क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि किसी व्यक्ति को अस्पताल मृत घोषित कर दे, उसका शव परिवार को सौंप दिया जाए, परिवार शव का अंतिम संस्कार कर दे और फिर अस्पताल दोबोरा सूचित करे किन वह व्यक्ति मरा नहीं, जीवित है और अस्पताल में सकुशल है? अहमदाबाद के सिविल अस्पताल ने कोरोना मामलों में लापरवाही के सारे नए कीर्तिमान स्थापित करने के बाद, एक बार फिर पिछले सारे ‘कारनामों’ को मात दे दी है। इस बार लापरवाही ने सारी हदें पार कीं और इस असंवेदनशील घटना ने फ़िर से गुजरात के स्वास्थ्य तंत्र को बेपर्दा कर दिया है। सिविल अस्पताल अहमदाबाद में एक आदमी को कोरोना संक्रमित बता कर उसका शव परिवार को सौंप दिया गया और शव का अंतिम संस्कार करने के बाद सिविल अस्पताल से परिवार को बताया गया है कि उनका मरीज़ ठीक है और कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव है। परिवार चाहता तो ये ही है कि वह अपने परिजन की ख़ैरियत पर खुश हो, लेकिन उनको अब ये समझ नहीं आ रहा है कि उन्होंने आखिर किसका अंतिम संस्कार कर दिया? लेकिन अस्पताल पहुंचने पर फ़िर से उनके मरीज को मृत बताया जाता है।
दरअसल 28 मई को 75 साल के देवराम भाई भिसिकर को बुखार, कफ़ और सांस लेने में तकलीफ़ (कोविड 19 के संभावित लक्षण) के चलते अहमदाबाद के सिविल हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। 28 मई की देर शाम को कोविड 19 के टेस्ट के लिए उनका सैंपल लिया जाता है। दूसरे दिन 29 मई को शाम तीन बजे देवराम भाई की मृत्यु हो जाती है। जिसके बाद उनके परिवार के लोगों को शव सौंप दिया जाता है। कोरोना संक्रमित होने के संदेह के चलते शव पीपीई किट के अंदर पूरी तरह से लपेट कर रखा गया था और अस्पताल प्रशासन के निर्देश के हिसाब से देवराम भाई का का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। 29 मई की देर रात देवराम भाई की कोविड 19 की रिपोर्ट आती है, जो नेगेटिव होती है। दूसरे दिन 30 मई को सिविल अस्पताल से देवराम भाई के परिवार वालों को फ़ोन करके बताया जाता है कि देवराम भाई की सेहत में सुधार आ रहा है और उनको जनरल वॉर्ड में शिफ्ट किया जा सकता है। ये सुनकर परिवार वाले चौंक जाते हैं और उन्हें समझ ही नहीं आता कि अस्पताल प्रशासन ऐसा कैसे कर सकता है ? लेकिन उन सब को अपने परिवार के सदस्य की जीवित होने ख़ुशी भी थी।
इसके बाद परिवार वाले सिविल अस्पताल पहुंचते हैं, वहां जाकर उनके साथ एक और मज़ाक किया जाता है। उनको अस्पताल प्रशासन कि तरफ़ से बताया गया कि कोविड 19 की रिपोर्ट नेगेटिव आने की वजह से फ़ोन करने वाले व्यक्ति को कुछ भ्रम हो गया था। जिसकी वजह से देवराम भाई जीवित बता दिए गए थे। उनकी मृत्यु हो चुकी है। अस्पताल प्रशासन का इस घटना पर कहना है कि ये जिस समय देवराम भाई अस्पताल लाए गए थे उन्हें सांस लेने में समस्या हो रही थी। उनके शुगर का लेवल 500 पहुंच गया था। जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। साथ ही बताया गया कि देवराम की कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी इसलिए नॉर्मल प्रोटोकॉल के तहत, अस्पताल के कंट्रोल रूम से जीवित होने और स्वास्थ्य में सुधार की बात फ़ोन करके कह दी गयी थी। ये मात्र के मानवीय भूल है।
इस घटना को थोड़ा ध्यान देकर समझें तो हमको पता अंदाज़ा लगा सकते हैं कि दरअसल नॉर्मल प्रोटोकॉल के तौर पर भी सिर्फ लोगों को एक जैसी जानकारी या संवाद दोहरा कर, अच्छा कम्युनिकेशन होने का एक स्वांग रचा जा रहा है। अस्पताल के कर्मचारी, कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने वाले हर व्यक्ति के परिजनों को, बिना ये पता किए कि उस व्यक्ति की स्थिति क्या है – वह कहां है और उसे क्या बीमारी है; महज किसी आंसरिंग मशीन की तरह, एक ही सा संदेश दोहरा दे रहे हैं। यानी कि हर नेगेटिव रिपोर्ट वाले व्यक्ति के घर फोन कर के, एक ही सी सूचना सबके बारे में दे देना।
बता दें कि गुजरात हाईकोर्ट ने कुछ दिन पहले ही स्वास्थ्य व्यवस्था और सिविल हॉस्पिटल के स्थिति को लेकर गुजरात सरकार को फटकार लगायी थी। हालांकि उसके बाद सुनवाई करने वाली जजों की बेंच में बदलाव की भी खबर आ गयी। लेकिन अहमदाबाद के सिविल हॉस्पिटल से लापरवाही की ख़बरें थमी नहीं। कोरोना जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में सिविल अस्पताल की तरफ़ से मानवीय संवेदनाओं के साथ खेलने की ये घटना सिर्फ़ मानवीय भूल कह कर नहीं छिपाई जा सकती।