डॉ.स्कन्द शुक्ल
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन चिकित्सा के सर्वाधिक प्रतिष्ठित जर्नलों में से एक है। इसमें एक चीनी शोध छपा जिसने तीस राज्यों के 552 अस्पतालों के एक-हज़ार से भी अधिक रोगियों का अध्ययन था। इसमें लगभग 12.6 प्रतिशत लोग ही वर्तमान में धूमपान कर रहे थे, जबकि चीन में लगभग पचास प्रतिशत से ऊपर पुरुष और लगभग पच्चीस प्रतिशत महिलाएँ धूमपान करती हैं। लेकिन सभी कोविड-रोगियों का धूमपान से सम्बन्ध देखने के बाद जब हम गम्भीर रोगियों का अध्ययन करते हैं ( जिन्हें फेफड़ों में अधिक बुरी क्षति पहुँची है , जो वेंटिलेटर पर हैं और जो मर रहे हैं ) तब धूमपान अधिक देखने को मिलता है।
फिर फ्रांस से शोध के नतीजे आये। पस्तेर संस्थान में सात-सौ लोगों का आँकड़ा प्रस्तुत किया गया जिसमें धूमपान करने वालों में कोविड-संक्रमण की दर न करने वालों की एक-चौथाई पायी गयी। फ्रांस में भी सिगरेट-पान की सामान्य प्रचलन-दर पच्चीस प्रतिशत के आसपास ही है। इसके बाद फ्रांस ही के एक उच्चतम चिकित्सा-संस्थान पीतिए स्लपेत्रिए ( Pitié-Salpêtrière ) में किये गये प्रश्नोत्तरीय शोध में 483 कोविड-संक्रमित लोगों में केवल पाँच प्रतिशत धूमपान करते पाये गये। प्रसिद्ध न्यूरोबायलोजिस्ट ज़ॉ पिए शॉन्गज़ो ( Jean-Pierre Changeux , फ़्रांसीसी उच्चारण के लिए क्षमा ) ने इन शोधों का अध्ययन किया है। उनके अनुसार सिगरेट में मौजूद निकोटीन उन्हीं रिसेप्टरों से चिपकता है, जिनसे सार्स-सीओवी 2 विषाणु। इस कारण फेफड़े की कोशिकाओं में सम्भवतः विषाणु का प्रवेश मुश्किल हो जाता है।
इन ख़बरों के आने के बाद फ़्रांस-सरकार ने अपने देश में निकोटीन-उत्पादों पर बैन लगा दिया है। इस बात का भी अन्देशा है कि दुनिया-भर के लोग विज्ञान की आधी-अधूरी ख़बरों को सुन या पढ़कर उसी तरह निकोटीन-उत्पाद ख़रीदने लगेंगे , जैसे वे हायड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन व अन्य दवा के लिए काला-बाज़ारी करने लगे थे। यह समय भय-दोहन का है : जिस दवा, रसायन, जड़ी-बूटी का कोई पढ़ा-लिखा या उच्च पद पर बैठा व्यक्ति नाम-भर के ले, उसकी सेल आसमान छूने लगेगी।
तीन बातें सबक के रूप में हमें ग्रहण करनी चाहिए :
1 ) सिगरेट और निकोटीन एक नहीं हैं। सिगरेट में निकोटीन है, किन्तु अनेक अन्य रसायन भी हैं। निकोटीन का सार्स-सीओवी 2 विषाणु के रिसेप्टरों से चिपक कर उसे कोशिकाओं के भीतर प्रवेश न करने देना अभी सिद्ध और पुष्ट नहीं हुआ है। हाँ , सिगरेट पीने से फेफड़ों को होने वाली अनेक दूसरी हानियाँ सिद्ध-पुष्ट हैं। ( यहाँ तक कि धूमपान से फेफड़ों में एसीई-2 रिसप्टरों की उपस्थिति बढ़ भी जाती है, जिससे विषाणु का प्रवेश आसान भी हो जाता है। यानी निकोटीन एक ओर विषाणु-प्रवेश से कोशिकाओं के दरवाज़ों पर संघर्ष रहा है, तो दूसरी ओर धूमपान विषाणु के प्रवेश के नये-नये दरवाज़े खोल भी रहा है! )
2 ) अब-तक सिगरेट के धुएँ को लेकर किसी देश में कोई रैण्डमाइज़्ड कंट्रोल ट्रायल नहीं किया गया है। जो शोध आये हैं, वे केवल आंकड़ों को जमा करके मिले हैं। कोविड-संक्रमित लोगों से सवाल-जवाब करके। आप सिगरेट पीते हैं या नहीं पीते हैं? प्रश्नोत्तरीय ढंग से किये गये ऐसे शोध उत्तम कोटि के नहीं माने जाते। और बेहतर व व्यापक शोधों की ज़रूरत है।
3 ) जो सिगरेट पीते हैं, क्या वे निकोटीन-पैच या चूइंग गम लें? यह उपाय तो सिगरेट छुड़वाने के लिए काफ़ी समय से इस्तेमाल हो रहा है। सिगरेट की लत निकोटीन की लत है, किन्तु सिगरेट की हानियाँ केवल निकोटीन की हानियाँ नहीं हैं। सिगरेट में हज़ारों कैंसर व अन्य रोगकारक रसायन होते हैं। लेकिन जो सिगरेट नहीं पीते हैं, क्या उन्हें निकोटीन-उत्पाद लेने चाहिए? बिल्कुल नहीं।
इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि ऐसे धुँधले शोधों से सिगरेट-कम्पनियों की आँखों में चमक आ जाती है। डर से बिक्री जितनी बढ़ सके, बढ़ जाए! धन्धा वैसे ही कई वजहों से मन्दा चल रहा है !
वैज्ञानिकों के लिए यदि निकोटीन और कोविड-19 के बीच सम्बन्ध सार्थक निकला तब? बड़े रैण्डमाइज़्ड कंट्रोल ट्रायल भी यही नतीजे लाये तब? तब फार्माकोलॉजिस्ट निकोटीन से मिलती-जुलती संरचना वाले ऐसे रसायनों का निर्माण करने में जुटेंगे जो फेफड़े के कोशिका के रिसेप्टर से चिपक कर उसके भीतर विषाणु की एंट्री रोक सके। ऐसी निकोटीनीय दवाएँ भविष्य में विषाणुरोधी सिद्ध हो सकती हैं।
किन्तु ऐसा होने में अभी बहुत देर है। शोध अधपके-अधूरे हैं, उन्हें पकाया और पूरा जा रहा है। ऐसे में सिगरेट पीने से जितनी दूरी बनायी व रखी जा सके, उतना बेहतर होगा।
(पेशे से चिकित्सक (एम.डी.मेडिसिन) डॉ.स्कन्द शुक्ल संवेदनशील कवि और उपन्यासकार भी हैं। लखनऊ में रहते हैं। इन दिनों वे शरीर से लेकर ब्रह्माण्ड तक की तमाम जटिलताओं के वैज्ञानिक कारणों को सरल हिंदी में समझाने का अभियान चला रहे हैं।)