पहला पन्ना: टेलीग्राफ़ का जवाब नहीं! TOI को छोड़ ज़्यादातर में ‘टीका-कांड’ का ‘फ़ॉलो-अप’ ग़ायब!

केंद्र सरकार की टीका नीति पलट जाने और नई घोषणा के बाद टीकों के मामले में फॉलोअप अखबारों का बड़ा और महत्वपूर्ण काम है। इससे संबंधित कई मुद्दे चर्चा योग्य हैं पर आज हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दू में कुछ खास नहीं है। टेलीग्राफ ने बताया है कि तृश्शूर के केंद्रीय विद्यालय में पांचवी की छात्रा लिडविना जोसेफ ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का आभार जताया है और मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमन्ना इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे संविधान की एक हस्ताक्षरित प्रति भेजी है और उसकी चिट्ठी के जवाब में लिखा है कि देश में घट रही घटनाओं पर नजर रखने के उसके तरीके से प्रभावित हैं। यह खबर हिन्दू में भी है और इससे लगता है कि केरल में रह रही पांचवी की छात्रा भी घटना क्रम को समझ रही है। उन्हीं संचार माध्यमों से जिन्हें हम गोदी मीडिया कहते हैं (दक्षिण की भाषाओं के अखबारों को इस श्रेणी में रखा जाए कि नहीं इस पर विवाद हो सकता है पर वह अलग विषय है) टेलीग्राफ ने लिखा है कि प्रधानमंत्री ने 2600 शब्दों के अपने भाषण में सुप्रीम कोर्ट के बारे में एक शब्द नहीं कहा। अखबार ने लिखा है कि बच्ची ने दिखाया कि कैसे शुक्रिया कहा जाता है और बताया है कि कैसे वयस्क इसे स्वीकार भी नहीं करते हैं। 

अखबार ने आज अपनी मुख्य खबर का शीर्षक लगाया है, “चाइल्ड इज फादर ऑफ मैन सात कॉलम का यह शीर्षक वही है जो मशहूर कवि, विलियम वर्ड्सवर्थ ने 1802 में कहा था। यह उनकी कविता, माई हार्ट लीप्स अप  की लाइन है। इसे रेनबो (इंद्रधनुष) के नाम से भी जाना जाता है। पूरी कविता से इन शब्दों या वाक्यांश का मतलब निकलता है, “किसी व्यक्ति के बचपन का व्यवहार और गतिविधियां उसके व्यक्तित्व के निर्माण में एक लंबा रास्ता तय करती हैं।” इस मामले में दिलचस्प यह है कि चिट्ठी पुरानी है और अब प्रकाश में आई है जब भारी दबाव में प्रधानमंत्री ने देश की टीका नीति बदली और उसका पूरा श्रेय लेने की कोशिश की जबकि बच्चा भी समझ रहा है कि काम दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने किया है। ऐसे में टेलीग्राफ ने इस तथ्य को रेखांकित किया है (या करने की हिम्मत की है) जो किसी ने नहीं किया। और शीर्षक से यह बताने की कोशिश की है कि बच्चों के मन पर आसपास की घटनाओं का भारी असर होता है और यह उनके व्यक्तित्व निर्माण में सहायक या धब्बा हो सकता है। जाहिर है, हम सबका काम है कि बच्चों को अच्छी सीख दें, अपनी भूमिका अच्छे से निभाएं और माहौल अच्छा रखें। 

ऐसे समय में हिन्दुस्तान टाइम्स की मुख्य खबर या लीड या फॉलोअप है, “केंद्र ने टीके की 440 मिलियन खुराक का और ऑर्डर दिया।” इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, “केंद्र ने राज्यों से मौके पर पंजीकरण सुनिश्चित करने के लिए कहा, 44 करोड़ टीकों के खुराक का ऑर्डर दिया।” यही नहीं, अखबार ने बताया है कि (घोषणा के अनुसार) टीकों और अतिरिक्त अनाज काबिल’ 1.15 लाख करोड़ होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि यह पीएम केयर्स के नाम पर उगाहे गए धन से नहीं चुकाया जाएगा बल्कि सरकारी और टैक्स का पैसा है जो जनता के काम के लिए ही है और सरकार ने बहुत मजबूरी में यह निर्णय लिया है। फिर भी इंडियन एक्सप्रेस की प्रस्तुति प्रचारक वाली है कि टेलीग्राफ जैसी सत्य बताने वाली या टाइम्स ऑफ इंडिया की तरह पत्रकारिता करने वाली। यह उल्लेख इसलिए जरूरी है कि इंडियन एक्सप्रेस का नारा,जर्नलिज्म ऑफ करेज” है जबकि टाइम्स अपने विज्ञापनों और प्रचार के साथ प्रचार के नएनए तरीकों के लिए जाना जाता है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज टीके पर एक नहीं दो फॉलो अप है। लीड का शीर्षक है, “45 पार वालों के लिए प्राथमिकता, दूसरी खुराक के जरूरतमंदों के लिए सरकार नियम बदल (तेज कर) सकती है”। बेशक, इस तरह की खबर टीके की गंभीरता को कम करती है और प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में यह रोना रोया था। इसके जरिए वे अपने समर्थकों की दलील को मजबूती दे रहे थे जबकि सच्चाई यह है कि टीकों का मजाक सरकारी कानूनों और व्यवहार से ही बना है। विरोधियों और मजाक करने वालों का तो यह काम है। सरकार का काम था कि वह लोगों को टीके की गंभीरता  बताती और उसका पालन करती। सबको मुफ्त में जल्दी से जल्दी टीका लगवाती।  नोटबंदी की तरह रोज नियम नहीं बदलती। वैसे तो सरकारी नियमों की भी एक प्रतिष्ठा होती है और दवाई के मामले में वह बहुत ज्यादा होती है लेकिन इस सरकार की गंभीरता आप देख सकते हैं। 500 मरीजों पर अचानक देश भर में लॉकडाउन करने वाली सरकार अब स्थिति को नियंत्रण में और कम होता बता रही है जबकि कल एक रात में 85803 लोग संक्रमित हुए हैं और इस समय सक्रिय मामलों की संख्या 1258769 है (स्रोत : टेलीग्राफ) अमित शाह ने कहा ही है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमने दूसरी लहर को कम समय में नियंत्रित कर लिया। दूसरी लहर में चार दिन में 50,000 लोग मरे थे ऑक्सीजन संकट महीने भर चला और उसमें भी सैकड़ों लोग मर गए। ऐसी सरकार और ऐसे मीडिया के क्या कहने। फिर भी, आज टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर महत्वपूर्ण और दिलचस्प है। 

आज की लीड खबर के मुताबिक तीन टीकों की अधिकतम कीमत कोवैक्सिन – 1410 रुपए, कोविशील्ड 780 रुपए और स्पूतनिक 1145 रुपए होगी। अब एक ही दवाई की तीन कीमत क्यों और जब तीन कीमत है तो एक कैसे? पर है और यह सरकार जी ने तय किया है। इस अपेक्षा के बावजूद की कोई पूछताछ करे और कोई भी टीका लगवा ले मुफ्त में या पैसे देकर। यह स्थिति तब है जब आमीर खान ने बहुत पहले अपने एक कार्यक्रम में आम आदमी के समझने के लिए बताया था कि डॉक्टर को कहना चाहिए कि दूध पीजिए। पर डॉक्टर कहता है रामू की भैंस का दूध पीजिए। अब इसमें रामू की भैंस का दूध महंगा हो जाएगा, नहीं मिलेगा या दुर्लभ हो जाएगा। रामू अपने भैंस के दूध की मनमानी कीमत मांगेगा। दवाइयों के मामले में देश में यही होता रहा है। अब सरकार ने कह दिया कि कोई भी टीका लगवा लो पर टीका एक ही है रामू काका वाला महंगा या सस्ता क्यों है? वैसे भी, जब टीका सबको मुफ्त लगना है तो ये 25 प्रतिशत कीमत देकर क्यों और कीमत में भारी अंतर क्यों? कायदे से सरकार को यहां भी टीका मुफ्त उपलब्ध करवाना था और लगाने के वे  अलग चार्ज ले सकते थे। जो 150 से 500 या 500 से 1500 तक कुछ भी हो सकता था। इससे टीके की विश्वसनीयता बनी रहती। पर सरकार को इसकी चिन्ता नहीं है। सरकार यह बताना चाहती है कि वह कॉरपोरेट की है। कॉरपोरेट का ख्याल रखना चाहती है। अखबारों को इससे कोई दिक्कत नहीं है। दरअसल वो भी तो कॉरपोरेट ही हैं। 

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज दूसरी खबर या तीसरी सूचना यह है कि साल के अंत तक टीकाकरण का काम पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश को मौजूदा रफ्तार के मुकाबले 9 गुना करना होगा। पूरे देश के लिए औसतन अभी के मुकाबले रफ्तार तो पांच गुना बढ़ाना पड़ेगा। अखबार के मुताबिक इस समय हिमाचल प्रदेश सबसे अच्छी स्थिति में है और उसे भी अपनी रफ्तार दूनी करनी पड़ेगी। क्या यह संभव है। आज ऑर्डर दिए जाने की खबर है और अभी लक्ष्य पूरा करने के लिए 207 दिन हैं। हर दिन यह संख्या कम होगी और लक्ष्य बढ़ेगा। क्या इस लक्ष्य को हासिल करना संभव है?खबर सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में क्यों है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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