आजमगढ़ पुलिस का अलग कानून: एनकाउंटर में नहीं दी जाती लाश !

रिहाई मंच ने आजमगढ के उल्टहववा देवारा जदीद के लक्ष्मण यादव के परिजनों से मुलाकात की जिन्हें मुठभेड़ में पुलिस ने मारने का दावा किया था। परिजनों और ग्रामवासियों ने मुठभेड़ को फर्जी बताया। कहा कि उसकी हत्या हुई और फिर पुलिस से मिलकर उसे मुठभेड़ का नाम दिया गया। संचार माध्यमों में आई खबरों में भारी अंतरविरोध है, जैसे हिन्दुस्तान लिखता है कि एसपी ग्रामीण नरेन्द्र प्रताप सिंह को रात दो बजे मुखबिर से लक्ष्मण यादव के बारे में सूचना मिली वहीं दैनिक जागरण के अनुसार नरेन्द्र प्रताप सिंह को यह सूचना पांच बजे मिली। पुलिस ने मुठभेड़ का वक्त साढे़ सात के करीब बताया है जबकि मुठभेड़ स्थल के पास मिले ग्रामीण यह घटना सुबह तड़के की बता रहे हैं। एसपी ग्रामीण की बुलेट प्रूफ जैकेट में गोली लगने की बात भी मीडिया में आई।

आजमगढ़ पुलिस ने 30 अगस्त को ट्वीट किया कि पांच गिरोहों के 23 अपराधियों पर पुलिस की नजर, नौ अपराधियों की खोली गई हिस्ट्रीशीट। इसके साथ दैनिक जागरण और अमर उजाला की पेपर कटिंग अटैच थी जिसमें वांछित अपराधियों के नाम व पते थे। पर इस सूची में लक्ष्मण यादव का नाम शामिल नहीं था। जबकि 25 जुलाई 2019 को रौनापार श्याम दुलारी महाविद्यालय के बस चालक रामबली यादव की हुई हत्या के मामले में लक्ष्मण यादव को फरार बताते हुए 4 अगस्त को पुलिस उप-महानिरीक्षक आजमगढ़ परिक्षेत्र आजमगढ़ द्वारा उस पर 50 हजार रूपये का पुरस्कार घोषित किया गया था। उस हत्या के दो दिन पहले ही 23 जुलाई को पुलिस अधीक्षक आजमगढ़ द्वारा 25 हजार के ईनाम की बात सोशल मीडिया सेल आजमगढ़ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में थाना महाराजगंज ने की।

अमर उजाला लिखता है कि डीआईजी आजमगढ़ की ओर से 50 हजार, आईजी लखनऊ की तरफ से एक लाख तो दैनिक जागरण लिखता है कि एसपी द्वारा 50 हजार और अयोध्या के आईजी की ओर से 1 लाख का ईनाम घोषित किया गया। पुलिस अधीक्षक आजमगढ़ प्रोफेसर त्रिवेणी सिंह द्वारा लुटेरों के विरूद्ध चलाए गए अभियान के क्रम में 10 अक्टूबर को पुलिस अधीक्षक ग्रामीण नरेन्द्र प्रताप सिंह को सूचना मिलने के बाद लक्ष्मण यादव को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा करते हुए प्रमुखता से कहा गया कि डीआईजी के भाई के हत्यारे को पुलिस ने मार गिराया।

अब थोड़ा पीछे चलें। तकरीबन 32 साल पहले चोर मरा कमालपुर गांव के क्षेत्र में ही लक्ष्मण यादव के पिता रामदरश यादव की पुलिस मुठभेड़ में हत्या हुई। इस बारे में आसपास के लोगों ने बताया कि उसमें जेपी सिंह के भाई की भूमिका थी। पर इस भूमिका के सन्दर्भ को लक्ष्मण यादव के घर वालों ने नकार दिया। तो भी यह अहम सवाल है कि छह साल बाद जेल से छूटने पर 10 सितंबर 2019 को थाना राजेसुल्तानपुर जनपद अम्बेडकर नगर में पूर्व उप-महानिरीक्षक जेपी सिंह के भाई रविन्द्र प्रताप सिंह की हत्या, उसी दिन डेढ़ किलोमीटर दूर उसी थाना क्षेत्र के पदुमपुर चौराहे पर डा0 लक्ष्मीकान्त यादव को गोली मारकर घायल करने के बाद पुलिस महानिरीक्षक अयोध्या परिक्षेत्र अयोध्या द्वारा एक लाख रूपये का पुरस्कार घोषित किया गया था। वहीं 25 जुलाई 2019 को रौनापार थाना अंतर्गत श्याम दुलारी महाविद्यालय के बस चालक रामबली यादव की हत्या के बाद 23 जुलाई 2019 को पुलिस अधीक्षक आजमगढ़ द्वारा 25 हजार और 4 अगस्त 2019 को पुलिस उप-महानिरीक्षक आजमगढ़ परिक्षेत्र आजमगढ़ द्वारा 50 हजार रूपये का पुरस्कार घोषित किया गया।

छह साल बाद एक व्यक्ति के छूटने के बाद हत्या और हत्या के प्रयास के बाद ईनाम घोषित होने की पूरी पुलिसिया प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। जेपी सिंह के भाई रवीन्द्र सिंह की हत्या और बत्तीस साल पहले लक्ष्मण यादव जब मां के गर्भ में पांच महीने का था तो उसके पिता की मुठभेड़ में उसी गांव में हुई हत्या में कोई कड़ी जरुर है। अगर नहीं है तो यह साफ है कि योगी सरकार में जाति विशेष के लोगों के जेल से छूटने के बाद पुलिस उनपर झूठे मुकदमे लगाती है और फिर उनकी एनकाउंटर के नाम पर हत्या कर देती है। रिहाई मंच प्रतिनिधिमंडल में रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, शाहआलम शेरवानी, विनोद यादव, बाकेलाल यादव, अवधेश यादव, उमेश कुमार, वीरेन्द्र कुमार शामिल रहे।

रिहाई मंच के प्रतिनिधिमंडल को देखते ही लक्ष्मण यादव की मां फूट कर रोने लगीं। मुश्किल से संभलीं तो कहा कि ग्राम प्रधान चन्द्रभान ने उनके लड़के को उस दिन सुबह चार बजे मारा और पुलिस लक्ष्मण के मुठभेड़ की कहानी झूठी बता रही है। लक्ष्मण की फोटो लगी उस होर्डिंग को दिखाते हुए कहती हैं कि यही उसके मौत का कारण बना जिसमें वह ग्रामसभा नौबरार देवारा जदीद किता प्रथम, उल्टहवा के क्षेत्रवासियों को 2019 के नव वर्ष, मकर संक्रान्ति और गणतंत्र दिवस की मुबारकबाद दे रहा है। वह चुनाव लड़ने की सोच रहा था। पिछले दो महीने से लुधियाना में था। लक्ष्मण की चचेरी बहन सरिता बताती हैं कि जब वह 6 साल जेल में था तो उस वक्त भी जो कुछ होता था उसका आरोप उसपर लगा दिया जाता था। उसे दो-तीन महीने पहले जेल से छोड़ा गया तो उसके एनकाउंटर का ईनाम घोषित कर दिया गया। उसे मारने के लिए ही जेल से छोड़ा गया और फिर मार दिया गया। नहीं तो जब वह उस दिन लुधियाना से आया था तो क्यों घर नहीं आया। किसने उसे बुलाया जिसने उसे घर नहीं आने दिया। यह सवाल महत्वपूर्ण है कि ईनाम घोषित होने के बावजूद वह आखिर किसकी शह पर लुधियाना से आजमगढ़ आया।

लक्ष्मण मां-बाप की इकलौती औलाद था। उसके पिता की भी हत्या के संबन्ध में अनेक मत मिले। लक्ष्मण की मां प्रभावती कहती हैं कि पुलिस ने लाश नहीं दिया, कहा कि एनकाउंटर में लाश नहीं देते। आजमगढ़ के सात युवकों को पुलिस ने मुठभेड़ में मारने का दावा किया पर किसी का भी शव उनके परिजनों को नहीं दिया गया। आखिर पुलिस ऐसा क्यों कर रही है। पुलिस अगर ऐसा कानून व्यवस्था के नाम पर ऐसा कर रही है तो इसका मतलब है कि समाज मारे गए व्यक्ति के साथ खड़ा है। मतलब कि उसकी हत्या के सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ हैं क्योंकि कोई समाज पुलिस के कहे अनुसार बदमाश के साथ खड़ा नहीं हो सकता। तो क्या पुलिस ने परिजनों को इसलिए लाश नहीं सौंपी और उसका खुद ही दाह-संस्कार करवा दिया ताकि लक्ष्मण के शरीर से मुठभेड़ की कहानी की पोल न खुल जाए।

लक्ष्मण के चाचा दुबरी यादव ने बताया कि 10 अक्टूबर को खैचड़पुर से रिश्तेदारों ने सुबह-सुबह फोन किया कि उसे कुछ लोगों ने मार दिया है और उसके बाद वहां पुलिस आ गई है। उसके पूरे शरीर पर बेरहम पिटाई के निशान थे। उसका पैर डंडे से मारकर तोड़ा गया था। पहले उसे अधमरा किया गया और बाद में उसे ले जाकर गोली मारी गई। उसके बाद पुलिस को बुलाया गया। चन्द्रभान पार्टी हत्या में शामिल थी। कहीं कोई घटना होती थी तो प्रधान पुलिस से मिलकर लक्ष्मण पर मुकदमा लदवा देता था। तीस-बत्तीस साल पहले लक्ष्मण यादव के पिता रामदरश यादव को अम्बेडकर नगर में पुलिस ने मारने का दावा किया था। लक्ष्मण को पहली बार जब पुलिस पकड़कर ले गई तो लगभग छह साल वह जेल में रहा। 2013 में एक दिन वह जब भैंस चराकर आया तो पुलिस आई और उसे पकड़कर ले गई। उस वक्त वह दिल्ली में मजूदरी करता था और गांव लौटा था। जब वह जेल में था तो भी पुलिस आती थी। महराजगंज में कोई घटना हुई तो भी पुलिस आई।

लक्ष्मण के गांव वालों ने बताया कि उस गांव के लोग बताते हैं कि वहां तीन फायर हुए थे जबकि उसके शरीर पर छह गोलियों के निशान थे। आखिर तीन और गोली किसने मारी। वहीं लोगों का कहना है कि हत्या के पहले मंगलवार की शाम वह चिकनहवा बाजार के पास 4 बजे के करीब देखा गया था।

10 अक्टूबर को थाना महाराजगंज ने दावा किया कि डेढ़ लाख का ईनामिया पूर्व डीआईजी के भाई का हत्यारा, अन्तर्जनपदीय कान्ट्रेक्ट शूटर, महाराजगंज थाने का टापटेन हिस्ट्रीशीटर, दुर्दान्त अपराधी लक्ष्मण यादव गैंग से पुलिस मुठभेड़ हुई जिसमें वह घायल हुआ और ईलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इस कार्रवाई में स्वाट टीम का हेड कांस्टेबल भी गोली लगने से घायल हुआ। पुलिस अधीक्षक ग्रामीण नरेन्द्र प्रताप सिंह को मुखबिर से सूचना मिली कि लक्ष्मण अपने साथियों के साथ कप्तानगंज बाजार के मेले में किसी प्रधान की हत्या करने के लिए आ रहा है।

सुबह लगभग साढ़े सात बजे काले रंग की पैशन मोटर साईकिल पर दो बदमाश आते दिखाई दिए जिन्हें पुलिस टीम प्रथम ने रोकना चाहा तो पुलिस पार्टी पर बदमाशों ने फायर किया और मोटर साईकिल मोड़कर बनकटा की तरफ भागने लगे। बनकटा के पास पुलिस टीम द्वितीय ने बदमाशों को ललकारा तो मोटर साईकिल पर पीछे बैठा बदमाश उतरकर धान के खेतों की तरफ भागा और मोटर साईकिल चालक बदमाश मोटर साईकिल सहित फरार हो गया। पैदल बदमाश अपने को घिरा देखकर पुलिस टीम पर फायर करने लगा। आत्मरक्षार्थ जवाबी कार्रवाई में पुलिस टीम ने भी फायर किया। इसी बीच बदमाश की गोली से स्वाट टीम के हेड कांस्टेबल सुरेन्द्र यादव घायल हो गए और पुलिस की गोली से वह बदमाश भी घायल हुआ जिसकी शिनाख्त लक्ष्मण यादव के रूप में हुई। मौके पर उसके पास से एक अदद पिस्टल 32 बोर, दो अदद कारतूस जिन्दा और 3 अदद खोखा कारतूस, एक अदद तमंचा 315 बोर, 2 अदद जिन्दा कारतूस व 1 खोखा कारतूस, थाना कप्तानगंज क्षेत्र में की गई लूट में 51 हजार रूपये, चप्पल, पर्स, डायरी, हेलमेट बरामद हुआ। घायल हेड कांस्टेबल सुरेन्द्र यादव और लक्ष्मण यादव को प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र महाराजगंज लाया गया। जहां डाक्टर द्वारा घायल लक्ष्मण को मृत घोषित किया गया तथा घायल दीवान का इलाज चल रहा है।

यह पुलिसिया पटकथा नई नहीं है। हर मुठभेड़ में पुलिस की कहानी यही होती है कि सुबह के वक्त बदमाश दो पहिया से जा रहा था, पुलिस ने रोकने का प्रयास किया तो उसने पुलिस पार्टी पर गोली चलाई जिसमें वह गिर गया और चालक फरार हो गया। लेकिन इस कहानी में कई पेंच हैं। परिजन कह रहे हैं कि वह मारे जाने से पहले चिकनहवा बाजार के पास देखा गया था और पुलिस की इतनी मजबूत चौकसी लगी थी तो पुलिस उसे पहले क्यों नहीं पकड़ सकी। मुठभेड़ का समय पुलिस साढ़े सात बजे का बता रही है जिस समय काफी उजाला हो जाता है। ऐसे में पुलिस की इतनी मजबूत घेरेबंदी में कैसे कोई चालक वहां से भाग सकता था। वहीं प्रतिनिधिमंडल जब घटना स्थल पर गया तो वहां से गुजर रहे राहगीर गणेश कुमार, महेन्द्र और हीरालाल ने बताया कि घटना सुबह तड़के की थी। कुछ का कहना यह भी था कि घटना थोड़ा और पहले की है। परिजन भी कह रहे हैं कि पहले उसे मारा गया और फिर पुलिस को बुलाया गया। परिजनों के और ग्रामीणों के कहे समय में काफी मेल है। जबकि पुलिस मुठभेड़ का समय काफी बाद का बता रही है।


विज्ञप्ति: रिहाई मंच प्रतिनिधि मंडल द्वारा जारी

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