यूपी में सत्ता की लूट: गोरखपुर में ज़िला पंचायत अध्यक्ष का पर्चा भी नहीं भर पाये सपाई!

सपा के दोनों प्रत्याशी 26 जूून को नामांकन के लिए उपस्थित नहीं हो पाए। दोनों प्रत्याशियों के ‘ गायब ’ होने के बारे में तरह-तरह की चर्चा है। सपा की ओर से कहा जा रहा है कि प्रशासन के बल पर दोनों को नामांकन करने से रोकने का दबाव बनाया गया और उन्हें ‘छुपा ’ दिया गया लेकिन दूसरी चर्चा यह है कि दोनों प्रत्याशियों से भाजपा प्रत्याशी के खेमे से ‘डील ’ हो गयी थी। अध्यक्ष पद के एक प्रत्याशी डील के बाद दिल्ली कूच कर गए तो दूसरे ने तय कर लिया कि वे नामांकन नहीं करेंगे। कहा जा रहा है कि ये दोनों प्रत्याशी ‘ उत्पीड़न ’, ‘ दबाव ’ से तंग आकर और भविष्य की राजनीति को देखते हुए ‘ डील ’ करने को ‘ मजबूर’ हुए ।

यूपी में बीजेपी के 16 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुने गये हैंजबकि कई जगह उसके पास पर्याप्त वोट नहीं थे। निर्विरोध का एक मतलब ये भी है कि सामने कोई पर्चा ही नहीं भर सका। ये खेल बड़े पैमाने पर हुआ। सत्ता की ताक़त का इस्तेमाल तो पहले भी होता था, लेकिन ऐसा नंगा नाच शायद ही कभी हुआ हो। बीजेपी ने पार्टी विद डिफरेंस का अपना वादा उलट तरीक़े से पूरा करने में कोई क़सर नहीं छोड़ी है। सीएम योगी आदित्यनाथ के गृहज़िले गोरखपुर में ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जिस तरह हुआ, उसकी एक बानगी आपके सामने है। पेश है वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह की रिपोर्ट-

 

गोरखपुर जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में समाजवादी पार्टी अपने प्रत्याशी का नामांकन ही नहीं करा पायी। इस कारण भाजपा प्रत्याशी साधना सिंह का निर्विरोध निर्वाचित होना तय हो गया है।

कल पूरे दिन चले हाईवोल्टेज ड्रामे का अंत सपा प्रत्याशी का नामांकन न होना और देर शाम तक सपा नेतृत्व द्वारा सपा जिलाध्यक्ष नगीना साहनी को उनके पद से हटा देने से हुआ। सपा नेतृत्व ने माना कि जिलाध्यक्ष सपा प्रत्याशी के नामांकन की सही रणनीति बनाने में असफल रहे और प्रशासन की जोर जर्बदस्ती के खिलाफ ठीक ढंग से संघर्ष भी नहीं कर सके।

सपा के पूर्व घोषित प्रत्याशी आलोक कुमार गुप्ता और फिर धर्मेन्द्र यादव ‘ अज्ञात ’ कारणों से नामांकन के लिए उपस्थित नहीं हुए तो तीसरे प्रत्याशी जितेन्द्र कुमार यादव को लेकर सपा जिलाध्यक्ष नगीना साहनी कई घंटे तक कलेक्ट्रेट के बाहर जमे रहे लेकिन वे अंदर नहीं जा पाए। सपा का आरोप है कि पहले घोषित दो प्रत्याशियों को पुलिस के जरिए ‘ गायब ‘ करा दिया गया और जब उन्होंने जितेन्द्र यादव का नामांकन कराना चाहा तो उन्हें कलेक्ट्रेट के अंदर जाने तक नहीं दिया गया। कलेक्ट्रेट गेट पर एक सपा नेता को भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पीट भी दिया।

जिला पंचायत अध्यक्ष के नामांकन में ही सपा को लड़ाई से बाहर कर देने की भाजपा की रणनीति एक तरह से कारगर रही। सब जानते हैं कि यदि सपा का प्रत्याशी चुनाव लड़ता तो मुख्यमंत्री के गृह जिले में भाजपा को जीत के लिए नाको चने चबाना पड़ता। इसलिए भाजपा के रणनीतिकारों ने एक चक्रव्यूह तैयार किया जिसमें सपा का स्थानीय नेतृत्व अपनी गलत रणनीति, कमजोरी, एकजुटता की कमी फंस कर मात खा गया।

गोरखपुर जिला पंचायत में 68 सदस्य सीट है। भाजपा का दावा है कि उसके 19 सदस्य जीते हैं और छह बागियों का भी समर्थन है। सपा का दावा है कि उसके 20 सदस्य जीते हैं।

जिला पंचायत चुनावों में कमजोर प्रदर्शन से भाजपा पहले से सचेत थी और उसने पूर्व मंत्री एंव कैम्पियरगंज के भाजपा विधाायक फतेह बहादुर सिंह की पत्नी साधाना सिंह को जिला पंचायत अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बना दिया। साधना सिंह पहले भी जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं।

सपा ने साधना सिंह के मुकाबले वार्ड संख्या 46 से जीते अलोक कुमार गुप्ता को प्रत्याशी बनाया। प्रत्याशी चयन में सपा ने समझदारी दिखायी थी। आलोक गुप्ता धनबल से मजबूत थे और उस वर्ग से आते हैं जिन्हें परम्परागत रूप से भाजपा का समर्थन माना जाता है। आलोक गुप्ता ने प्रत्याशी बनते ही सदस्यों को अपने पक्ष में करने का प्रयास शुरू कर दिया। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने सपा के जिला पंचायत सदस्यों के अलावा 13 सदस्यों को अपने अपने पाले में कर लिया था।

आलोक गुप्ता के प्रत्याशी बनने और उनकी सक्रियता से भाजपा के कान खड़े हो गए और उन्हें घेरने के लिए रणनीति बुनी जाने लगी। अचानक आलोक गुप्ता के खिलाफ यौन हिंसा का एक केस दर्ज हुआ। फिर पुलिस उनके घर जाने लगी। यह भी बताया गया कि उनके खिलाफ पहले से दो और केस दर्ज है। आलोक गुप्ता ने प्रेस कांफ्रेस कर आरोप लगाया था कि उनके खिलाफ फर्जी केस दर्ज कर परेशान किया जा रहा है। प्रशासन और पुलिस दबाव बना रहा है कि वे चुनाव मैदान से हट जाएं।

यहां पर सपा के स्थानीय नेतृत्व की ओर से दो बड़ी चूक हुई। सपा के स्थानीय नेतृत्व को पता था कि मुख्यमंत्री के गृह जिले में भाजपा जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। वह किसी भी हद तक जाएगी। इसके बावजूद सपा का स्थानीय नेतृत्व अपने प्रत्याशी की नामांकन तक अपने सुरक्षा घेरे में नहीं रखा पाया। दूसरी गलती यह हुई कि आलोक गुप्ता के उत्पीड़न को राजनीति मुद्दा बनाते हुए सड़क पर संघर्ष करने सपाई नहीं उतरे। इसके बजाय वे दूसरे विकल्प का प्रयास करने लगे। उन्होंने एक प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव से नामांकन पत्र खरीदवाया। बाद में जितेन्द्र यादव के नाम से भी नामांकन पत्र लिया गया हलांकि प्रशासन व भाजपा का कहना है कि जितेन्द्र यादव के नाम से नामांकन पत्र खरीदा ही नहीं गया था।

नामांकन के एक दिन पहले सपा जिलाध्यक्ष नगीना साहनी ने आरोप लगाया कि वार्ड नंबर 16 के जिला पंचायत सदस्य धर्मेंद्र यादव का रेलवे के पास उनकी दुकान से पुलिस ने स्विफ्ट कार से अपहरण कर लिया है। पहले उनके भाई शैलेंद्र यादव को उनके राप्तीनगर निवास से कस्टडी में लिया गया था। सपा जिलाध्यक्ष का कहना था कि धर्मेन्द्र यादव ने जिला पंचायत अध्यक्ष का पर्चा भरने के लिए नामांकन पत्र खरीदा था। उनको नामांकन से रोकने के लिए यह षडयंत्र किया गया है।

सपा की ओर से आलोक गुप्ता के विकल्प में धर्मेन्द्र यादव से नामांकन कराने की रणनीति एक बार फिर चूूक हुई। सपा उनसे नामांकन पत्र खरीदवाने के बाद भी उन्हें नामांकन दाखिल होने तक ‘ छुपा ’ कर नहीं रख सकी।

इस तरह सपा के दोनों प्रत्याशी 26 जूून को नामांकन के लिए उपस्थित नहीं हो पाए। दोनों प्रत्याशियों के ‘ गायब ’ होने के बारे में तरह-तरह की चर्चा है। सपा की ओर से कहा जा रहा है कि प्रशासन के बल पर दोनों को नामांकन करने से रोकने का दबाव बनाया गया और उन्हें ‘छुपा ’ दिया गया लेकिन दूसरी चर्चा यह है कि दोनों प्रत्याशियों से भाजपा प्रत्याशी के खेमे से ‘डील ’ हो गयी थी। अध्यक्ष पद के एक प्रत्याशी डील के बाद दिल्ली कूच कर गए तो दूसरे ने तय कर लिया कि वे नामांकन नहीं करेंगे। कहा जा रहा है कि ये दोनों प्रत्याशी ‘ उत्पीड़न ’, ‘ दबाव ’ से तंग आकर और भविष्य की राजनीति को देखते हुए ‘ डील ’ करने को ‘ मजबूर’ हुए ।

अब सपा के समाने यही विकल्प बचा था कि वे अपने तीसरे प्रत्याशी का नामांकन कराए। सपा जिलाध्यक्ष उन्हें साथ लेकर कलेक्ट्रेट के लिए निकले लेकिन उन्हें पुलिस ने कई जगह रोका। कलेक्ट्रेट गेट पर भाजपा ने कब्जा कर लिया था। गेट पर तालाबंदी कर दी गई थी। गेट के अंदर भी बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे जो किसी भी तरह से सपा प्रत्याशी का नामांकन रोकते। आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा था। सपा जिलाध्यक्ष अपने प्रत्याशी को लेकर गेट तक पहुंच नहीं पाए। यही नहीं वह इस जोर जबर्दस्ती के खिलाफ कोई तेवर भी नहीं दिखा सके जैसा कि देवरिया में सपा विधाायक आशुतोष उपाध्याय के नेतृत्व में सपाइयों ने दिखाया।

 

 

गोरखपुर के सपा जिलाध्यक्ष कई घंटे तक शास्त्री चौक व कलेक्ट्रेट गेट पर असहाय खड़े रहे। उनके साथ बहुत कम संख्या में सपाई थे जिन्होंने फेसबुक लाइव कर और कुछ देर के लिए शास्त्री चौक पर धरना देकर ‘ प्रतिरोध की रस्म ’ पूरी की। नामांकन अवधि के आधे घंटे पहले ही सपा प्रत्याशी को लिए सपा जिलाध्यक्ष बैरंग वापस लौट आए। देर रात उन्हें सपा जिलाध्यक्ष पद से हटाने का सपा नेतृत्व क आदेश आ गया।

इस पूरे प्रकरण में सपा के अंदर एकजुटता और संघर्ष के जज्बे का कोई चिन्ह नहीं दिखा। बड़े नेता एक किनारे खड़े मूकदर्शक बने रहे। पहले से कई गुटों में बंटी सपा में यह स्वभाविक था। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए सपा जिलाध्यक्ष द्वारा सभी नेताओं को विश्वास में लेकर साथ चलने की रणनीति भी नहीं अपनायी गयी जैसा कि देवरिया, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती में देखा गया। इन जिलों में भी भाजपा सत्ता की धमक दिखा रही थी लेकिन सपा नेता कहीं से भी कमजोर नहीं पड़े।

विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा के ‘ खेला ’ में फंसे गोरखपुर जिले के सपाइयें के लिए यह एक बड़ा झटका है जिससे उनकी चुनावी तैयारियों पर असर पड़ेगा। गोरखपुर में सपा में कई बड़े नेता है जिनका अपना जनाधार है लेकिन एक भी ऐसा नहीं नेता है जो सभी को साथ लेकर चल सके और भाजपा का मुकाबला करने का राजनीतिक कौशल व साहस दिखा सके।

 

लेखक गोरखपुर न्यूज़ लाइन के संपादक हैं। यह लेख वहीं प्रकाशित हुआ। साभार प्रकाशित।

First Published on:
Exit mobile version