भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) 22 जून को शहीद सैनिकों के सम्मान में पूरे देश में श्रद्धांजलि दिवस का आयोजन करेगी. भाकपा माले की केंद्रीय कमेटी ने बयान जारी कर कहा है कि 19 जून को की गई ‘ऑल पार्टी बैठक’ में नरेन्द्र मोदी से जितने सवालों के जवाब मिले उससे ज्यादा नये प्रश्न खड़े हो गये हैं. उन्होंने केवल एक ही तथ्य को स्वीकारा कि चीनी सैन्य टुकडि़यों के साथ आमने सामने की लड़ाई में एक कर्नल समेत बीस भारतीय सैनिकों की जान चली गई. बाद में चीन ने चार अधिकारियों समेत 10 और सैनिकों को छोड़ा है, जबकि भारत की ओर से इस बात को स्वीकार ही नहीं किया गया था कि हमारा एक भी सैनिक लापता है अथवा चीनियों द्वारा पकड़ा गया है.
मोदी के वक्तव्य से विदेश मंत्रालय के उस बयान का भी खण्डन हो गया जिसमें कहा गया था कि चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के इलाके में घुस कुछ ढांचों के निर्माण की कोशिश कर रही है. यह कह कर कि भारत के इलाके में चीन की ‘न कोई घुसपैठ है, न कब्जा है, और न ही उनकी कोई चौकी है’ उन्होंने सबको चौंका दिया है. फिर सीमा पर तनाव घटाने व दोनों ओर से पीछे हटने की वार्तायें आखिर क्यों की जा रही थीं.
लम्बे समय से भारत के नियंत्रण वाले गलवान घाटी क्षेत्र पर चीन जब अपनी संप्रभुता जता रहा है, भारत के प्रधानमंत्री किसी भी तरह की चीनी घुसपैठ के आरोप को ही खारिज कर रहे हैं. क्या इसका यह निष्कर्ष निकाला जाय कि मोदी सरकार ने चीन के दावे को सही मान लिया है? यदि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का कोई उल्लंघन ही नहीं हुआ था तो हमारे सैनिक क्यों और कहां मारे गये ?
भाकपा माले केंद्रीय कमेटी ने अपने बयान में कहा कि “ऐसे समय में जब देश कोरोनावायरस और लॉकडाउन के कारण बनी आर्थिक उथल पुथल और गहराती मंदी के दोहरे संकट को झेल रहा है, लद्दाख क्षेत्र में भारत-चीन टकराव पर पूरे देश को अंधेरे में रख हमारे बीस जवानों के मारे जाने, बहुतों के घायल होने और जैसा कि बताया गया है कि गहन वार्ताओं के बाद चीनी कब्जे से दस जवानों को छुड़ाने के बाद भी कहा जा रहा है कि ‘सब कुछ ठीक है’. इससे पता चल रहा है कि मोदी सरकार ने विदेश नीति के मोर्चे पर हमें कितने भारी संकट में डाल दिया है.
एक ओर जहां सैन्य-कूटनीतिक-राजनीतिक दायरे में मोदी सरकार चीन के दावे को चुपचाप स्वीकार करती जा रही है, दूसरी ओर संघ-भाजपा खेमा इसे छिपाने के लिए विपक्षी दलों पर अनाप-शनाप आरोप लगा रहे हैं और चीन का बहिष्कार अभियान के नाम में चीनी सामान खरीदने-बेचने के लिए देश की जनता को ही दोषी ठहरा रहे हैं. ऐसे अभियान का करोड़ों भारतीय खुदरा व्यापारियों पर विपरीत असर पड़ेगा.
सच्चाई तो यह है कि मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और चीन के बीच आर्थिक संम्बंध गहराते चले गये और आज चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बन चुका है. पटेल की मूर्ति भी चीन से ही बनवा कर भारत लायी गई थी. इस टकराव के दौरान भी चीनी कम्पनियों को लगातार ठेके मिल रहे हैं, सभी बड़े टीवी चैनलों को मिलने वाले विज्ञापन में चीनी कम्पनियों का बड़ा हिस्सा रहता है, भारत के बड़े कॉरपोरेट घरानों का चीनी कम्पनियों और चीनी पूंजी के साथ रिश्तों का तो कहना ही क्या.”
केंद्रीय कमेटी ने कहा कि “यह भी कम शर्मनाक नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी ने नियंत्रण रेखा पर हुई मुठभेड़ और भारतीय सैनिकों की दुखद मौतों को बिहार का गौरव बताना शुरु कर दिया है, क्योंकि वहां बिहार रेजीमेण्ट की 16वीं बटालियन तैनात है. बिहार के चुनावों में कुछ ही महीने रह गये हैं और अमित शाह की डिजिटल रैली के माध्यम से भाजपा प्रचार अभियान शुरू कर चुकी है, यह समझना मुश्किल नहीं है कि मोदी भारत की सेना को क्षेत्रवाद के चश्में से क्यों देख रहे हैं. कर्नल संतोष बाबू तेलंगाना के थे और तमाम अन्य शहीद सैनिक बिहार सहित भारत के विभिन्न राज्यों से थे. बिहार की जनता को सभी शहीद सैनिकों के जाने का दुख है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि रेजीमेण्ट का नाम क्या था या जवानों की क्षेत्रीय पहचान क्या है.
देश की जनता से हमारी अपील है कि लद्दाख में नियंत्रण रेखा पर तनाव और भारत की चीन सम्बंधित नीति के मामले में सच को सामने लाने के लिए सरकार को बाध्य करें. सरकार से हमारी मांग है कि उस क्षेत्र में हालात के बारे में देश को अंधकार में न रखा जाय. ये वह सरकार है जो भारत के अंदर जनता के संघर्षों को दबाने के लिए हमेशा सीमा पर सैनिकों की दुहाई देती रहती है, उसे आज यह बताना होगा कि क्यों भारतीय सैनिकों को निहत्थे ही जंग में उतार दिया गया जिसके कारण इतनी सारी जानें चली गईं.”
भाकपा-माले केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी