उत्तर प्रदेश के वामपंथी दलों ने योगी सरकार द्वारा हाथरस प्रकरण की सीबीआई जांच की सिफ़ारिश को पीड़ित परिवार को न्याय से वंचित करने और जांच को विलंबित करने की साजिश बताया है। यह पीड़ित परिवार द्वारा बार बार न्यायिक जांच की गुहार और उच्च न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर जांच कराने की कार्यवाही के विपरीत है। यह आरोपियों के पक्ष में खड़े लोगों और भाजपा की कपटपूर्ण चाल का परिणाम है।
माकपा राज्य सचिव डा.हीरालाल यादव, भाकपा राज्य सचिव डा.गिरीश, भाकपा-माले के सचिव सुधाकर यादव एवं फारवर्ड ब्लॉक के संयोजक अभिनव सिंह कुशवाहा ने कहा कि तोते (सीबीआई) की कारगुजारी अभी हाल में सारा संसार बाबरी मस्जिद दहन केस में देख चुका है। विध्वंसक बार बार दुहराते रहे कि उन्होने ढांचा तोड़ा है और सीबीआई ने उनके बेदाग छूटने की व्यवस्था कर दी। इस जांच पर भला कौन विश्वास कर सकता है।
वामदलों ने कहा कि घटना के दिन 14 सितंबर से लेकर आज तक प्रदेश सरकार और प्रशासन पीड़ित परिवार का जघन्य उत्पीड़न करता रहा है और अब उनके ऊपर सीबीआई जांच थोप कर उत्पीड़न को जारी रखने और न्याय से वंचित करने का षडयंत्र है। रात के साढ़े नौ बजे एसआईटी टीम को पीड़ितों के घर भेज देना भी उत्पीड़नात्मक कार्यवाही है। राज्य सरकार को इससे बाज आना चाहिये।
वामदलों ने कहा कि जिलाधिकारी हाथरस और लीपापोती करने वाले अन्य अधिकारियों के यथावत पदों पर बने रहते कोई निष्पक्ष जांच संभाव नहीं। उन सभी को माकूल सजा दी जानी चाहिये।
वाम नेताओं ने कहा कि बेटियों की सुरक्षा और हाथरस की बेटी को न्याय दिलाने की मांग को लेकर उनका संघर्ष जारी रहेगा।
माले ने नार्को टेस्ट कराने के फैसले का किया विरोध
भाकपा (माले) ने हाथरस कांड में मृत पीड़िता के परिजनों के नार्को टेस्ट कराने के मुख्यमंत्री के निर्णय पर सवाल उठाया है। पार्टी ने इसे पीड़ित परिवार का दोहरा उत्पीड़न बताते हुए निर्णय वापस लेने की मांग की है।
माले राज्य सचिव सुधाकर यादव ने मुख्यमंत्री से सवाल किया कि हाथरस गैंगरेप के आरोपियों के परिजनों की मीडिया तक पहुंच है, लेकिन मृतका के परिजन मीडिया की पहुंच से दूर घर में नजरबंदी की स्थिति में क्यों हैं? उनके घर की किलेबंदी कर पूरे गांव को पुलिस छावनी में क्यों तब्दील कर दिया गया है और परिजनों के फोन तक क्यों टेप किये जा रहे हैं? आखिर रातोंरात पीड़िता के शव को जला कर सबूत नष्ट करने के बाद देश-दुनिया की नजर से अब और क्या छुपाया जा रहा है?
सुधाकर यादव ने मुख्यमंत्री से पूछा कि हाथरस के जिलाधिकारी को क्यों बचाया जा रहा है, जिन्होंने पीड़िता के पिता को न सिर्फ धमकाया, बल्कि परिजनों को लात मारी? एफआईआर दर्ज करने व इलाज में शिथिलता बरतने से लेकर माता-पिता की बिना अनुमति के पीड़िता का जबरन दाह संस्कार करने का आदेश देने वाले ‘ऊपर’ के अधिकारियों को दंड कब मिलेगा? पीड़िता के बयान के बावजूद गैंगरेप को नकारने वाले एडीजीपी (एलओ) के विरुद्ध भी क्या कार्रवाई होगी? ऐसे मामलों में क्या कुछ पुलिस वालों का निलंबन ही पर्याप्त है?
अंत में माले राज्य सचिव ने कहा कि प्रदेश भर में खासकर दलित महिलाओं के साथ अपराधों की बाढ़ क्यों आई है? उन्होंने पूछा, “सर्वोपरि, महिलाओं की सुरक्षा करने में नाकाम मुख्यमंत्री कुर्सी कब छोड़ेंगे?”