इंडिया दैट इज भारत में आबादी के हिसाब से सब से बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2021 में ही कराये जा सकते हैं. निर्वाचन आयोग के कैलेंडर में इसे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोडा अप्रैल 2021 में रिटायर होने से पहले भगवा रंग से ‘बुकमार्क’ कर चुके हैं. हम मीडिया विजिल के इस साप्ताहिक कॉलम ‘चुनाव-चर्चा’ के हालिया अंक में इसकी विस्तार से रिपोर्ट दे चुके हैं.
पिछला विधानसभा चुनाव 2017 में हुआ था. कुल 405 सीटो के सदन का मौजूदा कार्यकाल इसी वर्ष 14 नवम्बर को समाप्त होना है। चुनाव पहले भी कराने पड सकते हैं. चुनाव की निर्वाचन आयोग की आधिकारिक घोषणा के बाद ही ठीक से पता चलेगा कि राज्य में कौन सियासी दल कितने पानी में है. पर भारत के 26 मई 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के 19 मार्च 2017 से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नई रणनीति अभी से बन रही है. लोकसभा की सर्वाधिक 80 सीटों वाले इस राज्य में भाजपा के विधान सभा चुनाव जीते बगैर मोदी जी का प्रधानमंत्री बने रहना आसान नहीं होगा। मोदी जी इससे अवगत हैं.
निर्वाचन आयोग के एक आला अधिकारी ने इस स्तम्भकार को बताया कि विधान सभा के नए चुनाव समय पर ही होंगे। उन्होंने और कोई खुलासा करने से साफ़ इंकार कर दिया। मोदी जी उत्तर प्रदेश के ही वाराणसी से 2014 और फिर 2019 में भी लोकसभा सदस्य चुने गये. 2017 के विधान सभा चुनाव में अन्य दलों को कुल 45.6 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा गठबंधन को उससे कम 41.4 प्रतिशत वोट ही मिले थे। बावजूद इसके, गैर-भाजपा दलों के वोट का बँटवारा हो जाने से भाजपा को 312 सीटें मिल गईं। पिछले विधान सभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन था। इस बार वह गठबंधन रहेगा या नहीं इस बारे में कोई अधिकृत घोषणा अभी तक नहीं की गई है.
भाजपा समर्थकों को लगता है मोदी जी के चुनावी तरकश में बहुत तीर है. इसलिये वे स्थिति संभाल सकते हैं. उन्हे ये भी लगता है कि चुनाव का वक़्त आते-आते कोविड महामारी का प्रकोप थम जायेगा और दिल्ली बॉर्डर पर जमा किसानों का मुद्दा भी दब जाएगा। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण तब बढ़ सकता है जो भाजपा के लिये चुनावी रामबाण सिद्ध होगा. लेकिन हम विधान सभा चुनाव पर और चर्चा करने से पहले प्रदेश में हाल में सम्पन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से पैदा स्थिति का जायजा लेना मुनासिब समझते हैं. क्योंकि इसमें चुनावी ड्युटी पर तैनात सैंकड़ों
शिक्षकों की कोविड महामारी की चपेट में आ जाने से मरने की खबर है.
गंगा में तैरते और रेत में गाडे़ गये कोविड मृतकों के शव
पंचायत चुनाव में ड्युटी पर तैनात कर्मियो के मरने के बारे में सरकारी तौर पर कोई खास जानकारी नहीं दी गई है लेकिन टीचर्स एसोसियेशन के बयान में दी गयी जानकारी चौंका देने वाली है. कोविड से मरे असंख्य लोगो के शव अर्थाभाव मे राज्य में हरिद्वार से आगे के मैदानी हिस्से से लेकर बिहार की सीमा पर बक्सर तक बहा दिये गये या फिर रेत में गाड़ दिया गया. गोदी मीडिया की तरह इन्हे लाश कहना और दफनाना बताना व्याकरण ही नहीं उनके धार्मिक विश्वास के प्रति अपमान है.
पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने के दौरान कोविड महामारी से मरने वाले शिक्षकों, शिक्षा मित्रों, अनुदेशकों और बेसिक शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की संख्या कम से कम 1,621 बताई जाती है. उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ की 16 मई को जारी सूची में ये जानकारी दी गई.शिक्षक संघ ने 28 अप्रैल को जारी सूची में महामारी से 706 शिक्षकों और कर्मचारियों के मरने की जानकारी दी थी. उसने नई सूची 16 मई को ही मुख्यमंत्री योगी को भेज कर चुनाव ड्यूटी में मरे सभी कर्मियो एक–एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने और उनके एक एक परिजन को नौकरी देने समेत आठ मांगें की हैं. प्राथमिक शिक्षक संघ की सूची के अनुसार प्रदेश के सभी 75 जिलों में 1,621 शिक्षकों, अनुदेशकों, शिक्षा मित्रों व कर्मचारियों की कोविड से मौत हुई है. इन सभी ने पंचायत चुनाव में ड्यूटी की थी. सूची में जान गंवाने वाले शिक्षकों के नाम, उनके विद्यालय के नाम, पदनाम, ब्लॉक व जनपद का नाम, मृत्यु की तिथि और दिवंगत शिक्षक के परिजन का मोबाइल नंबर भी दिया गया है.सूची के अनुसार महामारी से चुनावी ड्युटी पर तैनात सबसे अधिक 68 कर्मी आजमगढ़ जिले में , 50 गोरखपुर में , 47 लखीमपुर में , 53 रायबरेली में , 43 जौनपुर में, 48 इलाहाबाद में, 35 लखनऊ में, 39 सीतापुर में , 34 उन्नाव में, 36 गाजीपुर में, 34 बाराबंकी में मरे है. प्रदेश के 23 जिलो में 25 से अधिक शिक्षकों और कर्मचारियों की महामारी से मौत हुई है.
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने मुख्यमंत्री को भेजे गए इस पत्र में लिखा है कि उसके द्वारा 12 अप्रैल, 22 अप्रैल, 28 अप्रैल और 29 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को भी पत्र लिखकर महामारी के मद्देनजर पंचायत चुनाव स्थगित करने की मांग की थी. उस पर ध्यान नहीं दिया गया. शिक्षक संघ ने मतगणना बहिष्कार की घोषणा की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मतगणना पर रोक लगाने से इनकार कर शिक्षक गणो को मतगणना में हिस्सा लेने के लिये बाध्य कर दिया. राज्य सरकार और प्रदेश निर्वाचन आयोग ने मतगणना में कोविड से बचाव के गाइडलाइन का पालन करने का भरोसा दिलाया था पर जो भरोसा दिया वो पूरा नहीं किया गया. शिक्षक संघ के अध्यक्ष डा. दिनेश चंद्र शर्मा और महामंत्री संजय सिंह ने पत्र में सरकार को याद दिलाया है कि महामारी की पहली लहर में प्राथमिक शिक्षकों ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 76 करोड़ रुपये दिए थे. राशन की दुकानों से गरीबों तक राशन पहुंचाया था. जब विद्यालय खुले तो अधिक संख्या में छात्र-छात्राओं का नामांकन कराया.लेकिन सरकार ने शिक्षकों को बंद विद्यालयों में बैठने को मजबूर किया. उनसे ऑपरेशन कायाकल्प में ड्यूटी करवाई. पंचायत चुनाव में काम कराया.अब भी कोविड कंटोल रूम में ड्यूटी करा रही है.शिक्षक संघ ने कहा है कि मतदान और मतगणना से बीमारी के कारण अनुपस्थित रहे शिक्षकों और कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही ना की जाए.
सियासी दल
पंचायत चुनाव में भाजपा ने ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल ,अपना दल, तेलंगाना के सांसद असददुद्दीन ओवेसी की एआईएमआईएम और कम्युनिस्ट पार्टियां समेत लगभग सभी राजनीतिक दल ने अपने प्रत्याशी खड़े किये थे. उन्हे जिला पंचायत स्तर पर अपने चुनाव चिन्ह पर उम्मीदवार खड़े करने की अनुमति थी.
असंख्य पद
पंचायत चुनाव ग्राम प्रधान के कुल 58,194 पद के लिये हुए जिनमें से 330 अनुसूचित जनजातियो, 12045 अनुसूचित जातियोंं, 15712 अन्य पिछड़े वर्ग और 9739 महिलाओ के लिये आरक्षित हैं. कुल 20368 पद सामान्य श्रेणी के हैं. राज्य में 75 जिले, 826 ब्लॉक और 58194 ग्राम पंचायत हैं. इन के अलावा जिला पंचाय , क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत के असंख्य वार्ड भी हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत तथा शहरी क्षेत्रों में नगरपालिका और नगर निगम के स्थानीय निकायों के चुनाव उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग कराता है। ये भारत के निर्वाचन आयोग से अलग है। उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा पंचायत चुनाव की अधिसूचना फरवरी मध्य में जारी की गयी थी.
राज्य की आबादी में जो करीब 50 प्रतिशत अन्य पिछड़े वर्ग के लोग और दलित हैं उनमें से अधिकतर का रूझान सपा की तरफ माना गया है। सपा, कांग्रेस और बसपा को मुस्लिम समुदाय का भी समर्थन मिलता है जो कुल आबादी के करीब 18 प्रतिशत माने जाते हैं। विश्लेषकों के अनुसार पंचायत चुनाव में आम लोगो का कोविड महमारी से उत्पन्न स्थिति से निपटने में योगी सरकार की घोर विफलता और आये दिन की आपराधिक घटनाओं के कारण भाजपा से मोहभंग हुआ।
भाजपा की तैयारी
विधान सभा चुनाव की तैयारी के तहत ही पंचायत चुनाव के लिये भाजपा के प्रदेश महामंत्रियों को पार्टी के मातृ संगठन, राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ (आरएसएस) के मानचित्र में ‘प्रांत ‘ माने गये छह अलग भूक्षेत्रों का प्रभारी बनाकर नई ज़िम्मेदारी दी गई थी. पंचायत चुनाव के दौरान प्रत्येक जिला में जनवरी 2021 में हुई बैठक से पहले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और पार्टी के केंद्रीय प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह ने प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक की थी. प्रदेश महामंत्रियों में से जेपीएस राठौर पश्चिम क्षेत्र, गोविन्द नारायण शुक्ला प्रदेश मुख्यालय, अश्वनी त्यागी ब्रज, अमरपाल मौर्य अवध, सुब्रत पाठक काशी, अनूप गुप्ता गोरखपुर और प्रियंका सिंह रावत कानपुर-बुन्देलखण्ड क्षेत्र की प्रभारी हैं. भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष एवं विधान परिषद सदस्य विजय बहादुर पाठक को पंचायत चुनाव प्रभारी बनाया गया था. वह भाजपा के कई बार प्रदेश अध्यक्ष रहे और अभी राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के लम्बे अर्से तक निजी सहायक रहे है.
बहरहाल , पंचायत चुनाव के लिये प्रदेश निर्वाचन आयोग, भाजपा और उसकी सरकार की कोई तैयारी राज्य के लोगो के काम नहीं आई . शिक्षक ही नहीं असंख्य नागरिक भी महामारी में चुनाव के कारण मौत के शिकार हुए. ऐसे में ये लिख्नना भी सही नहीं होगा कि इन पंचायत चुनाव में कौन जीता. हार तो अवाम की ही हुई. कोई शक ?
*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं।