उड़ते झूठ: राफ़ेल सौदे की अनियमितता पर पर्दा डालने को हुआ मीडिया का इस्तेमाल

रफाल सौदे पर रवि नायर और परंजय गुहा ठकुराता की पुस्तक, उड़ते झूठ के अनुसार यह भारत का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला है और पुस्तक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका की जांच और चर्चा की गई है। इस क्रम में पुस्तक का पांचवा अध्याय है, व्हाट मेड हेडलाइन्स व्हाट डिडइन्ट (क्या सुर्खियों में आया क्या नहीं) नरेंद्र मोदी ने प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली तो वरिष्ठ अधिवक्ता और पुराने सहयोगी अरुण जेटली (अब दिवंगत) को वित्त मंत्री बनाया। उनके पास रक्षा मंत्री का अतिरिक्त चार्ज था और उम्मीद थी कि यह अस्थायी व्यवस्था होगी और ऐसा ही हुआ। सरकार बनने के बाद बहुतों की राय थी कि देश का रक्षा बजट बढ़ेगा और सेना के लिए आवश्यक उपकरणों की खरीद में तेजी आएगी। 

अब हम सब देख रहे हैं कि ऐसा नहीं होना था। यह संयोग है कि जेटली ने जब रक्षा मंत्री पद की शपथ ली उससे कुछ ही देर पहले वायु सेना का एक विमान मिग -21 दुर्घटनाग्रस्त हो गया था परिणामस्वरूप युवा पायलट की मौत हो गई थी। जेटली ने इस घटना पर अपना दुख जाहिर किया था और कहा था कि वे आवश्यक उपकरणों की लंबित खरीद में तेजी लाएंगे। इसके साथ उन्होंने दोहराया था कि वे कामचलाऊ रक्षा मंत्री हैं और ठीक से काम तो पूर्णकालिक रक्षा मंत्री की नियुक्ति के बाद ही होगा पर तब तक वे मंत्रालय में आएंगे और लंबित कार्यों को निपटाएंगे। 

दूसरी ओर, जून 2014 तक, यह माना जा रहा था कि लड़ाकू विमान रफाल की खरीद और देश में उसके निर्माण से संबंधित सौदा पूरा होने वाला है। इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स द्वारा भारत में बनाए जाने वाले विमान के लिए डसॉल्ट एविएशन द्वारागारंटरके रूप में खड़े होने की अनिच्छा थी। लेकिन यह कम महत्वपूर्ण रह गया था क्योंकि दोनों कंपनियों के बीच समझौते पर दस्तखत हो चुके थे। सौदे के भिन्न पहलुओं पर बातचीत के लिए पांच उप समितियाँ थीं। इनमें से तीन (1) ऑफसेट दायित्व (2) प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (3) रखरखाव ने उस समय तक अपना काम पूरा कर लिया था जो रह गया था वह वित्तीय पहलू था और इसे भी सितंबर तक अंतिम रूप दे दिए गए थे। 

लगभग इसी समय संडे गार्जियन में एक पूर्व भारतीय वायु सेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल एफ एच मेजर के हवाले से यह संकेत मिला कि डसॉल्ट एविएशन के साथ सौदे की कुल लागत बढ़कर 1,20,000 करोड़ रुपये के करीब हो गई थी। यह मूल अनुमान का लगभग तीन गुना है। इस बीच दूसरे प्रतिद्वंद्वी निर्माता दौड़ में शामिल होने की उम्मीद कर रहे थे। तभी विमान की कीमत के साथ परिचालन का खर्च एक नया मुद्दा बन गया था और दूसरे विमान इस लिहाज से बेहतर बताए जाने लगे थे। अंतरराष्ट्रीय रक्षा पत्रिकाओं के हवाले से तर्क दिया गया कि ग्रिपेन की लागत सबसे कम है है और 40 साल के उसके जीवन काल में परिचालन लागत सबसे कम थी जबकि यूरोफाइटर टाइफून के रखरखाव की लागत सबसे ज्यादा थी। 

नवंबर 2014 के अंत तक भारतीय मीडिया 126 विमान का सौदा टूटने से संबंधित खबरों से भर गया था। अटकलें तेज थीं कि एचएएल अपने उत्पादों के लिए गारंटर नहीं बन रहा है और डसॉल्ट इस मामले में हस्तक्षेप का अनिच्छुक है। दो साल बाद सरकार ने सौदे से संबंधित जिन विवादों और जटिलताओं का जिक्र किया उनका उल्लेख इस समय नहीं था। मीडिया के एक वर्ग ने दावा किया कि मोदी सरकार सौदे का राजनीतिक लाभ लेना चाहती है और अगर लागत बढ़ गई है तो इसपर अमल नहीं करना चाहती है। ऐसी रिपोर्ट भी थीं जो बताती हैं कि सरकार इसे नईमेक इन इंडियानीति के अनुकूल बनाने के लिए सौदे पर फिर से काम करना चाहती है। मुझे लगता है कि इस तरह सौदा रद्द करने के पक्ष में माहौल बनाया गया। 

इस पृष्ठभूमि में फ्रांस के उस समय के रक्षा मंत्री 30 नवंबर को भारत आए और नवनियुक्त रक्षा मंत्री मनोहर परिकर से बात की। पर कोई घोषणा नहीं हुई। परिकर ने यह जरूर कहा कि सौदे को गति दी जाएगी। दूसरी ओर, एक इंटरव्यू में फ्रांस के मंत्री ने कहा कि सौदा ठीक चल रहा है और इतने बड़े तथा  मुश्किल सौदे में लग रहा यह समय दूसरे सौदों से तुलनात्मक है। 27 दिसंबर 2014 को परिकर ने गोवा में भारतीय रक्षा सेवा के लिए उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियों के प्रमुखों के एक समूह से बंद कमरे में बात की। इसका मकसद रक्षा सेवा के लिए उत्पादों के निर्माण में भारतीय कपनियों की भागीदारी बढ़ाना और मेक इन इंडिया पहल के लिए काम करना था। 

इसका आयोजन सीआईआई ने किया था। खास बात यह है कि इस बैठक में परिकर अपने निजी सचिव के अलावा किसी और को साथ नहीं ले गए थे। रक्षा मंत्रालय का कोई अधिकारी उनके साथ नहीं था। इस बैठक के कुछ ही समय बाद नया साल शुरू हो गया और तब परिकर ने बताया कि पुराने सौदे में सब ठीक नहीं था। यह एक जनवरी 2015 की बात है। यहां परिकर का यह कहना भी दिलचस्प है कि भारतीय वायु सेना के लिए सुखोई 30 एमकेआई विमान खरीदना भी पर्याप्त होगा। आप जानते हैं कि सेना ने अपनी जरूरत बताई थी, सेना के लिए विमान खरीदा जाना था। 

कायदेकानूनों के तहत और आरोपों के बीच चुनाव हुआ, आरोपों की जांच भी हुई और अब दो नई बातें गई हैंविमान की कीमत नहीं उनके जीवन काल में रखरखाव और परिचालन खर्च भी कम होना चाहिए और सौदा नहीं होने से कीमत बढ़ती जा रही है। इन सबके बीच एकनएविमान की खरीद का विकल्प और यह सब अखबारों की खबरों के रूप में प्रचारित किया गया था। यही नहीं 126 विमानों की जरूरत कैसे 35 विमानों पर गई उसका उल्लेख भी किताब में है जो मीडिया के हवाले से ही है। मुझे लगता है कि ये सब करने के लिए अखबारों में खबरें छपवाकर माहौल बनाया गया और किताब में ऐसी सैकड़ों खबरों का उल्लेख है। 

इनमें एक खबर मशहूर टीवी पत्रकार करण थापर के टेलीविजन इंटरव्यू शो की भी है। पुस्तक के अनुसार जनवरी के मध्य में परिकर ने दावा किया कि 35 विमान उपलब्ध हुए तो उपयुक्त आकार में लाए जा सकते हैं और इससे हमें ज्यादा समय मिल जाएगा। रक्षा मंत्री ने कहा कि वे सौदे को पूरा करने के लिए बातचीत तेज करना चाहते हैं और अपने अधिकारियों को ऐसा ही निर्देश दिया था। आप हले पढ़ चुके हैं कि सौदा रद्द करने की घोषणा कैसे हुई और भिन्न स्टेकधारक उस समय क्या कह रहे थे और क्या हो गया। ऐसे में इस इंटरव्यू का मकसद जनता को यह बताना और विश्वास दिलाना लगता है कि 35 विमानों से काम चल जाएगा और गरीब देश की जनता इसे उपलब्धि या देश सेवा मानेगी।    

यहां करण थापर उन पत्रकारों में हैं जिनके टेलीविजन इंटरव्यू की रिकार्डिंग से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उठ गए थे। वो पूरा मामला अलग खबर और दिलचस्प है पर इंटरव्यू देने के लिए राजी होने और फिर अनुकूल सवाल होने पर एनडीटीवी के पत्रकार विजय त्रिवेदी को हेलीपैड पर छोड़कर भी नरेन्द्र मोदी उड़ गए थे। ऐसे में अनुकूल पत्रकारिता भाजपा की जरूरत है और करण थापर ने अपनी पुस्तक, डेविल्स एडवोकेट दि अनटोल्ड स्टोरी में बताया है कि इंटरव्यू के पहले नरेन्द्र मोदी और भाजपा  से उनके संबंध कैसे थे और बाद में कैसे भाजपा के नेताओं ने उनसे दूरी बना ली। ऐसे करण थापर को मनोहर परिकर ने रफाल पर इंटरव्यू दिया तो जो बताया उतना ही महत्वपूर्ण है यह जानना कि इंटरव्यू से मोदी के उठ जाने के बाद क्याक्या हुआ। पुस्तक का संबंधित अंश यहां पढ़ सकते हैं।  

अध्याय 7 का नाम है, बिटवीन फ्लाइट्स एंड फाइटर्स। इसके अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा कि भारत, डसॉल्ट एविएशन फ्रांस से 36 रफाल लड़ाकू जेट विमान खरीदेगा, से दुनिया भर केसैन्यऔद्योगिक परिसरमें पर्यवेक्षकों के बीच भारी हलचल मची। बाद में याद किया गया तो पता चला कि पेरिस में, मोदी ने अप्रैल 2015 में जब यह घोषणा की तो भारत के रक्षा मंत्री मनोहर परिकर गोवा में मोबाइल फिश स्टॉल (मछली की दुकान) का उद्घाटन कल रहे थे। परिकर के पास कोई विकल्प नहीं था बल्कि उन्हें प्रधान मंत्री के फैसले का बचाव करना ही था। 

मोदी की घोषणा के तुरंत बाद परिकर ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय भारतीय प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति की मुलाकात का परिणाम था। उन्होंने निर्णय को उचित ठहराया और दावा किया कि यह भारत सरकार का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति केसाहसका सबूत था। पर्रिकर इस तरह की घोषणा करके परोक्ष रूप से खुद को इस सौदे से अलग कर रहे थे। उस समय के रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा था कि नया रफाल सौदा एक ऐसे नेता की अकेली कार्रवाई थी जो जानता है कि नेतृत्व का मतलब क्या होता है। पुस्तक के अनुसार परिकर नेवायु: एयरोस्पेस एंड डिफेंस रिव्यूको दिए एक इंटरव्यू में कहा कि निर्णय लेने में भारतीय वायु सेना की कोई भूमिका नहीं है और आखिरकार यह प्रधानमंत्री को ही तय करना है। यही नहीं, यह भी कहा कि मैंने प्रधानमंत्री से सभावनाओं की चर्चा की और उन्होंने बहुत ही साहसी निर्णय लिया है। इसकी आवश्यकता थी। 

परिकर का बयान सौदे का मुखर समर्थन करने वाले एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार जैसे वरिष्ठ भारतीय वायुसेना अधिकारियों और उनके जैसे कई अन्य लोगों के जानबूझकर किए गए प्रयास का पर्दाफाश करता है। बयानों से यह भी पता चलता है कि जब सरकार ने एक हलफनामे में कहा कि प्रधान मंत्री मोदी द्वारा 36 राफेल विमानों की खरीद की घोषणा करने से पहले आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया गया था, तो सरकार सर्वोच्च न्यायालय के प्रति ईमानदार या सच्ची नहीं थी। इस पर किताब में और जानकारी आगे होने की बात भी कही गई है। कुल मिलाकर यह एक शानदार रिसर्च है और बहुत कुछ साबित नहीं होता हो तो भी यह तय होता है कि सब ठीक नहीं है। वैसे भी भ्रष्टाचार का मतलब रिश्वत लेना ही नहीं होता है। अपनी स्थिति का दुरुपयोग या उससे किसी को अनुचित लाभ या नुकसान पहुंचाना भी भ्रष्टाचार ही है। 

मीडिया में मनोहर परिकर जैसे ईमानदार प्रचारित रक्षा मंत्री के इस बयान के बाद अन्य तरीकों से भी आम आदमी के मन में यह स्थापित कर दिया गया कि यही सर्वश्रेष्ठ है और इसीलिए प्रधानमंत्री का कोई विरोध नहीं हुआ। इस काम को पुख्ता तौर पर स्थित करने के लिए करण थापर के शो का भी उपयोग किया गया या उन्हें भी इंटरव्यू दिया गया जो खुद बता चुके हैं कि भाजपा नेताओं से उनके संबंध पहले कैसे थे और मोदी के इंटरव्यू से उठ जाने के बाद क्या हुआ। 

यही नहीं, बाद के महीनों में दिवंगत परिकर ने कई मौकों पर खुद का भी खंडन किया, खासकर जब विमान की कीमत और राष्ट्रीय खजाने को 126 विमानों के सौदे की कुल लागत के बारे में बात की। सबसे पहले, उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री ने आगे बढ़ने का एक साहसिक निर्णय लिया था। 36 राफेल विमान ही खरीदे क्योंकि भारतीय वायुसेना की परिचालन क्षमता अपर्याप्त थी और लड़ाकू विमानों के दो स्क्वाड्रन की तत्काल खरीद समय की आवश्यकता थी। चूंकि 126 एमएमआरसीए की खरीद पर सात साल की अवधि में लगभग 90,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे, इसलिए जेट की एक छोटी संख्या का आदेश दिया गया था। इसके बाद के हफ्तों में यह आंकड़ा धीरेधीरे बढ़ता गया। “126 राफेल के लिए यूपीए का सौदा बहुत महंगा था और इससे भारतीय सेना की अन्य आधुनिकीकरण योजनाओं में बाधा उत्पन्न होती। इस सौदे के लिए 10-11 वर्षों की अवधि में लगभग तीन 1.3 लाख करोड़ की आवश्यकता होगी। हिंदू ने रक्षा मंत्री के हवाले से कहा था। 

रक्षा सौदे में रक्षा मंत्री की शून्य भागीदारी और प्रधानमंत्री की भूमिका का पता और भी मौकों पर चला। उदाहरण के लिए डिलीवरी शेड्यूल को लेकर पर्रिकर कुछ ज्यादा ही आशावादी नजर रहे थे। पेरिस से मोदी की घोषणा के एक दिन बाद 11 अप्रैल को गोवा में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने दावा किया कि 36 नए विमान दो साल के भीतर शामिल किए जाएंगे।आपातकालीनआधार पर विमान की आवश्यकता के बारे में सरकारी कथन से इसपर ध्यान गया। दो दिन बाद सरकारी दूरदर्शन को दिए एक साक्षात्कार में, परिकर ने दावा किया: “इस पर काम किया जा सकता है। हम और 90 राफेल खरीदेंगे … ‘मेक इन इंडियाका वाला हिस्सा सरकारसेसरकार की बातचीत के बाद तय किया जाएगा।” 

एक महीने बाद, लिविंग मीडिया/इंडिया टुडे मीडिया समूह द्वारा आयोजित जानीमानी हस्तियों के वार्षिक टेलीविजन प्रसारण कार्यक्रम, आज तक कॉन्क्लेव में बोलते हुए, परिकर संख्याओं को लेकर भ्रमित नजर आए। उन्होंने कहा: “126 विमानों के लिए पहले के टेंडर से कम कीमत पर 36 लड़ाकू विमान खरीदकर, मैंने 90 राफेल की लागत बचाई है। हम उस पैसे का इस्तेमाल तेजस एलसीए खरीदने के लिए करेंगे।एक हफ्ते बाद, हिंदू ने 126 राफेल जेट विमानों की कीमत के उनके नए दावे की रिपोर्ट की। 1.3 लाख करोड़ रुपये यानी 40,000 करोड़ रुपये से ऊपर का संशोधन।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 

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