गुजरात पुलिस द्वारा पूर्व सिमी अध्यक्ष शाहिद बदर फलाही के खिलाफ 18 साल पुराने ज़मानती धाराओं वाले मुकदमे में धोखाधड़ी से गैर जमानती वारंट जारी करवाने और कानूनी औपचारिकताओं को पूरा किए बिना गुजरात ले जाने के प्रयासों की रिहाई मंच ने निंदा की।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने शाहिद बदर को पकड़ने की गुजरात पुलिस की कार्रवाई को गुजरात माडल का हिस्सा बताते हुए कहा कि वो उसकी विवादित छवि बनाकर सांप्रदायिक विभाजन की साजिश रच रही है। यह हास्यस्पद तर्क है कि गुजरात पुलिस को इतने सालों में शाहिद बदर का पता नहीं मालूम था।
आज़मगढ़: SIMI के पूर्व अध्यक्ष डॉ. फ़लाही के खिलाफ गुजरात पुलिस ने खोला 18 साल पुराना केस
सिमी को प्रतिबंधित किए जाने से भी पहले 2001 में गुजरात के जनपद कच्छ में भुज पुलिस द्वारा भा०द०वि० की धारा 353 और 147 में प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद बिना कोई सम्मन तामील करवाए 2012 में वहां की स्थानीय कोर्ट से गैर जमानती वारंट हासिल कर लिया गया था। वारंट हासिल करने के करीब सात साल बाद पुलिस शाहिद बदर फलाही को गिरफ्तार कर बिना ट्रांज़िट रिमांड लिए गैर कानूनी तरीके से गुजरात ले जाना चाहती थी। 5 सितंबर 2019 की रात स्थानीय पुलिस की मदद से उन्हें उनके गांव मंचोभा, आज़मगढ़ से किसी ज़रूरी काम से कोतवाली चलने को कहा गया। कोतवाली पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि भुज में दर्ज मुकदमे के सिलसिले में गैर जमानती वारंट जारी हुआ है और उन्हें गुजरात ले जाया जाएगा।
तथ्यों को देखते हुए सीजेएम आज़मगढ़ आलोक कुमार ने उन्हें एक–एक लाख की दो ज़मानतों पर अंतरिम ज़मानत देते हुए एक महीने के अंदर सक्षम न्यायालय में पेश होने का निर्णय सुनाया। इसके बाद उनकी रिहाई को बाधित करने की नीयत से सरकारी वकील के साथ कुछ अन्य अधिवक्ताओं ने ज़मानत पत्र के प्रमाणित किए जाने से पहले रिहाई देने का विरोध किया। इस बीच गुजरात पुलिस के उच्च अधिकारियों और उत्तर प्रदेश की शासन की तरफ से सीजेएम पर दबाव बनाए जाने की अफवाहें गश्त करती रहीं और शाम को जनपद के उच्च पुलिस अधिकारी दीवानी न्यायालय के भीतर मौजूद देखे गए। करीब पौने सात बजे शाम को सीजेएम ने अपने निर्णय में संशोधन करते हुए एक महीने के बजाए सात दिनों के भीतर शाहिद बदर को सक्षम न्यायालय में हाजिर होने की शर्त पर रिहा कर दिया।
विज्ञप्ति : राजीव यादव, रिहाई मंच द्वारा जारी