विशेष- ये इंटरव्यू साल भर पुराना है। 13 अप्रैल 2021 को फिर से प्रसारित कर रहे हैं- संपादक
मंडल जयंती एक ख़ास मौका है, मौका है सामाजिक न्याय की लड़ाई का जश्न मनाने भर का नहीं बल्कि उसकी समीक्षा का भी। इसलिए हमने इस मौके पर अपने साप्ताहिक शो ‘जात न जात’ के लिए Exclusive इंटरव्यू किया – विश्वविख्यात समाजशास्त्री, इतिहासविद और भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेषज्ञ के तौर पर प्रसिद्ध प्रोफेसर क्रिस्टॉफ जेफ्रेलो का। और मंडल जयंती के मौके पर हम ले आए हैं, ये साक्षात्कार आपके लिए हिंदी सबटाइटल्स के साथ।
प्रोफेसर जेफ्रेलो को दुनिया भर में भारतीय समाज, जाति-व्यवस्था और सामाजिक आंदोलन के अलावा हिंदू दक्षिणपंथ पर कुछ सबसे बड़े शोधकर्ताओं और लेखकों में से एक माना जाता है। उनको इंडियाज़ साइलेंट रेवोल्यूशन – द राइज़ ऑफ लोअर कास्ट्स इन नॉर्थ इंडियाज़ पॉलिटिक्स के अलावा इंडिया सिंस 1950, हिंदू नेशनलिज़्म, सेफरन मॉडर्निटी इन इंडिया, मेजोरिटेरियन स्टेट, डॉ. आंबेडकर एंड अनटचेबिलिटी, हिंदू नेशनलिस्ट मूवमेंट एंड इंडियन पॉलिटिक्स समेत अन्य प्रसिद्ध किताबों के लेखक के तौर पर जाना जाता है। क्रिस्टॉफ जेफ्रलो फिलहाल Centre national de la recherche scientifique (CNRS) के शोध निदेशक, Centre d’études et de recherches internationales (CERI) at Sciences Po, पेरिस और लंदन के किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट में दक्षिण एशियाई मामलों और इतिहास के प्रोफेसर हैं।
मीडिया विजिल के एडिटर (ऑडियो-विसुअल) मयंक सक्सेना और असिस्टेंट एडिटर सौम्या गुप्ता के साथ इस डेढ़ घंटे लंबी बातचीत में क्रिस्टॉफ जेफ्रलो ने बीपी मंडल, मंडल कमिशन को याद करते हुए और मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के 3 दशक पूरे होने पर सबसे पहले तो ये आश्चर्य जताया कि ये सालगिरह आश्चर्यजनक चुप्पी के साथ ग़ुज़र गई। हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति और सांप्रदायिक राजनीति को लेकर भी उन्होंने चिंता जताई कि भारत में लोकतांत्रिक और सामाजिक न्याय की पक्षधर शक्तियां कमज़ोर हुई हैं। मंडल कमीशन को जहां उन्होंने राजनैतिक तौर पर पिछड़ों और दलितों के उभार के लिए अहम कारक बताया – वहीं, मंडल कमीशन की सिफारिशें केवल नौकरी और शिक्षा में आरक्षण लागू किए जाने तक सीमित रह जाने पर चिंता जताते हुए, उन्होंने कहा कि इसके कारण यह आंदोलन उस सफलता से वंचित रह गया, जो इसके पीछे का असल मकसद था। इसके अलावा क्रिस्टॉफ जेफ्रलो ने सौम्या गुप्ता के एक सवाल के जवाब में ये भी माना कि मंडल कमीशन या सामाजिक न्याय के जाति व्यवस्था-विरोधी आंदोलन में जेंडर के सवाल को कहीं भुला दिया गया है। जिसके नुकसान इस पूरे आंदोलन ने देखे हैं।