जितेन्द्र कुमार
परिवर्तन विरोधी ताकतों, जो उस समय भी न सिर्फ जनसंध में बल्कि कांग्रेस में भी मौजूद थी, ने मिल-जुलकर कर्पूरी ठाकुर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था जबकि उन्हें मुख्यमंत्री बने छह महीने ही हुए थे। अविश्वास प्रस्ताव पर 2 जून को बहस होनी थी। तब तक दलबदल कानून नहीं बना था। लेकिन अपवादों को छोड़कर सभी दलों की जातिवादी और सामंती ताकतें एकजुट हो गई थी, फिर भी कर्पूरी ठाकुर मुतमइन थे कि वह बहुमत जुटा लेगें।
1 जून की देर रात कर्पूरी ठाकुर विधानसभा अध्यक्ष धनिक लाल मंडल के आवास पर पहुंचे। ठाकुर जी का आया सुनकर मंडल जी हड़बड़ाते हुए बाहर निकले कि आखिर इतनी रात को उनके मित्र ठाकुर जी को क्यों आना पड़ा है? उन्होंने कर्पूरी ठाकुर से आने का कारण पूछा? मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने विधानसभा अध्यक्ष धनिक लाल मंडल से कहा- मंडलजी, आप कल भर के लिए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस टाल दीजिए, सबकुछ ठीक हो जाएगा! मंडल जी का जवाब था- लेकिन दिन तो तय हो गया है, इसे आप क्यों टलवाना चाहते हैं?
इसपर ठाकुर जी का जवाब था- अभी भी बहुमत से तीन विधायक कम हैं, कुछ विधायकों ने हां कहकर फिर से ना कर दिया है। कल तक तीन विधायकों का इंतजाम हो जाएगा, इसलिए सिर्फ एक दिन की मोहलत दे दीजिए!
धनिक लाल मंडल का उत्तर बहुत ही सपाट था- ठाकुर जी, अब अविश्वास प्रस्ताव पर बहस करने की गुजाइंश कहां बची है, आप तो विधानसभा अध्यक्ष के सामने स्वीकार कर रहे हैं कि आपके पास बहुमत नहीं है, आप तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे दीजिए!
इसके बाद तो सबकुछ इतिहास में दर्ज है। कर्पूरी ठाकुर थोड़ी देर के बाद ही ‘कामचलाऊ’ और कुछ दिन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हो गए और सात साल के बाद फिर से सबसे गौरवशाली मुख्यमंत्रियों में एक बने।
बस इतना ही। आज के दिन कोई और क्या कह सकता है!
जितेंद्र कुमार वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया विजिल सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य हैं।