आत्महत्या के विरुद्ध : वैचारिकी
उपेंद्र प्रसाद सिंह
” मैं सोच रहा हूं ,कहता रहा हूँ कि आत्महत्या कायरता है लेकिन सुशांत सिंह की आत्महत्या ने झकझोर दिया है। नहीं, ये कायरता नहीं है। मैं महिमामंडन नहीं कर रहा। इसके अलग आयाम पर दृष्टिपात करने पर लगता है कि जब सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं, स्वाभिमान के परखच्चे उड़ जाते हैं, कोई सहारा नहीं बचता और शायद ये भी कि एक आत्महत्या से बहुतों की बेहतरी हो सकती है, तब ये आत्महत्या नहीं कुर्बानी हो जाती है। इसके पीछे बहुत लोगों को अपनी जीत का अहसास होता है, इस आत्मकेंद्रित पूंजीवादी व्यवस्था ने कितना विलगाव पैदा कर कर दिया है कि लोग इस हद तक दूसरे को नीचा दिखाने में लग कर दूसरे को मानसिक शारीरिक यातना दे कर अपार आनंद महसूस करते हैं, उत्सव मनाते हैं। और सत्य और असत्य, न्याय-अन्याय, समानता-असमानता, मदद का संदर्भ और मायने बदल जाता है। एक दिन में एक व्यक्ति का मूल्यांकन कर उसे पीड़ा,यातना दी जाती है। मुझे लगता है इस समाज में आत्महत्या ही एक न्यायप्रिय व्यक्ति के पास विकल्प है, कायर लोग कर नहीं पाते लेकिन ईमानदार व्यक्ति इस गले लगा कर अपनी कुर्बानी इस दुर्गंध भरे समाज को देता है। सुशांत कायर नहीं है इस व्यवस्था का शहीद है। सलाम सुशांत, सलाम!!!
आपने सुशांत राजपूत के प्रति जो संवेदनाएं प्रकट की है मैं आपके साथ हूँ, परन्तु आत्महत्या वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश का विकल्प नहीं है। माना कि इस इस बाज़ारवाद की संस्कृति ने अंदर से झकझोर दिया और आपने इस कदम को अपनाया क्यों कि अवसाद को एक चुनौती के रूप में स्वीकार नहीं किया। सामन्तवाद, ज़ारशाही, उपनिवेशवाद और पूंजीवाद के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई चली और चल रही है,इन सब के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा अवसादग्रस्त भी हुए होंगे फिर भी जिन्होंने इस रास्ता को न अपनाकर अंतिम क्षण तक लड़ाई का रास्ता अपनाया, वे सभी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। अभी भी कई योद्धा कुव्यवस्था और फासीवादी तरीके से चलनेवाली सरकार के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं और जेल में यातनाओं का दंश भी झेल रहे हैं फिर भी आत्महत्या रास्ता उन्होंने नहीं अपनाया। मौत को गले लगाना समस्या का हल नहीं है।
मानसिक रोग अन्य रोगों की तरह एक बीमारी है, जो किसी को भी किसी उम्र में हो सकती है। यह अनुवांशिक भी होती है और कई पुश्तों के अन्तराल के बाद भी हो सकता है। पारिवारिक, सामाजिक आदि नेगेटिव माहौल में इसके उग्र होने की संभावना रहती है। अन्य बीमारियों के तुलना में मानसिक रोग एक मामले में बिल्कुल अलग होते हैं- खुद बीमार को इस बीमारी का सन्ज्ञान नहीं हो पाता। बीमारी का लक्षण परिवार के सदस्य, दोस्तों, पड़ोसियों को ही पता चल पायेगा और उन्हें ही आगे आकर मरीज को डाक्टरी सलाह दिलवानी पड़ेगी।
विशेषज्ञों के अनुसार भारत में 33% लोग मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं।
अभी लम्बे लॉकडाउन के कारण यह संख्या 50% तक पहुंच चुका है। जिसके कारण घरेलू हिंसा, नशे की लत, आत्महत्या आदि के मामले बढ़ रहे हैं। डाक्टरों का मानना है – 95% मानसिक मरीज मामूली इलाज से बिल्कुल सहज रहेंगे। बाकी भी समय पर इलाज हो तो काफी हद तक मैनेज किये जाते रहेंगे। जरूरत है हम इस बीमारी का समय रहते सन्ज्ञान लें और अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों, पड़ोसियों में आरम्भिक लक्षण दिखते ही डाक्टरी सलाह में कोताही न बरतें। दर्शन की जानकारी मुझे उतनी नहीं है. पर में इतना ज़रूर जानता हूँ कि हमारा अक़्ल व शऊर और तर्क परिस्थितियों से लड़ने की ताक़त पैदा करता है। जिस संक्रमण काल में जी रहे है , उबरने व इनका मुकाबला करने के सामूहिक पहल की ज़रूरत है।
आत्महत्या को शहीद होने का दर्जा देने से इसे सही नही ठहराया जा सकता क्योंकि ऐसी प्रवृत्ति को किसी सही इंसान का विकल्प बताकर कितने परिवार उनके आश्रितों की जिंदगी को अन्धकारमय बनाया जा सकता है। जीवन मे मुझे लगता है कि अधिकतर लोग आत्महत्या करने के बारे में सोचते हैं, पर कर नही पाते। उन सही लोगों के पास जीने की बहुत सारी वजह,नैतिक जिम्मेदारी होती है और वो यहीं अपने जीवन को कई बार जीतते हुए तो कई बार हारते हुए देखते हैं। जीवन इसी को कहते हैं शायद। हां जब जीने की वजह खत्म हो जाये तो सुशांत जैसे होनहार लोग जीवन को अलविदा कह जाते हैं। इसलिए जीवन मे जीने की वजह होनी ही चाहिए। वरना बहुत सारी ऐसी चीजें घटित होती है जिसकी कल्पना नही की जा सकती। हर वक़्त जीत की आदत भी इंसान को तनाव देती है, हारना तो किसी घर मे सिखाया नही जाता। हार के बाद जीत भी है, उसको भी झेलना है, नही बताया जाता। तो जब इंसान हार जाता है तो झेल नही पता और इस परिणति तक पहुंचता है। ये मेरा सोचना है। जीवन का विकल्प आत्महत्या नही हो सकता।
ओशो के विचार
तुम आत्महत्या के बारे में क्यों सोचते हो? मुझे पता है कि तुम जीवन से ऊब गए हो। यदि तुम सचमुच ऊब गए हो तो आत्महत्या नहीं करो, क्योंकि आत्महत्या तुम्हें फिर इसी जीवन में घसीट लाएगी- और हो सकता है कि इससे भी अधिक भद्दा जीवन तुम्हें मिले, जैसा कि अभी तुम्हारा है; क्योंकि आत्महत्या तुम्हारे भीतर और भी अधिक गंदगी पैदा कर देगी। आत्महत्या करना अस्तित्व का अनादर है! अस्तित्व ने तुम्हें विकसित होने के लिए जीवन का अवसर दिया, और तुम इस अवसर को यूँ ही व्यर्थ गँवा देते हो। और जब तक कि तुम विकसित नहीं होते और विकसित होकर बुद्ध नहीं बन जाते, तब तक तुम जीवन में बार-बार फेंके जाओगे। लाखों बार पहले भी यह हो चुका है- अब समय है, अब जागो! इस अवसर को चूको मत!
यहाँ मेरे साथ रहकर असली आत्महत्या की कला सीखो। असली कला में अपनी देह को नष्ट नहीं किया जाता है। देह सुंदर है, देह ने कुछ भी गलत नहीं किया है। यह तो मन है, जो असुंदर है। आत्मा भी सुंदर है, लेकिन देह और आत्मा के बीच कुछ है, जो न तो देह है, न ही आत्मा– यह बीच की घटना ही मन है! यह मन ही है, जो तुम्हे बार-बार गर्भ में घसीट लाता है! जब तुम मरते हो, यदि तुम आत्महत्या करते हो, तब तुम जीवन के बारे में ही सोच रहे होओगे। आत्महत्या करने का मतलब है कि तुम जीवन के बारे में सोच रहे हो। तुम ऊब चुके हो, जीवन से थक चुके हो, तुम पूरा अलग ही जीवन चाहते हो– इसी कारण तुम आत्महत्या कर रहे हो, न कि तुम जीवन के खिलाफ हो। तुम सिर्फ ‘इस’ जीवन के खिलाफ हो। हो सकता है कि जैसे तुम हो, वैसा तुम नहीं चाहते हो– हो सकता है कि तुम सिकंदर, नेपोलियन या हिटलर बनना चाहते हो, हो सकता है कि तुम इस दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति बनना चाहते हो, और तुम हो नहीं! यह जीवन असफल हो गया, और तुम प्रसिद्ध होना चाहते थे, सफल होना चाहते थे– अब इस जीवन को ही तुम नष्ट कर देना चाहते हो। लोग आत्महत्या इसलिए नहीं करते हैं कि वे जीवन से सच में थक गए हैं, बल्कि इस कारण करते हैं क्योंकि यह जीवन उनकी मांगें पूरी नहीं कर रहा। लेकिन कभी भी किसी की मांगें जीवन पूरी नहीं करता है।
तुम हमेशा कुछ न कुछ चूकते ही चले जाओगे। यदि तुम्हारे पास धन है, पर हो सकता है कि तुम सुंदर न हो। यदि तुम सुंदर हो, तो हो सकता है कि तुम बुद्धिमान न हो। यदि तुम बुद्धिमान हो, पर हो सकता है कि तुम्हारे पास धन न हो। और, हो सकता है कि कोई हर चीज पा ले, तब भी यह कैसे मदद करेगा? तुम अतृप्त रहोगे! हर जीवन में यही बातें दोहराती जाती हैं, देह बदल जाती है, लेकिन दिशा वही रहती है! लोग सोचते हैं कि जो आत्महत्या करते हैं, वे जीवन के खिलाफ हैं– यह सत्य नहीं है। वे जीवन के प्रति बहुत अधिक लालसा रखते हैं, वे जीवन के लिए बहुत अधिक वासना रखते हैं। और चूँकि जीवन उनकी वासनायें पूरी नहीं करता, तो गुस्से में, तनाव, विषाद और हताशा में वे स्वयं को नष्ट कर लेते हैं।
मैं तुम्हें आत्महत्या का सही तरीका सिखाऊँगा। देह को नष्ट करके नहीं, देह तो अस्तित्व का सुंदरतम उपहार है! मन अस्तित्व का उपहार नहीं है, मन समाज से संस्कारित है। देह उपहार है, और आत्मा उपहार है– और इन दोनों के बीच समाज तुम्हारे साथ तरकीब खेलता है; इसलिए समाज ने मन को बनाया। यह तुम्हें महत्वाकांक्षा देता है, यह तुम्हें ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, हिंसा देता है, यह तुम्हें हर तरह की गंदी बीमारियाँ देता है। लेकिन इस मन का अतिक्रमण किया जा सकता है, मन को एक तरफ रखा जा सकता है। यह मन जरूरी नहीं है! मैं तुम्हारे सामने बैठा हूँ, और अपने अनुभव से तुम्हें कह रहा हूँ, अपने अधिकार से कह रहा हूँ कि मन को एक तरफ रखा जा सकता है। यह बड़ा आसान है, तुम्हें बस इसका तरीका आना चाहिए।
और, आत्महत्या में मरना इतना पीड़ादाई है, क्योंकि यह प्राकृतिक बात नहीं है, यह सर्वाधिक अप्राकृतिक बात है। कभी भी कोई वृक्ष आत्महत्या नहीं करता– सिर्फ आदमी करता है, क्योंकि सिर्फ आदमी इतना पागल हो सकता है! प्रकृति आत्महत्या के बारे में कुछ नहीं जानती, यह आदमी की खोज है! यह सबसे अधिक भद्दा और कुरूप कृत्य है। और जब कभी तुम स्वयं के साथ कोई बहुत ही भद्दी और कुरूप बात करते हो तो तुम आशा नहीं रख सकते कि तुम्हें आगे एक बेहतर जीवन मिलेगा। तुम मन की बेहद निकृष्ट दशा में मरोगे, और तुम बहुत ही निकृष्ट गर्भ में प्रवेश कर लोगे।
लेकिन आत्महत्या की जरूरत ही क्या है? जरा प्रश्न करो! तुम निश्चित ही गलत ढंग से जीए हो, इसी कारण जीवन एक सुंदर गीत नहीं बना। तुम निश्चित ही मूर्खतापूर्ण ढंग से जीए हो, मूढ़तापूर्वक, अज्ञानी की तरह– इसी कारण जीवन में उत्सव नहीं आया।तुम सितारों के साथ आनंद में नाच नहीं सकते, और न फूलों के साथ नाच सकते, और न हवाओं के साथ, न बरसात में मस्त होकर नाच सकते– क्योंकि तुम गलत तरीके से जीए हो, जो तुम्हारे जैसे ही लोगों ने तुम्हारे ऊपर थोप दिए हैं।यह सतत चलने वाली घटना है। मूढ़ता स्वतः सतत चलती रहती है। माता-पिता अपने बच्चों को अपनी मूढ़ता दिए चले जाते हैं, और यही बच्चे अपने बच्चों को वे सारी मूढ़तायें सौंप देते हैं। यह वंशानुगत विरासत है! इसे परम्परा कहते है, इसे विरासत कहते हैं, संस्कृति कहते हैं… बड़े-बड़े नाम हैं!तुम जिस भांति अब तक जीते रहे हो, उस पर विचार करो, और तब तुम्हारे जीवन में एक नई तरह की बुद्धिमत्ता आएगी, और तुम्हारा जीवन अधिक प्रखर होगा।
अपने संस्कारों पर विचार करो। अब तक जैसे जीए हो, उस पर ध्यान दो– कहीं बुनियादी रूप से कुछ गलत हुआ है। पक्षी गीत गा रहे हैं, और वृक्ष, और फूल… यह अनंत अस्तित्व- यह जगह आत्महत्या करने की है? इस जगह नृत्य करो, गीत गाओ, उत्सव मनाओ, प्रेम करो और प्रेम करने दो!और यदि तुम इस अस्तित्व को प्रेम कर सकते हो, यदि तुम इस अस्तित्व के आशीर्वाद महसूस कर सकते हो, तो मैं तुमसे वादा करता हूँ कि जब कभी तुम मरोगे, तुम वापस लौटकर नहीं आओगे– क्योंकि तुमने पाठ सीख लिया। अस्तित्व कभी किसी को फिर वापस नहीं भेजता यदि उसने जीवन का पथ सीख लिया हो।यदि तुम आनंदित होना सीख लेते हो, तुम स्वीकार्य होओगे। तब उच्चतर रहस्य के लिए तुम्हारे द्वार खुल जाएँगे। तब जीवन के अंतरतम रहस्यों में तुम्हारा स्वागत होगा।इसे ही मैं असली आत्महत्या कहता हूँ, और इसके लिए मैंने नाम रखा है ध्यान!