वनाधिकार: मुख्यमंत्री से मिलने जा रहे आदिवासियों को छत्तीसगढ़ पुलिस ने रास्ते में रोका

कोरबा, छत्तीसगढ़ । मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वनाधिकार के मुद्दे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से अपनी बात कहने और ज्ञापन देने जा रहे सैकड़ों आदिवासियों को आज प्रशासन ने रास्ते में ही रोक दिया और मुख्यमंत्री से मिलने नहीं दिया। मुख्यमंत्री के दौरे में शायद यह पहली बार हुआ है कि किसी राजनैतिक पार्टी ने वनाधिकार के मुद्दे पर प्रदर्शन की घोषणा की हो और सैकड़ों आदिवासियों को बीच रास्ते में ही प्रशासन को बलपूर्वक रोकना पड़ा हो। इससे आदिवासियों के बीच सरकार की किरकिरी तो हुई ही है, यह मुद्दा राजनैतिक मुद्दा भी बन गया है। आम नागरिकों में यह चर्चा है कि एक ओर तो पूरी प्रशासनिक ताकत झोंककर मुख्यमंत्री की बात सुनने के लिए भीड़ जुटाई गई, वहीं दूसरी ओर वनाधिकार और जनसमस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री से मिलने जा रहे आदिवासी किसानों को बलपूर्वक रोका गया।

माकपा ने कहा है कि वनाधिकार के मुद्दे पर कोरबा में सरकारी दावों की पोल खुल गई है। पूरे जिले में वन भूमि पर बसे आदिवासियों की बेदखली का अभियान चल रहा है। पुराने आवेदनों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया है और नए आवेदन पत्र तो लिए ही नहीं जा रहे हैं। इस मामले पर मुख्यमंत्री का अपने प्रशासन पर ही कोई नियंत्रण नहीं है। माकपा नेताओं ने आगामी दिनों में वन भूमि से बेदखल लोगों को पुनः काबिज कराने की मुहिम छेड़ने की घोषणा की है।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में लॉक डाउन के दौरान पाली विकासखंड के उड़ता गांव में वन भूमि पर काबिज आदिवासियों को बेदखल करने और रैनपुर में गलत तरीके से दावों को खारिज कर कब्जाधारियों को बेदखल करने का मामला सामने आया है। कोरबा निगम के क्षेत्र में वन भूमि पर बसे आदिवासियों को पट्टा देने के लिए तो प्रशासन तैयार ही नहीं है। इन घटनाओं को केंद्र में रखकर माकपा ने वनाधिकार का मुद्दा उठाया था और सैकड़ों आदिवासियों के साथ मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने की घोषणा की थी।

माकपा जिला सचिव प्रशांत झा का कहना है कि प्रशासन के रवैये से यह साफ जो चुका है कि कम-से-कम वनाधिकार के सवाल पर कांग्रेस-भाजपा में कोई अंतर नहीं है। पिछली भाजपा सरकार की तरह ही इस बार की कांग्रेस सरकार में भी आदिवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने की कोई राजनैतिक इच्छाशक्ति है। उनका कहना है कि वनाधिकार के मामले में कोरबा जिला प्रशासन और वन विभाग सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और दिशा-निर्देशों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहा है।

छत्तीसगढ़ किसान सभा से जुड़े लगभग पचास गांवों के 500 से अधिक किसान इस मुद्दे पर गंगानगर में एकत्रित हुए। रैली शुरू होने से पहले गंगानगर में सभा भी हुई, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण जुटे। सभा को माकपा जिला सचिव प्रशांत झा, पार्षद राजकुमारी कंवर, सूरती कुलदीप, सीटू नेता वी एम मनोहर, एसएन बेनर्जी, जनाराम कर्ष, छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेता जवाहर सिंह कंवर, मान सिंह कंवर, हेम सिंह, दिलहरण चौहान, नंदलाल कंवर, दीपक साहू, जनवादी महिला समिति की प्रदेश संयोजक धनबाई कुलदीप आदि ने संबोधित किया। सभा के बाद सभी ट्रेक्टरों में सवार होकर मुख्यमंत्री से मिलने कोरबा के लिए रवाना हुए। लेकिन पांच किमी. चलने के बाद ही उनके काफिले को प्रशासन ने रोक दिया। मुख्यमंत्री से एक प्रतिनिधिमंडल को मिलाने के माकपा नेताओं के आग्रह को भी उसने स्वीकार नहीं किया, जिसके बाद  किसानों ने नारेबाजी शुरू कर दी।

माकपा ने प्रदर्शन करते हुए दीपका तहसीलदार को मुख्यमंत्री के नाम  ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में कोरबा नगर निगम के सबसे पिछड़े क्षेत्र बांकीमोंगरा में विकास के लिए 50 बिस्तरों का अस्पताल और शासकीय कॉलेज खोलने, भूविस्थापितों की समस्याएं हल करने और बंद पड़े उद्योगों को पुनर्जीवित करने की भी मांग की गई है।

प्रदर्शन को आयोजित करने में शत्रुहन दास, रामप्रसाद, नरेंद्र साहू, हुसैन, दिलहरण बिंझवार, पुरुषोत्तम कंवर, रघु, संजय, देवकुंवर, तेरसबाई, डी एल टण्डन, कान्हा अहीर आदि कार्यकर्ताओं की प्रमुख भूमिका रही।

माकपा द्वारा मुख्यमंत्री को भेजा गया ज्ञापन 

 

प्रति,

मुख्यमंत्री,

छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर, छग

माननीय महोदय,

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी आपका ध्यान इस क्षेत्र की ज्वलंत समस्याओं की ओर आकर्षित करना चाहती है :

1. वनाधिकार के संबंध में :

कोरबा जिले में वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन की स्थिति बहुत खराब है। शासन की घोषित मंशाओं के विपरीत यहां प्रशासन काम कर रहा है। नतीजन, न तो नए आवेदन स्वीकार किये जा रहे हैं और न ही पुराने आवेदनों पर कोई कार्यवाही हो रही है। बेदखली जो रही है, सो अलग।

उदाहरणार्थ :

आपसे अनुरोध है कि इन ठोस प्रकरणों पर ठोस कार्यवाही का निर्देश देते हुए वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन को तेज करने का निर्देश प्रशासन को देंगे। माकपा का अनुरोध है कि वनाधिकार दावों के निरस्त प्रकरणों पर पुनर्विचार किया जाए तथा नए आवेदन पत्रों पर समय-सीमा के भीतर कार्यवाही की जाएं।

2. विस्थापितों की भूमि समस्या के संबंध में :

3. बिजली बिल के संबंध :

आप जानते हैं कि प्रदेश में मार्च से सितंबर माह तक लॉक डाउन ही था और गरीब लोग रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे थे। ऐसे में बिजली बिलों को पटाना उनके लिए नामुमकिन था। अब लोगों के पास भारी-भरकम बिजली बिल आ रहे हैं। माकपा मांग करती है कि गरीब परिवारों का बकाया बिजली बिल माफ किया जाये।

4. बांकीमोंगरा क्षेत्र के विकास के संबंध में :

कोरबा निगम क्षेत्र में माकपा के समर्थन पर कांग्रेस की निगम सरकार टिकी है। माकपा के समर्थन लेते हुए कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से निगम के सबसे पिछड़े क्षेत्र बांकीमोंगरा के विकास के लिए काम करने का वादा किया था, लेकिन इस वादे के अनुरूप आज तक कोई पहलकदमी नहीं हुई है। अतः माकपा मांग करती है कि बांकी मोंगरा में 50 बिस्तरों का अस्पताल और एक शासकीय कॉलेज खोला जाएं।

5. बंद उद्योगों को चालू करने के संबंध में :

कोरबा जिला को पूरे देश का औद्योगिक तीर्थ कहा जाता है।जिले में उद्योगों के माध्यम से अरबों रुपये का निवेश हुआ है और किसानों की जमीन अधिग्रहित कर उद्योगों की स्थापना की गई है। बीपीसीसी, वंदना पावर जनरेशन, फर्टिलाइजर आदि कंपनियां बंद पड़े हैं, जिसके कारण हजारों मजदूर परिवारों के समक्ष आजीविका का संकट खड़ा हो गया है।अतः माकपा इन बंद पड़े उद्योगों को चालू करने की मांग करती है और जो उद्योग शुरू नहीं हो सकते, उन उद्योगों की जमीन मूल खातेदारों को वापस की जाए।

आशा है, आम जनता की उपरोक्त महत्त्वपूर्ण समस्याओं और मांगों पर आप अवश्य ध्यान देंगे।

नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ,

प्रशांत झा

जिला सचिव, माकपा, छग

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