क्या सोनिया गाँधी और लिंगदोह के ख़िलाफ़ झूठ बोलने के लिए माफ़ी मांँगेंगे मोदी?

प्रधानमंत्री के चर्च जाने पर सवाल उठा तो अखबारों ने वायनाड और डिब्रूग्रढ़ की खबरों में संतुलन देखा!

चर्च जाने से ईसाइयों का वोट नहीं मिलेगा, इसके लिए उनमें सुरक्षा की भावना होनी चाहिए 

 

आज के मेरे अखबारों में पहले पन्ने पर राहुलगांधी की वायनाड की रैली तो नहीं ही है। डिब्रूगढ़ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दावा कि भाजपा लोकसभा में 300 सीटें पार कर जाएगी और कांग्रेस साफ हो जाएगी, भी नहीं के बराबर है। गृहमंत्री का चुनावी भाषण, वह भी डिब्रूगढ़ में और एक साल पहले सीट संबंधी दावा जितना मजबूत हो और जिस भी आधार पर किया गया हो, दावा ही है और चुनाव के बिना ऐसे दावों पर यकीन किया जाए तो एक समय आएगा जब चुनाव की जरूरत ही नहीं रह जाएगी या ऐसा ही दावा किया जाने लगेगा। इसलिए, अमितशाह की खबर पहले पन्ने पर नहीं होना तो समझ में आता है लेकिन संसद सदस्यता जाने के बाद वायनाड में राहुल गांधी की पहली रैली तो वैसे भी खबर थी। मंच पर अकेले खड़े होते तब भी, 100-50 लोग आते तब भी और उपस्थिति अच्छी होती तो बेशक। लेकिन यह खबर फोटो के साथ द टेलीग्राफ में तो है पर बाकी तीन अखबारों में नहीं है। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में दोनों खबरें हैं और इसे संतुलन बनाए रखने की फूहड़ कोशिश कहा जा सकता है। द टेलीग्राफ में इस खबर का शीर्षक है, वे उनकी जगह तो ले सकते हैं पर वायनाड से विस्थापित नहीं कर सकते हैं।  इस मुख्य शीर्षक के साथ दो खबरें हैं। पहली का शीर्षक है, कुछ भी हो, रुकने वाला नहीं हूं : राहुल। दूसरी खबर का शीर्षक है, 24 जनवरी के बाद भी एलआईसी अडानी के साथ। कहने की जरूरत नहीं है कि यह खबर भी आज के अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। लेकिन इसकी चर्चा से पहले बता दूं कि वायनाड में राहुल गांधी ने जो कहा वह आज द टेलीग्राफ का कोट है जो इस प्रकार है, (अनुवाद मेरा) मैं समझ रहा हूं कि भाजपा अगर मेरा घर छीन रही है, मुझे संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहरा रही है, 24 घंटे मुझपर हमला कर रही है, तो मैं ठीक काम कर रहा हूं – राहुल गांधी।   

अडानी पर कांग्रेस का आरोप और नई दिल्ली डेटलाइन से टेलीग्राफ की खबर इस प्रकार है, कांग्रेस ने मंगलवार को कहा कि जीवन बीमा निगम (अखबार में एलआईसी के लिए जीवन बीमा कंपनी लिखा है जो संभवतः गलत है। सही नाम है, भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड। एलआईसी कोई नई कंपनी हो तो नहीं कह सकता पर अभी ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है) को अडानी की कंपनी में निवेश करने के लिए “मजबूर” किया गया है। इसके साथ यह तर्क दिया गया है कि इस तरह की सूचनाएं संयुक्त संसदीय समिति की जांच की मांग को मजबूत करती है। 

कांग्रेस संचार प्रमुख जयराम रमेश ने कहा, “जून 2021 के अंत में, एलआईसी की अडानी एंटरप्राइजेज में 1.32 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जो अडानी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों में से एक थी। 18 महीने के भीतर, दिसंबर 2022 के अंत तक, अडानी एंटरप्राइजेज में एलआईसी की हिस्सेदारी 4.23 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। “24 जनवरी 2023 से अडानी समूह के बारे में गंभीर सवाल उठाए जाने लगे। तब से समूह के बारे में हर दिन नए खुलासे हो रहे हैं।” जयराम रमेश ने आगे कहा, “अब यह पता चला है कि अडानी एंटरप्राइजेज में एलआईसी की हिस्सेदारी मार्च 2023 के अंत तक बढ़कर 4.26 प्रतिशत हो गई थी। यह वृद्धि ऐसे समय में हुई है जब अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर का बाजार मूल्य लगभग 60 प्रतिशत गिर गया था। एलआईसी ने जनवरी-मार्च 2023 तिमाही के दौरान अडानी एंटरप्राइजेज में 3.75 लाख शेयर खरीदे।

द टेलीग्राफ ने आज वरिष्ठ पत्रकार एजे फिलिप की खुली चिट्ठी को लीड बनाया है जो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखी है।  इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, मोदी का ईस्टर दौरा। क्या प्रधानमंत्री को चर्च जाने की आवश्यकता है? अखबार ने पूरी चिट्ठी छापी है प्रधानमंत्री की दो तस्वीरों के साथ जो पहले छप चुकी हैं। पेश है पत्र का खास अंश – वैसे तो कैथेड्रल चर्च की यह आपकी पहली यात्रा थी, लेकिन आपके चुनावी भाषणों में पूजा के स्थान को प्रमुखता से शामिल किया जाता रहा है। मुझे यकीन है कि आपको याद होगा कि मुख्यमंत्री के रूप में आप चाहते थे कि गोधरा की घटना और उसके बाद हुए नरसंहार या “दंगों” के तुरंत बाद चुनाव हों। उस समय मुख्य चुनाव आयुक्त जेम्स माइकल लिंगदोह थे। वह तुरंत चुनाव कराने के लिए तैयार नहीं थे। आप उनसे नाराज थे। आपने जनसभा में जनता को बताया कि लिंगदोह और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी हर रविवार सुबह कैथेड्रल चर्च में मिलते हैं और आपके खिलाफ साजिश करेंगे। यह “गुजरात” की बात है।

अगस्त 2002 में, नरेन्द्र मोदी ने कहा था, “कुछ पत्रकारों ने हाल में मुझसे पूछा, ‘क्या जेम्स माइकल लिंगदोह इटली से आए हैं? मैंने कहा, मेरे पास उनकी जनम पत्री नहीं है, मुझे राजीव गांधी से पूछना होगा। तब पत्रकारों ने कहा,’क्या वे (लिंगदोह और सोनिया) चर्च में मिलते हैं? मैंने जवाब दिया, ‘शायद वे मिलते हैं। तथ्य यह है कि लिंगदोह एक नास्तिक हैं जो किसी भी चर्च में नहीं जाते हैं। जहां तक ​​सोनिया गांधी का सवाल है, वह ईसाई नहीं, हिंदू हैं। वह कभी भी कैथेड्रल चर्च में नहीं गई और दोनों वहां कभी नहीं मिले। आपने बिना किसी तुक या कारण आरोप लगाया था। आपके इन आरोपों ने उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक बयान जारी करने के लिए मजबूर किया था।   

अब जब आपके पास चर्च के सभी अधिकारियों के संपर्क विवरण हैं, तो आप उनसे पता कर सकते हैं कि क्या उन्होंने कभी लिंगदोह और सोनिया गांधी को एक साथ चर्च में जाते देखा था या अलग-अलग। नहीं, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप दोनों के बारे में झूठ फैलाने के लिए उनसे माफी मांगें। आप तब राजनीतिक रूप से इतने समझदार थे और आपको पता था कि अगर गोधरा के मद्देनजर चुनाव हुए तो आप जीत जाएंगे। लिंगदोह केवल चुनाव में देरी कर सकते थे। और आखिरकार जब चुनाव हुए तो आपने राज्य में जीत हासिल की। यह एक राजनीतिक नेता के रूप में आपके रोलर-कोस्टर राइड की शुरुआत थी। दूसरे शब्दों में, कैथेड्रल चर्च के बारे में झूठ ने आपकी सफलता में भूमिका निभाई। 

मुझे यकीन है कि आप जानते हैं कि ईसाइयों के लिए क्रिसमस, गुड फ्राइडे और ईस्टर सबसे महत्वपूर्ण दिनों में हैं। जिस दिन आपने चर्च का दौरा किया, सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों के कई ईसाई शिक्षकों को बोर्ड परीक्षा के प्रश्नपत्रों का मूल्यांकन करने के लिए उनके स्कूलों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। सीबीएसई ने आदेश जारी कर उन्हें गुड फ्राइडे के दिन भी स्कूल जाने को मजबूर किया था। जरा सोचिए कि अगर सीबीएसई ने शिक्षकों को दिवाली पर स्कूलों में आने के लिए मजबूर करने का ऐसा आदेश जारी किया होता तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होती?

इससे सवाल उठता है कि क्या देश के प्रधानमंत्री को चर्च जाने की जरूरत है? मुझे नहीं लगता कि जवाहरलाल नेहरू कभी ईस्टर या क्रिसमस पर चर्च गए थे। न ही वह किसी मस्जिद या मंदिर गए। फिर भी, वह सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लिए सबसे लोकप्रिय नेता थे। 2014 में जब आपने चुनाव लड़ा था तो आपने जो वादा किया था, वह मुझे बहुत पसंद आया। आपने सभी के साथ समान व्यवहार का वादा किया था। क्या अब ऐसा है? कर्नाटक में एक मंत्री को अपने लोगों से ईसाइयों की पिटाई करने के लिए कहते सुना गया। लोगों के मन में यह धारणा बना दी गई है कि ईसाई हिंदुओं का धर्मांतरण कर रहे हैं। 

हम आबादी के तीन फीसदी से भी कम हैं। ईसाई धर्म में जबरन धर्मांतरण का एक भी मामला नहीं है, हालांकि कुछ धर्मांतरण विरोधी कानून पचास से अधिक वर्षों से अस्तित्व में हैं। फिर भी, लोगों को धर्मांतरण के नाम पर गिरफ्तार किया जाता है और जेल में डाल दिया जाता है। बेशक, सबूतों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया जाएगा लेकिन तब तक उन्हें और उनके परिवारों को भुगतना पड़ चुका होगा। आप जानते हैं कि भारतीय राज्य ने फादर स्टेन स्वामी के साथ क्या किया। उन्हें पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया गया था लेकिन गिरफ्तारी के बाद एक मिनट के लिए भी उनसे पूछताछ नहीं की गई। 

वे पार्किसन रोग से पीड़ित थे और पानी का ग्लास नहीं पकड़ सकते थे। जब उन्होंने पानी पीने के लिए स्ट्रॉ मांगा तो जज ने अभियोजन पक्ष को अपना जवाब देने के लिए एक महीने का समय दिया। अंत में, राज्य द्वारा उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल किए बिना ही पुलिस हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई। (84 साल की उम्र में उन्हें गिरफ्तार किया गया था और कोई नौ महीने जेल में रहे)। स्टेन स्वामी मेरे जैसे लोगों के लिए पहले से ही एक संत हैं। मैं जानता हूं कि आप चाहते हैं कि केरल में ईसाई आपको वोट दें, जहां उनकी आबादी करीब 25 फीसदी है। इसके लिए आपको किसी चर्च में जाने की जरूरत नहीं है। 

हमारे पास एक शानदार संविधान है। यह लोगों और सरकार के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को सूचीबद्ध करता है। मैं एक ईसाई के रूप में अपने धर्म का पालन कर सकता हूं और बिना किसी डर के इसका प्रचार कर सकता हूं। कहने की जरूरत नहीं है कि मुसलमानों, सिखों, जैनियों, पारसियों और बौद्धों, हिंदुओं को भी समान अधिकार है। हम सभी समान अधिकारों वाले नागरिक हैं। हम कोई विशेषाधिकार नहीं चाहते हैं, सिवाय इसके कि जिसकी गारंटी संविधान द्वारा दी गई है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब शांति कायम रही तो देशों की तरक्की हुई। इसीलिए ब्रिटेन में एलिजाबेथ की अवधि को सबसे अधिक उत्पादक काल माना जाता था। 

आपका सख्ती से यह कहना कि आप गुंडागर्दी, लिंचिंग और किसी भी समुदाय के खिलाफ घृणा बर्दाश्त नहीं करेंगे, चाहे वह मुस्लिम हो या ईसाई या सिख, देश में ईसाइयों और मुसलमानों को जकड़ने वाली असुरक्षा की भावना को समाप्त करने में एक लंबा योगदान करेगा। दूसरे शब्दों में, भारत के लोगों में विश्वास और सुरक्षा की भावना पैदा करने की आवश्यकता है। आपको दुनिया को यह बताने का नैतिक साहस होना चाहिए कि यह देश ईसाइयों, मुसलमानों, सिखों और अन्य लोगों का उतना ही है जितना कि हिंदुओं का है। आपको अपनी आत्मिक संतुष्टि के अलावा धार्मिक स्थलों की यात्रा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसकी बजाय, आप सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के अपने वादे को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। मैं आपको यह बताकर समाप्त करता हूं कि मैं इस महीने के अंत में अपने खर्चे पर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और सोमनाथ मंदिर जाने की योजना बना रहा हूं।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

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