पहला पन्ना: एक्सप्रेस, शताब्दी में आग की फोटो नहीं छापता, ईंट की दीवार को कंक्रीट की बताता है!

आज अपने पांच अखबारों के पहले पन्ने पर प्रकाशित तस्वीरों की बात करते हैं। पहले चार तस्वीरें। आज पहले पन्ने की तस्वीरें भी उल्लेखनीय है। खासकर, शताब्दी एक्सप्रेस में आग लगने की खबर के बावजूद जो दूसरी तस्वीरें छपी हैं उन्हें देखना दिलचस्प है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने आग लगने की खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर छापा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह पहले पन्ने पर है। आग संदिग्ध शॉर्ट सर्किट से लगने की खबर है। हालांकि कोई हताहत नहीं हुआ पर तस्वीर तो तस्वीर है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर मुंबई की एक तस्वीर है जिसका कैप्शन है, “मुंबई में टीका लगवाने के लिए इंतजार करते बुजुर्ग।”


यह तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस की है। इसका कैप्शन है, “दिल्ली की टीकरी सीमा के प्रदर्शन स्थल पर किसान कंक्रीट की संरचना तैयार कर रहे हैं”। तस्वीर देखिए इसमें एक ईंट की दीवार सीमेंट से जरूर जोड़ी जा रही है पर कंक्रीट कहां है? नीचे खबर भी है, “किसान प्रदर्शन स्थलों पर पक्का संरचना कड़ी कर रहे हैं। अधिकारियों ने कदम रखा।”

द हिन्दू की तस्वीर किसान आंदोलन के तहत चल रहे धरना स्थल पर परंपरागत नृत्य संगीत कार्यक्रम की है।

ममता बनर्जी पर हमले का मामला दिल्ली के अखबारों से खत्म नहीं हुआ है। मेरा मानना है कि एक राज्य का एक महीने चलने वाला चुनाव दिल्ली के अखबारों के पहले पन्ने का मुद्दा नहीं है पर राजनीतिक कारणों से इसे ऐसा बना दिया गया है। और अखबार वही छाप रहे हैं जो नेता लोग चाहते हैं। इसीलिए पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पर हमला हुआ (केंद्र सरकार को बहुत चिन्ता हुई जांच की कोशिशें हुई, रिपोर्ट क्या आई मुझे ध्यान नहीं है और ना वह महत्वपूर्ण है)। उन्हें चोट नहीं लगी थी। उसके बाद मुख्यमंत्री पर हमला हुआ उनके पैर में चोट आई और वे चल नहीं पा रही हैं यह तस्वीरों में दिख रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि राजनीतिक दल चाहें तो यह यह सब कोई मुश्किल नहीं है। अब अखबारों में इसका छिद्रान्वेषण किसलिए? वह भी कई दिनों तक। आम समझ यही है कि यह सब मुद्दों से दूर रहने के लिए किया जाता है। इसके बावजूद यह खबर आज फिर इंडियन एक्सप्रेस में लीड है। मुख्य शीर्षक है, “मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) के खिलाफ नियोजित हमले का कोई सबूत नहीं, आयोजन के लिए कोई अनुमति नहीं ली गई थी : चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक”।

इसे आज ही के अखबारों में प्रकाशित दूसरी खबरों के साथ मिलाकर देखिए। मुंबई में अंबानी के घर के बाहर बम रखने के आरोप में मुंबई पुलिस के अधिकारी सचिन वाजे गिरफ्तार। एनआईए (केंद्र सरकार के अधीन) की 12 घंटे की पूछताछ के बाद मुम्बई में गिरफ्तार। पुलिस अधिकारी ने कहा है, “मुझे लगता है कि दुनिया को अलविदा कहने का समय आ गया है।“ उन्हें पहले भी एक झूठे मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है और वह मामला अभी तक नहीं निपटा है। लग रहा है कि इतिहास दोहराया जा रहा है। तब मेरी नौकरी 17 साल बाकी थी। उम्मीद, धैर्य, जीवन और सेवा (अवधि) सब थी। अब ना नौकरी बाकी है ना जीने का धैर्य। अखबारों में तो नहीं दिखा सोशल मीडिया पर चर्चा है कि इसी अधिकारी, सचिन वाजे ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार किया था। इससे उन्हें फंसाए जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है और अगर आप मामले को वैसे नहीं देखें तो अंबानी के घर के बाहर बम रखने का मामला सीधा सामान्य नहीं था। जांच इसकी होनी चाहिए कि यह कैसा प्रशासन है, कैसी राजनीति है पर जांच ममता बनर्जी को चोट लगने की हो रही है। कम से कम महत्व तो उसे ज्यादा दिया ही जा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में आज यह खबर लीड है और उपरोक्त तथ्य उसी खबर से हैं। सचिन वाजे के संबंध में हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का शीर्षक है, “वाजे गिरफ्तार, विस्फोटक प्लांट करना ‘स्वीकार’ किया”।

आज के अखबारों से यह खबर भी मिल रही है कि टीआरपी चाहने वालों ने दिशा को गिरफ्तार करवाया, एंटीलिया के बाहर बम अपराधियों ने नहीं रखा था, पुलिस अधिकारी को बम रखने के आरोप में फंसाया गया हो सकता है, फिर भी हिन्दुस्तान टाइम्स ने छाप दिया है कि उन्होंने अपराध स्वीकार कर लिया जो एनआईए के लीक पर आधारित है और इसका कानूनन महत्व नहीं है। और यह बार-बार कहा जा चुका है कि ऐसी खबरें मीडिया ट्रायल का हिस्सा हैं। और खबर छप रही है कि विमान यात्रियों के लिए मास्क लगाना जरूरी है। वह भी तब जब शनिवार को देश में कोविड के 24882 नए मामले सामने आए हैं और यह इस साल का सबसे ज्यादा है और यह 83 दिनों में सबसे बड़ी वृद्धि भी है। इससे पहले, इससे ज्यादा मामले 20 दिसंबर को दर्ज किए गए थे। शनिवार को जो नए मामले मिले उनमें 63.57 प्रतिशत महाराष्ट्र में मिले हैं। दि हिन्दू ने इस खबर को लीड छापा है। इसी तरह हिन्दू में एक खबर है, संयुक्त राष्ट्र अधिकार पैनल ने (सफूरा) जरगर की गिरफ्तारी की निन्दा की। मुझे लगता है कि इन सभी खबरों को अगर सभी अखबारों में इतनी ही प्रमुखता से छापा जाए (ममता बनर्जी की खबर की तरह रोज) तो आम जन मानस में कैसी छवि बनेगी। पर स्थिति यह है कि इंडियन एक्सप्रेस शताब्दी एक्सप्रेस में आग लगने की फोटो तो नहीं छापता है, दिल्ली सीमा पर बन रही ईंट की दीवार की तस्वीर को कंक्रीट की संरचना बन रही बताता है।

कम महत्व दी जाने वाली खबरें इतनी ही नहीं हैं। एक दूसरी खबर दिशा रवि की गिरफ्तारी से संबंधित है। द टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार दिशा ने कहा है कि उसे टीआरपी चाहने वालों ने दोषी ठहराया था। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है, शीर्षक है, स्वायत्ता का उल्लंघन, टीआरपी चाहने वालों ने दोषी ठहराया, दिशा ने कहा। इन सबसे अलग द टेलीग्राफ में एक ऐसी खबर है जो कल सोशल मीडिया पर वायरल थी। यह कम दिलचस्प नहीं है कि ऐसी खबरें अखबारों में पहले पन्ने पर जगह नहीं पाती हैं या बहुत कम पाती हैं। इस खबर में बताया गया है कि पानी मांगने पर नाम पूछा गया, बाप का नाम मतलब रखता है और ‘गलत’ हुआ तो लात घूंसे पड़ते हैं। अखबार ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, “नरपशु जिन्हें हमने ताकत दी है”।

इन खबरों के बाद यह भी जान लीजिए कि आज अखबारों की लीड क्या है

  1. हिन्दुस्तान टाइम्स के पहले पन्ने से पहले की लीड का शीर्षक है, “ठीक से मास्क न पहनने वाले विमान यात्रियों को उतार दिया जाए”। पहले पन्ने पर शीर्षक है, “हैदराबाद की फर्म अमेरिकी फंडिंग से टीके बनाएगी”।
  2. इंडियन एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक है, “मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) के खिलाफ नियोजित हमले का कोई सबूत नहीं, आयोजन के लिए कोई अनुमति नहीं ली गई थी : चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक।”
  3. टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने की लीड है, 20.5 लाख टीके की खुराक शुक्रवार को दी गई, एक दिन में सबसे ज्यादा। इंट्रो है, यह उपलब्धि बाने वाला भारत अमेरिका के बाद दूसरा (अगर आबादी के प्रतिशत के लिहाज से देखें तो भारत की स्थिति कुछ और होगी। लेकिन क्या बताना है यह संपादक तय करता है और उसी से खबर लीड बनती है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने का शीर्षक है, “विस्फोटक से लदी कार खड़ी करने में भूमिका के लिए वाजे गिरफ्तार”।
  4. द हिन्दू की लीड है, कोविड-19 के दर्ज सक्रिय मामलों में 60 प्रतिशत से ज्यादा महाराष्ट्र में रिकार्ड किए गए हैं। इंट्रो है, आठ राज्यों में मामले बढ़ते नजर आ रहे हैं।
  5. द टेलीग्राफ का शीर्षक है, “नरपशु जिन्हें हमने ताकत दी है”। उपशीर्षक है, “पानी की एक घूंट के लिए नाम का मतलब है, बाप का नाम मतलब रखता है …. गलत नाम का मतलब है लात घूंसे। “

जब देश में बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा है तब इंडियन एक्सप्रेस की खबर से मान लीजिए कि ममता बनर्जी पर हमले की जांच ठीक हुई और उसकी खबरें सही होती हैं। इंडियन एक्सप्रेस के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि मंदिर में पानी मांगने पर लात घूंसे से पूजा कर दी गई। आपके अखबार में कौन सी खबर है और कौन नहीं देखते रहिए। समझते रहिए।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

First Published on:
Exit mobile version