हाल ही में कुछ प्राचीन पाण्डुलिपियो ं की कार्बनडेटिंग से यह बात साबित हुई है कि ज़ीरो (0) का आविष्कार आर्यभट से काफ़ी पहले हो गया था। यानी शून्य की जानकारी ईसा की तीसरी चौथी शताब्दी में हो गई थी। आम धारणा है कि पाँचवी शताब्दी के अंत में भारतीय गणितज्ञ और खगोलविद आर्यभट ने ज़ीरो का आविष्कार किया था। सच्चाई यह है कि आर्यभट ने ज़ीरो का मान निर्धारित करते हुए उसके इस्तेमाल की सूझ दी थी। इसके अलावा आर्यभट, अंधविश्वासों के भी सख़्त ख़िलाफ़ थे। उन्हें ज्योतिषविद् कहके प्रचारित किया जाता है जबकि उन्होंने ज्योतिषविद्या को साफ़तौर पर अवैज्ञानिक बताते हुए भविष्यवाणियों के धंधे की पोल खोली थी। यही वजह है कि अपने समय में उन्हें तमाम ब्राह्मणवादी चिंतकों की नाराज़गी का सामना करना पड़ा। उनके ग्रंथ आर्यभटियम को ग़ायब कर दिया गया जो शताब्दियों बाद, मलमयालम में प्राप्त अनुवाद के ज़रिए सामने आ सका।
बहरहाल, ज़ीरो और आर्यभट को लेकर चल रहे ताज़ा प्रसंग के मद्देनज़र राज्यसभा टीवी के पूर्व सीईओर गुरदीप सिंह सप्पल ने अपने फ़ेसबुक पर एक दिलचस्प टिप्पणी की है। उसे हम साभार प्रकाशित कर रहे हैं। इस लेख का शीर्षक हमारा दिया हुआ है–संपादक।
दरअसल सच यही है कि ज़ीरो का आविष्कार आर्यभट ने नहीं किया था । और ऐसा दावा भी किसी इतिहासकार या गणितज्ञ ने कभी नहीं किया है।
आर्यभट तो वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ज़ीरो का व्यापक इस्तेमाल किया और उसकी place value, यानी उसके मान को परिभाषित किया। तभी ज़ीरो का महत्व समझा गया और गणित में एक क्रांति का रास्ता खुल गया ।
आर्यभट 476 ईसवीं में पैदा हुए थे और मात्र 23 साल की उम्र में आर्यभटियम लिख दिया था।
उनकी प्रमुख खोज थीं :
1. पाई की सही वैल्यू निकालना – 3.1416
2. ये बताना कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है
3. ग्रहण की वैज्ञानिक वजह बताना
4. वर्ष की अवधि की सही गणना करना
5. ax+by=c समीकरण का हल देना
6. Trigonometry को स्थापित करना, sine और cosine की खोज करना
7. Sine और (1-cos x) के table देना
8. Square और cube की Geometric series को हल करना
आर्यभट का महत्वपूर्ण योगदान अंधविश्वास और ज्योतिष के अवैज्ञानिक आधार को उजागर करना था। उन्होंने सबसे पहले बताया कि राहु-केतु कुछ नहीं होते और ग्रहण पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के कारण आते हैं ।
साथ ही बड़े मज़ेदार तरीक़े से ज्योतिष और भविष्यवाणी को निराधार साबित किया। उन्होंने बताया कि जिस कैलेंडर या पंचांग के आधार पर ज्योतिष की गणना होती रही थी, वही सही नहीं था। उसमें वर्ष की अवधि ग़लत थी।
और ये सब उन्होंने सिर्फ़ 23 साल की उम्र तक कर लिया था!!
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आर्यभट की किताब शायद दुनिया की सबसे सारगर्भित पुस्तक है। केवल 121 श्लोक और 242 लाइन!
इन्हीं 242 लाइन में सब नयी खोज लिख डाली। गणित, खगोलशास्त्र, फ़िलासफ़ी सभी कुछ।
आर्यभट्ट ने ज़ीरो का इस्तेमाल सीधे सीधे नहीं किया था । उसने एक नया तरीक़ा निकाला। अंकों (numbers) की जगह अक्षर लिखे। हर अक्षर का मान तय किया और शब्दों में संख्या लिखी।
क = 1 ख = 2 ग = 3 घ = 4 ड़ = 5
च = 6 छ = 7 ज = 8 झ = 9 = 10
ट = 11 ठ = 12 ड = 13 ढ = 14 ण = 15
त = 16 थ = 17 द = 18 ध = 19 न = 20
प = 21 फ = 22 ब = 23 भ = 24 म = 25
य = 30 र = 40 ल = 50 व = 60
श = 70 ष = 80 स = 90 ह = 100
अ = 1
इ = 100
उ = 10000
ऋ = 1000000
लृ = 100000000
ए = 10000000000
ऐ = 1000000000000
ओ = 100000000000000
औ = 10000000000000000
इस तरह से एक नया सिस्टम दिया। इसमें शब्दों का मतलब संख्या में था।
कु = क + उ = 1 x 10000 = 10000
डि = ड + इ = 5 x 100 = 500
और इसे इस्तेमाल कैसे किया?
जैसे कि एक श्लोक में लिखा की एक महायुग में पृथ्वी ड़िशिबुण्लृख्षृ बार घूमती है ।
मतलब
ड़ि = ड़ + इ = 5 x100= 100
शि = श + इ = 70×100= 7000
बु = ब + उ = 23 x 10000= 230000
ण्लृ = ण + लृ = 15 x 100000000= 1500000000
ख्षृ = (ख+ष) ऋ= (2+80) x 1000000= 82000000
Total = 1582237500
अर्थात एक महायुग में 1582237500 दिन होते हैं !
इस तरह से आर्यभट्ट ने लम्बी लम्बी कैल्क्युलेशन को एक एक शब्द में समेट दिया और सिर्फ़ 242 लाइन में सब कह गए ।
(इस तरीक़े को समझने के लिए key श्लोक भी इसी पुस्तक में है :
वर्गाक्षराणि वर्गे वर्गे वर्गाक्षराणि कात् ड़्मौ य: ।
खद्विनवके स्वरा नव वर्गे वर्गेनवान्तवर्गे वा ।
इस श्लोक का full form ही ऊपर दिया गया वैल्यू चार्ट है 😊
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आर्यभट्ट वाली पोस्ट में हो रहे विमर्श से-
खोज और अविष्कार में अंतर होता है। खोज पहले से मौजूद किसी नियम या कॉन्सेप्ट या गतिविधि या जगह आदि ढूँढने को कहा गया है । जैसे gravity, zero या अमेरिका की खोज। आविष्कार नयी तकनीक से जुड़ा है ।
भारत में एक वक़्त में, ख़ास तौर पर हड़प्पन वक़्त में बहुत से आविष्कार हुए। तब ज़्यादातर आविष्कार आम आदमी के इस्तेमाल के लिए थे । फिर वेदिक काल में चिकित्सा पर काम हुआ। बाद में बहुत सी खोज हुईं, ख़ास तौर पर फ़िलासफ़ी, गणित और खगोलशास्त्र में।
लेकिन आविष्कार वास्तुशास्त्र तक सिमट गए । मौर्य, गुप्ता, चोला, चालुक्य, होयसला, पण्ड्या आदि काल में एक से एक बिल्डिंग बनी, लेकिन आम लोगों के जीवन को आसान करने वाली तकनीक पर काम नहीं हुआ । सारा ज्ञान राजाओं की इच्छानुसार या सुविधा के लिए मोड़ दिया गया, या फिर फ़िलासफ़ी और ज्योतिष की ओर ।
ये सही है कि हमारे यहाँ दर्शनिकों के नाम नई खोज की परम्परा नहीं रही। लेकिन ये भी सच है कि हमारे यहाँ सभी बड़े भवन, मूर्तियाँ, शिल्प राजाओं के नाम से है, कलाकारों के नाम से नहीं। पश्चिम में वो शिल्पकारों के नाम से मशहूर हैं। अब इसमें कौन सी परम्परा सही है, ये अपना अपना मत हो सकता है ।
लेकिन सोचने की बात ये है कि भारत में फ़िलासफ़ी, गणित, खगोलशास्त्र में इतना काम होने बाद तकनीक पर काम क्यूँ नहीं हुआ । इसमें पश्चिम कैसे बाज़ी मार गया।
और एक बात। इससे पहले कि दोष मुस्लिम राज को दिया जाए, जैसा अक्सर होता है, तो ये जानना बहुत ज़रूरी है कि इस्लामी राज भारत में 13वीं सदी में आया था। लेकिन हमारा वैज्ञानिक ज्ञान का इतिहास उससे कम से कम 4300 साल पुराना है। गणित में मूल काम, जो आज भी प्रासंगिक है, उसे भी शुरू हुए तब तक 1700 साल हो चुके थे। इतने वक़्त में हम ज्ञान से तकनीक की ओर क्यूँ नहीं बढ़े।
(वैसे सातवीं सदी से कम से कम सोलहवीं सदी तक इस्लामिक जगत खोज और ज्ञान के संरक्षण के मामले में पूरी दुनिया में अग्रणी रहा है)