जीन्स पर संस्कारी पैबंद या स्त्री स्वतंत्रता से घबराये तीरथ!

नए नवेले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का बच्चों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में मंच से ये बयान आता है कि Ripeed Jeans पहनने और घुटने दिख जाने स्त्री अपने बच्चों को कैसे और क्या संस्कार देगी? वो अपना कोई पुराना संस्मरण याद करते हुए इस बात को कोट करते हैं। संस्कार की पाठशाला आयोजित करते हुए वो ये एकदम भूल जाते हैं कि किसी पारिवारिक कार्यक्रम के बजाय वो एक मुख्यमंत्री होने की हैसियत से एक मंच पर खड़े हैं। उन्हें ये भी नहीं याद रहता है कि मुख्यमंत्री का काम प्रदेश का विकास करना है, उसको चर्चा स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, विकास की करनी है.. स्त्रियों को संस्कार सिखाने वाले ठेकेदार तो हर घर में पाए जाते हैं।

उनके पूरे संस्मरण को ध्यान से सुन लिया जाए तो पता चलता है कि ये कानून विरुद्ध भी है। कानून कहता है कि 20 सेकेंड तक लगातार किसी को घूरना अपराध की श्रेणी में आता है। जिस तरह से वो बूट से लेकर हाथ के कड़े का बखान करते हैं, ये दुस्साहस एक मिनट से ऊपर का हो जाता है। उक्त घटना अगर कोरी गप्प नहीं है तो वर्णित स्त्री सामने आकर FIR की मांग करें तो संस्कार के ठेकेदार ये जनाब मुश्किल में आ सकते हैं। अगर ऐसे बेहूदे कटाक्ष किसी और विकसित देश में हुए होते तो अब तक लीगल एक्शन ले लिया जाता।

भारत जैसे सनातनी देश का ये दुर्भाग्य रहा है कि यहां देवी देवालय में पूजी जाती है मग़र धरती पर उसके ही रूप का खूब शोषण होता है। शायद ही कोई दिन ऐसा होता है जब किसी लड़की के साथ हिंसा, बलात्कार, एसिड अटैक हत्या की खबर न आती हो। वज़ह भी इतनी ही होती है कि किसी रूप में उन्होंने उक्त पुरुष के किसी इच्छा को मानने से इंकार किया होगा नतीजन उनके साथ ऐसा हादसा होता है।

सुनने में तो सीएम का बयान एक कटाक्ष भर लगता है और पैनल में बैठी बीजेपी की महिला नेता इसे संस्कार से जोड़ती है लेकिन Ripped Jeans केवल एक फैशन भर है ये एक बेटी के पिता खुद सीएम सहित हम सभी को पता है। आज फटी जीन्स फैशन में है कल लूज जीन्स होगी.. कभी सूट ट्रेंड में होता है कभी प्लाजो, कभी पैंट, तो कभी जीन्स, कभी फटी जीन्स। यही फटी जीन्स वाली लड़की फैशन आने पर कुर्ता प्लाजो में दिखेगी तो क्या आज की असंस्कारी लड़कियां कल को समाज के लिए संस्कारी हो जाएंगी?

पुरुष प्रधान समाज में न जाने क्यू एक स्त्री का शरीर इतना आपत्तिजनक है कि उसकी कमर, पेट, टांगे दिखने भर से पुरुष उत्तेजित हो जाते हैं, रेप कर डालते हैं.. छेड़छाड़ और अन्य घटनाओं को अंजाम दे देते हैं। गौरतलब हो कि इसी स्त्री शरीर से हर पुरुष का जन्म हुआ है तो उसकी इमेज ममतामयी माँ के बजाय एक सेक्स डॉल के रूप में फिर किसने निर्धारित की? भारत जैसे संवैधानिक देश में जहां एक स्त्री के अधिकार पुरुष के समान ही है फिर उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित क्यूं किया जाता है। प्रताड़ना का स्तर इतना ऊपर है कि एक मुख्यमंत्री किसी सार्वजनिक समारोह में स्त्री को प्रताड़ित करने की हिम्मत रखते हैं। जब सीएम ऐसी बाते मंच से कह रहे हैं तो उनके शागिर्द मौका पाते ही कैसा सुलूक करेंगे?

महिलाओं द्वारा विरोध होने पर भले ही सीएम की तरह से माफ़ीनामा आ गया हो लेकिन इसके बावजूद पुरुषों की गाली गलौज, अभद्रता सोशल मीडिया पर चल रही है। वो विदेशी मॉडल, पोर्न स्टार की अर्धनग्न फोटो डालकर स्त्री और उसकी सीमा निर्धारित कर रहे हैं। अभद्रता की सारी सीमा पार कर रहे हैं। किसी राष्ट्रीय नेता का मंच से ऐसा बयान ऐसे पुरुषों का हौसला सौ गुना बढ़ा देता है जो छेड़छाड़, रेप के लिए स्त्री शरीर, उसके कपड़े को दोष देते हैं। हम अक्सर सुनते हैं कि रात को क्यूं जा रही थी? छोटे कपड़े क्यूं पहने थे? ऐसे में घटना तो होनी ही थी।

ऐसा माहौल है कि Toddler से लेकर 60-70 साल तक की महिलाएं सुरक्षित नहीं है। संविधान ने भले ही समान अधिकार दे दिए हो। तमाम महिलाओं के लिए सरकारी सुविधाएं पेपर में मौजूद हों मगर उसे पाने के लिए बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी है। हर स्त्री को हर दिन अपने अधिकारों के लिए खड़े रहना होगा। हर दिन लड़ कर ही अधिकार, स्वतंत्रता हासिल किया जा सकता है। समान अधिकारों के लिए डट कर खड़े होने पर ही ऐसे बड़बोले संस्कार के ठेकेदारों का मुँह बंद कराया जा सकता है।


रीता शर्मा, सोशल ऐक्टिविस्ट हैं।

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