महात्मा गांधी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई के पौत्र नचिकेता देसाई साबरमती आश्रम में नागरिकता संशोधन विधेयक और NRC के विरोध में धरने पर बैठे थे लेकिन गुजरात सरकार ने उन्हें बाहर सड़क का रास्ता दिखा दिया.
27 दिसंबर को अहमदाबाद में साबरमती आश्रम के बाहर नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता देसाई के उपवास का तीसरा दिन था।
नचिकेता देसाई लिखते हैं-
गांधीजी की दक्षिण अफ्रीका सत्याग्रह किताब पढ़ते हुए मुझे अचानक यह विचार आया कि मुझे खींच कर सत्याग्रह आश्रम के बाहर निकाल कर और पुलिस के हवाले कर आश्रम के प्रबंधक ने मुझ पर और मेरे उद्द्येश्य पर बहुत बड़ी कृपा की।
मैंने तय किया था कि मैं बिना कुछ प्रचार किए चुपचाप आश्रम परिसर में गांधीजी की प्रतिमा के पास आसन बिछा कर उपवास करूँगा। 31 दिसंबर तक रोज 12 घंटे वहां रामचंद्र गुहा की पुस्तक, जो मैंने आधी पढ़ी थी, उसे पूरा पढ़ लुंगा। कोई शोर शराबा नहीं, कोई प्रचार नहीं। बहुत आत्म संतोष मिलेगा। मैंने उपवास शुरू करने के एक दिन पहले, पिताजी नारायण देसाई के जन्म जयंती के दिन, आश्रम निदेशक को यही बताया था। उन्होंने मुझे कहा इसकी वे इजाजत नहीं देंगे। मैंने कहा मैं इजाजत लेने नहीं बल्कि सूचित करने आया हूँ। उन्होंने कहा तब वे इसके बारे में पुलिस को सूचित करेंगे। मैंने कहा वे पुलिस को या सरकार में बैठे किसी को भी सूचित करें, मेरा वहां उपवास पर बैठने का निर्धार अटल है।
दूसरे दिन, 25 दिसंबर क्रिसमस, सुबह आठ बजे मैंने गांधीजी की प्रतिमा के पास दरी बिछा कर अपना उपवास शुरू कर दिया। देश-विदेश से सैलानी आने लगे। किसी का ध्यान मुझ पर नहीं गया। वे गांधीजी की प्रतिमा को प्रणाम कर आगे बढ़ जाते थे। करीब 9 बजे आश्रम के कर्मचारियों में खलभली मच गई। आश्रम के ट्रस्टी कार्तिकेय साराभाई परिसर में दिखाई दिए। “आज इतने सबरे ये यहां कैसे? वे यदा कदा ही यहां आते हैं और वह भी दोपहर के बाद!” एक कर्मचारी ने आश्चर्य प्रकट किया।
पुलिस स्टेशन के एक कमरे में मुझे बैठाया गया। तब तक मैंने अपने फेसबुक में लिख दिया था कि मैं पुलिस हिरासत में थाने में हूँ। इसे पढ़ इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्टर थाने पहुंच गई। मगर उसे मुझसे मिलने नहीं दिया। उसने मुझे फोन पर मैसेज भेजा कि वह थाने पहुंच गई है मगर पुलिस उसे मुझसे मिलने नहीं दे रही। इस पर मैं कमरे से बाहर निकल उससे मिला। हम दोनों को एक दूसरे कमरे में बैठने को कहा जब तक इंस्पेक्टर न आ जाएं। मैंने हाई कोर्ट के अपने वकील मित्र के आर कोष्टी को फोन कर पुलिस स्टेशन बुलाया। वे करीब एक घंटे में पहुंचे। पुलिस अधिकारी ने मुझे कहा कि अगर मैं यह लिख कर दूं कि बिना पुलिस परवानगी के मैं सार्वजनिक स्थल पर उपवास पर नहीं बैठूंगा तो वे मुझे छोड़ देंगे। मैंने ऐसा लिख कर देने से इनकार किया। मुझे तब इंस्पेक्टर से मिलने को कहा गया। इंस्पेक्टर ने मुझे कहा इस अंडरटेकिंग पर दस्तखत करें। मैंने ऐसा करने से इनकार किया। तब उन्होंने मुझे कहा आप जा सकते हैं। लेकिन अगर मैंने पुलिस की मंजूरी लिए बगैर किसी सार्वजनिक जगह पर उपवास किया तो इसका नतीजा भुगतना होगा।
इस नाटकीय घटना की वजह से मैं समाचार माध्यमों के लिए चटपटी खबर का विषय बन गया। न मुझे आश्रम से बाहर निकाला जाता न मेरी कोई चर्चा होती। आश्रम के ट्रस्टी कार्तिकेय साराभाई ने मुझे आश्रम परिसर से बाहर निकाल कर और संचालक अतुल पंड्या ने पुलिस बुलाकर मुझ पर और मेरी नागरिकता कानून के खिलाफ मेरी अहिंसक लड़ाई की बहुत सहायता की। उन्हें मेरा धन्यवाद।