उत्तर प्रदेश: अंतहीन होता महिलाओं का अपमानकाल!

अब, जब उत्तर प्रदेश, कम से कम महिलाओं के उत्पीड़न व अपमान के मामलों में, एक बार फिर प्रश्न-प्रदेश में बदल गया लगता है, याद आता है कि उसके गत विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस बाबत अपनी चुनाव सभाओं में क्या कहा करते थे। जहां तक प्रधानमंत्री की बात है, प्रदेश की समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की पूर्ववर्ती सरकारों पर बरसते हुए वे यहां तक कह जाते थे कि तब प्रदेश में अपराधियों का बोलबाला था और वे तरह-तरह के खेल खेला करते थे। उनकी वजह से आम प्रदेशवासियों का निर्द्वंद्व होकर रहना, जीना और काम धंघे करना कठिन हो गया था। लेकिन 2017 में योगी सरकार बनने के बाद अपराधियों के खेल पूरी तरह बन्द हो गये क्योंकि यह सरकार उनसे जेल का खेल खेलने लगी। इस कारण अपराधी या तो जेल भेज दिये गये या प्रदेश छोड़कर चले गये हैं। जो नहीं गये हैं, वे भी दस मार्च को चुनाव नतीजे आने और योगी सरकार के दोबारा राज्यारोहण के बाद चले जायेंगे, क्योंकि न वे अवैध कब्जों वाले खेल खेल पायेंगे, न भाई भतीजावाद वाले और न ही बेटियों में खौफ पैदा करने वाले।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों में महिलाओं पर अत्याचारों के मामलों में प्रदेश के कई वर्षों से टाॅप पर होने के कड़वे सच को झुठलाकर वे दावा करते थे कि अब प्रदेश की बहुएं, बहनें व बेटियां रात-बिरात भी बेखौफ होकर घर से निकल पाती हैं, जबकि पहले की सरकारों में वे दिन में भी बाहर निकलतीं तो गुंडों-लफंगों के आतंक से असुरक्षित महसूस करतीं और डरी-सहमी रहती थीं। उन दिनों अनेक बेटियों का पढ़ने-लिखने के लिए स्कूल-कालेज जाना मुश्किल होता था, जबकि आज वे प्रदेश का नाम रौशन कर रही हैं। प्रधानमंत्री हालात में इस परिवर्तन का श्रेय मुख्यमंत्री के ‘कुशल प्रशासन’ को देते थे तो मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के ‘सक्षम नेतृत्व’ को।

आज की तारीख में यह एक खुला हुआ तथ्य है कि उनका उक्त इमोशनल अत्याचार बहुत मोहक सिद्ध हुआ और प्रदेशवासियों ने भाजपा कहें या योगी को पांच साल का एक और सत्ताकाल दे दिया, लेकिन उनकी सरकार इसके लिए चार महीने भी उनकी कृतज्ञ नहीं रह पाई, जिसके चलते आजादी के अमृतकाल के अवसर पर भी प्रदेश में महिलाओं के लिए उत्पीड़न व अपमान का काल ही चलता चला आ रहा है-भले ही इस दौरान मुख्यमंत्री इस बात को लेकर अपनी मूंछें ऐंठने में मगन हैं कि उनके पक्ष की ‘अनुकम्पा’ से देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिल गई है। प्रदेश में उनकी पार्टी से जुडे लोग तो अपने महिलाविरोध में उनके ‘बुलडोजर राज’ से भी खौफ नहीं खा रहे।

पिछले दिनों इसकी सबसे चर्चित मिसाल नोएडा के एक संभ्रांत रिहायशी इलाके से सामने आई, जिसमें भाजपा नेता श्रीकांत त्यागी ने एक महिला द्वारा पार्क में उनके अवैध कब्जे की शिकायत करने पर सत्ता की हनक में न केवल उससे अभद्रता की, बल्कि हाथ लगाया, धक्का दिया और उसके पति की जाति का उल्लेख कर अपशब्द कहे। इस विवाद का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।

खबरों के अनुसार श्रीकांत त्यागी द्वारा उक्त सोसायटी के पार्क पर अवैध रूप से कब्जा कर लेने से वहां के निवासियों को कतई तरह की असुविधाएं हो रही थीं और इसी को लेकर महिला उससे बात करने गई थी। लेकिन वह अपने समर्थकों की उपस्थिति में उससे बदतमीजी और बरजोरी पर उतर आया। जैसा कि हमारी संकुचित सामाजिक मानसिकता के कारण प्रायः होता है, उस वक्त वहां उपस्थित अन्य लोगों ने तमाशबीन बनकर यही प्रमाणित किया कि हम अभी भी उसी दौर में हैं, जहां जब तक हमारे घर की महिलाओं से दुर्व्यवहार न हो, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।

फिलहाल चैतरफा दबाव के बाद पुलिस ने इस मामले की शिकायत दर्ज कर ली है और उसे गिरफ्तार भी करना पड़ा। यह दिखाने के लिए कि प्रदेश में अपराधियों पर कार्रवाई में भेदभाव नहीं किया जाता, उसके फ्लैट के सामने कुछ अस्थायी किस्म की घेरेबंदी को हटा दिया गया।

लेकिन इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे रहा कि इसका हासिल क्या है? क्या श्रीकांत को एक महिला से सार्वजनिक तौर पर बदतमीजी का हौसला उस सत्ता-संस्कृति ने ही नहीं दिया, जो पिछले कई सालों से उत्तर प्रदेश का मौसम बनी हुई है? इसी संस्कृति के तहत पिछले दिनों योगी सरकार का एक मंत्री एक अदालत द्वारा उसे दोषी करार दिये जाते ही फरार हो गया और उसका वकील हेकड़ी दिखाते हुए अदालत के आदेश की प्रति ही ले भागा।

बहरहाल, प्रदेश में महिलाओं के अपमान की यह कोई इकलौती घटना नहीं है। सोशल मीडिया पर वायरल एक अन्य वीडियो के अनुसार पिछले दिनों सीतापुर के एक प्राइमरी स्कूल के एक शिक्षक ने, जो अपनी गैरहाजिरी दर्ज करने को लेकर नाराज था, प्रधानाध्यापिका को छात्रों के सामने ही अपशब्द कहे। लेकिन मुख्यमंत्री की ‘प्रशासनिक कुशलता’ का आलम यह रहा कि वीडियो वायरल होने से पहले इसका संज्ञान लेकर कार्रवाई की जरूरत ही महसूस नहीं की गई-न पुलिस द्वारा और न बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा। वीडियो वायरल होने के बाद भी प्रधानाध्यापपिका को इंसाफ मिलने के रास्ते में कई अड़चनें बताई जा रही हैं। दूसरी ओर बरेली जिले के ख्वाजाकुतुब इलाके की एक महिला ने नाली बंद होने पर अपनी सुविधा के लिए उसे खुदवाया तो भाजपा के एक अन्य नेता जितेंद्र रस्तोगी ने न सिर्फ उसके बल्कि उसकी बेटी के साथ भी मारपीट की।

जाहिर है कि उसे भी इसका हौसला उस सत्ता संस्कृति से ही मिला जिसमें ऐसी हिमाकतों को अपराध नहीं माना जाता और पुलिस व प्रशासन भी उसे गम्भीरता से नहीं लेते। सवाल है कि अगर आजादी के अमृतकाल में भी देश के सबसे बड़े राज्य के सत्ताधीश महिलाओं के अपमानकाल के खात्मे को लेकर संजीदा नहीं हैं, उलटे उनके अपने लोग भी महिलाओं के अपमान पर उतारू हैं तो भला वह मुहूर्त कब आयेगा, जब वे इसे लेकर संवेदनशील होंगे और उपयुक्त कदम उठाकर वाकई उनका सम्मान सुरक्षित करेंगे?

साफ कहें तो वह मुहूर्त तब तक तो नहीं ही आने वाला, जब तक राजनीति का पितृसत्तात्मक व साम्प्रदायिक स्वरूप हमारे गले की फांस बना रहेगा और महिलाएं नहीं समझेंगी कि पितृसत्ता द्वारा पोषित दुनिया के सारे धर्म व संस्कृतियां, साथ ही राजनीति उनके विरुद्ध और उनकी नाउम्मीदी का वायस हैं। उन्हीं के कारण सामाजिक-सांस्कृतिक व राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि इक्कीसवी शताब्दी के बाईसवें साल में भी अनेक लोगों के पास वह तमीज ही नहीं है, जिसे वे महिलाओं से बरत सकें। बकौल शायर: कौन बदन से आगे देखे औरत को सबकी आंखें गिरवी हैं इस नगरी में। और: औरत अपना आप बचाए तब भी मुजरिम होती है। औरत अपना आप गँवाए तब भी मुजरिम होती है।

 

लेखक अयोध्या से निकलने वाले अखबार जनमोर्चा के संपादक हैं।

 

 

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