पहला पन्ना: TMC के चार बड़े नेता तीसरी रात हिरासत में पर ख़बर है जयशंकर की डिप्लोमैसी!

नारदा मामले में गिरफ्तार तृणमूल नेताओं के मामले पर बुधवार को कलकत्ता हाईकोर्ट में सुनवाई होनी थी। कायदे से आज की प्रमुख खबर यही होनी चाहिए थी कि हाईकोर्ट में क्या हुआ। वैसे तो अखबारों में आने तक मामला पुराना हो जाता है और टेलीविजन कान पका चुके होते हैं। पर मैं टेलीविजन नहीं देखता और दूसरे स्रोतों से भी कल (19 मई 2021) दिन भर कोई खबर नहीं मिली। मामला ऐसा था कि जमानत मिल जाती तो और नहीं मिलती तो भी, खबर बड़ी होती। दो मंत्रियों को चुनाव जीतने और मंत्री बनने के तुरंत बाद जेल भेज दिया जाना, नदी में लाश मिलने की तरह कोई आम बात तो है नहीं। इसलिए, देर रात मैंने चेक किया तो पता चला कि सुनवाई पूरी नहीं हुई। खबर के लिहाज से यह दिलचस्प स्थिति है। 

मामला ऐसा है कि जमानत हो ही जाती है। निचली अदालत ने जमानत दे ही दी थी। फिर भी हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी वाले दिन ही मामले की सुनवाई कर ली और ‘स्टे’ हो गया था। इसपर सोशल मीडिया में पर्याप्त चर्चा है। फिर भी, अगले दिन सुनवाई हुई तो मामला खत्म नहीं हुआ। यह अगर सामान्य है तो खबर देने में क्या दिक्कत है? अपनी तरह का अनूठा मामला है तो पहले पन्ने पर क्यों नहीं होना चाहिए? कोई फैसला नहीं हुआ – यह ज्यादा महत्वपूर्ण खबर है। इसके अलावा, ऐसा नहीं है कि इस मामले में कोई खबर ही नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर खबर है, नारदा मामले की सुनवाई राज्य के बाहर करने की मांग पर सीबीआई ने मुख्य मंत्री ममता बनर्जी को भी पार्टी बनाया है। राज्य के दो मंत्री और दो वरिष्ठ नेता तीसरी रात न्यायिक हिरासत में रहे यह अपने आप में बड़ी खबर है। पहले ऐसा हुआ भी हो तो मुझे याद नहीं है कि केंद्र सरकार के चुनाव हारने के बाद किसी राज्य में ऐसा हुआ हो। 

इसके बावजूद इंडियन एक्सप्रेस में सरकारी खबर है, सीबीआई ने तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं को गिरफ्तार करने के तुरंत बाद चार्जशीट दायर की। इसमें कहा गया है कि बाकी आरोपियों के खिलाफ आगे की जांच के लिए अनुमति दी जाए। मैं नहीं जानता यह राज्यपाल से औपचारिक अनुमति मांगना हुआ या विधायक के मामले में एफआईआर का भाग है। मैं यह नहीं कह सकता कि कार्रवाई अनुमति मिलने के बाद सबके खिलाफ एक साथ होनी चाहिए थी। विधायकों के मामले में विधानसभा अध्यक्ष से अनुमति लेने का भी कोई नियम है पर अभी वह ठंडे बस्ते हैं। यह अपने आप में गौरतलब है कि राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक, नेता, मंत्री के मामले में अनुमति मिल गई और भाजपा नेताओं के मामले में नहीं मिली। यहां तक कि एक नेता जो पिछले विधानसभा चुनाव से कुछ ही पहले भाजपा छोड़कर और वापस तृणमूल में आ गए उनके खिलाफ भी अनुमति मिल गई लेकिन जो भाजपा में (रह गए) हैं उनके खिलाफ चार्जशीट अब दायर हो रही है। 

इंडियन एक्सप्रेस की इस खबर का शीर्षक है, “अधिकारी, मुकुल राय : सीबीआई चार्जशीट बाकी आरोपियों के खिलाफ जांच की अनुमति चाहती है।” शीर्षक से ही यह खबर सीबीआई की चार्जशीट का प्रचार लग रही है जबकि पानी की तरह साफ है कि एक ही मामले में भाजपा नेताओं के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल नहीं हुई थी और तृणमूल के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने की अपनी खबर में बताया है कि हाईकोर्ट में आज फिर सुनवाई होगी। इस खबर में अखबार ने बताया है कि कल अदालत में क्या दलील दी गई। इसमें सीबीआई की मनमानी से संबंधित कई मुद्दे हैं। यह दिलचस्प है कि कल सुनवाई के दौरान जब मामले को टालने की स्थिति आ ही गई और आज सुनवाई जारी रखने की बात हुई तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (केंद्र सरकार के वकील सीबीआई का पक्ष रख रहे थे) ने कहा कि कल के बाद यानी एक दिन बाद सुनवाई हो ताकि एक दिन और मिल जाए। आखिरकार पीठ ने कहा कि आज दो बजे सुनवाई शुरू होगी। इस मामले में दलील और जवाब पढ़ने लायक है पता नहीं हिन्दी अखबारों में है कि नहीं। मीडिया वाले जब पुलिस लीक चटखारे लेकर छापते हैं तो अदालत में दी जाने वाली दलीलें भी छाप सकते हैं। सुनवाई बंद कमरे में न हो तो सब सार्वजनिक होता ही है। 

 

विदेश मंत्री की घटिया राजनीतिक डिप्लोमैसी 

आज दूसरा दिलचस्प मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का आरोप है। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर लीड के साथ की खबर का शीर्षक है, “डॉ. जयशंकर की कोविड डिप्लोमैसी : दिल्ली के मुख्यमंत्री भारत के लिए नहीं बोलते हैं।” आप जानते हैं कि डॉ. जयशंकर राजनेता नहीं हैं और विदेश सेवा के चुने हुए अधिकारी हैं जो रिटायर होने के बाद केंद्रीय मंत्री बना दिए गए हैं। उसी विभाग में जहां एमजे अकबर सुषमा स्वराज के जूनियर थे। राजनीति यही है पर यहां डिप्लोमैसी की बात हो रही है। अरविन्द केजरीवाल के मामले में वे जो डिप्लोमैसी कर रहे हैं वह यह कि सिंगापुर ने कथित रूप से अरविन्द केजरीवाल के एक बयान का गंभीर विरोध किया है।    

आप जानते हैं कि कोविड महामारी ही विदेशी है और अब यह पुरानी बात हो गई कि विदेश से आने वालों को समय रहते रोक दिया गया होता तो यह बीमारी रोकी जा सकती थी। पर पहली बार तो छोड़िए हम दूसरे स्ट्रेन को भी नहीं रोक पाए और अब तो देश में कई स्ट्रेन हैं। इसी क्रम में केजरीवाल ने कहा कि एक स्ट्रेन सिंगापुर में फैला हुआ है जो बच्चों को प्रभावित कर रहा है और उसे रोका जाना चाहिए। इसपर केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ट्वीट कर चुके हैं, “केजरीवाल जी, मार्च 2020 से ही अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें बंद हैं। सिंगापुर के साथ एयर बबल भी नहीं है। बस कुछ वन्दे भारत उड़ानों से हम वहाँ फँसे भारतीय लोगों को वापस लाते हैं। ये हमारे अपने ही लोग हैं। फिर भी स्थिति पर हमारी नज़र है। सभी सावधानियाँ बरती जा रही हैं।” 

यह एक मुख्यमंत्री को स्कूल मास्टर की तरह पढ़ाना है जबकि अरविन्द केजरीवाल का ट्वीट था, “सिंगापुर से आया कोरोना का नया रूप बच्चों के लिए बेहद खतरनाक बताया जा रहा है, भारत में यह तीसरी लहर के रूप में आ सकता है। केंद्र सरकार से मेरी अपील : 1) सिंगापुर के साथ हवाई सेवाएं तत्काल प्रभाव से रद्द हों, बच्चों के लिए भी वैक्सीन के विकल्पों पर प्राथमिकता के आधार पर काम हो। 2) बच्चों के लिए वैक्सीन के विकल्पों पर प्राथमिकता के आधार पर काम हो। स्पष्ट है कि केजरीवाल के ट्वीट में कुछ आपत्तिजनक नहीं है। अगर उन्हें सिंगापुर के संबंध में कोई सूचना मिली तो क्या उन्हें भारत सरकार को सतर्क नहीं करना चाहिए? क्या बच्चों के लिए टीके की जरूरत नहीं है या बच्चों के लिए टीके की मांग करना या भारत सरकार को सतर्क करना देश हित में काम करना नहीं है? विचित्र स्थिति है। 

केंद्र सरकार ने जो हालात बना रखे हैं उसमें हर कोई जानता है कि किसी मुख्यमंत्री को ऐसी सूचना मिले तो निजी तौर पर केंद्र सरकार को सतर्क करने के प्रयासों का क्या लाभ होगा या कितना होगा। सार्वजनिक रूप से सतर्क करने पर यह हाल है। ठीक है कि यह सिंगापुर को बुरा लगा होगा पर भारत सरकार को कहना चाहिए कि यह हमारा आंतरिक मामला है। आपके यहां नया स्ट्रेन नहीं है या है तो कौन कह रहा है कि आपने ही बनाया है या आप भारत भेजने के जुगाड़ में ही हैं। असल में विदेश सेवा के पूर्व  अधिकारी जयशंकर भी सत्तारूढ़ पार्टी की तरह घटिया राजनीति कर रहे हैं और एक्सप्रेस उसे डिप्लोमैसी कह रहा है। हालांकि दूसरे अखबारों ने अगर इस खबर को महत्व नहीं दिया है तो वह भी पत्रकारिता नहीं है। यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स और द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया में इसका शीर्षक है, सिंगापुर रूपांतर वाले मुख्यमंत्री के बयान ने हंगामा कर दिया है। द हिन्दू में इसका शीर्षक है, “दिल्ली के मुख्यमंत्री भारत के लिए नहीं बोल रहे हैं : जयशंकर। भारत के मुख्यमंत्री भारत के बच्चों और बच्चों के लिए टीके की बात कर रहे हैं इसमें गलत क्या है। विदेश संबंध आपको देखना है देखिए। हम भी देख रहे हैं। 

अब आज की कुछ खबरें जो दूसरे अखबारों में नहीं छपीं। ये खबरें द टेलीग्राफ में हैं। 

  1. उत्तर प्रदेश में ने ऐसे नियम का उल्लेख किया जो शिक्षकों के परिवार को प्रभावित करता है। 1600 मरे, सरकारी सहायता सिर्फ तीन को। (लीड) 
  2. पेट पालने के लिए एक व्यक्ति इस गर्मी में रोज 100 किलोमीटर साइकिल चलाता है
  3. केंद्र सरकार के शक्तिशाली मंत्रियों में एक गडकरी ने कुछ सलाह दी, फिर मुकरे। इससे पता चला कि वे नहीं जानते हैं – दिलचस्प खबर है। 
  4. टूलकिट की साजिश : असली और फर्जी दस्तावेजों का घातक मेल 

कायदे से आज अखबारों को टूलकिट का खुलासा भी करना चाहिए था। लेकिन भारतीय संपादकों में इतनी रीढ़ होती तो लाशें नदी में नहीं बहाई जाती और यह नहीं कहा जाता कि पहले भी बहाई जाती थीं और किसी ने ये नहीं पूछा कि रोकने के लिए आपने क्या किया

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 

 

  

First Published on:
Exit mobile version