पहला पन्ना: इंडियन एक्सप्रेस सत्तारूढ़ दल की सेवा का पूरा पैकेज लिए बैठा है!

वैसे तो आज पांच में से चार अखबारों में दिल्ली के ऑक्सीजन कोटा से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खबर लीड है। इनमें बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया है कि दिल्ली के लिए रोज 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का कोटा सुनिश्चित किया जाए। अव्वल तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश प्रमुखता से प्रकाशित करने में अखबारों को कोई डर नहीं होना चाहिए और ऐसी खबरें छापना सरकार के खिलाफ होना भी नहीं है। लेकिन ऑक्सीजन के मामले में सरकार अभी तक जो कर रही थी उसका पता तो चलता ही है। अखबारों ने सरकार की इस ढिलाई पर क्या किया वह आप जानते हैं। और यह भी कि 15 दिन हो गएसैकड़ों लोग मर गए फिर भी और अब केंद्र सरकार को उसका दायित्व सुप्रीम कोर्ट को बताना पड़ रहा है। यह उस सरकार का हाल है जिसका मुखिया खुद को प्रधानसेवक कहता था।  

 

हेडलाइन मैनेजमेंट 

इस मुश्किल समय में जब केंद्र सरकार जरूरत भर ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं कर रही है तो क्या कर रही है यह समझना हो तो आज ही अखबारों में खबर है, “ऑक्सीजन रैकेट : खान मार्केट के भोजनालयों से और कनसेनट्रेटर जब्त हुए” (इंडियन एक्सप्रेस) दूसरी खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में है। इसका शीर्षक है, “और ऑक्सीनज कनसेनट्रेटर जब्त, मैट्रिक्स सीईओ गिरफ्तार।वैसे तो यह सामान्य खबर है और ऑक्सीजन से संबंधित है इसलिए बिना विवरण भी पहले पन्ने पर रखी जा सकती है लेकिन असल में यह हेडलाइन मैनेजमेंट का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश साफ है और केंद्र सरकार की ढिलाई के लिए खिंचाई भले की गई हो, कार्रवाई की चेतावनी भी है। इस खबर के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए यह बताना जरूरी है कि सरकार काम कर रही है। मैट्रिक्स के सीईओ को गिरफ्तार कर लिया गया है। 

मैं नहीं जानता कि पूरा मामला है क्या और जो खबरें आई हैं उससे बात साफ नहीं है। बहुत संभावना है कि अपराध वह हो ही नहीं जो बताया जा रहा है तथा बाद में मामला कुछ और निकले। ऐसा पहले भी होता रहा है। इन दिनों आम है, इसलिए थोड़ी चर्चा उसकी भी। आप जानते हैं कि ऑक्सीजन की कमी का मामला 15 दिन से चल रहा है। सिलेंडर में ऑक्सीजन भरकर अस्पताल में जगह नहीं होने के कारण घर पर ही मरीज को ऑक्सीजन देना साधारण काम नहीं है और हर किसी के बूते का तो नहीं ही है। अव्वल तो ऑक्सीजन और सिलेंडर कहां मिलते हैं यही पता करना मुश्किल है और यह दवाइयों की तरह नहीं बिकता। एक विकल्प ऑक्सीजन कनसेनट्रेटर का है औरआपदा में अवसरसे प्रेरित अगर किसीखून में व्यापारवाले को समय रहते इसका बाजार समझ में आया होगा तो उसने अपनी क्षमता भर आयात कर लिया होगा और यह नियमानुसार ही हुआ होगा। 

अब अगर उसकी जमाखोरी का आरोप है तो सरकार असल में उसका वितरण (वाजिब पैसे लेकर, ज्यादा पैसे वसूलकर या मुफ्त में) रोक रही है और इतने समय तक बाधित तो किया ही है। असल में कनसेनट्रेटर बाजार में आमतौर पर मिलने वाला आयटम नहीं है। इसके बारे में जानने वाले लोग भी बहुत कम हैं और यह सिलेंडर का विकल्प भी नहीं है। कुल मिलाकर, जीवनरक्षक होने के बावजूद अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित करने से कम ही महत्वपूर्ण है। वैसे भी बेचने या बांटने के लिए अगर कोई ज्यादा मशीनें मंगाएगा तो उसमें समय लगेगा और गिरफ्तारी के डर से आयात करने वाला भूमिगत हो जाए तो सच कैसे पता चलेगा? अखबारों में मीडिया ट्रायल चलता रहता है और यह भी ऐसा ही एक मामला लगता है। अगर सरकार यह सब नहीं कर रही होती तो जरूरतमंद कुछ ज्यादा पैसे देकर भी अपने मरीज की जान बचा सकते थे जबकि सरकार ने ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं करके और हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर आम जनता का ज्यादा नुकसान किया है। 

 


द टेलीग्राफ
आज भी सभी अखबारों से अलग है 

छह कॉलम की इसकी मुख्य खबर का शीर्षक है, उदासीनता का कुचल देने वाला भार। इसका फ्लैग शीर्षक है, सिस्टम नाकाम नहीं हुआ है, भारत राजनीतिक नेतृत्व से लाचार है। निश्चित रूप से यह एक राय हो सकती है और सोनिया गांधी ने यह राय रखी है तो निश्चित रूप से खबर है। लेकिन द हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस में यह पहले पन्ने पर नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया में सिंगल कॉलम में है और हिन्दुस्तान टाइम्स में दो कॉलम में। इसी तरह, बंगाल में हिंसा की खबरें अखबारों में तो नहीं हैं लेकिन द टेलीग्राफ ने बताया है कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने इसपर विचार करने के लिए एक दुर्लभ खंडपीठ का गठन किया है तथा ऐसी पीठ का गठन आज से 16 साल पहले किया गया था। इसी खबर में अखबार ने बताया है कि हिंसा से अभी तक 25 लोगों की मौत का आरोप है। इनमें 15 भाजपा के हैं और आठ तृणमूल के और दो संयुक्त मोर्चा के। ऐसे में यह कैसे मानना जाए कि हिंसा सिर्फ तृणमूल कांग्रेस कर रही है। इसके साथ ही ममता बनर्जी ने शपथग्रहण के बाद यह सुनिश्चित करने के लिए काम किए हैं जिससे हिंसा रुके। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में अपील भी की है कि हरेक नागरिक को निशुल्क टीका लगे। संभव है दिल्ली के अखबारों में ये खबर अंदर हों। लेकिन एक दिलचस्प खबर जो कल सोशल मीडिया पर थी आज सिर्फ टेलीग्राफ में है। वह यह कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री के फोन कॉल पर ट्वीट किया था, आज आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने फोन किया। उन्होंने सिर्फ मन की बात की। बेहतर होता यदि वे काम की बात करते और काम की बात सुनते। आज के समय में ऐसी बात कोई मुख्यमंत्री कहे और वह पहले पन्ने पर न हो – यह भी खबर है।

 

 

 

आइए, अब मुख्य खबरों की प्रस्तुति देखें

आज सबसे अच्छा शीर्षक इंडियन एक्सप्रेस का है। ऑक्सीजन संकट पर सुनवाईफ्लैग शीर्षक वाली इस खबर का शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के लिए ज्यादा ऑक्सीजन का समर्थन किया, केंद्र से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि दिल्ली को 700 मीट्रिक टन मिले। दरअसल, डबलइंजन वाले कर्नाटक के मामले में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी और उसे राहत नहीं मिली। हिन्दू में दिल्ली और कर्नाटक की खबरें दो शीर्षक से आसपास ही हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि राज्य को रोज 1200 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाए। केंद्र सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में थी और सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को वाजिब माना और कहा है कि राज्य सरकार ने 1800 टन ऑक्सीजन की जरूरत बताई थी। ऐसे में 1200 टन की सप्लाई सुनिश्चित करने का आदेश ठीक है। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, “सुप्रीम कोर्ट ने (केंद्र को) दिल्ली का ऑक्सीजन कोटा पूर्ण नहीं होने पर आवश्यक कार्रवाई की चेतावनी दी। इस खबर के साथ अखबार ने बताया है कि गांवों में दूसरी लहर पहले के मुकाबले बहुत तेजी से फैल रही है, रोज मरने वालों की संख्या 4000 पर पहुंच गई है। यही नहीं, अखबार ने सोनिया गांधी की अपील भी छापी है कि सरकार को लोगों के साथ  सहानुभूति दिखानी चाहिए। यही नहीं, सेंट्रल विस्टा का खर्चीला काम रोकने के लिए भी लोगों को अदालत की शरण लेनी पड़ रही है और अखबार ऐसी खबरें बतौर सूचना छाप रहे हैं। कायदे से आज किसी अखबार को उत्तर प्रदेश का हाल बताना चाहिए था। 

इंडियन एक्सप्रेस में कल शुरू हुई श्रृंखला के तहत आज सहारनपुर जिले की कहानी है। शीर्षक से पता चलता है कि सक्रिय मामले गए साल के अधिकतम से तीन गुना ज्यादा हैं। कल ही न्यूजफ्रंट का एक वीडियो देख रहा था। इसमें बताया गया है कि यह अभी और तीन गुना हो सकता है। इस लिहाज से तैयारियां कितनी होनी चाहिए और अखबारों में कितने की खबर है यह आप समझ सकते हैं। सहारनपुर की खबर यह है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बंद है, सीएचसी को अभी तक कोविड सेंटर घोषित नहीं किया गया है और दोंनों टीकों के स्टॉक का इंतजार कर रहे हैं। 

 

 

चुनाव आयोग की छवि 

चुनाव आयोग के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी और उस पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया, सुप्रीम कोर्ट में अपील आदि के बाद या साथ इंडियन एक्सप्रेस चुनाव आयोग की छवि बनाने का अभियान चला रहा है। आयोग के तीन में से एक सदस्य को आयोग के फैसले का विरोधी बताकर उनके हवाले से यह बताने की कोशिश की है कि चुनाव आयोग ने हरेक पहलू पर विचार किया था और यह भी कि चुनाव टालकर अगर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता तो यह चुनाव आयोग के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता था। आप जानते हैं कि मामला चुनाव कराने और नहीं कराने का नहीं, बंगाल का चुनाव एक महीने से ज्यादा और आठ चरणों में कराने का है और बाद में कोरोना के कारण तीन चरणों को एक साथ करा लेने के सुझाव का है। एक्सप्रेस की आज कीखबरमें सबका जवाब है। और चुनाव करवाने की जो मजबूरी ट्रोल सेना अभी तक सरकार के पक्ष में बताती थी वही दलील असहमति जताने वाले सदस्य के हवाले से अब ज्यादा व्यवस्थित तरीके से पेश की जा रही है और निश्चित रूप से यह भी हेडलाइन मैनेजमेंट का हिस्सा है।   

केंद्र सरकार के बेरोजगार युवा समर्थकों को छोड़कर पुराने लोग जानते हैं कि चुनाव आयोग पहले एक सदस्यीय ही होता था और अकेले टीएन शेषन ने चुनाव आयोग को किन बुलंदियों पर पहुंचा दिया था और उससे राजनीतिक दलों को क्या परेशानियां हुई थीं। उसके बाद ही आयोग को तीन सदस्यीय बनाया गया गया और असहमति के बावजूद सरकार का समर्थन करने की अघोषित व्यवस्था हुई। पर यह अखबारों की खबरों का विषय नहीं हो सकता है और आजकल जब लोगों ने पढ़ना बंद कर दिया है और सूचनाओं के साथ ज्ञान के लिए टेलीविजन, अखबार और व्हाट्सऐप्प पर ही निर्भर हैं तो अखबार भी मौके का फायदा उठा रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस सत्तारूढ़ दल की सेवा का पूरा पैकेज लिए बैठा है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 

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