आर्थिक अपयश को जलाने के लिए सुलगायी गयी विद्वेष की होली!

मोदी सरकार का आर्थिक अपयश अब निर्विवाद है। मोदीजी की विविध घोषणाओं, दहाड़ों एवं विश्वपर्यटन के प्रयास व्यर्थ हो चुके हैं। देश का जीडीपी 4-5% तक कम हुआ है। बेरोजगारी न भूतो न भविष्यती की गति से बढ़कर 7.7% तक पहुँच गई है। शहर में यह मात्रा ग्रामीण भारत से बड़ी है। उद्योग–व्यवसाय की मंदी इसका एकमात्र कारण है। गत चालीस सालों में पहली बार यह आंकड़ा उच्च स्थान पर विराजमान है। करीबन 40 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। साथ ही करीबन 40 करोड़ लोग अत्यंत कम वेतन एवं अस्थायी रूप में नौकरी पर हैं। नैशनल सेंपल सर्वे ऑफिसेस के सर्वेक्षण के अनुसार ‘नोटबंदी’ इसका मुख्य कारण हैं। जिन राज्यों में भाजपा का शासन है वहाँ बेरोजगारी बड़ी मात्रा मैं है। औद्योगिक उत्पादन कम हुआ है। महंगाई गगन तक पहुँच गई है। महँगाई निर्देशांक 7.35 तक पहुँच गया है। ये सब घटक गरीबी और विषमता को बढ़ावा देने वाले हैं।

जागतिक भूख निर्देशांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) के अनुसार भारत 119 देशों की तुलना में 100वें स्थान पर है। एशिया खंड में केवल अफगानिस्तान  एवं पाकिस्तान हमारे तुरन्त बाद इस कतार में हैं। 2014 में हम 55वें स्थान पर थे। उत्तर कोरिया एवं इराक जैसे देश भारत से आगे हैं।

नॅशनल स्टॅटिस्टिकल ऑफिस (एन.एस.ओ) ने ग्राहक क्रयशक्ति की 2017-18 में इकट्ठा की हुई जानकारी प्रसिध्द न करने का निर्णय लिया क्योंकि वह जानकारी बड़ी मात्रा में सरकार के प्रति प्रतिकूल थी। ग्राहक क्रयशक्ति में प्रति व्यक्ति 3.7 प्रतिशत तक कम हुई जो गत चालीस सालों में सबसे अधिक हैं। जनता  के प्रति अनाज का प्रति व्यक्ति खर्च 10% तक कम हुआ।

ऑक्सफॅम जैसी आंतरराष्ट्रीय संस्था का अहवाल अपने देश की आर्थिक विषमता पर विदारक प्रकाश डाल देता है। भारत में आज 101 अब्जाधीश लोग हैं। गत एक साल में इस में 17 नए लोगों की संख्या मिलकर इसकी संख्या सौ से अधिक हो गई हैं। इन सब अब्जाधिशों की कुल जायदाद पंद्रह हजार सात सौ अठहत्तर लाख करोड़ रूपए हैं। केवल गत वर्ष में इसमें चार हजार आठ सौ इक्यावन लाख करोड़ रूपए जमा हुए हैं। यह रकम देश के सभी राज्यों के आरोग्य एवं शिक्षा हेतु अर्थसंकल्प में किए हुए कुल प्रावधान के 85% हैं। गत वर्ष में निर्माण हुई संपत्ति में से 73% संपत्ति केवल 1% सबसे बड़े धनवानों के पास थी। 67 करोड़ गरीब भारतीयों की संपत्ति में इसी दरमियान केवल 1% बढोतरी हुई। केवल इन 1% सबसे बड़े धनवान लोगों के पास जितनी संपत्ति थी वह देश के 2017-18 के अर्थसंकल्प (बजट) में किए हुए प्रावधान के बराबर हैं। इसमें अंबानी, अदानी और जिंदल प्रमुख हैं। इसे हमें भूलना नहीं चाहिए। इन तीनों ने मोदीजी की सबसे अधिक मदद की है। 37% अब्जाधीश वसीहत के तौर पर धनवान बने हैं, अपने कर्तृत्व से नहीं। 2022 तक भारत में हर दिन एक लखपति का समावेश होगा। 2000 साल तक भारत में 9 अब्जाधीश थे। 2017 में यह संख्या 101 हुई। कपड़ों की कंपनी में उच्चस्तर अधिकारी को पूरे वर्ष में मिलने वाला वेतन प्राप्त करने को आम कर्मचारी को 941 सालों की आवश्यकता होगी। यह आम कर्मचारी 50 सालों में जितना कमाएगा उतना कमाने के लिए इस अधिकारी को केवल 17.5 दिनों की आवश्यकता होगी। भारत की 73% संपत्ति केवल 10% धनवानों के पास है। वैश्विकरण की अर्थनीति के कारण देश में संपत्ति का केंद्रीकरण बड़े पैमाने पर होता गया, लेकिन गत छह वर्षों मे इसने भयानक रूप धारण किया हैं।

दो बातें ऐसी है जिससें हमारा देश नीचे उतरा है। वह है जनतंत्र निर्देशांक। 167 देशों की सूची में भारत 51वें स्थान पर है। भारत का जनतंत्र सदोष माना गया है। ब्रिटेन की इकोनॉमिक इंटेलिजन्स यूनिट यह कंपनी निर्देशांक घोषित करती हैं। बहुविविधता, सामाजिक स्वतंत्रता और राजनीति की संस्कृति, इन निकषों पर यह क्रमांक निश्चित किया जाता है। इस सूची में नॉर्वे पहले स्थान पर 10 में से 9.78 अंक, आइसलैंड दूसरे स्थान पर 9.58 अंक, स्वीडन तीसरे स्थान पर 9.39 अंक और भारत को 6.9 अंक प्राप्त हुए। अंतिम स्थान पर उत्तर कोरिया है, 1.08 अंक। दूसरा है भ्रष्टाचार निर्देशांक। इसमें 180 देशों की तुलना में भारत 78वें स्थान से 80 स्थान तक नीचे आया है। यह निर्देशांक ट्रान्सपरन्सी इंटरन्शॅनल संस्था घोषित करती है। इसमें 20 से 100 तक अंक दिए जाते हैं। शून्य का अर्थ है पूरी तरह से भ्रष्टाचारी देश और 100 अंक प्राप्त करने वाला देश भ्रष्टाचारमुक्त देश माना जाता है। भारत को 40 अंक प्राप्त हुए | ‘न खाऊँगा, न खाने दूंगा’, इस घोषणा के बाद यह परिवर्तन हैं। इन दोनों निर्देशांक की फिसलन आर्थिक पतन की सहायता कर रही है।

इन सब बातों का विचार करते हुए देश की आर्थिक, लोकतांत्रिक प्रामाणिकता की स्थिति कितनी चिंताजनक है यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। आर्थिक स्थिति को संवारने के लिए दृग्गोचर अर्थसंकल्प की आवश्यकता थी। मोदी-शाह जोड़ी और निर्मला सीतारामन जैसी वित्तमंत्री; इनकी ओर से यह अपेक्षा करना पागलपन था। हाल ही में घोषित हुए अर्थसंकल्प ने यह साबित किया है। अर्थव्यवस्था को संवारने के लिए  एल.आइ.सी. जैसी बड़ी नफा प्राप्त करने वाली सार्वजनिक व्यवसाय क्षेत्र की कंपनी की ब्रिकी कर रहे हैं। मोदीजी देश की अर्थनीति  पहले से ही काबू में रखने में असमर्थ रहे। उनका शिक्षण, पठन, आकलन एवं व्यासंग का विचार करते हुए यह बात उनके बस की थी नहीं, लेकिन राजनीति में प्राप्त यश और समर्थकों का गुणगान सुनकर खुद की क्षमता के बारे में अवास्तव अहंकार निर्माण होने के कारण अर्थतज्ज्ञ लोगों से सलाह मशविरा करने की आवश्यकता उन्हे महसूस नहीं हुई। रघुराम राजन, अमर्त्य सेन एवं अभिजित बैनर्जी उनकी मर्जी में नहीं थे। हाथ से दूर जानेवाली अर्थव्यवस्था नोटबंदी एवं जी.एस.टी. जैसे सनकी निर्णयों के कारण रसातल में पहुँची।

भारतीय जनता पर मोदी नामक लहरी महंमद का किया हुआ यह सर्जिकल स्ट्राइक था। कश्मीरी जनता पर ‘370’ रद्द जैसा सर्जिकल स्ट्राइक किया गया था। अब एन.पी.आर., एन.आर.सी. और सी.ए.ए. जैसे सर्जिकल स्ट्राइक देश की आम जनता पर होने वाले हैं। अपनी ही जनता पर इस तरह के सर्जिकल स्ट्राइक करने से घायल हुई जनता के जख्मों पर फूंक मारने की संवेदनशीलता इस राजा के पास होने का सवाल भी नहीं उठता। जनता की भलाई किसमें है यह केवल मैं और मैं ही जानता हूँ, इस तरह का अहंकारप्राप्त नेता अंत में देश को खत्म करने वाला साबित होता है। सर्वज्ञ एवं अंतिम होने का अहंकार नेता के मन में अमर्यादित सत्ता का लालच निर्माण करता है। किसी भी प्रकार का अपयश ऐसे नेता के मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर देता है। इस अपयश को मिटाने के लिए और सत्ता पर अंत तक विराजमान रहने के लिए ऐसा नेता जुल्मोसितम एवं विद्वेष का आधार पा लेता है।  विद्वेष से जनता में फूट एवं गृहकलह का निर्माण किया जाता हैं। एक ओर अंधभक्तों की फौज खड़ी की जाती है तो दूसरी ओर जुल्मोसितम की मदद से विपक्ष को पीसा जाता है।

और यह सब पर्याप्त नहीं हुआ तो पाकिस्तान के साथ युद्ध का पर्याय हाथ में होता है। जनता में असंतोष भडका है और मोदी आर्थिक अपयश को विद्वेष की आग में जलाकर हिंदूराष्ट्र निर्माण करने की ओर निकल पड़े हैं।


लेखक आरोग्य सेना के राष्ट्रीय प्रमुख और सोशलिस्ट युवजन सभा के पूर्व अध्यक्ष हैं 

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