डॉ.गयाप्रसाद कटियार: क्रांति के लिए पत्नी का सिंदूर पोंछवाया, कालापानी झेला, पर सावरकर की तरह माफ़ी न माँगी!

हालात को समझते हुए डा.गया प्रसाद कटियार अपनी पत्नी रज्जो देवी के पास पहुँचे और बोले- "मैं क्रांतिकारी पार्टी का सदस्य बनना चाहता हूँ। तुम अपना सिंदूर पोछ लो और समझो लो कि तुम विधवा हो गयी हो।" ......यह सुनकर रज्जो देवी रो पड़ीं। उन्हें रोता देख डा.साबन ने कहा कि" तुमने तो हर फ़ैसले में मेरा साथ देने का वादा किया था। आज यह वादा भूलकर रोना कैसा।" रज्जो देवी ने अपने आपको संभालकर उत्तर दिया, "मैं अंत तक अपना वचन निभाऊँगी। इस समय देश को समर्पित करने के लिए मेरे पास तुमसे अधिक मूल्यवान और कोई वस्तु नहीं है। आज से मैं तुम्हं परिवार के सभी माया मोह से मुक्त करती हूँ। जाओ बैरागी, जिस रास्ते पर चल पड़े हो, उसे अंत तक निभाना और पीछे मुड़कर मत देखना। यह कहकर उन्होंने अपने हाथ से अपना सिंदूर पोंछ दिया।"

जन्मदिन पर विशेष:

 

अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगकर कालापानी की सज़ा माफ़ करवाने वाले विनायक दामोदर सावरकर को ‘वीर’ बताने का आजकल सरकारी प्रोजेक्ट चल रहा है, ऐसे में उसी अंडमान और तमाम जेलों में सज़ा काटने वाले वाले डॉ.गयाप्रसाद कटियार की याद करनी चाहिए जिनका आज जन्मदिन है। भगत सिंह के साथी डॉ.कटियार ने कभी माफ़ी नहीं माँगी जैसा कि दल के दूसरे साथियों ने भी नहीं माँगी। सच्चाई ये है कि कालापानी में सैकड़ों की तादाद में क्रांतकारी बंद थे जिनमें सिर्फ़ तीन लोगों ने माफ़ी माँगी थी जिनमें दो सावरकर और उनके भाई थे।

बहरहाल, आज बात कानपुर में जनमे डॉ.गया प्रसाद कटियार (20 जून 1900 – 10 फरवरी 1993)  की, जिन्होंने क्रांतिकारी दल में शामिल होने के लिए अपनी पत्नी का सिंदूर पोछवा दिया था।

कानपुर के इंदिरानगर में रहने वाली डा.सुमन बाला कटियार लिखती हैं-

घटना 1925 की है। उन दिनों क्रांतिकारी आंदोलन पूरे जोरों पर था। देश भर के नवयुवकों ने भारत माता को स्वतंत्र कराने हेतु एक क्रांतिकारी दल का गठन किया जिसका नाम था हिंदुस्ता सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी, जिसके कमांडर इन चीफ़ थे चंद्रशेखर आज़ाद और दल के बौद्धिक नेता थे सरदार भगत सिंह। डा.गया प्रसाद कटियार उस दल के सक्रिय सदस्य थे पर जब दल को पता चला कि वे शादीशुदा व्यक्ति हैं तो उन्हें रखने से मनाकर दिया गया। कहा गया कि पनी पत्नी से इजाज़त लेकर आयो तभी वे दल में रह सकते हैं।

हालात को समझते हुए डा.गया प्रसाद कटियार अपनी पत्नी रज्जो देवी के पास पहुँचे और बोले- ‘मैं क्रांतिकारी पार्टी का सदस्य बनना चाहता हूँ। तुम अपना सिंदूर पोछ लो और समझो लो कि तुम विधवा हो गयी हो।’

यह सुनकर रज्जो देवी रो पड़ीं। उन्हें रोता देख डा.साबन ने कहा कि ‘तुमने तो हर फ़ैसले में मेरा साथ देने का वादा किया था। आज यह वादा भूलकर रोना कैसा।’ रज्जो देवी ने अपने आपको संभालकर उत्तर दिया, ‘मैं अंत तक अपना वचन निभाऊँगी। इस समय देश को समर्पित करने के लिए मेरे पास तुमसे अधिक मूल्यवान और कोई वस्तु नहीं है। आज से मैं तुम्हं परिवार के सभी माया मोह से मुक्त करती हूँ। जाओ बैरागी, जिस रास्ते पर चल पड़े हो, उसे अंत तक निभाना और पीछे मुड़कर मत देखना। यह कहकर उन्होंने अपने हाथ से अपना सिंदूर पोंछ दिया।’

बात में  डॉ. गया प्रसाद सहारनपुर बम फ़ैक्ट्री का संचालन करते हुए गिरफ्तार हो गये और पुलिस सुपरिन्टेंडेंट सांडर्स की हत्या में शामिल होने के इल्ज़ाम में प्रसिद्ध लाहौर षड़यंत्र केस में आजीवन कारावास की सज़ा देकर उन्हें काला पानी भेज दिया गया।

रज्जो देवी फिर कभी जीते जी अपने पति के दर्शन नहीं कर सकीं।

डॉ. गयाप्रसाद कटियार भारत के प्रखर क्रांतिकारी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर की बिल्हौर तहसील के खजुरी ख़ुर्द गाँव में 20 जून सन् 1900 को हुआ था। उन्होंने 1921 के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया लेकिन बाद में गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये जिनके अख़बार ‘प्रताप’ में भगत सिंह भी छिपकर काम करते थे। चंद्रशेखर आज़ाद का भी आना जाना था। कानपुर तब क्रांतिकारियों का गढ़ था। ऐसे में डा.कटियार भी दल में शामिल हो गये।

डॉ. गयाप्रसाद कटियार ने सांडर्स वध की योजना,  भगतसिंह के केश व दाढी काटने, H.S.R.A. के गुप्त केंद्रीय कार्यालयों का संचालन करने सहित दिल्ली की पार्लियामेंट में फेंके गए बम के निर्माण आदि गतिविधियों में अपना सक्रिय रुप से योगदान दिया और अंततः 15 मई 1929 को सहारनपुर बम फैक्ट्री का संचालन करते हुए गिरफ्तार हुए। उन्हें देश के सुप्रसिद्ध लाहौर षड्यंत्र केस में दिनांक 7 अकटूबर 1930 को आजीवन कारावास की सजा दी गई।

लाहौर की जेल में उन्होंने अन्य बन्दियों के साथ 63 दिन की भूख हड़ताल की। यतींद्रनाथ दास के नेतृत्व में हुई यह वही हड़ताल थी जिसके बाद राजनीतिक क़ैदियों को विशेष सुविधाएँ देना मंज़ूर किया गया। यतींद्रनाथ दास इस हड़ताल की वजह से शहीद हो गये।  डा.कटियार को बाद में उन्हें अण्डमान द्वीप की सेल्यूलर जेल [ काला पानी ] ले जाया गया। वहाँ भी उन्होने 46 दिन भूख हड़ताल की। अन्तत: लगातार 17 वर्षों के लंबे जेल जीवन में कई अमानवीय यातनाओं को सहने के बाद वे 21 फरवरी 1946 को बिना शर्त जेल से मुक्त किये गये।

डॉ.कटियार को स्वतंत्र भारत में भी शोषित-पीड़ित जनता के लिए संघर्षरत होने के कारण 2 वर्षों तक जेल में रहना पड़ा। अंग्रेज़ों की जेल में उन्होंने ‘कम्युनिस्ट कॉन्सालीडेशन’ की स्थापना की थी और आजीवन साम्यवादी विचारों का प्रचार करते रहे।

अपनी मृत्यु  से कुछ साल पहले उन्होंने कहा था कि क्रांतिकारियों ने इस देश के लिए जैसा नक्शा देखा था उसका एक कोना भी पूरा नहीं हो पाया।

 

 

डा.कटियार ने 1929 से 1946 तक 17 साल जेल यातना झेली। 65 दिन के अनशन में डटे रहे। शादीशुदा थे, घर पर पत्नी और बेटी भी थी। फिर भी कभी झुके नही और ना ही माफी मांगी। उनके संघर्ष का तारीखी विवरण हमें उनके पुत्र क्रांति कुमार कटियार से प्राप्त हुआ है जो इस प्रकार है-
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• 15 मई 1929 को सहारनपुर दवाखाना एवं पार्टी कार्यालय एवं बम फैक्ट्री से गिरफ्तार हुये थे |

.• 15 मई से 31 मई 1929 ई. तक सहारनपुर कोतवाली (पुलिस रिमांड)

• 1 जून से 10 जुलाई 1929 तक लाहौर फोर्ट हवालात

.• 10 जुलाई 1929 से 7 अक्टूबर 1930 तक लाहौर बोर्सटल जेल में रहे | (यही पर लाहौर षडयंत्र केस चला और आजीवन कालापानी की सजा मिली थी )

.• 7-10-1930 से नवंबर 1930 तक लाहौर सेंट्रल जेल में रहे।

• 1 दिसंबर 1930 से 31.12.1930 न्यू सेंट्रल जेल मुल्तान, (अब पकिस्तान ) में रहे।

• जनवरी 1931 से अक्टूबर 1932 तक बेलारी सेंट्रल जेल (कर्नाटक) में रहे।

• नवंबर 1932 से सितम्बर 1937 तक सेल्यूलर जेल, अंडमान निकोबार ( काला पानी ) में रहे।

• सितम्बर 1937 से नवंबर 1937 तक दमदम सेंट्रल जेल, कलकत्ता में रहे।

• दिसंबर 1937 लाहौर सेंट्रल जेल, में रहे।

• जनवरी 1938, नैनी सेंट्रल जेल (इलाहबाद) में रहे।

• फरवरी 1938 से जून 1942 लखनऊ सेंट्रल जेल में रहे।

• जुलाई 1942 से जनवरी 1945 तक सुल्तानपुर जेल में रहे।

• जनवरी 1945 से फरवरी 1946 तक कानपूर सेंट्रल जेल में रहे।

• 21 फरवरी 1946 को जेल से रिहा किये गये थे।
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 स्वतंत्र भारत में जेल यात्राओं का दौर

1. सन् 1958 में छह माह का जेल जीवन।

2. सन् 1964 से 1966 तक डेढ़ वर्ष का जेल जीवन।

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