तो दोस्तों, लिखने में थोड़ा लेट हो गया। लेकिन इसमें मेरा कोई दोष नहीं, खेला ऐसा हो रहा था कि लग रहा था कि अभी कोई और पर्दा खुलेगा, अभी कोई और पैंतरा लगेगा….खैर, सब खतम हो गया। खेला एक ये वाला अंत और बिहार में भाजपा का राज….और हमरा बस सिकायते रहा। देस में कुच्छो हो जाए, हमरा सिकायते रहता है, ए नहीं कि तनी मुस्काय लिया जाए, थोरा मजा लिया जाए। बस हर गेमवा में सिकायते ढूंढते रहते हैं, का करें, हैबिटे हो गया है दुखिया दिखाबे वाला। पर हमरा जजमेट थोरा देर रोका जाए, और हमरा सिकायत सुना जाए तनी, देखिए आप सबको भी यही लगेगा कि हम कह रहे हैं सही। तो बात ये रही बाबू, कि तख्तापलट तो मान लीजिए, महारास्टरा में भी हुआ, और बिहार में भी हुआ। महारास्टरा में मान लीजिए सिन्दे बाबू के कंधा पर रखकर बंदूक, दाग दिया सिवसेना पर भाजपा ने, और का तो गवनर्र औ का सुप्रीम कोर्ट सब मिलमिला के बनाय दिए सरकार सिंदे गुट और भाजपा का मिलके, जिसका अभी कैबिनेटवा का सपथ भी लिया गया है। औ बिहार एकदम्मे उलटबांसी दिखाया, नितिसवा एकदम पल्टी मार गए, मने बिल्कुल गेम ही बिगाड़ दिए, ले बेट्टा, और खेलो। साहनवाज हुसैन बताय रहे कि हवाई जहाज में बइठे तो मंतरी रहे और लैंड किए तो मंत्री पद छोड़िए सरकार ही गायब हो गई। अब बताइए। नितिसवा बना लिए सरकार तेजस्वी के साथ, और भी लोग-बाग सामिल हुआ है गठबंधन में, कांग्रेस है, तो हम करके भी एक पाल्टी है, और वामे मोर्चा समरथन दे रहा है सुने। तो ये तो हुआ जो हुआ, हमें सिकायत खाली ये है कि जो महारास्टरा में हुआ था तख्तापलट, तो सिंदे गुट का विधायक सब को, असम ले गए थे। थ्री या फाइव स्टार वाला खूब फीलिंग वाला जगह पर ठहराए थे, पंद्रह दिन विधायक सब खूब मजा-पार्टी किया था, और बिहार वाला जो हुआ, उसमें ना कोई हवाई जहाज का यात्रा, ना फाइव स्टार लाॅज या होटल में ठहरना, ना नाइट पार्टी और ना कोई और मौज-मजा रहा। बस ठप्प से नितिस एक दिन नीति आयोग के मीटिंग्वा में नहीं गए और तीसरे दिन पता चला कि गिरा दिए सरकार…..खुद तो फिर से बन गए सी एम, और डिप्टी सी एम को रोए खातिर छोड़ दिए अकेले।
सही कहे थे लालू जी, पलटू राम हैं नितिसवा, इस बार इधर की तरफ पलट गए। वैसे पिछली बार भी तो ऐसा ही कुछ हुआ था जब डिप्टी बने थे तेजस्वी और फिर नितीस जी उनको गच्चा दे दिए थे, हालांकि गच्चा खाने के बाद भी तेजस्वी उनको चच्चा ही बोलते रहे थे। खैर, राजनीति में ये सब उठा-पटक चलता ही रहता है जी, कल की कौन याद रखे, और जो याद रखे वो राजनीति में आए ही क्यों। हम तो भैया अपना सिकायत सुना रहे थे आपको। तो जौन ब्यौहार हुआ महारास्टरा के विधायकों के साथ, उ क्यों नहीं हुआ बिहार के बिधायकों के साथ बताइए तो….कौनो बात हुआ ये? ये तो छोड़िए, महारास्टरा में सी एम और डिप्टी सी एम बहुत आराम से धीरज के साथ गेमवा खेल रहे हैं, इत्ते दिनों के बाद तो कैबिनेटवा बना है, सब धुकधुकाहट में छोर दिया बिधायक लोग को, और बहूत देर में जाके सपथ दिलाया गया। लेकिन जब दिलाया गया तो भी ठीक-ठाक लकदक रहा। इधर देखे आप लोग, जब नितिसवा सपथ ले रहे थे, तो माइकवा भी मरघिस्सन हो रहा था, लगे नै रहा था कि काम करेगा। बताइए, एक ही देस में एक जगह का बिधायक सरकार गिराने के आयोजन में ऐश करेगा, और दूसरी जगह का बिधायक को पटना में भी किसी थ्री स्टार टाइप होटल में ठहराया नहीं जाएगा, एयर ट्रैवल तो छोड़ दीजिए, स्काॅर्पियो तक में बैठा के कोई ले नहीं गया। आपको क्या लगता है कोई चूक हो गया है क्या जी, आधुनिक चाणक्या से, कुछ भुल-भुला गए हों, रुपया-कौड़ी का कमी तो हमें नहीं लगता कि कुछ हुआ होगा, अरे दुनिया की सबसे अमीर पाल्टी का खिताब भी तो इसी के नाम है जी। इस पर हमरा एक और थ्योरी ये है कि अब एतना ये जो हो रहा है, स्टेट दर स्टेट तो इसके लिए विधायकों के खरीद-फरोख्त को कानूनी जामा पहना देना चाहिए। जो भी हो बिकवाली या खरीदी, सब लेजिटिमेट हो, हर स्टेट का विधायक लोग का दाम तय हो, कि भई हो गया, अब बन गए विधायक, तो तोड़ो सरकार, और सरकार बनाए रखना हो तो भी दीजिए इत्ता दाम….इससे क्या होगा कि भ्रस्टाचार नहीं ना होगा।
खैर, दूसरा सिकायत हमें ये रहा कि, इस सारे खेल और खेल-खराबे में नीति आयोग का नाम बेकार में बदनाम हुआ। अब से जब भी कोई नीति आयोग की बैठक में नहीं जाएगा, पी एम और एच एम का दिल धक्क् से रह जाएगा। नितीस बाबू को ये नहीं करना चाहिए था। भई आपको सरकार गिराना था, गिरा देते, नीति आयोग को काहे लपेटे में ले लिया। अखबारों के पत्रकार, जो कि हमें लगता है कि इस देस में जरूरत से थोड़ा ज्यादा ही हैं, नीति आयोग की बैठकों पे नज़र रखेंगे और सरकार को, मने केन्द्र सरकार को बार-बार छेड़ा करेंगे, कि देखिए फलां राज्य के मुख्यमंत्री इस बार नहीं आए नीति आयोग की बैठक में, और फिर केन्द्र से चाणक्या को भागना पड़ेगा ये देखने के लिए कि कहीं किसी और राज्य में सरकार ना गिर जाए।
अब जब हम सिकायतें गिनवा ही रहे हैं, तो एक ठो सिकायत हमरा खाते में ऐ भी जोर लिया जाए कि मीडिया को बहूत परेसान किए नितीस बाबू, इस घटना से कितने ही एंकरों के मुहं, मुहंझौंसे जैसे लगने लगे। कुछ तो ऐसे लगे कि जैसे अभी रो देंगे। कुछ अपने दुख को छाती में दबाए मुस्कुराते रहे। एकाध को तो सुना हूट कर दिहिस जनता। ना ना, पत्रकारों के साथ ये सब नहीं होना चाहिए। इत्ता मेहनत करते हैं आपके लिए, कभी-कभी तो स्टूडियो छोर के सड़क तक आना पड़ता है, उस पर भी आप लोग अब ये कीजिएगा तो कैसे चलेगा, बोलिए तो। अचानक एंकरों को बिहार का दुरदसा याद आने लगा, अचानक नितिस जी का फेलियोर याद आया और ये भी कि इस तरह सरकार का तोड़ा जाना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। वही जो कल तक महारास्टरा में मास्टर स्ट्रोक था, वो बिहार में लोकतंत्र के लिए खतरा हो गया। एक महाएंकर तो बिहार के पीड़ादायक आंकड़े दिखाने लगे, जबकि आंकड़े स्क्रीन पर थे और पीड़ा उनके चेहरे पर झलक रही थी।
खैर हमारी केन्द्र सरकार से छोटी सी दरख्वास्त ये है कि भई, जब इस तरह का कोई तमासा हो, जिसकी अभी बहुत गुंजाइश है तो थोड़ा पाल्टी-वाल्टी रहे, थोड़ा मौज-मजा रहे, तो लोकतंत्र में मजा आता रहता है, वरना जनता को बहुत देर देर तक चुनाव-वुनाव का इंतिजार करना पड़ता है। बाकिए तो सब समझदार है ही इस वाला सरकार में, अभी समझ गया है उम्मीद है कि आगे और समझ जाएगा। अब इस बार कोई नया शब्द हम नहीं दे रहे हैं, क्योंकि बिहारी लोग हमसे पहले ही हिंदी के भंडार में नये शब्दों के भंडारे खोल चुके हैं, हम उनसे लोहा नहीं ले सकते, बाकि गालिबवा का एक ठो सेर जरूर आपको सुनाएंगे, देखिए मौलिक भी है और मौजू भी…..सुनिएगा, मने इरसाद कर रहे हैं…
सुनते हैं उनको दाम भी उतना नहीं मिला
जितना की खर्च कर दिए, असमवा के लाॅज में….
ग़ालिबवा बहुत ही ठेंसू सायर है साहब, बहुते बढ़िया कहता है…..सेर