बिहार विधानसभा में निर्दलीय उम्मीदवारों पर लगातार हमलों से लोकतंत्र भी तो ख़तरे में है! – विशेष रिपोर्ट

क्या आपने कभी सोचा हैं, भारतीय संविधान एक नागरिक के तौर पर आपको सिर्फ मतदान करने का अधिकार नहीं देता है? ग्राम पंचायत से लेकर राष्ट्रपति पद तक के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार देता है यह. शायद आपको पता भी हो. लेकिन फिर भी पार्टी लाइन से इत्तर निर्दलीय चुनाव लड़ना टेढ़ी-खीर क्यों लगता है? जबकि अगर हम आंकड़े की ही बात करें, तो आज़ादी के बाद से अब तक लोकसभा में 200 से अधिक सांसद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनकर पहुंचे हैं. राज्यों के विधानसभा में तो यह आंकड़ा हजारों में होगा. लेकिन आंकड़े जितने आसानी से बताएं जा सकते है, उतने आसानी से बनाये नही जा सकते. ज़ाहिर है इसके कारण में भारत के संसदीय राजनीती में साम-दाम-दंड-भेद का दूध में पानी की तरह घुल जाना है. दूध पतला होता जाता है पर आप केवल देखकर कुछ साबित नहीं कर सकते…

यह बात हम इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि चुनाव लड़ना आपका अधिकार होने के बावजूद भी आपका निर्णय नहीं हो पाता. जब भी आप निर्दलीय चुनाव लड़ने की कोशिश करेंगे, कुचल दिए जाने की भरपूर संभावनाएं होगी. हम बात कर रहे हैं, बिहार विधानसभा चुनाव में निर्दलीय लड़ रहे प्रत्याशियों के साथ हुई घटनाओं के बारे में. इनके आइने को सामने रख कर देख लीजिए, ताकि तय कर पाएं कि निर्दलीय चुनाव लड़ना कितना आसान है!

पहली घटना दरभंगा के हायाघाट विधानसभा की है. इस सीट से समाजसेवी रविन्द्र नाथ सिंह उर्फ चिंटू सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैंदान में हैं. उन्हें गुरुवार देर रात अपराधियों ने गोली मार दी. चुनाव प्रचार खत्म करके वे अपने गांव लौट रहे थे. इसी दौरान बीच रास्ते में उनकी कार को कुछ बदमाशों ने रोक लिया और फायरिंग शुरू कर दी. जिससे चिंटू सिंह को दो गोली लग गई. गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है. मामले को देख रहे एसपी अशोक प्रसाद का कहना हैं कि अभी तक गोली मारने के पीछे कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है. पीड़ित के होश में आने के बाद बयान लिया जाएगा. फिलहाल, हर पहलू की जांच की जा रही है, लेकिन पीड़ित के बयान का इंतजार है.

दूसरी घटना के रूप में मुजफ्फरपुर के कुढ़नी विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी संजय सहनी से जुडी है. संजय सहनी अपने क्षेत्र के जाने-माने मनरेगा कार्यकर्त्ता सह सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं. वे मनरेगा सहित वितरण प्रणाली आदि योजनाओं पर लगातार संघर्ष करते रहे हैं. इस विधानसभा चुनाव में वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में हैं. जिसके कारण उन्हें अलग-अलग तरह से डराने-धमकाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने चुनाव आयोग से अपने सह-प्रत्याशी अनिल सहनी (राजद) एवं उनके कार्यकर्ता के खिलाफ़ शिकायत भी की हैं. लेकिन आयोग के तरफ से कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है.    

संजय सहनी की शिकायत की कॉपी

एक अन्य घटना समस्तीपुर जिले के कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र की है. यहाँ से युवा क्रांतिकारी दल के सदस्य सूरज कुमार दास निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. बीते 4 नवम्बर को सुबह टहलने के लिए निकलने निर्दलीय प्रत्याशी को बाइक सवार नकाबपोश बदमाशों ने यह कहते हुए गोली मार दी कि जिन्दा रहोगे, तब न विधायक बनोगे! ज्ञात हो कि इस सीट से बिहार सरकार के उद्योग मंत्री महेश्वर हजारी चुनावी मैदान में हैं.

इसी तरह भोजपुर जिले के बड़हरा विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ रही आशा देवी पर भी हमले की ख़बर है. प्रथम चरण के चुनाव के दिन यानी 28 अक्टूबर को कुछ लोगों ने पूर्व विधायक और बड़हारा विधानसभा सीट  से निर्दलीय प्रत्याशी आशा देवी के साथ भी बदसलूकी और मारपीट किया गया हैं. प्रत्याशी का कहना है कि इस घटना के पीछे भाजपा के उम्मीदवार राघवेंद्र सिंह का हाथ है. उनके इशारे पर ही उनके गुंडों ने उनके साथ मारपीट की है.

इससे पहले आशा देवी भाजपा में ही थी. जब उन्हें चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं मिला, तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया.

निर्दलीय प्रत्याशियों पर हमला जैसे आम बात हो गई हो. मुजफ्फरपुर के पारू विधानसभा क्षेत्र से भी ऐसी ही एक घटना की ख़बर है. 3 नवम्बर को मतदान के दिन इस सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं – शंकर यादव की गाड़ी पर पथराव किया गया.

संजय सहनी (मुख्य इमेज) और शंकर यादव (इनसेट में)

शंकर यादव क्षेत्र में मतदान का जायजा लेने जा रहे थे. इसी दौरान कुछ युवकों ने उनकी गाड़ी पर पथराव शुरू कर दिया. जिससे प्रत्याशी की गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गयी. हालाँकि बाद में पुलिस मौके पर पहुँच कर युवकों को हिरासत में ली. शंकर यादव के इलेक्शन एजेंट विजय यादव ने आरोप लगाया है संभावित पराजय की हताशा में भाजपा के लोगों ने हमारे उम्मीदवार की गाडी़ पर हमला किया है!

एक और मामला प्रथम चरण से पहले यानी 26 अक्टूबर को सारण का है. जिले के बनियापुर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे सुमित कुमार गुप्ता के  चुनाव प्रचार में लगी एक गाड़ी को कुछ लोगों ने नुकसान पहुँचाया हैं. उन्हें कई क्षेत्रों में प्रचार करने से रोका गया है. जिसको लेकर उन्होंने प्रशासन और आम नागरिक से सवाल पूछा है कि क्या लोकतंत्र में गरीब आदमी चुनाव नहीं लड़ सकता हैं?

अब आप सोचिये, क्या सच में निर्दलीय चुनाव लड़ना आपका अधिकार है? अगर हाँ, तो आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी इस संविधान की ही होनी चाहिए.

देश का संविधान आपकी नागरिकता को केवल आपके वोट देने के अधिकार से ही स्थापित नहीं करता है, वह इसे आपके चुनाव लड़ने के अधिकार से ज्ञापित भी करता है। संविधान में आपके चुनाव लड़ने की पहली शर्त, आपका भारत का नागरिक होना होता है। यही नहीं भारत के संविधान की प्रस्तावना समानता के अधिकार का स्थापित करती है, जो मौलिक अधिकार भी है – बिना सबके चुनाव लड़ने के अधिकार के, कैसे समानता का अधिकार पूरा हो सकता है? संविधान की प्रस्तावना, जिसे सुप्रीम कोर्ट – संविधान की आत्मा कह चुका है, उसको ‘हम भारत के लोग’ ही आत्मर्पित, अधिनियमित और अंगीकृत करते हैं और ऐसे में निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से रोकना, क्या है…ये आप भी सोचें, चुनाव आयोग को भी सोचना चाहिए…और सरकार – वो कहां, संविधान के बारे में कुछ सोचती है?


ये विशेष रिपोर्ट मीडिया विजिल के लिए जगन्नाथ ने की है। मधुबनी के रहने वाले जगन्नाथ, मीडिया विजिल की इलेक्शन टीम का हिस्सा हैं और शोधार्थी भी हैं।

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