कांग्रेस ने दिये किसानों को सताने के सात प्रमाण, राहुल बोले- हम सत्याग्रही अन्नदाता के साथ!

"सात सालों से महापापी और पाखंडी मोदी सरकार किसानों का दमन कर रही है, उनके अधिकारों का हनन कर रही है। बीते सात माह में मोदी सरकार ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं। समूचे विश्व में आज तक किसी निर्दयी और निर्मम सत्ता का ऐसा अत्याचार देखने को नहीं मिला जो मोदी सरकार धरती के भगवान कहे जाने वाले अन्नदाता किसानों के साथ लगातार 7 माह से कर रही है।" 

सात महीने से दिल्ली घेर कर बैठे किसानों ने आज राष्ट्रीय स्तर पर खेती बचाओ-लोकतंत्र बचाओ दिवस मनाया। इस मौके पर तमाम राज्यों की की राजधानी में राजभवनों की तरफ़ मार्च किया गया और राष्ट्रपति के नाम एक रोषपत्र जारी किया गया। कांग्रेस ने इस आंदोलन का भरपूर समर्थन करते हुए कहा है कि मोदी सरकार सात महीने से नहीं सात साल से किसानों का उत्पीड़न कर रही है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने सुबह ही ट्वीट कर आंदोलनकारी किसानों के समर्थन का ऐलान कर दिया था।

 

 

उधर, कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने किसानों के प्रश्न पर पार्टी की ओर से सरकार से सात सवाल पूछे और किसान उत्पीड़न के सात प्रमाण भी रखे। उनके बयान में कहा गया है कि-

सात सालों से महापापी और पाखंडी मोदी सरकार किसानों का दमन कर रही हैउनके अधिकारों का हनन कर रही है। बीते सात माह में मोदी सरकार ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं। समूचे विश्व में आज तक किसी निर्दयी और निर्मम सत्ता का ऐसा अत्याचार देखने को नहीं मिला जो मोदी सरकार धरती के भगवान कहे जाने वाले अन्नदाता किसानों के साथ लगातार माह से कर रही है । 

26 नवंबर 2020 से माँ अन्नपूर्णा के भूमिपुत्र किसानों को सत्ता सता रही है। कभी उन पर लाठी बरसाती हैकभी आँसू गैस के बम मारती हैकभी उनकी राहों में कील और काँटे बिछाती है। 

सड़कों पर सोने को मजबूर किसानों को मोदी सरकार कभी आतंकीकभी खालिस्तानी बताती है। 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पूरी प्रतिबद्धता और दृढ़ता से देश के किसान भाइयों के साथ खड़ी है। 

आज होने वाले किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का पार्टी पुरजोर समर्थन करती है । 


मोदी सरकार कैसे किसानों को सात साल से परास्त करने का षडयंत्र कर रही है और सात माह से लगातार प्रताडि़त कर रही है
जानिए

किसानों को परास्त करने के षडयंत्र के सात प्रमाण:

1) 2014 में सरकार बनाते ही पहले अध्यादेश के माध्यम से किसानों की भूमि के ‘उचित मुआवज़ा कानून 2013’ को बदलकर किसानों की ज़मीन हड़पने की कोशिश की।

2)  वादा करने के बावजूद 2015 में सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र देकर किसानों को समर्थन मूल्य पर लागत+50 प्रतिशत मुनाफा देने से इन्कार कर दिया ।

3) 2016 में प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के नाम पर प्रायवेट कंपनियों को लूट की खुली छूट दे दी गई। 2016 खरीफ से 2019-20 तक इस योजना में लगभग 99,073 करोड़ रुकी प्रीमियम केंद्रराज्य और किसानों ने अदा की और बीमा कंपनियों ने 26,121 करोड़ रुका मुनाफ़ा कमाया। 

4) मोदी सरकार ने 2018 में किसान सम्मान निधि के नाम से एक और छलावा किसानों के साथ किया। 

देश में कुल 14 करोड़ 65 लाख किसान हैं मगर मोदी सरकार किसान सम्मान निधि से लगभग करोड़ किसानों को वंचित किए हुए है। 

एक तरफ़ मोदी सरकार कह रही है कि किसानों को हज़ार रुपए प्रतिवर्ष सम्मान निधि देकर हम किसानों की सहायता कर रहे हैं मगर दूसरी ओर मोदी सरकार ने बीते छः वर्षों में डीज़ल की कीमत मई, 2014 में 55.49 रुसे बढ़ाकर आज 88.65 रुकर दी है। 

अर्थात लगभग 33.16 रुप्रति लीटर डीज़ल के दामों की वृद्धि की गई है। इसी प्रकार खेती में लगने वाले इनपुट जैसे उर्वरककीटनाशकफेरोमान ट्रैपट्रैक्टरड्रिप और स्प्रिंकलर एवं अन्य उपकरणों पर से 18 प्रतिशत तक जीएसटी लगने से खेती का लागत मूल्य लगभग 20 हज़ार रुप्रति हेक्टेयर बढ़ गया है। एक ओर मोदी जी हज़ार रुपए सालाना देने का स्वाँग रचते हैं और दूसरी ओर किसानों की जेब से 20 हज़ार रुपए प्रति हेक्टेयर निकाल लेते हैं। 

5) प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजनाअर्थात बाज़ार में किसानों को फसलों के दाम कम मिलने पर सरकार या तो बाज़ार भाव और समर्थन मूल्य के अंतर का पैसा सीधे किसानों के खाते में डालेगी या खरीदेगी। इस योजना को नियोजित रूप से बंद किया जा रहा हैजो बजट 2019-20 में 1500 करोड़ रु था उसे 2020-21 में मात्र 400 करोड़ कर दिया गया । 

6) कृषि विरोधी तीन क्रूर काले कानून पूंजीपतियों के फ़ायदे के लिए लेकर आए। 

7) ख़ुद लागत एवं मूल्य आयोग मोदी सरकार पर अपनी रिपोर्ट में ख़ुलासा करता है कि सरकार समर्थन मूल्य पर दाल ख़रीद कर ऐसे समय बाज़ार में उतारती है जब किसानों की फसलें आने वाली होती हैं । 

अर्थात पूंजीपतियों को लाभ पहुँचाने के लिये बाज़ार के दाम सरकार तोड़ देती है । 


किसानों को प्रताडि़त करने पर सात सवाल
:

1) क्या लागत और मूल्य आयोग ने अपनी ख़रीफ रिपोर्ट 2021-22 में ये आरोप नहीं लगाया कि लागत निकालने के लिए सरकार सेंपल साइज बहुत छोटा रखती है जिससे सही लागत मूल्य नहीं निकल पाता है?

2) क्या यह सही नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में फ़रवरी 2015 के शपथ पत्र में सरकार ने माना कि स्वामीनाथन आयोग की 201 सिफारिशों में से कांग्रेस की सरकार ने जनवरी 2014 तक 175 हूबहू लागू कर दी थीं?

मगर मोदी सरकार ने उसके बाद एक भी कदम आगे क्यों नहीं बढ़ाया?

3) क्या ये सही है कि 10 जनवरी, 2014 को कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज़ (CoS) की मीटिंग हुई थीइसमें निर्णय लिया गया था कि कोई भी कानून बनाने से पहले हर विभाग को अनिवार्य रूप से कम से कम 30 दिनों के लिए प्रस्तावित कानून को पब्लिक डोमेन में रखना होगा?

मगर क्या ये सही है कि सरकार ने सूचना के अधिकार कानून के तहत ये बात मानी है कि जून 2020 में ये कृषि क्रूर काले कानून लाने के पहले इनको पब्लिक डोमेन में विचार के लिए नहीं डाला गया?

क्या सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने झूठा शपथपत्र दिया है कि किसानों से चर्चा करके ये तीनों काले कानून लाए गए हैं?

जबकि सूचना के अधिकार के तहत दिए जवाब में सरकार ने स्वीकारा कि कानून लाने से पहले किसानों से चर्चा के कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं।

4) क्या जब तीन काले कानून लागू किए गए तब से ही सरकारी अनाज मंडिया लगातार बंद करना जारी नहीं है?

5) क्या किसान को मंडियों से बाहर देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने की आजादी नहींअगर यह सही हैतो फिर तीन खेती विरोधी काले कानूनों की क्या जरूरत है?

6) क्या ज़माखोरी की खुली छूट देने वाले तीन खेती विरोधी काले कानूनों को स्थगित करने से ज़माखोरी पर कुछ हद तक विराम लगा हैतो फिर तीन काले कानून लागू कर मोदी सरकार जमाखोरों को छूट क्यों देना चाहती है?

7) क्या सरकार किसानों के खिलाफ षड्यंत्र कर उन्हें ‘थका दो और भगा दोप्रताडि़त करो और परास्त करोबदनाम करो और फूट डालो’ की नीति पर काम नहीं कर रही?

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