गिरीश मालवीय
मोदी जी पिछली बार जब राष्ट्र के नाम संदेश दे रहे थे तो उन्होंने कहा था कि ‘जब कोरोना संकट शुरू हुआ, तब भारत में एक भी पीपीई (PPE) किट नहीं बनती थी। आज हम 5 लाख किट रोज बना रहे हैं।
मोदी जी! आप जिस किट की बात कर रहे हैं, उसे PPE किट नहीं बरसाती (‘रेनकोट’) कहते हैं, जो आज दिल्ली के भगीरथ पैलेस मार्केट में 100 से 150 रु में बेची जा रही है। बताया जा रहा है कि दवा व मेडिकल उपकरण के थोक बाजार भागीरथ पैलेस में पीपीई किट रेहड़ी-पटरी वाले सौ डेढ़ सौ में बेच रहे हैं।
फुटपाथ से लेकर दुकानों पर पीपीई किट के नाम पर ऐसे कपड़े और प्लास्टिक के उत्पाद बेचे जा रहे हैं, जो किसी भी मानक पर खरे नहीं उतरते हैं। और उन्हें पहनकर हमारे फ्रंट लाइन कोरोना वॉरियर्स स्वास्थ्य कर्मी, नर्स, डॉक्टर आदि रोज कोरोना वायरस से इन्फेक्टेड हो रहे हैं, हम उन्हें पीपीई किट के नाम पर धोखे में रख रहे हैं।
दरअसल इस तरह की किसी भी चीज को बेचे जाने से पहले एक मानक बनाया जाता है, उसका ISI सर्टिफिकेशन किया जाता है, और देश मे ISI मानक को बनाने वाली संस्था है भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)।
लेकिन आप को जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले महीने ही भारतीय मानक ब्यूरो ने साफ कर दिया है कि कवर ऑल व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE Kits) को लेकर उन्होंने कोई मानक (Standards) जारी नहीं किए हैं। बीआईएस ने प्रेस रिलीज जारी कर साफ कर दिया है कि पीपीई पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जो मानक सेट किए हैं वही लागू होगें। और हेल्थ मिनिस्ट्री के मानकों की हालत तो आप देख ही रहे है।
अब आप यह समझिए कि PPE किट को लेकर समस्या क्या आ रही है? दरसअल वैश्विक स्वास्थ्य मानदंडों अनुसार कोरोना जैसे वायरस से होने वाले संक्रामक रोग में पर्सनल प्रोटेक्टिव सूट में 4 लेयर 4 की गुणवत्ता चाहिए होती है। इतनी गुणवत्ता विश्व की सिर्फ तीन बड़ी कंपनियों के पास है, वो है 3M, हनीवेल और ड्यूपॉन्ट। लेकिन मोदी सरकार ने इनके प्रोडक्ट की उपेक्षा की, जबकि WHO ने कोरोना के खतरे को देखते हुए जनवरी में ही सभी देशों को आगाह कर दिया था कि PPE किट की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। भारत उन 30 देशों में है जहां घातक कोरोना वायरस के फैलने का उच्च खतरा बताया गया था।
PPE किट बनाने में सबसे महत्वपूर्ण है इसकी सिलाई और स्टीचिग। इस दौरान यह सूक्ष्म स्तर पर देखा जाना जरूरी होता है कि ऐसा करते समय कहीं भी कोई छिद्र न रह जाए। दरअसल जैसे कपड़ा सिला जाता है वैसे ही इन PPE किट के गाउन की, दस्तानों की, मास्क की स्टिचिंग की जाती है, जिसमे बहुत ही खास तरह की अल्ट्रासोनिक वेल्डिंग मशीन इस्तेमाल होती है। इनकी सीमिंग की यह खासियत होती है कि वायरस जैसा सूक्ष्म जीव भी इसके आर-पार नहीं जा सकता। इसके अलावा यहाँ N 95 मास्क के रेस्पिरेटर फिल्टर भी नहीं मिलते, क्योंकि ये देश में नहीं बनते।
भारत मे इस प्रकार अल्ट्रासोनिक वेल्डिंग मशीन से काम करने के बजाए नॉर्मल स्टिचिंग की जा रही है और ऐसी PPE किट की तमाम राज्य सरकारें थोक में खरीद करती हैं और अपने डॉक्टरों, नर्सों को पहनने को देती है फिर वे बीमार होते है। देश में यही हो रहा है।
देश भर में डॉक्टर, नर्सों की संस्थाएं ऐसी घटिया किटों के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) में 100 से अधिक नर्स व अन्य स्वास्थ्यकर्मी घटिया पीपीई किट (PPE Kit) दिये जाने के विरोध में बाहर धरने पर बैठ गए थे। यूपी के तमाम मेडिकल कॉलेज में घटिया पीपीई किट बांटे जाने की चिट्ठी बाहर आई तो एसटीएफ ने घटिया किट की जाँच के बजाए चिट्ठी लीक मामले की जांच ही शुरू कर दी। मध्यप्रदेश में डॉक्टर एवं पैरामेडिकल स्टाफ को दी गई PPE किट की क्वालिटी भी बेहद खराब है। यहाँ भी जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन स्वास्थ्यकर्मियों को दी जा रही PPE किट की क्वालिटी पर सवाल उठा रहा है। आंध्र प्रदेश में 3 मेडिकल स्टाफ ने मास्क और ग्लव्स को लेकर शिकायत की तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। यही देश भर की हालत है।
हिमाचल प्रदेश में जिस मेडिकल स्कैम में राज्य के स्वास्थ्य निदेशक अजय गुप्ता की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी अध्यक्ष राजीव बिंदल ने इस्तीफा दिया है, वो मेडिकल घोटाला भी घटिया पीपीई किट की खरीद से ही जुड़ा हुआ है।
साफ दिख रहा है कि कोरोना काल में PPE किट की खरीद में जमकर भ्रष्टाचार चल रहा है, लेकिन इसमे सबसे खराब बात यह है कि इन घटिया किट्स से फ्रंट लाइन कोरोना वारियर्स लगातार वायरस के सम्पर्क में आ रहे हैं ओर बीमार हो रहे हैं। लेकिन हमारा मीडिया सब कुछ जानते बुझते इस बारे में बिल्कुल चुप बना रहता है।
गिरीश मालवीय, स्वतंत्र विश्लेषक हैं. यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है.