वाशिंग मशीन बन चुकी बीजेपी इमेज चमकाने को फ़ेसियल करा रही है पर बीबीसी ने कालिख़ पोत दी!

आज टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर एक साथ छपी दो खबरें ध्यान देने लायक है। इनमें एक बड़ी और दूसरी छोटी है। अखबारों में एक साथ छपने वाली खबरों का चयन भी मायने रखता है और कई बार दो बिल्कुल अलग खबरें भी किसी एक बात से जुड़ी लगती है। और आज टाइम्स ऑफ इंडिया में अगर कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष, बृजभूषण शरण सिंह के इस्तीफे की खबर को लीड बनाया है तो उसका कारण इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है। खबर यहां भी लीड है और शीर्षक है, “सरकार (की पलक) छपकी : यौन उत्पीड़न की जांच पर कुश्ती संघ के प्रमुख ने इस्तीफा दिया”।   

यह खबर कितनी महत्वपूर्ण और कितनी अनूठी है इसकी चर्चा करने से पहले यह बताऊं कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने लीड के साथ कौन सी खबर छापी है जिसके लिए मैं यह टिप्पणी लिख रहा हूं। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा है कि नागरिक हमेशा सही होते हैं – यह मंत्र होना चाहिए। वैसे ही जैसे कारोबारी दुनिया में कहा जाता है उपभोक्ता राजा है (यहां हमेशा सही कहा गया है। यह मजदूरों के संबंध में है, बॉस इज़ आलवेज राइट। बचपन में मैंने अपनी टेल्को कॉलोनी में सफाई कर्मचारियों के बॉस को देखा है। तब उसे मेट कहा जाता था और मुझे लगता था कि बॉस क्यों कहा जाता है, मेट होना चाहिए। 

मेट दरअसल गालियां ही देता था और काम कराने के लिए उसके पास एक ही तरीका और हथियार होता था।। बाद में पता चला कि पढ़े लिखों के मेट को बॉस कहा जाता है और वह कभी गलत नहीं होता। पर वह अलग मुद्दा है। अभी तो बात इसकी कि प्रधानमंत्री ऐसा क्यों कह रहे हैं। मुझे लगता है कि हिन्दू- मुस्लिम कर दो लोकसभा चुनाव जीतने वाली पार्टी अब अपने आदर्श बदलना चाहती है और हिन्दू मुस्लिम अगर संघ के जिम्मे कर दिया गया है तो पार्टी की छवि को नरेन्द्र मोदी के नए ज्ञान, ‘नागरिक हमेशा सही’ से जोड़कर देखिये और कल्पना कीजिए कि ये वही लोग हैं जो किसान आंदोलन से टस से मस नहीं हो रहे थे। उसके बारे में क्या कहते रहे उससे निपटने के लिए क्या तरीके अपनाए और जब हार गए तो कह दिया कि तपस्या में ही कोई कमी रह गई होगी। 

ऐसे व्यक्ति का अब नए ज्ञान देना साफ है कि कुछ नया करने की जरूरत महसूस हो रही है और स्मार्ट सिटी तथा स्वच्छ भारत जैसे नारों से या सिर्फ हिन्दुत्व से भी अब बात नहीं बनने का जोखिम है। वैसे भी जमीन पर कुछ नहीं कर सकते तो अखबारों में हो जाए, और वही हो रहा है। कारण यह भी है कि भाजपा में इस्तीफे नहीं होते – यह साफ कहा जा चुका है और कैसे-कैसे लोगों को संरक्षण मिला है और किन आरोपों में लोगों को पद से नहीं हटाया गया यह सब अब याद दिलाने की जरूरत नहीं है। किसानों को गाड़ी से रौंद देने के आरोपी के पिता मंत्री पद पर विराजमान हैं जबकि बेटे पर आरोप सिद्ध करने वाली एजेंसियां के आकाओं के लिए मंत्रीजी अपने पद पर रहते हुए बहुत बड़ी चीज हैं। 

ऐसे में भारतीय कुश्ती संघ से भाजपा सांसद का इस्तीफा मायने रखता है खासकर इसलिए भी बीच कुश्ती संघ पर कब्जे को लेकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश लॉबी के बीच जंग है। एक जमाने से संघ पर हरियाणा का वर्चस्व रहा है। ऐसे बृजभूषण शरण सिंह ने जब सबसे पहली बार भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष का चुनाव जीता था तो उन्होंने कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा को शिकस्त दी थी। दीपेंद्र हुड्डा यानी हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र और राज्यसभा सांसद। भाजपा में आंतरिक कलह नहीं के बराबर हैं। एक से एक मामले निपट गए हैं। बाहरी और पार्टी से नए जुड़े लोग सत्ता की मलाई चाट चुके हैं और अनुशासित होने का दावा करने वाली पार्टी में कोई चूं-चपड़ नहीं करता है। 

महामानव सबके झगड़े निपटा देंते हैं या जिसके साथ हो जाते हैं उसे जीता मान लिया जाता है और खिलाफ खबरें नहीं छपती हैं। लेकिन इस मामले में हुड्डा ने जो कहा है वह नभाटा इंडिया टाइम्स के वेबाइट के हवाले से इस प्रकार है, ‘ये कोई साधारण घटना नहीं है। खेल जगत के लिए यह एक भयंकर दुर्घटना है। ये पूरे देश से संबंधित बात है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई इंक्वायरी हो। समय तय किया जाए इंक्वायरी का। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा था। आज वो नारा खोखला दिखाई दे रहा है। देश की बेटियों की भलाई के लिए सरकार तुरंत कार्रवाई करे। इस प्रकार के कांड के बाद भी सरकार अगर नहीं जागी तो कौन माता-पिता अपनी बेटियों को प्रोत्साहित करेगा। वे आज अपने मान-सम्मान के साथ ही करियर को दांव पर लगाकर इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं।’

जिस पार्टी में पेगासस पर कोई नहीं बोला, महिलाओं के मामले में महिला नेता चुप रहीं भले हाथी पर बोलीं वहां बृज भूषण शरण सिंह जैसे भाजपा के सांसद जो छह बार से जीत रहे हैं, पहलवान को स्टेज पर ही थप्पड़ रशीद कर चुके हैं, इतनी आसानी से इस्तीफा देने वालों में नहीं लगते हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री, जैसा इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है पलक झपका कर काम करते हुए दिखना चाहते हैं वहीं हिन्दुत्व का मामला संघ और पार्टी को सौंप कर संविधान संशोधन जैसे मामले पर उपराष्ट्रपति से चर्चा करवाकर तैयारी चल रही है। लगता है, आग लगाने वालों को कपड़ों से पहचानने का दावा करने वाले देश के प्रधानमंत्री के लिए बदलना मजबूरी है।  एंटायर पॉलिटिकल साइंस में एमए होने के साथ वे बड़े स्टेट्समैन भी बनने की कोशिश कर रहे हैं। 

अपनी पार्टी के फायदे और वोट के लिए श्मशान कब्रिस्तान करने वाले प्रधानमंत्री ने जब कहा कि पार्टी पदाधिकारियों और हर एक कार्यकर्ता को एक-एक वोटर से मिलने उनके दरवाजे तक जाना चाहिए। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि चुनावी हितों को परे रखते हुए समाज के सभी वर्गों के लिए पार्टी को पूरे समर्पण की भावना से काम करना चाहिए। तो राजधानी दिल्ली में हुई बीजेपी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के आख़िरी दिन मोदी ने जब कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले समुदायों समेत समाज के सभी तबकों तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए तो इसे रेखांकित किया गया था। 

इससे पहले हिन्दुत्व का मामला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संभाल चुका है, मोहन भागवत कह चुके हैं कि हिन्दू जागरूक हैं, युद्ध में आक्रामकता स्वभाविक है। इस्लाम में डरने लायक कुछ नहीं है, सर्वोच्चता का प्रचार/दावा छोड़ना चाहिए। ऐसे में प्रधानमंत्री राजनेता बनते दिख रहे हैं जबकि हिन्दुत्व का मामला संघ ने अपने जिम्मे ले लिया लगता है। ऊपर से उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ कह चुके हैं कि अदालत संसद की संप्रभुता को कमजोर नहीं कर सकती है। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा है कि संविधान की बुनियादी संरचना पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने गलत परंपरा डाली थी। वे केश्वानंद मामले की चर्चा कर रहे थे। ऐसे में साफ है कि हिन्दुत्व का मुद्दा पार्टी और संघ के जिम्मे जाता लग रहा है और इसलिए न सिर्फ भागवत सक्रिय हुए बल्कि जेपी नड्डा दोबारा अध्यक्ष बन चुके हैं।  

सरकारी पार्टी को इसकी जरूरत क्यों पड़ी या लोकप्रियता के महानायक को ऐसी बातें कहने की क्या जरूरत है सोचते ही बीबीसी की फिल्म की चर्चा याद आती है। अखबारों में भले इसकी चर्चा नहीं हुई हो लेकिन लोग फिल्म देख रहे हैं और इसे अच्छा बता रहे हैं। उसका असर होना ही था और जो सब हो रहा है उसे आप फिल्म से बचाव या मुकाबले का तरीका भी मान सकते हैं लेकिन फिल्म जो है सो है और उससे इनकार नहीं किया जा सकता है। उसपर भी तुर्रा यह द टेलीग्राफ की आज की लीड के अनुसार बीबीसी अपनी इस फिल्म सीरिज को भारत में नहीं दिखाएगा। खबर के अनुसार भारत के लोग मोदी पर फिल्म देखने के लिहाज से अनुपयुक्त हैं। 

लंदन डेटलाइन से अमित रॉय और नई दिल्ली से ब्यूरो की खबर के अनुसार बीबीसी ने अपनी डॉक्यूमेंट्री, इंडिया: द मोदी क्वेश्चन के पक्ष में खड़े होने के लिए अपने कठोर शोध और उच्चतम संपादकीय मानकों का हवाला दिया है, लेकिन कहा कि “भारत में इसे दिखाने की कोई मौजूदा योजना नहीं है”। इस खुलासे से निश्चित तौर पर सवाल उठेंगे कि क्या बीबीसी ने भारत सरकार के विरोध और भारतीय मूल के ब्रिटेनवासियों के विरोध के आगे घुटने टेक दिए। यदि निर्णय दबाव का परिणाम है, तो यह सवाल उठेगा कि भारत में दर्शकों को इसे देखने के अवसर से वंचित क्यों किया जा रहा है जिसे यूके में लोग देख सकते हैं। 

आमतौर पर दमनकारी शासन से जुड़ी चिंता हावी रहती है और बीबीसी अपने भारतीय कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित दिखाई दे रहा है और रिवाज से हटकर कह रहा है कि वे वृत्तचित्र बनाने में शामिल नहीं थे। अखबार ने आज मोदी पर बीसीसी की डॉक्यूमेंट्री का एक स्क्रीनशॉट छापा है। यह घोषणा का एक हिस्सा है इसमें कहा गया है: “भारत में 30 से अधिक लोगों ने अपनी सुरक्षा के डर के कारण इस श्रृंखला में भाग लेने से इनकार कर दिया।”  अखबार की इस खबर के अनुसार गुरुवार को, नरेंद्र मोदी सरकार ने वृत्तचित्र के बारे में कहा था, यह एक औपनिवेशिक मानसिकता का खुलासा करने वाला प्रचार है। खबर के अनुसार इसमें 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र था।

बीबीसी ने शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा है, “डॉक्यूमेंट्री यूके में बीबीसी टू पर दिखाई जाएगी और भारत में इसे दिखाने की कोई मौजूदा योजना नहीं है। डॉक्यूमेंट्री योजना के अनुसार 24 जनवरी को बीबीसी टू पर प्रसारित होगी।” आगे यह भी कहा है, “भारत में बीबीसी कर्मचारी इन कार्यक्रमों के निर्माण में शामिल नहीं थे। यह वृत्तचित्र यूके में स्थित बीबीसी करंट अफेयर्स द्वारा कमीशन किया गया था और घरेलू दर्शकों के लिए था।” पहले एपिसोड की शुरुआत में, जिसे 15 जनवरी को यूके में बीबीसी2 के लिए घरेलू दर्शकों के लिए दिखाया गया था, बीबीसी ने अपनी चिंताओं को यह घोषित करके चिह्नित किया: “भारत में 30 से अधिक लोगों ने अपनी सुरक्षा को लेकर डर के कारण इस श्रृंखला में भाग लेने से इनकार कर दिया।” आधे-अधूरे प्रचार का सच जानने के लिए मीडिया विजल पर आते रहिए। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

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