लखीमपुर नरसंहार पर राकेश टिकैत की ‘क्रिया-प्रतिक्रिया’ वाली विवादित टिप्पणी क़ानूनी रूप से सही!

भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) में इसीलिये हत्या को परिभाषित करने के लिए दो अलग धाराओं का प्रावधान भी है- धारा 299 और धारा 300 । यूँ तो दोनों धारा के अंतर्गत हुए मौत के अपराध को मानव वध ही कहा जाएगा, लेकिन जहाँ उनमें से एक हत्या की कोटि में आएगा (धारा 300) वहीं दूसरा हत्या की कोटि में नहीं आएगा (धारा 299)। ऐसा इसलिए, क्योंकि कानून अपराधी की खोटी नीयत का गंभीर संज्ञान लेता है और साथ ही स्वाभाविक मानवीय उकसावों को अनुपातिक रियायत भी देता है।

लखीमपुर खीरी हिंसा दो पक्षों ने की थी | लेकिन, उनमें से एक ही, मोदी सरकार के गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र द्वारा संचालित पक्ष ही, कानूनी रूप से हत्या की सजा का हकदार है। यहां किसान नेता राकेश टिकैत की क़ानूनी सूझ-बूझ का लोहा मन जाना चाहिए | वे पहले व्यक्ति हैं जो शुरू दिन से 3 अक्तूबर के ‘ब्लड बाथ’ में हत्याओं के दो सेट को एक दूसरे से भिन्न रखकर देखने की वकालत कर रहे हैं।  इसके लिए, पूर्व में दिल्ली पुलिस में भी अपनी सेवा दे चुके राकेश टिकैत को बेशक जितनी भी सख्त टीका-टिप्पणी का सामना करना पड़ रहा हो, पर क़ानूनी रूप से उनका स्टैंड शत-प्रतिशत ठीक कहा जाएगा |

दरअसल, भारत का फौजदारी कानून सोची-समझी हत्या और क्षणिक आवेश में की गयी हत्या में भेद करता है। दोनों की सजा में भी। टिकैत ने भी इतना भर ही किया है।

लखीमपुर में यूपी पुलिस ने हत्या के दो मुकदमे दर्ज किये हैं। एक तो आंदोलनरत किसानों की ओर से, जिनपर, शांतिपूर्वक पैदल मार्च करते हुए, मंत्री के गुर्गों द्वारा पीछे से गाड़ियाँ चढ़ा दी गयीं और चार किसानों व एक स्थानीय जर्नलिस्ट की जान चली गयी जबकि अनेकों किसान घायल हुए। दूसरा मुक़दमा उन हत्यारी गाड़ियों में सवार एक भाजपा कार्यकर्त्ता की ओर से दर्ज किया गया है जिसमें विरोध प्रदर्शन में शामिल किसानों को आरोपित किया गया है। इसे पुलिस की भाषा में इसे क्रॉस केस कहेंगे जो भाजपाई हमलावरों का दबदबा बनाये रखने के लिए है अन्यथा, एक ही सिलसिले में हुये घटना क्रम में दो अलग-अलग केस दर्ज करने से बचा भी जा सकता था।

तो भी, सुप्रीम कोर्ट का चाबुक पड़ने के बाद होश में आयी यूपी पुलिस को मुख्य आरोपी मंत्री-पुत्र आशीष मिश्र की गिरफ्तारी से लेकर उसके पुलिस रिमांड और अपराध के रिकंस्ट्रक्शन तक की कवायद करते फिलहाल देखा जा रहा है। लेकिन अंततः उसे यह भी तय करना ही पड़ेगा कि क्या केन्द्रीय राज्य मंत्री के भाजपायी गिरोह द्वारा 5 व्यक्तियों को गाड़ी से कुचलकर ठंडे दिमाग से की गयी हत्याएं और तदनुपरांत उसी क्रम में उत्तेजित किसान समूह द्वारा 3 आक्रमणकारियों की हत्याएं एक ही क़ानूनी खांचे में रखी जायेंगी या अलग-अलग।

टिकैत ने हत्याओं के इन दो सेट के बीच के कानूनी फर्क को ही रेखांकित किया जब उन्होंने ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ वाली टिप्पणी की थी, हालाँकि उनका शब्दों का चयन गलत था।

भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) में इसीलिये हत्या को परिभाषित करने के लिए दो अलग धाराओं का प्रावधान भी है- धारा 299 और धारा 300 । यूँ तो दोनों धारा के अंतर्गत हुए मौत के अपराध को मानव वध ही कहा जाएगा, लेकिन जहाँ उनमें से एक हत्या की कोटि में आएगा (धारा 300) वहीं दूसरा हत्या की कोटि में नहीं आएगा (धारा 299)। ऐसा इसलिए, क्योंकि कानून अपराधी की खोटी नीयत का गंभीर संज्ञान लेता है और साथ ही स्वाभाविक मानवीय उकसावों को अनुपातिक रियायत भी देता है।

क्या किसान आन्दोलन को कुचलने में लगी यूपी की योगी सरकार लखीमपुर किसान संहार की छान-बीन में अपनी पुलिस को कानून की मंशा लागू करने की छूट देगी? या किसान पक्ष को भी सामान रूप से हत्यारोपी बना कर मोदी सरकार की किसान विरोधी मंशा को ही तरजीह देगी। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 20 अक्तूबर को होनी है।

विकास नारायण राय, अवकाश प्राप्त आईपीएस हैं, हरियाणा के डीजीपी और नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद के निदेशक रह चुके हैं।

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