पहला पन्ना: एक दिन में हुई मौतों का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना और प्रचार है कि कोरोना केस कम हुए!

कोविड-19 के कारण देश भर में कल 4522 लोगों की मृत्यु हुई। यह किसी भी देश में एक दिन में हुई मौतों की सबसे बड़ी संख्या है। इससे पहले, 12 जनवरी को अमेरिका में 4468 और छह अप्रैल को ब्राजील में 4211 मौतें हुई थीं। लेकिन हमारे यहां प्रचार है कि मामले कम हो रहे हैं। इस कारण टीकाकरण में ग्रामीण भारत बहुत पीछे हैं, इसकी चर्चा ही नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में आज सबसे ज्यादा मौतों की खबर के साथ डॉ. केके अग्रवाल की मौत की भी खबर है। टीकाकरण की खबर द हिन्दू में है। फिर भी हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस की लीड बताती है कि मामले कम हो रहे हैं। मैं पहले बता चुका हूं कि मामले कम होने का कारण जांच कम होना भी हो सकता है। यही नहीं, जब ज्यादा मौत की बात की जाएगी तो ज्यादा आबादी का रोना रोया जाता है और प्रतिशत में बात होती है। लेकिन टीकाकरण की बात प्रतिशत में नहीं होती है वहां संख्या बताई जाती है। यह सब सरकार के समर्थक करते हैं और जब तक ऐसे समर्थक रहेंगे सरकार को काम करने की जरूरत नहीं है। हेडलाइन मैनेजमेंट चलता रहेगा। 

अखबारों की चिन्ता इस खबर से ज्यादा यह है कि केरल के पिनयारी मंत्रिमंडल में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री शैलजा को शामिल नहीं किया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि मंत्रिमंडल बनाना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है और इसपर टिप्पणी अमूमन नहीं होती है। केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार में कौन मंत्री हैं, कौन नहीं और किस मंत्रालय का मंत्री क्या काम करता है – इसपर मुझे कोई खबर पिछले छह साल में याद नहीं है। यहां तक कि पूर्व कौशल विकास मंत्री ने कहा कि उनके पास 70 ड्राइवर नहीं हैं इसलिए सरकारी पैसे से खरीदे गए 30 से ज्यादा एम्बुलेंस ढंक कर रखे हुए हैं तो भी खबर इतनी प्रमुखता से नहीं छपी जितनी प्रमुखता से आज केरल की छपी है। इसी तरह मंत्रिमंडल में कौन है और कौन नहीं, इसपर पहले पन्ने की कोई टीका-टिप्पणी मुझे याद नहीं है।  

हेडलाइन मैनेजमेंट की कोशिशों के तहत भाजपा ने कल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि भारत की छवि खराब करने के लिए टूलकिट साजिश की गई थी। कांग्रेस ने इसे फर्जी बताया है और भाजपा अध्यक्ष के साथ संबित पात्रा, स्मृति ईरानी और बीएल संतोष के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है लेकिन खबर पहले पन्ने पर है। द टेलीग्राफ में इसका शीर्षक है, भाजपा के सितारों पर लेटरहेड के फर्जीवाड़े में उंगली उठी।

 

हेडलाइन मैनेजमेंट के ही तहत प्रधानमंत्री ने कल जिलाधिकारियों से बात की और इसमें कई मुख्यमंत्रियों ने भी हिस्सा लिया (टाइम्स ऑफ इंडिया)। इसका शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने कहा, “टीके की आपूर्ति बढ़ाने के प्रयास जारी हैं, राज्य 15 दिन का एडवांस शिड्यूल दें। पहले की खबरों के मुकाबले यह सिर्फ लीपा-पोती है लेकिन अखबार न सवाल करते हैं और न उनके प्रचार में जवाब होता है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस खबर से संबंधित वीडियो को रीट्वीट करते हुए लिखा है, आज की मीटिंग में प्रधानमंत्री जी का वक्तव्य टीवी पर लाइव प्रसारित हुआ।  पिछली बैठक में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के लाइव प्रसारण पर आपत्ति थी कि प्रोटोकोल तोड़ा गया। आज के प्रोटकॉल में लाइव प्रसारण की इजाज़त थीकैसे पता चले कि कौन सी बैठक से लाइव प्रसारण हो सकता है, कौन सी में नहीं?

यही नहीं, आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में सब ठीक होने का दावा है और इससे उलट लिखने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है। इसीलिए गंगा में तैरती लाशें सीमा पार करने के बाद दिखीं, उत्तर प्रदेश में किसी को दिखी ही नहीं। इलाहाबाद, उन्नाव आदि के मामले तो बाद में सामने आए। हालांकि, इसके बाद भी कहा जा रहा है कि ऐसा पहले से होता रहा है। रोकने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई या जरूरत ही नहीं है, इस बारे में मुझे पता नहीं चला। ऐसी हालत में छिट-पुट खबरें आती रहती है। कल टेलीग्राफ में दिल्ली से 90 मिनट की दूरी पर जेवर जिले के एक गांव का जिक्र द टेलीग्राफ में था और बताया गया था कि तृणमूल नेताओं की गिरफ्तारी इन्हीं खबरों से ध्यान हटाने के लिए हैं। आज द हिन्दू में दादरी के गांव का हाल छपा है। इस खबर के अनुसार, गांव वालों ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार पर्याप्त टेस्टिंग, स्वास्थ्य की प्राथमिक देखभाल और इमरजेंसी सुविधाएं मुहैया करवाने में नाकाम रही है। 

 

द टेलीग्राफ 

आज एक गुजराती कविता की चर्चा लीड है। 14 लाइन की इस गुजराती कविता पर 48 घंटे में 28 हजार गालियों का रिकार्ड है। द टेलीग्राफ ने बताया है कि कवयित्री, 51 साल की पारुल खख्खर मुख्य रूप से रोमांटिक कविताएं लिखती हैं। उनकी इस कविता का अनुवाद अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी और कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में हो चुका है। पेश है गुजराती से हिन्दी अनुवाद जो इलियास शेख ने किया है।

 

साहब तुम्हारे राम राज्य में शववाहिनी गंगा 

एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

ख़त्म हुए शमशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी

थके हमारे कंधे सारे, आँखें रह गई कोरी

दर-दर जाकर यमदूत खेले

मौत का नाच बेढंगा

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

नित लगातार जलती चिताएँ

राहत माँगे पलभर

नित लगातार टूटे चूड़ियाँ

कुटती छाति घर घर

देख लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति

काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, न मोती

हो हिम्मत तो आके बोलो

‘मेरा साहेब नंगा ’

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

द टेलीग्राफ में यह खबर मेहुल देवकला ने लिखी है जो बड़ौदा में रहने वाली गुजराती कवि हैं और पुरस्कार प्राप्त फिल्म निर्माता हैं। पारुल ने यह कविता 11 मई को अपने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की थी। उसके बाद से यह सोशल मीडिया पर धूम मचा रही थी। 

टेलीग्राफ में तृणमूल नेताओं की जमानत रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर एक टिप्पणी भी है। इसमें कहा गया है कि इसपर कइयों ने आश्चर्य जताया है क्योंकि अपनी लिखित अपील में सीबीआई ने न तो आदेश की वैधता को चुनौती दी थी न ही जमानत आदेश पर कोई स्टे मांगा था। आमतौर पर ऐसे मामलों में जमानत हो ही जाती है। खबर के अनुसार लिखित अपील में जमानत रद्द करने की कोई मांग नहीं है लेकिन सीबीआई के वकील ने मौखिक रूप से बुधवार तक स्टे करने की अपील की। इस मामले में जिस ढंग से कार्रवाई चल रही है और कल जितनी प्रमुखता से यह खबर छपी थी उस लिहाज से पाठकों को यह सब भी जानने का हक है। लेकिन बताए कौन?

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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