, आज एक और बड़ी खबर टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापी है। ऐसी ही खबर कल हिन्दुस्तान (हिन्दी) में छपी थी और मैंने उसकी चर्चा की थी। आज यह टाइम्स ऑफ इंडिया में है। कर्नाटक चुनाव से पहले (जहां भाजपा की हालत पतली बताई जा रही है) केंद्रीय गृहमंत्री सीधे हिन्दूमुसलमान, दलित, आदिवासी, ओबीसी की बात कर रहे हैं और मुसलमानों के लिए आरक्षण को असंवैधानिक बता रहे हैं जिसे अखबार ने इनवर्टेंड कॉमा में छापा है। यही नहीं, गृहमंत्री ने तेलंगाना में आरक्षण खत्म करने का भरोसा भी दिया है जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा। 

मैं कल कह चुका हूं कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो अभी असंवैधानिक नहीं कहा जाना चाहिए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर का इंट्रो बनाया है, आरक्षण दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्ग का अधिकार है। ऐसा अमित शाह ने कहा है। अगर ऐसा है तो मुसलमानों में क्या जाति नहीं होती है और कोई पिछड़ी जाति नहीं है? भी हो तो आरक्षण आर्थिक आधार पर भी दिया जाता है। मुसलमानों में आर्थिक आधार पर पिछड़े होंगे ही। फिर मुसलमानों के लिए आरक्षण असंवैधानिक कैसे हो सकता है और तय नहीं है तभी तो सुप्रीम कोर्ट ने इसपर विचार करने का निर्णय किया है। आप जानते हैं कि भाजपा ने मोदी उपनाम वाले लोगों को ओबीसी साबित करने की भरपूर कोशिश की है और आरक्षण के मामले में उसका रवैया कैसा रहा है पर तथ्य यह भी है कि मोदी नाम वाले पीलू और रूसी मोदी पारसी थे, सैयद मोदी मशहूर बैडमिन्टन खिलाड़ी थे और मोदीनगर कारोबारी मोदी परिवार का है। 

जाहिर है अमितशाह का भाषण चुनावी है और कर्नाटक चुनाव के लिए कहा गया है तो दिल्ली में पहले पन्ने पर छापने का कोई मतलब नहीं है। मकसद यह बताना हो कि गृहमंत्री कर्नाटक जीतने के लिए क्या बोल रहे हैं, तो यह मेरे लिए भी खबर है। नजर रखूंगा और ऐसा लगा तो जरूर बताउंगा। फिलहाल आप देखिये के गृहमंत्री के साथ प्रधानमंत्री इसाइयों को साधने की कोशिश में हैं और चर्च के प्रमुख लोगों से मिलेंगे।          

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

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