लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी : भाजपा सरकार में आइएएस बेआवाज़, मॉब लिंचर बेख़ौफ़

योगी राज में यूपी : एक ही दिन में देवरिया, ललितपुर, अलीगढ़ में जन्म अष्टमी पर हिंसा में दो की मौत, मेरठ, शामली, गाजियाबाद, मुज़फ्फ़रनगर में मॉब लिंचिग, अमेठी में हिरासत में दलित युवक की मौत, इंस्पेक्टर सुबोध के हत्यारोपियों का स्वागत ! 

लखनऊ, 28 अगस्त 2019। रिहाई मंच ने देवरिया में डीजे बजाने से मना करने पर युवक की हत्या के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान को जिम्मेदार ठहराया जिसमें उन्होंने कहा था की कावड़ यात्रा है न की शव यात्रा जो डीजे नहीं बजेगा। मंच ने कहा की अलीगढ़ में जन्म अष्टमी पर विवाद हो या फिर ललितपुर में मटकी फोड़ने के दौरान खूनी संघर्ष में एक की मौत का मामला, मुख्यमंत्री से लेकर शासन-प्रशासन के गैरजिम्मेदाराना बयान का नतीजा है। सांप्रदायिक तत्वों के हौसले इतने बुलंद हैं की वह इंस्पेक्टर सुबोध के हत्यारोपियों को सेनानी की तरह भारत माता की जयकार लगाते हुए फूल मालाओं से स्वागत कर रहे हैं।

ठोक देने और ऊपर पहुँचाने वाले बयान देने वाले योगी आदित्यनाथ की आपराधिक ख़ामोशी पर कोई आश्चर्य नहीं है पर डीजीपी, जो इस मामले में बजरंगदल और भाजयुमो का नाम नहीं ले पाते, से लेकर पूरे पुलिसिया महकमें की ख़ामोशी पर सवाल जरुर है की वे जब खुद की जान नहीं बचा सकते तो इन सांप्रदायिक मॉब लिंचरों से आम आदमी को क्या बचाएंगे। बच्चा चोरी के नाम पर मेरठ, शामली, गाजियाबाद, मुज़फ्फ़रनगर में लगातार हो रही मॉब लिंचिग पर योगी आदित्यनाथ को बताना चाहिए कि क्या ये जिले उनके प्रदेश में नहीं आते। आखिर वे किस आधार पर कह देते हैं कि उनके राज में दंगा और मॉब लिंचिंग नहीं हुई है।

अमेठी में हिरासत में दलित युवक की मौत को सुनियोजित हत्या कहते हुए मंच ने सवाल किया की आखिर क्यों दलित-मुस्लिम की ही हिरासत में मौत होती है। कासगंज में पुलिसकर्मी द्वारा खुद को गोली मारने समेत देश में सेना और प्रशासनिक अधिकारियों में बढ़ती निराशा और आत्महत्या की घटनाओं और उत्तर प्रदेश में अराजक तत्वों के महिमामंडन के फलस्वरूप होने वाली हत्याओं पर रिहाई मंच में गहरी चिंता व्यक्त की है। मंच ने सूबे में पिछले दो-तीन दिनों में हुई घटनाओं का हवाला देते हुए कहा की आपरेशन क्लीन के नाम पर फर्जी मुठभेड़ों को अंजाम देने वाली पुलिस को ये समझना होगा की जिस सत्ता के इशारे पर उसने वंचित तबकों को फैसला ऑन द स्पॉट कहते हुए मुठभेड़ों में मार गिराया वही सत्ता उसके एक इन्स्पेक्टर, जिन्हें दौड़ाकर मार दिया गया, के इंसाफ के सवाल पर उन मॉब लिंचरों के साथ है न की उनके।

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि एक तरफ एक आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन कश्मीर को जेल में बदल कर नागरिकों के मौलिक अधिकारों को छीन लिए जाने पर अपने ज़मीर की आवाज़ पर त्यागपत्र देते हैं तो दूसरी तरफ सीमा सुरक्षा बल के सहायक कमांडेंट एम अरविंद अपनी सर्विस रिवाल्वर से आत्महत्या कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि कन्नन का यह कहना कि आईएएस बनकर वह बेआवाज़ों की आवाज़ बनना चाहते थे लेकिन अपनी ही आवाज़ खो बैठे। उन्हें लगा कि वह अपनी सोच को आवाज़ नहीं दे पा रहे हैं इसलिए अपनी आवाज़ को वापस पाने के लिए इस्तीफा देने का निर्णय किया। मंच अध्यक्ष ने कहा कि देश के माहौल में जिस तरह का ज़हर घोला गया है उसमें क्या आमजन, क्या पुलिस वाले, कोई उस ज़हर के असर से नहीं बच पा रहा है। गुजरात में वड़ोदा में पुलिस कांस्टेबल आरिफ इस्माइल शेख पर साम्प्रदायिक तत्वों ने उनकी धार्मिक पहचान के कारण हमला करके बुरी तरह घायल कर दिया। शेख का यह बयान कि ‘इस बार उन्होंने अपना चेहरा नहीं ढंका था’ फैलते उस विष को सत्ता के गलियारों से जोड़ता दिखाई देता है।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि बुलंदशहर दंगों में साम्प्रदायिक संगठनों के प्रशिक्षित कार्यर्ताओं द्वारा इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की सुनियोजित हत्या और हाईकोर्ट से सशर्त ज़मानत पर रिहा होने के हत्यारोपियों को सत्ता के प्रिय संगठनों बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय चेतना मंच के नेताओं द्वारा फूल-माला पहना कर स्वागत किया जाना ही एक मात्र उदाहरण नहीं है। इससे पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने झारखंड में अलीमुद्दीन अंसारी की मॉब लिंचिंग करने वाले हत्यारों को ज़मानत मिलने पर फूल-माला पहना कर स्वागत किया था। अखलाक के हत्यारोपी की मौत पर सत्ताधारी दल के नेताओं की मौजूदगी में तिरंगे में लपेटने की घटना रही हो या योगी सरकार द्वारा मुज़फ्फरनगर दंगों के अभियुक्त सुरेश राणा को पहले राज्यमंत्री और उसके बाद कैबिनेट मंत्री बनाए जाने तक सभी कड़ियां आपस में जुड़ती हैं।

मंच महासचिव ने कहा कि कृष्ण जन्म अष्टमी के अवसर पर प्रदेश के कई स्थानों पर हिंसा और देवरिया में डीजे बजाने पर आपत्ति करने के अपराध में अराजक भीड़ द्वारा सुमित जायसवाल के घर पर हमला कर उसकी हत्या और बचाव में आए परिजनों को गंभीर रूप से घायल करने जैसी घटना किसी त्वरित आवेश का नतीजा नहीं बल्कि लम्बे समय से बनाए गए हिंसक वातावरण का परिणाम है। उन्होंने कहा कि एक तरफ हाई कोर्ट डीजे पर पाबंदी लगाने का फैसला सुनाता है और अवमानना करने वालों की सज़ा का निर्धारण करता है तो दूसरी तरफ प्रदेश की निरंकुश सरकार के मुखिया कह चुके हैं कि “कावड़ यात्रा में डीजे नहीं बजेगा तो क्या शव यात्रा में बजेगा”।

उच्चतम स्तर पर इस तरह के नज़रिए को दूसरे धर्म से तुलना कर तर्कसंगत साबित करने का साम्प्रदायिक व्यवहार अब धर्म की सीमा तोड़कर असहमति जताने वाले अपने सहधर्मियों तक पहुंचने लगा है। डीजीपी और पुलिस के बड़े अधिकारी भी अपने ही बयान पर चुप्पी साध लेने में भलाई समझते हैं। उन्होंने कहा कि जब संविधान की शपथ लेकर सत्ता के शीर्ष पर बैठे राजनेता संविधान और कानून का माखौल उड़ाते नज़र आएंगे, पुलिस के उच्च अधिकारी अपने मुंह बंद करने पर विवश कर दिए जाएंगे, संगठित अराजक भीड़ को हिंसक घटनाएं अंजाम देने की खुली छूट सत्ता का मूक समर्थन प्राप्त होगा तो वहां सुबोध कुमार जैसे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी अपने दायित्वों का निर्वहन करने में असमर्थ होंगे तो सांप्रदायिक अराजक तत्व असहमति को रौंदते हुए हत्या, बलात्कार, दंगा, आगज़नी के माध्यम से लोकतंत्र को ढहाने का काम करेंगे।


प्रेस विज्ञप्ति : रिहाई मंच द्वारा जारी 

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