सांप्रदायिकता का कु-दर्शन, सुरेश चव्हाणके का वीभत्स नृत्य, IAS लॉबी की चुप्पी और ट्विटर की नींद..

पिछले 24 घंटे में सोशल मीडिया पर, एक दक्षिणपंथी सांप्रदायिक – कथित समाचार चैनल के एक प्रस्तावित शो को लेकर हल्ला मचा है और एक के बाद एक कई एफआईआर भी हो चुकी हैं। हालांकि आप टीवी देखने की लत नहीं छोड़ पा रहे हैं और आपको लगता है कि देश का सबसे अहम मुद्दा सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु को लेकर हो रहा फिल्मी ड्रामा है। लेकिन आपको बताना फिर भी ज़रूरी लगता है कि देश के सैटेलाइट समाचार चैनल ने अपने पिछले सांप्रदायिक कचरे को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है और सुरेश चव्हाणके नाम का ये स्वघोषित पत्रकार – अब सांप्रदायिकता और नफ़रत की आपराधिक पत्रकारिता के नए मयार पर जा पहुंचा है। पिछले लंबे समय तक, इस स्वघोषित समाचार चैनल की ऐसी ख़बरों, कार्यक्रमों और प्रोपेगेंडा को प्रहसन मान कर उसकी उपेक्षा की गई। लेकिन अब ऐसा करना – असंभव मालूम होता है।

अपने एक नए प्रस्तावित शो का एलान करते हुए, सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश चव्हाणके ने सिविल सेवा परीक्षाओं के परिणाम पर सवाल उठाए। लेकिन ये सवाल उसमें हुई किसी गड़बड़ी, उसकी प्रक्रिया या उसके सिलेबस को लेकर नहीं थे। ये सवाल सिर्फ इसलिए हैं कि इस बार की यूपीएससी परीक्षा में पिछली कई बार से अधिक मुस्लिम कैसे उत्तीर्ण हो गए। और इस नफ़रत में पोर-पोर गीला कर चुके आपराधिक संपादक ने इसे यूपीएससी जिहाद का नाम दे दिया। इस शो के प्रोमों में बेहद अश्लीलता और नीचता के साथ यह व्यक्ति सवाल करता है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम अल्पसंख्यक कैसे, यूपीएससी की परीक्षा में पास हुए हैं। ये घिनौने आरोप लगाता है कि इसके पीछे कोई साज़िश है। और इसके बाद ये इस साज़िश का पर्दाफ़ाश करने का दावा करता है। हम माफ़ी चाहते हैं कि वह घृणित वीडियो हम यहां प्रकाशित नहीं कर सकते।

इसी के साथ, भारतीय मीडिया के बाकी चैनल –  संविधान, भारत के विचार, लोकतंत्र, मौलिक अधिकारों और समानता के सपने की धज्जियां उड़ते देखते रहते हैं और सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु को और अधिक सनसनीखेज़ बनाने में लगे रहते हैं। ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन चुप्पी साधे रहता है, नेशनल ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी और एक रिटायर्ड जज के नेतृत्व वाली नियंत्रक कमेटी एनबीएस अपनी नींद से बाहर नहीं आती है…ट्विटर पर हल्ला होता है और आईएएस एसोसिएशन भी उठ कर इधर-उधर देखता है और फिर से झपकी लेने लगता है।

हालांकि ट्विटर पर शोर मचने के बाद, आईपीएस एसोशिएशन इस पर आपत्ति जताता है – इसकी निंदा करता है, लेकिन वो भी इस पर कोई क़ानूनी कार्रवाई या ऐसा करने की मांग नहीं करता है।

राजनाैतिक दलों की ओर से भी लगभग चुप्पी ही दिखती है। लेकिन सोशल मीडिया पर जागरुक नागरिक, इस पर चुप नहीं रहते – ट्विटर पर सुरेश चव्हाणके का अकाउंट सस्पेंड करने की मुहिम शुरु होती है। एक्टिविस्ट्स से लेकर आम लोग तक थानों में जाकर शिकायत दर्ज कराने लगे।

इस बीच राजनैतिक और लीगल एक्टिविस्ट तहसीन पूनावाला ने इस चैनल और संपादक के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करवा दी है। लेकिन बिना दबाव बने इस पर क्या कार्रवाई होगी, ये किसी को नहीं पता।

ज़ाहिर है कि अभी हाल ही में सामने आए फेसबुक प्रकरण से इसको जोड़ कर देखा जा सकता है। लेकिन ट्विटर इंडिया को अब यह साफ करना होगा कि क्या वे वाकई सांप्रदायिक ताक़तों के साथ खड़े हैं? इससे भी आगे जाकर, दरअसल अब फेसबुक प्रकरण की जांच कर रही, संसदीय समिति को ट्विटर इंडिया से भी पूछताछ करनी चाहिए।

लेकिन सबसे बढ़कर हम सब…हमको क्या एक नागरिक के तौर पर अपने कर्तव्य याद हैं? ये सब कुछ ठीक करने की पहली शर्त ये ही है कि हम एक नागरिक के तौर पर सजग-सचेत और संवैधानिक मूल्यों के साथ खड़े होने वाले व्यक्ति बनें। यक़ीन मानिए, ये सब अपने आप ठीक हो जाएगा।


मयंक सक्सेना, मीडिया विजिल की संपादकीय टीम का हिस्सा हैं। पूर्व टीवी पत्रकार हैं, वर्तमान में मुंबई में फिल्म लेखन करते हैं। मीडिया विजिल के वीडियो सेक्शन के संपादक मयंक के वीडियोज़ आप हमारे फेसबुक पेज पर देख सकते हैं।
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