पहला पन्ना: तो टीके की लचर योजना से पर्दा हटा!

टीकों पर आज के समय में जैसी खबर होनी चाहिए वैसी खबर आज द टेलीग्राफ ने छापी है, शायद पहली बार। इस खबर का शीर्षक है, “टीके की खराब योजना से पर्दा हटा।” इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, “विदेशी टीकों के लिए फुल ऑर्डर अलग कहानी कहता है।”आज के अखबारों में टीके से संबंधित कई खबरें हैं पर शीर्षक से अगर किसी खबर में काम की सूचना होने की उम्मीद लगती है तो वह टेलीग्राफ की ही खबर है। आइए, टीके से संबंधित पहले पन्ने की आज की खबरों का शीर्षक देख लें। “केंद्र ने सभी वयस्कों के लिए वॉक इन वैक्सीन की अनुमति दी।” आज के दिन यह अनुमति हेडलाइन मैनेजमेंट का हिस्सा लगता है पर अब ऐसी खबरों का पहले जैसा लाभ नहीं हो रहा है। वैसे भी, जब सबको टीका लगना है, निशुल्क लगना चाहिए तो जो नियम बने थे वो कम नहीं हैं। अब उन्हें पलटना नोटबंदी के समय की बीमारी से अलग नहीं है। 

पहले यह सुविधा क्यों नहीं दी गई और अब क्यों दी जा रही है, कोई नहीं समझ पाएगा। हिन्दुस्तान टाइम्स में इस खबर के साथ आज एक और खबर है। शीर्षक है, वैक्सीन फैर्मों ने दिल्ली (सरकार) से कहा, राज्यों से सौदा नहीं करेंगी। आप जानते हैं कि केंद्र सरकार ने राज्यों को इस मामले में पूरी आजादी दे रखी है। यही नहीं, पिछले साल 300 रुपए का पीपीई किट भी केंद्र सरकार ने खरीदकर राज्यों को बांटा था। इस बार विदेशी निर्माताओं को लगभग खदेड़कर, देसी निर्माताओं से सौदा करके, टीकोत्सव मनाकर राज्यों से कह दिया गया कि विदेशी निर्माताओं से खुद खरीदें। इसमें देसी निर्माता को अलग कीमत रखने की छूट दी गई। जो देश में उपभोक्ता वस्तुओं और दवाइयों के लिए भी लागू अधिकत्तम खुदरा मूल्य के सिद्धांत के खिलाफ है। ऐसी स्थिति में टीका बनाने वाली फर्में कह रही हैं कि वह केंद्र सरकार से ही सौदा करेंगी या राज्य सरकारों से नहीं करेंगी तो यह स्थिति बनी कैसे और इसका नुकसान किसे है? लॉक डाउन में टीका लग जाता तो काम करने के समय छुट्टी नहीं लेनी पड़ती। लेकिन इतना कौन सोचता है। 

इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर के शीर्षक में एक तथ्य या सूचना और है, राज्यों ने केंद्र से अपील की कि सबके लिए टीके खरीदे। मुझे लगता है कि डबल इंजन वाली सरकारों के लिए यह डूब मरने की स्थिति है। यह स्थिति आई क्यों और किस बात का डबल इंजन। हालांकि इंजन के आधार पर केंद्र सरकार को भेदभाव नहीं कर चाहिए पर उसके किस्से ज्यादा हैं। कुछ दिन पहले पश्चिम तट पर समुद्री तूफान आया था तो गुजरात को 1000 करोड़ रुपए दिए गए थे और अब पूर्वी तट पर आने वाला है तो टेलीग्राफ में बंगाल को तूफान राहत से दूसरे राज्यों के मुकाबले 200 करोड़ रुपए कम दिए जाने की खबर है। अखबार ने बताया है कि अमित शाह चुनाव के समय तो 200 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा करते रहे और अब बुरी तरह हार गए तो राज्य में 200 करोड़ रुपए कम देने के गणित व ‘विज्ञान’ पर चर्चा चल रही है। जहां तक टीके की बात है, केंद्र सरकार को यह काम बिना बोले पहले ही कर देना चाहिए था। राज्यों के साथ भेदभाव पर तो खैर कोई चर्चा गाहे-बगाहे भी नहीं मिलती।

टीके के लिए वॉक इन की इजाजत देने वाली हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का असर इंडियन एक्सप्रेस में दिख रहा है। फोटो कैप्शन के अनुसार नोएडा के एक टीकाकेंद्र के बाहर सड़क पर गाड़ियों की लंबी लाइन लगी है। वॉक इन का मतलब यह थोड़े है कि पैदल ही आया जाए। हालांकि यह सुविधा उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए थी जो इंटरनेट पर समय नहीं ले सकते हैं। या पहले यह झंझट नहीं किया जाना चाहिए था। पर क्यों किया गया यह समझना मुश्किल है। इंडियन एक्सप्रेस की एक और खबर बताती है कि टीके लिए फाइजर और मॉडर्ना के ऑर्डर बुक फुल हैं। भारत को लंबा अनिश्चित इंतजार करना होगा। टाइम्स ऑफ इंडिया में आज आधेपन्ने का विज्ञापन बीच पन्ने पर है। इसलिए उसमें खबरें कम हैं और टीके से संबंधित कोई खबर उल्लेखनीय नहीं है। हालांकि, कल खबर थी कि उत्पादन और आपूर्ति में मेल नहीं है और हिसाब गड़बड़ है। आज की खबरों से इसकी पुष्टि होती है लेकिन देश की आबादी के बहुत बड़े वर्ग को लगता है कि सरकार क्या कर सकती है। ऐसे में सरकार जो कर रही है वह कम नहीं है।  

द हिन्दू की एक खबर बताती है कि टीके के मामले में हम न सिर्फ पीछे या लेट चल रहे हैं जो टीकाकरण हुआ है उसमें आधा या कोवैक्सिन वाला प्रमाणन के जाल में फंसा हुआ है। अभी तक कहा जा रहा था कि कोवैक्सिन लगवाइए या कोवीशील्ड – एक ही है। कुछ लोगों को चुनाव का विकल्प मिला भी नहीं। और इस तरह, कई करोड़ लोगों को टीका लग जाने तथा प्रधानमंत्री की फोटो वाला सर्टिफिकेट जारी हो चुका है। इस बीच हम चर्चा करते रहे कि प्रधानमंत्री की फोटो क्यों है, राष्ट्रपति की होनी चाहिए या मुख्यमंत्रियों की भी होनी चाहिए। यही नहीं, कुछ लोगों की राय है कि मृत्यु प्रमाणपत्र पर भी प्रधानमंत्री की फोटो हो। और यह तथ्य रह गया कि प्रमाणपत्र किसी काम का नहीं है। इस टीके को विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंजूरी नहीं मिली है और अगर नहीं मिली तो आशंका है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर यह नियम बना कि किसी दूसरे देश में प्रवेश के लिए टीका लगा होना जरूरी है तो कोवैक्सिन वालों को टीका लगा माना ही नहीं जाएगा। खबर बताती है कि सरकार इस दिशा में कोशिश कर रही है और 90 प्रतिशत कागजी कार्रवाई हो गई है। 

आज द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस और द टेलीग्राफ में लक्षद्वीप प्रशासन की एक खबर दिखी जो चिन्ताजनक है लेकिन बाकी दो अखबारों में नहीं है। द टेलीग्राफ में इसका शीर्षक है, “लक्षद्वीप में मिशन कश्मीर का झटका।” इसका फ्लैग शीर्षक है, “केंद्र के दूत द्वारा संघ परिवार का एजंडा लागू करने पर हंगामा।” केरल के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, “लक्षद्वीप से खबर बहुत गंभीर है। वहां की स्थिति द्वीप में रहने वाले लोगों के जीवन और संस्कृति के लिए एक चुनौती है। इस तरह के कदम अस्वीकार्य हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हम जानते हैं कि लक्षद्वीप और केरल का संबंध लंबे समय से है। पूरे केरल में, हम लक्षद्वीप के छात्रों को देख सकते हैं। अब इस संबंध को विकृत करने का एक जानबूझकर, दुर्भावनापूर्ण प्रयास किया जा रहा है। यह संकीर्ण सोच का हिस्सा है। यह निंदनीय है।”

दरअसल लोग लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल के पटेल के कुछ बदलावों से नाराज हैं। पटेल गुजरात के गृहमंत्री थे और अमित शाह के करीबी बताए जाते हैं। इस खबर जो जिस प्रमुखता से होना चाहिए, नहीं है। आगे देखा जाए।  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

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