सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार से पूछा था कि चेन्नई और मुंबई की तुलना में दिल्ली में टेस्ट कम क्यों हो रहे हैं? दिल्ली में टेस्टिंग एक दिन में 7000 से 5000 क्यों हो गई? कोर्ट ने अस्पतालों की तैयारियों को लेकर भी सवाल किए थे। हैरानी की बात है कि 2 करोड़ की आबादी वाली दिल्ली में 5000 टेस्ट हो रहे थे?
दिल्ली जनमत की फैक्ट्री है। यह वो भौगोलिक प्रदेश हैं जहां सबसे अधिक टीवी रिपोर्टर हैं। चाहें आप जितना भी प्रोपेगैंडा कर लें लेकिन अपने शहर में बदहाली की खबरों से होश तो उड़ते ही हैं। क्योंकि इस संक्रमण की चपेट में सब आ रहे हैं। ज़ाहिर है यहां अखबारों और चैनलों पर लोगों का दबाव अलग तरीके से काम करता। यहां से उठने वाली ख़बरों की लहरों का असर देश भर में भी होता।
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को भी कहना पड़ा कि हम सैंकड़ों लोगों को भर्ती कर रहे हैं लेकिन कुछ लोगों की दिक्कतों को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रहा है। हम मीडिया को सलाम करते हैं कि कमियां सामने ला रहा है। हमने सरकारी एप की कमी को तुरंत ठीक भी किया। हम आगे भी सुधार करेंगे। मीडिया को दोष देना का बहुत स्कोप नहीं था।
स्कोप दूसरी एजेंसियों के लिए भी नहीं बचा जब केजरीवाल ने कह दिया कि 31 जुलाई तक 1 लाख बिस्तरों की ज़रूरत पड़ेगी। हमसे जितना हो सकेगा, हम कर रहे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद केंद्र के पास भी स्कोप नहीं बचा कि वो दिल्ली को केजरीवाल के भरोसे छोड़ दे। मैं नहीं कहता कि मेरी बात का असर है लेकिन लगातार देस की बात में कह रहा था कि अगर केजरीवाल का अनुमान सही है तो फिर इसमें केंद्र और उसके अस्पतालों की क्या भूमिका है? मैं पूछा करता था कि एम्स अस्पताल जिसका बजट 3600 करोड़ का है उसकी क्या भूमिका है? दिल्ली में केंद्र के अस्पतालों का बजट 6000 करोड़ से अधिक है। पूरी दिल्ली का स्वास्थ्य बजट 7700 करोड़ है। केंद्र को अपनी भूमिका स्प्ट करनी ही थी। एम्स के डाक्टर भी टेलिमेडिसिन से मदद करेंगे। यह काम तो पहले दिन हो जाना चाहिए था।
आखिर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि दिल्ली के छोटे अस्पतालों तक कोरोना के लिए सही जानकारी व दिशा निर्देश देने के लिए मोदी सरकार ने AIIMS में Telephonic guidance के लिए वरिष्ठ डॉक्टर्स की एक कमेटी बनाने का निर्णय लिया है। जिससे नीचे तक सर्वश्रेष्ठ प्रणालियों का संचार किया जा सके। इसका हेल्पलाइन नंबर जारी हो जाएगा। इस तरह का कमांड सेंटर बनाने का सुझाव प्राइम टाइम में डॉ मैथ्यू वर्गीज ने दिए दे और कई जगहों पर लिखा भी है। दो महीना पहले।
24 मार्च को तालाबंदी हुई थी। 80-85 दिन हो गए, केंद्र और राज्य या सभी सरकारें मिलकर इस महामारी का मुकाबला कर रही हैं, ऐसा दावा किया जा सकता है मगर भरोसा कम होता है। सीमित संसाधनों का व्यावहिक बंटवारा कम दिखता है। तेलंगाना अपनी राह पर चल रहा है तो अहमदाबाद अपनी राह पर।
30 जनवरी को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की शब्दावलियों में इससे बडी चेतावनी नहीं है। 11 मार्च को इसे वैश्विक महामारी घोषित किया गया लेकिन वो सिर्फ नाम देने की प्रक्रिया थी। सबसे बड़ी चेतावनी 30 जनवरी को जारी की गई, नेता इस तारीख की याद नहीं दिलाते वर्ना उनसे जवाब देते नहीं बनेगा कि 30 जनवरी से 24 मार्च तक आपने क्या किया। वो 11 मार्च की याद दिलाते हैं कि हमने 10-12 दिनों के भीतर तालाबंदी का फैसला लिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किसी देश से तालाबंदी करने की बात नहीं की थी।
विषयांतर हो गया मगर यह ज़रूरी थी। तभी से विश्व स्वास्थ्य गठन टेस्टिंग टेस्टिंग और टेस्टिंग की बात कर रहा था। भारत ने भी की मगर जल्दी ही नियमों के सहारे टेस्टिंग को सीमित किया जाने लगे। अब जाकर नीति आयोग के अमिताभ कांत ने ट्विट किया है कि कुछ राज्य या शहर सोच रहे हैं कि वो कोविड 19 के संकट को बिना टेस्ट के मैनेज कर लेंगे। यह संभव नहीं है। केरल, कर्नाटक और कोरिया से पता चलता है कि टेस्टिंग ट्रेसिंग ट्रीटमेंट से ही लड़ा जा सकता है। नीति आयोग को बताना चाहिए कि कौन से राज्य और कौन से शहर में टेस्टिंग कम हो रही है, उनकी टेस्टिंग करने की क्षमता क्या है, क्यों कम हो रही है?
80-85 दिनों बाद गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि दिल्ली में दो दिनों में टेस्टिंग दोगुनी हो जाएगी और छह दिनों में तीन गुनी। सवाल है कि उनका मंत्रालय देश भर में आपदा प्रबंध का मुखिया है। उन्हें बताना चाहिए कि उनके चाहने से कैसे छह दिनों में दिल्ली में टेस्टिंग तीन गुनी बढ़ जाती है? उत्तराखंड, गुजरात या उत्तर प्रदेश और बिहार में क्यों नहीं बढ़ती है?
19 मई के आंकड़े के हिसाब से भारत में कुल 1 01, 475 टेस्ट हुए थे। कई दिनों तक 1 लाख के आस-पास ही टेस्टिंग होती रही। 3 जून को टेस्टिंग का आंकड़ा 1 37, 158 पर पहुंचता है और 13 जून को 143,737 है। अब डेढ़ लाख से अधिक हुई है। देश भर में टेस्टिंग की रफ्तार इतनी धीमी गति से क्यों बढ़ रही है?
दिल्ली में कोरोना के मामले बढ़ कर 38,958 हो गए हैं। 2100 से अधिक मामले 24 घंटे में दर्ज हुए हैं अगर आप प्रतिदिन 2000 का भी हिसाब लगा लें तो 30 जून तक 32000 केस और बढ़ेंगे। आज की टेस्टिंग के हिसाब से। अगर टेस्टिंग ज़्यादा हुई तो संख्या और भी अधिक हो सकती है। दिल्ली सरकार का अनुमान है कि 31 जुलाई तक दिल्ली में साढ़े पांच लाख केस हो जाएंगे। ऐसा होता है या नहीं, चंद दिनों के बाद पता चल ही जाएगा।
दिल्ली में बिस्तरों की कमी होने जा रही है। सरकार अभी से आगाह कर रही है। अपनी तैयारी भी कर रही है। राज्य सरकार ने अगले एक हफ्ते में 20 हज़ार अतिरिक्त बेड की व्यवस्था करने की योजना बनाई। दिल्ली के 40 छोटे बड़े होटल में करीब 4 हज़ार कोविड बेड बनाए जाएंगे। इन्हें दिल्ली के निजी अस्पतालों के साथ जोड़ दिया जाएगा। करीब 80 बैंक्वैट हॉल में 11 हज़ार कोविड बेड बनाए जाएंगे, इन्हें दिल्ली के नर्सिंग होम्स के साथ जोड़ा जाएगा। इसके अलावा 10 से 49 बेड वाले नर्सिंग होम्स को कोविड बेड बनाया जा रहा है, जिससे करीब 5 हज़ार बेड की व्यवस्था हो जाएगी। ऐसे सभी नर्सिंग होम को आदेश दिया गया है कि तीन दिन के अंदर नर्सिंग होम को कोरोना के हिसाब से तैयार करें, ऐसा ना करने पर नियमों का उल्लंघन माना जाएगा और कार्रवाई की जाएगी
दिल्ली सरकार के मुताबिक दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में करीब 70% बेड भर चुके हैं। अनुमान है कि 30 जून तक दिल्ली में 15,000 बेड की जरूरत होगी और 15 जुलाई तक 33,000 बेड्स की ज़रूरत होगी। गृहमंत्री अमित शाह ने ट्विट किया है कि दिल्ली के निजी अस्पताओं में कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए निजी अस्पतालों के कोरोना बेड में से 60% बेड कम रेट में उपलब्ध कराने, कोरोना उपचार व कोरोना की टेस्टिंग के रेट तय करने के लिए डॉ. पॉल की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गयी है जो कल तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
साथ ही दिल्ली सरकार ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम के सबसे बड़े अस्पताल बाड़ा हिंदूराव अस्पताल को कोरोना अस्पताल घोषित कर दिया है। साथ ही मेडिकल सुपरिटेंडेंट को निर्देश दिया गया है कि 16 जून तक अस्पताल के सभी बेड कोरोना मरीजों के लिए तैयार कर लें। बाड़ा हिंदूराव अस्पताल 1,000 बेड का अस्पताल है।
दिल्ली में अब सब कुछ तेज़ गति से होता हुआ दिख रहा है। उम्मीद है अस्पतालों और डाक्टरों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा ताकि एक बेहतर सिस्टम बने। यह काम 24 मार्च से पहले या नहीं तो उसके दो हफ्ते के भीतर हो जाना चाहिए था। अभी भी इसी तरह से अन्य राज्यों और शहरों में करने की ज़रूरत है।
भारत में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 9195 हो गई है। कुल संक्रमित केस 3, 20, 922 केस हो चुके हैं और पहली बार 24 घंटे में 11, 929 पोजिटिव केस आए हैं। (तत्कालीन आंकड़ा)
रवीश कुमार जाने-माने टीवी पत्रकार हैं। संप्रति एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है।
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