पहला पन्ना: GST वसूली बढ़ने का प्रचार और बत्रा अस्पताल में 12 मरे तो ‘फिर’ गायब !!

दिल्ली के बत्रा अस्पताल में फिर 12 लोगों की मौत ही गई। यह दिल्ली के अखबारों के लिए आज निश्चित रूप से सबसे बड़ी खबर है। जो खबरें हैं उनके आलोक में इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता है। इस खबर के शीर्षक मेंफिरपूरी खबर से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड नहीं है। वहां मतगणना की खबर लीड है। ऑक्सीजन से मौत की खबर का शीर्षक है, ऑक्सीजन कम हो जाने से 12 मरे इनमें सीनियर डॉक्टर भी कहने की जरूरत नहीं है कि देश की राजधानी में इतने हंगामे के बाद कुछ ही दिन के अंतराल पर ऑक्सीजन की कमी से एक दो नहीं 12 मरीजों की मौत हो गई और अखबार बता रहा है कि मरने वालों में सीनियरक डॉक्टर भी हैं। बाकी सब तो ऐसे जैसे बहुत आम बात हो। हालांकि, आम बात हो ही गई है। लेकिन क्या इस पर कोई चिन्ता नहीं करतनी है? जो चल रहा है वह सामान्य है और स्वीकार कर लिया जाना चाहिए? टाइम्स ऑफ इंडिया में भी इस खबर का शीर्षक आम है। हिन्दू मेंफिरकी जगह अंग्रेजी के मोर यानीऔरहै। अकले इंडियन एक्सप्रेस के शीर्षक में अंग्रेजी के अगेन यानीफिरशब्द का उपयोग किया गया है।

ऑक्सीजन की कमी से बत्रा अस्पताल के अलावा गुड़गांव में छह, उत्तर प्रदेश में 31, आंध्रप्रदेश के दो अस्पतालों में 16 व्यक्तियों की मौत हुई। इनमें दिल्ली के 12 जोड़ दिए जाएं तो देश भर में ऑक्सीजन की कमी से एक दिन में 65 व्यक्तियों की मौत हुई। यह संख्या किसी भी तरह से सामान्य नहीं है पर दिल्ली के 12 को अलग करके छापा गया है। बाकी खबरें अलगअलग टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर हैं। मैं नहीं जानता कि यह इरादतन है या किसी मजबूरी के कारण लेकिन यह भी टाइम्स ऑफ इंडिया में ही है। आपको याद होगा कि महाराष्ट्र में कोरोना बढ़ रहा था तो अखबारों में पूरे राज्य का विवरण कितनी प्रमुखता से छप रहा था। अब देश भर में ऑक्सीजन की कमी से मरने वालों की एक खबर किसी एक अखबार में दिखी क्या?

सरकार का प्रचार करने वाले दिल्ली के इन अखबारों में जीएसटी वसूली बढ़ने की खबर पहले पन्ने पर है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह सिंगल कॉलम में है लेकिन बाकी के तीन अखबारोंहिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दू में दो कॉलम में है। टाइम्स ऑफ इंडिया को छोड़कर बाकी के दो अखबारोंहिन्दुस्तान टाइम्स ऑफ इंडियन एक्सप्रेस में यह सरकारी प्रचार बाईलाइन के साथ है और हिन्दू में विशेष संवाददाता ने की है यानी करवाई गई है। होने को तो यह सरकारी विज्ञप्ति है पर उसे बाईलाइन या विशेष संवाददाता से करवाने का मतलब है खबर को महत्व देना या मांगा जाना। कई कारणों से यह खबर प्रचार है और पहले पन्ने के लायक नहीं है। और एक कारण इंडियन एक्सप्रेस ने एक्सप्लेन्ड में बताया है। इसके अनुसार, महामारी के कारण छोटे असंगठित विक्रेता कारोबार से बाहर हो गए हैं। उनकी जगह संगठित क्षेत्र के बड़े कारोबारियों ने ली है जो टैक्स की जद में हैं। 

स्पष्ट है कि इससे उपभोक्ता को जो सामान पहले बिना टैक्स के मिल जाते थे वे अब टैक्स देकर ही मिलते हैं। महामारी में यह जबरन वसूली की तरह है और इसमें प्रचारित करने लायक कुछ नहीं है लेकिन सरकार इसकी आड़ में दावा कर रही है कि इससे आर्थिक स्थिति सुधर रही है। सरकार और सरकारी पार्टी की ऐसी घोषणाएं हवा हवाई साबित होती रही हैं पर मीडिया को ऐसी प्रचार वाली खबरें छापने से कोई परहेज नहीं रहा। ना वे बाद में ऐसी खबरों की पोल खोलते हैं। जीएसटी वसूली बढ़ने की खबर को सरकार एक अभियान की तरह छपवा रही है और अमूमन बिजनेस पन्ने पर छपने वाली खबर पहले पन्ने पर छप रही है। 

पश्चिम बंगाल पर कब्जे की भाजपा की बेशर्म और नंगी कोशिशों के साथ एक महीने से ज्यादा चले चुनाव के लिए मतगणना आज चल रही है। यह महीने भर पुरानी खबर है और महीने भर में कई बार छप चुकी है। इस खबर को महत्व देने वाले अखबार ने पहले पन्ने पर यह नहीं छापा है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है, बहुत हुआ, पानी अब सर से ऊपर है (टाइम्स ऑफ इंडिया) हिन्दुस्तान टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए आधीरात की डेडलाइन निर्धारित की। 

इसी तरह, अखबारों ने यह नहीं बताया कि जब बंगाल के विधानसभा चुनाव को जबरन खींच कर आठ चरण में करवाया जा रहा था और इससे महामारी फैल रही थीं, उम्मीदवारों की भी मौत हुई तब हमारे चुनाव आयोग ने  केरल में राज्यसभा का चुनाव टाल दिया था। 25 साल की परंपरा तोड़ दी थी और हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला दुरुस्त हुआ (इंडियन एक्सप्रेस) आप जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में मतदान 29 अप्रैल तक हुए। चुनावी रैलियां कब कैसे हुईं और प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री का भाषण तथा चुनाव प्रचार कब तक चलता रहा और फिर कब विजय जुलूस पर रोक लगी या मतगणना में भाग लेने वालों के लिए नए नियम बनें। लेकिन केरल का राज्य सभा चुनाव बहुत पहले रद्द कर दिया गया था। भला हो केरल हाईकोर्ट का कि उसके हस्तक्षेप के बाद मामला निपटा। 

ऐसा चुनाव आयोग अपनी छवि को लेकर बहुत परेशान है। कल पता चला था कि मद्रास हाईकोर्ट ने उसकी अपील नहीं मानी तो आज खबर है कि अब उसने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है। बेशक यह खबर है और लोगों को चुनाव आयोग की दलीलें जाननें का हक है। परन्तु अखबारों को चुनाव आयोग का प्रचारक नहीं बन जाना चाहिए। लेकिन चुनाव आयोग स्वतंत्रता के नाम पर मनमानी करे, अपना काम ढंग से करने में हाई कोर्ट की नाराजगी झेले तो टिप्पणियों को प्रचारित करने से रोकने के लिए अदालती आदेश जारी करवानी की कोशिश उसी संवैधानिक अधिकार का दुरुपयोग है जिसे प्रचारित किए जाने से रोकने की कोशिश चल रही है। यह कल की खबर का फॉलो अप भी है। निश्चित रूप से इसे पहले पन्ने पर होना चाहिए था।    

इसी तरह, टीके की कमी और कीमत बढ़ाकर 18 साल से ऊपर के लोगों के लिए टीका लगाने की शुरुआत करने की खबर सभी अखबारों में प्रमुखता से है। पर यह नहीं पता और शायद सरकार ने अभी तक तय नहीं किया है कि गरीबों को टीका कैसे लगेगा। टीके का स्टॉक कैसे आएगा और जो अपने टीके का खर्चा नहीं उठा सकते हैं उनका खर्चा कौन कैसे उठाएगा इस बारे में कोई विवरण नहीं है। अखबारों में टीकाकरण की शुरुआत हो गई यह प्रचार जरूर है। प्रचार की भूखी या प्रचार के प्राणवायु से चलने वाली यह सरकार सिर्फ रिकार्ड बनाने में भरोसा करती है और रिकार्ड बनाने के बाद दूसरा प्रचार अभियान शुरू कर देती है। टीके का मामले में भी यही हो रहा है जबकि टीका लगवा चुके लोगों की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है कि सबको जल्दी से जल्दी टीका लगे। इसमें पहले ही देर हो चुकी है पर सरकार बेपरवाह है।

गले तक डूब कर सरकारी प्रचार कर रहे इन अखबारों के बारे में यह बताने का कोई मतलब नहीं है कि सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार से राष्ट्रीय कोविड योजना बनाने की मांग की है और कांग्रेस प्रमुख ने कई सुझाव दिए हैं। पर अखबारों ने इसे भी पहले पन्ने पर प्रमुखता से नहीं छापा है जबकि टेलीग्राफ में यह खबर लीड है। टेलीग्राफ के पहले पन्ने पर चार कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, दैनिक संक्रमण चार लाख पार। इसके साथ ऑक्सीजन का सिलेंडर कंधे पर रखकर ले जाते एक व्यक्ति की तस्वीर के साथ बताया गया है ऑक्सीजन की कमी के कारण दिल्ली में एक वरिष्ठ डॉक्टर की मौत सात अन्य कोविड मरीजों के साथ अपने ही अस्पताल में हो गई। जल्ती चिताओं के बीच पटरे पर शव ले जाते चार लोगों की तस्वीर बताती है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर की आस में  सरकार चुनने वालों को राजधानी में मरने पर बांस की पारंपरिक अर्थी भी नसीब नहीं हो रही है। लेकिन इसकी परवाह किसे है

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं। 

 

 

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