बेरोज़गारी पर ताली-थाली तो झाँकी थी, असली पिक्चर बाक़ी है!

रोजगार की मांग को लेकर भोपाल में प्रदर्शन कर रहे छात्र-युवाओं का गिरफ्तार करती पुलिस

 

संवेदनहीनता और क्रूरता की पराकाष्ठा है कि प्रतियोगी छात्र/छात्राएं तथा बेरोजगार युवक/युवतियां जब रोजगार की मांग कर रहे हैं, सात सात साल से अटकी पड़ी परीक्षाओं को अंजाम तक पहुंचाने की मांग कर रहे हैं, तो केंद्र व राज्य सरकारें अपनी आपराधिक नाकामी के लिए उनसे माफी मांगने और उनकी न्यायसंगत मांग को स्वीकार करने की बजाय उनके दमन पर उतारू हैं।

इलाहाबाद में 5 सितम्बर को कोरोना के बेहद प्रतिकूल माहौल के बावजूद छात्रों  का जो अभूतपूर्व उभार हुआ उससे घबड़ाई सरकार ने युवा मंच के खिलाफ मुकदमे के माध्यम से आम छात्रों युवाओं के दमन की रणनीति अपनायी है।

भोपाल में 4 सितम्बर को बेरोजगार संघ और AIDYO आदि संगठनों के बैनर तले रोजगार की मांग कर रहे युवक/युवतियों पर लाठीचार्ज किया और 50 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया।

पटना में रोजगार सम्बन्धी सवालों को उठा रहे अतिथि अध्यापकों (Guest Teachers ) के ऊपर लाठीचार्ज हुआ।

यह बेहद अफसोसनाक है और दुर्भग्यपूर्ण है कि सरकारें युवाओं की पीड़ा को समझ ही नहीं पा रही हैं कि आखिर युवा कितनी हताशा और बेचारगी में हैं कि जानलेवा महामारी के बीच जिंदगी दाव पर लगा कर प्रतिरोध में उठ खड़े होने को मजबूर हैं।

आज हालत यह है कि केन्द्र व राज्य सरकारों की मिलाकर 100 से अधिक परीक्षाएं लटकी हुई हैं जिनसे 10 करोड़ से अधिक प्रतियोगी छात्र सीधे तौर पर प्रभावित हैं।

कहीं पद खाली पड़े हैं, विज्ञापित ही नहीं हो रहे हैं। कहीं अच्छी खासी फीस देकर, वह भी मुफ्त नहीं, फार्म भरने के बाद नौजवान सालों साल इंतज़ार कर रहे हैं। कहीं बहुस्तरीय परीक्षा का एक चरण हो गया तो अगले चरण का इंतज़ार हो रहा है, कहीं परीक्षा पूरी तरह सम्पन्न भी हो गयी तो रिज़ल्ट का इंतज़ार। और रिजल्ट आ भी गया तो joining का इंतज़ार। इसी बीच court में कोई मुकदमा हो गया तो फिर सब अनिश्चित काल के लिए लटक गया।

यह सब इस देश की तरुणाई के साथ खिलवाड़ नहीं तो क्या है, नौकरी पाने की प्रक्रिया ही किसी युवा को कुंठा से भर देने और उसकी पूरी सृजनात्मकता नष्ट कर देने के लिए पर्याप्त है, अगर नौकरी मिल गयी तब भी। और अगर इतने पापड़ बेलने के बाद भी नौकरी नहीं मिली तो उसकी ऐसी मनःस्थिति बना दी जा रही है कि वह अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या के आत्मघाती रास्ते पर बढ़ने को मजबूर हो जा रहा है।

मोदी जी ने जो बड़े बड़े सब्जबाग दिखाए थे, डेमोग्राफिक डिविडेंड, भारत को मैनूफैक्चरिंग हब बनाने, हर साल 2 करोड़ रोजगार देने के-वह सब अब नौजवानों को मुंह चिढ़ा रहा है। उन्हें लग रहा है कि उनके साथ बहुत भद्दा मजाक किया गया है। इसीलिए अब आपदा को अवसर में बदलने, आत्मनिर्भर भारत आदि के जुमले उन्हें जले पर नमक छिड़कने जैसे लग रहे हैं।

नौजवान इस ऐतिहासिक विश्वासघात के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। 5 सितम्बर की ताली और थाली तो बस झांकी थी, असली पिक्चर अभी बाकी है !

बेहतर हो सरकार युवाओं के सपनों और उम्मीदों की हत्या करने की बजाय, उनके दमन के रास्ते पर बढ़ने की बजाय केंद्र और राज्यों के सभी खाली पदों के लिए परीक्षाएं समयबद्ध कार्यक्रम के तहत पूरा करवाकर नौजवानों को नियुक्ति दे, 50 साल से ऊपर रिटायरमेंट के रास्ते नौकरियों के पदों को खत्म करने से बाज आये, निजी हाथों में सरकारी विभागों/क्षेत्रों को सौंप कर नौकरियां खत्म करने से पीछे हटे, सबके लिए रोजगार सृजन की अर्थनीति लाये, ग्रामीण क्षेत्र की तरह शहरी मनरेगा लागू करे, रोजगार को संविधान का मौलिक अधिकार बनाये, रोजगार मिलने तक बेरोजगारों को जीवन निर्वाह भत्ता दे।

वरना, नौजवान इस ऐतिहासिक विश्वासघात के खिलाफ खड़े होंगे, सत्ता का कोई दमन उन्हें रोक नहीं पायेगा।

5 सितम्बर की ताली और थाली तो बस झांकी थी, असली पिक्चर अभी बाकी है!


लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लोकप्रिय छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं।

 


 

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